Towards the Light – Memoirs in Hindi Moral Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर –संस्मरण

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उजाले की ओर –संस्मरण

उजाले की ओर ----संस्मरण

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मित्रों

सस्नेह नमस्कार

उम्र की एक कगार पर आकर काफ़ी चीज़ों में बदलाव आने लगता है, काफ़ी चीज़ें सीमाओं में कैद होने लगती हैं | जैसे किसी को कान से सुनाई देने में दिक्कत, किसी की मैमोरी लौस, किसी को कुछ तो किसी को कुछ | कुछ को अधिक चलने में कठिनाई होना या कुछ और ऐसे ही---कुछ न कुछ तो होने लगता ही है | हम निराश होकर बैठ जाते हैं यदि हमें कोई कहे भी तो भी हम बचते रहते हैं, यदि कहें कि अपने मन को भी मारते रहते हैं तो गलत नहीं होगा | लेकिन जीवन में बदलाव अति आवश्यक है | जैसे हम एक ही वस्तु बार-बार खाते रहें और उससे कभी इतनी चिढ़ हो जाए कि उसे देखने का मन भी न हो | ऐसे ही यदि हमारे जीवन में बदलाव न हो तो मन-मयूर नाचना भी तो बंद कर देता है न | और उदासी की परछाईं हमारे दिलोदिमाग को प्रभावित करने लगती है |

ज़रूरत है अपने जीवन के झरोखों को खोलकर रखना, उनमें शीतल वायु के झौंके आने देना, उन्हें अपनी साँसों में, मन में, धडकन में भर लेना और महसूस करना कि परिस्थिति चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हो हमें मुस्कुराना तो है ही | चाहे हमारी उम्र कितनी भी अधिक क्यों न हो, हमें जीवन के प्रति, प्रकृति के प्रति, अपने चारों तरफ़ फैले हुए लोगों के प्रति कृतज्ञ तो रहना ही है | हमें कृतज्ञ उनके प्रति भी रहना है जो हमें प्यार नहीं करते | जी, ठीक समझे हैं, प्यार नहीं करते बल्कि नफ़रत करते हैं | वे प्यार नहीं कर सकते क्योंकि उन्होंने प्यार को अपने दिल में स्थान ही नहीं दिया है, उन्होंने नफ़रत को दिल में बसा लिया है और उसे अपने जीवन में ऊँचे स्थान पर सुशोभित कर लिया है |

अब सोचिए भला, जब मुस्कुराहट के स्थान पर उदासी, प्रसन्नता के स्थान पर क्रोध और किसी को आशीष के स्थान पर क्रोध भरे हुए अप्रिय वचन कहेंगे तो भला कैसे चेहरों पर मुस्कान खिलेगी?तो चलिए, कोई भी उम्र क्यों न हो, कोई भी परिस्थिति क्यों न हो हमें बस सकारात्मक ही रहना है |वो भी इतना कि जो हमसे यानि मानवता से प्यार नहीं करते उन्हें लौटाकर खूबसूरत प्रेम का हिस्सा बनाना है | वो नहीं दे पाते न प्यार, हम तो दे ही सकते हैं न, और प्रेम बाँटकर तो देखें कैसे दुनिया में चमत्कारी शक्तियाँ सामने लेकर आएगा यह प्रेम ! यदि प्रेम होगा तो दुनिया का स्वरूप क्या होगा?वह खुले आसमानों में उड़ते पक्षियों की भाँति मुक्त होकर प्रेम ही प्रदीप्त करेगा | प्रकृति का प्रेम कैसे-कैसे दृश्य बनाता, दिखाता है महसूस करें;

(समुद्र के एक सुंदर दृश्य से )

जिस काँच की खिड़की को

खोलकर मैं आ बैठी हूँ

इस ख़ूबसूरत बालकनी में

वहाँ से दूर दूर तक

मुझे समेट रहा है

ऐसा संवेदनशील पल

कर रहा है अदृश्य इशारा

फुसफुसाती पवन

दिखा रही है मार्ग

वो---दूर कहीं चल--आ---

इस बदलाव का यूँ हो जाना

और पता भी नहीं चलता - - -

बिखरा है एक ख़ालीपन

इशारा है कुछ तो

समझा रहा, अर्थ जीवन का

लम्हों में जीने की करता बात

घोल रहा साँसों में

एक अदना अहसास

ये पल--बस - - केवल यही

और पता भी नहीं चलता - - -

एक ही पल, उम्र का

डूब गई है जिसमें

सारी वेदना, सारा इतिहास

हाँ, सारा भूगोल भी - - -

और पता भी नहीं चलता - - -

रात में करवटें लेती लहरें

न जाने कहाँ छिप गई हैं?

पलट गया है, सारा भूगोल - -

भूल जाती हूँ

रास्तों के मोड़

सब कुछ उलट-पलट सा

और पता भी नहीं चलता - - -

और - - ये हर दिन

होता है घटित

हम एक - एक पल में

नई ज़िंदगी

जीते जाते हैं

इसी उहापोह में

कब आ खड़े होते यहाँ

और पता भी नहीं चलता - - -

अब पानी की जगह

देख रही हूँ समुद्र में

ऊँचे नीचे ज़मीन के

वो टुकड़े जो रात भर

पानी की चादर से

ख़ुद को ढके हुए थे

अब नग्न हो गए हैं

और पता भी नहीं चलता - -

माटी का मोल बताते हैं

बहुत कुछ समझाते हैं

मोड़ों का संवाद सुनाते हैं

कब कुछ कह जाते हैं

और पता भी नहीं चलता - - -

 

प्रेम के सहारे जीवन की कठिन घड़ियाँ कब, कैसे बीत जाती हैं, पता भी नहीं चलता !!

 

आप सबकी मित्र

डॉ. प्रणव भारती