The Author S Choudhary Follow Current Read घुम्मकड़ी की मुश्किलें By S Choudhary Hindi Travel stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books अंगद - एक योद्धा। - 9 अब अंगद के जीवन में एक नई यात्रा की शुरुआत हुई। यह आरंभ था न... कॉर्पोरेट जीवन: संघर्ष और समाधान - भाग 1 पात्र: परिचयसुबह का समय था, और एक बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी की... इंटरनेट वाला लव - 90 कर ये भाई आ गया में अब हैपी ना. नमस्ते पंडित जी. कैसे है आप... नज़रिया “माँ किधर जा रही हो” 38 साल के युवा ने अपनी 60 वर्षीय वृद्ध... मनस्वी - भाग 1 पुरोवाक्'मनस्वी' एक शोकगाथा है एक करुण उपन्यासिका (E... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Share घुम्मकड़ी की मुश्किलें (2) 2.5k 5.7k तीर्थ स्थलों, टूरिस्ट पैलेस के पास अगर मोबाइल ले जाना बंद कर दिया जाये तो 90% ट्रैफिक कम हो जायेगा। इन स्थलों का आनंद लेने 10%ही जाते हैं। बाकी 90% केवल फ़ोटो वाले ही हैं। इन 90 को ना नेचर से मतलब , ना शांति से मतलब , ना भक्ति से मतलब और ना ही ये मूड चेंज करने जाते। इन्ही 90 की शिकायत रहती है कि मनाली में लूट मची हुई है,इनकी ही शिकायत है कि मसूरी में मैगी भी ₹80की मिलती है, इन्ही की शिकायत है कि केदारनाथ में ठग बैठे हैं, इन्ही के महीने के आखिर में बजट बिगड़ते हैं। बाकी 10 इसलिए जा रहे हैं कि उनको जाना है। उनके पास पैसा है , छुट्टी हैं , वें जानना चाहते हैं नई जगह की संस्कृति को, नये ट्रेंड को या फिर वें काम से थक गये हैं और मूड चेंज करना चाहते हैं , शांति चाहते हैं। लेकिन इन 90 ने उनसे ज्यादातर ये अवसर भी छीन लिए हैं। सस्ती और मध्यम खर्चीली जगह पर 90 का उत्पात है। नशे ,तेज म्यूजिक , हॉर्न और फूहड़ता से इन्होंने शांत स्थानों की शांति छीन ली है। मालदीव और थाईलैंड जैसी जगह के निवासी भारतीयों को क्वेंग (ठरकी) कहकर पुकारने लगे हैं। कुछ दिन पहले एक मित्र ने दुख प्रकट किया कि 1 साल से ज्यादा हो गया उसे घर जाये। मैंने पूछा- अभी कुछ दिन पहले तो कहीं पहाड़ों में गये थे घूमने ? उसने इसमे भी दुख जताया कि गये तो थे यार लेकिन जाम बहुत मिला, होटल ऑनलाइन बुक किया था लेकिन वहाँ जाकर होटल वाले ने भी ज्यादा पैसे मांगे फिर जिससे बुक किया था उस एप्प की हेल्पलाइन पर बात करके बात बनी। मैंने पूछा- और क्या किया ? बोला- रास्ते मे सोनीपत से ही L1 से 2 पेटी बियर उठा ली थी कुछ व्हिस्की ले ली थी बस पीते गये। जाकर थोड़ी बहस के बाद होटल में सो गये। बाहर जाकर फोटो खींची, 2 दिन में फिर पीते पीते वापस आ गये, रास्ते मे 1-2 जगह बहस भी हुई। खर्च - 5-7 हजार प्रति व्यक्ति। मैंने फिर पूछा- घूमकर आने के बाद भी ना तो तुम खुश दिख रहे और ना ही कोई चेंज दिख रहा ? मित्र बोले- अरे ऐसे ही चिल करने गये थे। मैंने फिर भाई को फ्री सलाह दी- आम का सीजन है , गांव में बाग हैं , गर्मी का सीजन है और बिजली भी दिनभर आती ही है। अगर तुम दोस्तों को लेकर गांव जाते, उन्हें बाग में घुमाते बाग वाले से परमिशन लेकर आम तोड़कर खाने का मौका देते तो दोस्तों को कैसे मजे का अनुभव होता ? 5 लोगो के एकसाथ आने से घर मे भी उत्सव जैसा माहौल होता। L1 से उठाई गई पेटी को ट्यूबवेल पर लेकर जाते, खुद की ट्यूबवेल पर बड़ी होजी नही है तो किसी परिचित की पर चले जाना था। गांव के भी कुछ निःस्वार्थ बचपन के दोस्त खुशी में सम्मिलित होते। और तुम्हे यह दुख भी नही रहता कि 1 साल से घर नही जा पाये। दरअसल हम लोग देखा देखी घूमने तो जा रहे हैं लेकिन वास्तव में हम भेड़ें ही हैं जो एक के पीछे चलने लगती है। धार्मिक यात्राओं की बात करें तो वैष्णों देवी,जगन्नाथ पुरी , रामेश्वरम, केदारनाथ , बद्रीनाथ , हरिद्वार, ऋषिकेश ,कांवड़ यात्रा, नैना देवी , वृन्दाबन, बनारस , अयोध्या , मेहंदीपुर बालाजी और अमृतसर जैसी जगहों पर लोग पहले से ही श्रद्धा से जाते हैं लेकिन इनके साथ ही बीच बीच मे कई जगह ऐसी बन जाती हैं जहाँ भीड़ बढ़ जाती है। पहले शिरडी में खूब भीड़ बढ़ी, फिर गोगामेड़ी खूब लोग गये, खोली वाले बाबा मोहन राम का खूब क्रेज लोगो मे रहा, फिर खाटू श्याम और आजकल नीम करौली बाबा आश्रम। सिर्फ श्रद्धा अगर यात्रा का विषय हो तो कोई बात नही लेकिन देखा देखी जो भेड़चाल है वह खतरनाक है। जोशीमठ का हाल कुछ दिन पहले सभी ने देखा, पूरा शहर धीरे धीरे दरक रहा है, नीम करौली भी कोई बहुत बड़ी जगह नही है। ना ही अच्छे होटल, ना ही पार्किंग और ना ही डिजास्टर मैनेजमेंट की अच्छी सुविधाएं वहाँ हैं लेकिन भीड़ दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। देखादेखी लोगों में घुमक्कड़ी तो बढ़ी है लेकिन घुमक्कड़ी वास्तव में है क्या वह बिना जाने दौड़ पड़ते हैं लोग। जो आपको थका दे ,जिससे आपको मानसिक तनाव हो , जिससे आपकी सेहत का नुकसान हो उसे यात्रा मानना ही नही चाहिए। हुल्लड़ बाजी टूर नही होता। यात्रा वही है जिससे आप कुछ सीखतें हैं , जिससे आपको सुकून का अनुभव होता है , जिससे आप तरोताजा अनुभव करते हैं , जिससे आपके परिजन और मित्र खुशी का अनुभव करें। दूसरी संस्कृति या सभ्यता को जानना , दूसरी भाषा वाले लोगो से मिलना और जहाँ गये हैं वहाँ का भोजन करना , वहाँ कोई अच्छी नई तकनीक या नया उद्योग मिले तो उसकी जानकारी लेना या फिर स्वास्थ्य लाभ लेना।। यात्रा करने से पहले खुद से एक सवाल कीजिये कि आप यात्रा कर क्यों रहे हैं ? इसके बाद ही यात्रा की जगह फाइनल कीजिये। सिर्फ हुल्लड़बाजी और नशे करने का मकसद है तो आसपास का कोई पब या बार सबसे बेहतर जगह है। इसके लिए आप शिमला,मसूरी या मनाली में भीड़ मत बढाइये। वहाँ परिवार के साथ गये लोगों या नये शादीशुदा जोड़ों को सुकून से घूमने दें। आप गोवा जा सकते हैं। वैसे यात्रा के शौकीन लोग भारत मे लद्दाख , औली , गुलमर्ग , कोवालम , आमबी वेली और अंडमान जैसी जगह पर जाना ज्यादा पसंद करेंगे। शिमला, मनाली, मसूरी तो यात्रा का बेसिक सीखने के लिए हैं। प्रिय 90 से आग्रह है कि यात्रा जरूर कीजिये लेकिन बाकी 10 को सुकून से रहने दीजिये। गांव जाना , मामा- बुआ-मौसी के घर जाना,दोस्तों के घर जाने को भी यात्रा ही माना जायेगा। समाज के बीच जाकर सहयोग करना , जनसेवा के काम करना आदि भी छुट्टी के उपयुक्त प्रयोग के लिए उत्तम है। छुट्टी में घर पर सफाई में सहयोग करके ,परिवार को मूवी ले जाकर भी आप ग्रह क्लेश से बच सकते हैं और 10 भी खुश रहेंगे। धन्यवाद...... 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