Prem Gali ati Sankari - 60 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | प्रेम गली अति साँकरी - 60

Featured Books
  • My Wife is Student ? - 25

    वो दोनो जैसे ही अंडर जाते हैं.. वैसे ही हैरान हो जाते है ......

  • एग्जाम ड्यूटी - 3

    दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्...

  • आई कैन सी यू - 52

    अब तक कहानी में हम ने देखा के लूसी को बड़ी मुश्किल से बचाया...

  • All We Imagine As Light - Film Review

                           फिल्म रिव्यु  All We Imagine As Light...

  • दर्द दिलों के - 12

    तो हमने अभी तक देखा धनंजय और शेर सिंह अपने रुतबे को बचाने के...

Categories
Share

प्रेम गली अति साँकरी - 60

60---

=======

कितने लंबे समय के बाद एक सुकून सा महसूस हुआ था सबको | जगन की कहानी एक बीता हुआ दुखद स्वप्न था | जिसको जितनी जल्दी दिलोदिमाग से खुरचकर फेंक दिया जाए, उतना ही अच्छा था | वह एक ऐसी भीगी हुई पीड़ा थी जैसे कोई किसी भीगे कपड़े को निचोड़कर कोड़े मारता हो | कितना सहा था इस पूरे परिवार ने केवल एक आदमी के कारण लेकिन होता है, ऐसे ही होता है जीवन में, एक मछली जैसे सारे तालाब को गंदा करती है ऐसा ही कुछ हुआ था शीला दीदी के परिवार में | 

मैं भी तो ऐसी ही थी, केवल मेरे कारण से ही तो पूरे परिवार की आँखों की नींद उड़ी रहती थी | भाई केवल सप्ताह भर के लिए आया था | इस बीच उसने और एमिली ने मुझसे बहुत कुछ जानने की कोशिश की | वे लोग श्रेष्ठ और प्रमेश को मिले भी | एक को उन्होंने चुलबुला पाया और दूसरे को एकदम चुप्पी भरा, जैसे वे दोनों मूल रूप से थे ही | मेरे साथ कौन सही रह पाएगा, यह भाई भी नहीं सोच पाया | उसका कहना था कि यह रिश्ता बहुत पर्सनल होता है, एकदम व्यक्तिगत ! इसमें कोई दूसरा निर्णय कैसे ले सकता है ?फिर भी सबको मेरे एकाकीपन की चिंता थी इसलिए मुझे ही उकसाते रहे | मैं भँवर में थी, एक ऐसे भँवर में जिसमें से निकलने में मुझे कितनी पीड़ा हो रही थी, मैं ही जानती थी | कितना कठिन होता है ऐसे निर्णय लेना ! मुझे लगता, मैं दुनिया की आखिरी बेवकूफ़ रही होऊँगी जो रिश्ते के मामले में इतना बेहूदा भाग्य लेकर धरती पर उतरी थी | 

भाई को तो लौटना ही था, वह अपने परिवार के साथ लौट गया | यू.के वाला ट्रिप बहुत वाहवाही कमाकर लाया था | यू.के के कई शहरों से आमंत्रण आ रहे थे और इस बार भाई अम्मा से वायदा लेकर गए थे कि अगले ट्रिप में अम्मा–पापा भी आएंगे | बेशक अम्मा को सब शहरों में जाने की ज़रूरत नहीं थी लेकिन वहाँ के लोग उनका सम्मान करना चाहते थे और अन्य शहरों में नई शाखा खोलने के समय अम्मा की उपस्थिति के लिए उन्हें अनुरोध कर रहे थे | 

“अब तो यहाँ की समस्या हल हो गई न, इतनी अच्छी तरह सब मिलकर संस्थान का काम संभाल रहे हैं | शीला दीदी के परिवार की समस्या भी एक प्रकार से हल हो ही गई है | अब अम्मा–पापा को क्या परेशानी है मेरे पास आने में ?” भाई ने भारत छोड़ने से पहले मेरे सामने यह कहा था | 

अब सबसे बड़ा अवरोध तो मैं ही थी | पता नहीं अम्मा को यह भी क्यों लगता था कि मैं उन लोगों के पीछे और अकेली पड़ जाऊँगी | बात तो सच थी लेकिन कब तक? मेरे कारण अम्मा-पापा का मुस्कुराता साथ भी फीका पड़ता जा रहा था | उनके चेहरों पर जो एक छाया सी पसरी रहती थी, मैं भली-भाँति जानती ही थी कि आखिर वह क्यों और किसलिए है?

“अम्मा, आज मैं श्रेष्ठ के साथ बाहर जाने वाली हूँ, उसने फ़ोन किया था | मैंने उसे हाँ कह दी है | ” मैंने अम्मा को बताया | 

“हाँ, बेटा –आपस में बात करने से ही तो आगे कुछ सोच सकोगे | उस दिन भी तुमने उसकी बात नहीं मानी | बेटा!कहीं तो एडजस्ट करना पड़ता है न! कितने भी अच्छे लोग क्यों न हों | ”

“जीअम्मा, मैंने सोच लिया, मैं जल्दी ही कोई निर्णय लेती हूँ | आप लोग भी फ्री हो जाएंगे | ”मैंने उदासी से कहा जो अम्मा को चुभ गया | 

“ऐसे क्यों बोल रही हो अमी?यहाँ हमारे फ़्री होने की बात नहीं है, तुम्हारी खुशी की बात है जो हमें भी भीतर से आनंद देगी---आखिर---”

“हाँ अम्मा, आखिर आप मेरे अम्मा-पापा हैं, यही बात है न ?” मैं उनका मूड लाइट करने के लिए कह रही थी, हम सब ही यह बात जानते थे | मैंने कभी यह इच्छा भी तो जाहिर नहीं की थी कि मैं बिना साथी के रहना चाहती हूँ | अगर ऐसा कुछ कभी कहती तो शायद अम्मा-पापा किसी और तरह से सोचते मेरे बारे में!

आज खूब अच्छे से तैयार होकर मैं निकल ही रही थी कि उत्पल पधार गया | 

“हाय !”उसने चहकते हुए कहा | 

“ओ !हैलो---कहाँ हो ?”मैंने उससे शिकायत सी की | 

“मैं तो यहीं हूँ, आपकी ही निगाह नहीं पड़ती | ”उसने मुझे प्रशंसा की दृष्टि से देखते हुए कहा | 

“कितनी प्यारी लग रही हैं आप !कितने दिनों बाद आपको ऐसे तैयार हुए देखा | ”उत्पल मेरी ओर टकटकी लगाकर खड़ा रह गया | 

“क्या है उत्पल ?”मैं खिसिया सी गई | उसकी आँखों में अपने लिए प्यार भरी प्रशंसा देखकर सच में मेरे दिल की धड़कनें अचानक ही बढ़ने लगीं और मैं वहाँ से जल्दी खिसकने के लिए बगलें झाँकने लगी | लेकिन मैंने मुस्कुराकर उसकी ओर देखा | मुझे न जाने क्यों उसकी प्रशंसा बहुत अच्छी लगती | मेरा चेहरा खिल जाता | 

“हम्म---यूँ ही मेरी खिंचाई करते रहा करो---” अपने दिल की धड़कनों पर काबू पाने की कोशिश करते हुए मैंने उससे कहा | 

“आपको लगता है, मैं आपकी खिंचाई कर सकता हूँ ?”उसने मुँह बनाकर कहा | 

मैं हँस दी और आगे बढ़ी | श्रेष्ठ का फ़ोन दो बार आ गया था जिसे मैंने काट दिया था | उसे लगा होगा कि मैं पहुँच ही रही थी | गेट पर ही तो था वह !

“चलिए, आज मेरे साथ बाहर चलिए----प्लीज़---”उसने आँखों में आशा भरकर बड़ी आजिजी से कहा | 

“आज मुश्किल है उत्पल, ऑलरेडी फिक्स्ड---” मैंने उसे कहा और ‘बाय’कहते हुए आगे गेट की ओर बढ़ने लगी | 

“ओके---”मैंने देखा उसका मुँह लटक गया था | 

“अरे!चलते हैं न जल्दी, एक दिन---” मैंने उसकी तरफ़ हाथ हिला दिया | 

न उसने मुझसे पूछा कि मैं कहाँ जा रही थी, न ही मैंने उसे बताया किन्तु वह लॉबी में मेरे पीछे चलता रहा था, मैं जानती थी लेकिन मैंने ऐसा जताया कि मुझे मालूम नहीं था कि वह मेरे पीछे ही पीछे आ रहा था और मैं जानती थी कि जहाँ से मुझे गेट की ओर मुड़ना था, वह वहाँ ठिठक गया था | बिलकुल समझ गया होगा कि मैं तैयार होकर श्रेष्ठ के साथ जा रही थी क्योंकि वहाँ से गेट पर खड़ी हुई श्रेष्ठ की गाड़ी साफ़ दिखाई दे रही थी | मुझे बिना पीछे मुड़े ही बखूबी पता चल रहा था कि वह दबे पाँव मेरे पीछे ही था | कैसे उन कदमों की आहट न पहचानी जाती जो कभी भी मेरे साथ हमकदम हो जाते थे और कभी मेरी तलाश में इधर-उधर बहकते से लगते थे | कैसे खिला रहता था उत्पल का चेहरा जब वह मेरे साथ रहता | मैं उसे बिना देखे ही उसका उदास लटकता चेहरा जैसे पढ़ पा रही थी |