Prem Gali ati Sankari - 62 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | प्रेम गली अति साँकरी - 62

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प्रेम गली अति साँकरी - 62

62----

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हम किसी बड़े सुंदर हॉलनुमा कमरे में पहुँच चुके थे | हमारे साथ ही होटल का कर्मचारी था जिसने डोर ओपनिंग कार्ड से कमरे का दरवाज़ा खोलकर श्रेष्ठ को वह कार्ड पकड़ा दिया था और कुछ पीछे की ओर हाथ बांधकर खड़ा हो गया था | 

“सर---”श्रेष्ठ को अपनी ओर देखते ही उसने धीरे से कहा | 

“यू कैन गो, आई विल ऑर्डर ऑन द फ़ोन ---थैंक यू --”

“यस सर---थैंक यू----” उसने बड़ी तहज़ीब से कहा और मुड़कर चला गया | 

“आओ----” श्रेष्ठ ने कमरे में प्रवेश करते समय मेरा हाथ छोड़ दिया था और बहुत बड़े और सजे हुए सुंदर कमरे में वह मेरा स्वागत कर रहा था | 

बरसों पहले अपने दोस्तों के साथ मैं बहुत जगह जाया करती थी लेकिन वे स्थान अधिकतर खुले में होते थे जैसे कोई फॉर्म-हाऊस, पिकनिक स्थलों पर या कहीं शहर से बाहर दर्शनीय स्थलों पर भी हम सब दोस्त मिलकर जाते थे | हाँ, अम्मा-पापा के साथ बहुत स्थानों पर गए लेकिन कभी भी ऐसे अकेले किसी के साथ नहीं गई थी इसलिए थोड़ी सी झिझक थी लेकिन यहाँ आने का कारण भी तो कुछ और था | मुझे लगता था कि श्रेष्ठ होटल के बड़े से डाइनिग के कोने की किसी रिज़र्व सीट पर बैठकर मुझसे बात करेगा लेकिन इसने तो कमरा ही बुक करवा रखा था | इतनी बड़ी उम्र में भी मैं कुछ सहम सी रही थी लेकिन अब तो आ चुकी थी | आगे बढ़ते हुए मैं सोफ़े पर जा बैठी जहाँ से होटल के बाहर का खूबसूरत नज़ारा दिखाई दे रहा था | 

“रिलेक्स हो जाओ अमी—इतने संकोच में रहोगी तो दिल खोलकर बातें कैसे कर सकेंगे ?” श्रेष्ठ ने कहा और मैं और भी सिकुड़ गई | 

“कम ऑन ---”उसने अपना कोट निकालकर खूबसूरत सफ़ेद सिल्की चादर से सजे बैड पर उछाल दिया था और मेरे सामने सोफ़े पर बैठकर उसने पूछा ;

“क्या लोगी ?लैट अस स्टार्ट सम ड्रिंक---”

“एनीथिंग सॉफ़्ट ---”मैंने बिना देर लगाए कहा दिया | 

“क्यों –सॉफ़्ट क्यों ?मुझे पता है तुम हार्ड ड्रिंक लेती हो---” श्रेष्ठ के कहा | 

“नहीं—नहीं किसने कह दिया ?मैं किसी भी चीज़ की आदी नहीं हूँ---” मेरा दिल धड़कने लगा | यहाँ मैं किसी ड्रिंक पार्टी में तो आई नहीं थी | सिम्पल डेट पर आई थी मैं--वह बात अलग है कि आजकल की सो कॉल्ड मॉडर्न पार्टीज़ में हार्ड ड्रिंक्स से शुरुआत बड़ी नॉर्मल बात है | 

“कुछ तो लो---मैं तो वाइन लेता हूँ तुम लोगी या तुम्हारे लिए वोदका ऑर्डर कर देता हूँ | उस दिन मैंने तुम्हारे यहाँ डिनर पर देखा था, वोदका तो तुम लेती हो ---”श्रेष्ठ ने कुछ ऐसे मूड में कहा जैसे न जाने मुझे कितनी बार पीते हुए देखा था | 

“नहीं श्रेष्ठ, मेरा मूड नहीं है | हम लोग ड्रिंक्स के आदी नहीं हैं | ” मैंने कहा लेकिन उसे अच्छा नहीं लगा | 

“डोंट स्पॉयल मूड यार---” उसने कुछ इस प्रकार से कहा मानो मैं उसके साथ कितनी बार ड्रिंक ले चुकी हूँ | मुझे अच्छा नहीं लग रहा था, एक तो मैं उसके साथ अकेली इस कमरे में बैठी थी | मैं बिलकुल भी कंफरटेबल महसूस नहीं कर रही थी | 

“मैं बहुत शौकीन नहीं हूँ श्रेष्ठ, वो तो कभी-कभी किसी के डिनर पर आने पर या पार्टी में आउट ऑफ़ कर्टसी लेनी पड़ती है वरना मैं शौकीन नहीं हूँ | ”मैंने बहुत स्पष्ट रूप से उसे कहा लेकिन मैंने देखा उसका मूड कुछ उखड़ सा गया था | 

“ओ.के---हैव सम बीयर---”उसने मुझे मनाने की चेष्टा करते हुए कहा | 

मैं मना नहीं कर सकी और श्रेष्ठ ने फटाफट ऐसे ऑर्डर दिया जैसे कुछ देर हो जाएगी तो मैं मुकर जाऊँगी | 

दसेक मिनट में ड्रिंक्स आ गई और हम वहीं खिड़की के पास सोफ़े पर ही बैठे रहे थे | वैसे श्रेष्ठ एक डीसेंट आदमी था लेकिन उसके व्यवहार से मुझे महसूस हो रहा था जैसे वह आज ही सब कुछ फ़ाइनल कर लेना चाहता है | 

वहीं बैठे-बैठे हमने ड्रिंक ली | वह अपने फ़्यूचर प्लान के बारे में बताने लगा जैसे पहले भी बता चुका था कि उसने भविष्य में सिंगापुर रहने की योजना बना ली है | 

“अगर हम दोनों अपने भविष्य के बारे में सीरियस हों तो क्या तुम सिंगापुर चलने के लिए तैयार हो सकोगी?”

मेरे पास अभी उसकी बात का कोई उत्तर नहीं था | वह जानता तो था कि संस्थान को छोड़ पाना मेरे लिए मुश्किल था | इसीलिए अम्मा-पापा की इच्छा थी कि यदि मुझे अपनी पसंद का साथी यहीं मिल सके तो सब मिलकर संस्थान को संभाल सकते हैं | मैं कुछ नहीं बोली –बीयर मुझे बहुत पसंद नहीं थी फिर भी परिस्थितिवश मुझे लेनी पड़ी थी और मैं उसे मना नहीं कर सकी थी | मुझे श्रेष्ठ की बातों में न जाने कोई खास रुचि नहीं थी | पहली बार मुझे लेकर आया था और कहीं बाहर घूमने या बाहर खुले में बैठने की जगह वह मुझे इतने बड़े होटल में और वह भी इस सूट में लेकर आया था जो मेरी समझ में बिलकुल ही नहीं आ रहा था | पहले तो वह मिलता था थोड़ी बहुत मज़ाक भी कर लेता था | आज तो वह कुछ ऐसा बिहेव कर रहा था जैसे हमारे बीच का रिश्ता फ़ाइनल हो गया हो | 

“क्या लोगी खाने में ?” उसने दो या शायद तीन पैग ले लिए थे और वह पीने का आदी होने के बावज़ूद कुछ अलग से मूड में दिखाई दे रहा था | शायद उस पर ‘डेटिंग’का सुरूर चढ़ने लगा था | 

“मतलब---?” मैंने पूछा क्या वह खाना भी यहीं मंगवाना चाहता था?मैंने मन में सोचा | 

“नीचे डाइनिंग में चलते हैं—” मैं उलझन में थी | 

“क्यों, डाइनिंग में क्यों ?यहाँ क्यों नहीं?”वह सामने के सोफ़े से उठकर मेरे साथ सोफ़े पर आकर बैठ गया और मुझे आलिंगन में ले लिया | अचानक उसके इस व्यवहार से मैं हतप्रभ रह गई क्योंकि मैं उसके इस व्यवहार के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं थी | उसने अपने होठ मेरी ओर बढ़ाए और मैंने जबरदस्ती उसे अपने से हटाने की कोशिश की | 

“मैं तुमसे प्यार करने लगा हूँ अमी---” वह बुदबुदाया | उसका यह व्यवहार समझने में कोई मुश्किल नहीं थी लेकिन मैं उस व्यवहार से काँप सी गई | ये कैसा प्यार था ?उसकी चाहत मुझसे क्या माँग कर रही थी | नशा उसके पोर-पोर में तारी हो चुका था | हम दोनों में से कोई भी इतने छोटे तो थे नहीं थे जो स्थिति को समझ न पा रहे हों | 

“श्रेष्ठ !उठो हम डाइनिंग में चलेंगे ---”उसके आलिंगन से छूटकर मैं उठ खड़ी हुई | उसे बिलकुल अच्छा नहीं  लगा | 

“यू कांट इंसल्ट मी लाइक दिस—आफ्टरऑल वी ----”वह जो कहना चाहता था, मैं क्या समझती नहीं थी?

“यू कैन---?” मैंने भरभराई आवाज़ में पूछा | 

“आई एम नॉट इंसल्ट ---”उसकी आवाज़ बीच में ही कट गई | 

मैं उस परिस्थिति में उससे बहस नहीं करना चाहती थी | 

“मैं डाइनिंग में जाना चाहती हूँ ---”मैंने कहा | 

“अमी –प्लीज़---” उसने कहा और एक बार फिर से मेरे करीब आने की कोशिश की | मैंने कोई उत्तर नहीं दिया और कमरे के दरवाज़े के पास आकर खड़ी हो गई | 

वह कितना भी पी चुका हो इतना ख्याल तो होगा ही कि इस प्रकार वह मुझे किसी चीज़ के लिए फ़ोर्स तो कर नहीं सकता था | उसने एक बार निराशा से भरकर मेरे चेहरे पर दृष्टि डाली, अपना डबलबैड पर फेंका गया कोट उठाया, मेज पर से मोबाइल और ‘डोर कार्ड’ उठाया और बेमन से दरवाज़े के पास आकर खड़ा हो गया |