story of life in Hindi Short Stories by DINESH KUMAR KEER books and stories PDF | जीवन का किस्सा

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जीवन का किस्सा



मैं बहुत शांति से डायनिंग टेबल पर बैठा हुआ था , और किचन से आती हुई खुशबू को महसूस कर रहा था...
लग रहा था कि अगले ही पल खाने की थाली आएगी..... गुस्सा धीरे - धीरे शांत होता जा रहा था
डाइनिंग टेबल पर आने से पहले मेरा पत्नी से भयंकर झगड़ा हुआ था।
मैंने कहा था, " पहले अपने आप को देख लो... तुम कैसी लगती हो... हर वक्त चपड़ - चपड़ इसके अलावा कोई काम नहीं,, हर चीज की पूछताछ करना.. क्या..
सब के सब एक से ही हो,, मुझे लगता है यह खानदानी लक्षण हैं"

"शुक्र मनाओ तुम जैसे गधे से मैने शादी कर ली नहीं तो तुम्हारी कहीं भी शादी नहीं होती ,,, 32 साल के हो गये तब तुमारी शादी को पाई,"
"मेरे खानदान से पहले अपने खानदान को देखो कहीं भी तुम्हारा आना जाना नहीं है ना ही कोई रिश्तेदार तुम्हें पूछता है"

झगड़े का स्वरूप भयानक होता जा रहा था, हम दोनों उग्रवादी की तरह व्यवहार करने लगे।
हम तब तक नहीं थके जब तक कि हमारी बेटी रोने नहीं लगी और अपने कमरे में चली गई।

खाने का इंतजार लगभग समाप्त हो चुका था,....
मेरे पास थोड़ी दूरी पर मेरे मां बाप अलग रहते थे

मुझे लगा कि शायद मां के यहां चला जाऊं ,,और खाना खा लूं
या फिर किसी होटल या ढावे की तलाश में निकलने की तैयारी करने लगा, झगड़े से मैं परेशान हो चुका था,, मन ही मन बकवास जारी थी,,, शायद पत्नी के मन में भी कुछ उथल - पुथल,,,,
बाहर बहुत गर्मी थी।
बचपन से लेकर जवानी तक की सारी मां - बाप की यादें,, भाई बहनों की यादें,,, मेरी आंखों के सामने तैरने लगी।
घर में कितना भी तूफान मचा रहा हो,, मां से हमने कुछ खरी-खोटी भी कही हो लेकिन,,, माँ ने हमेशा खाना खिलाए घर से बाहर नहीं जाने दिया,
"आखिर मां,, मां होती है" यह कहकर मैं बाहर निकलने लगा तभी....!
"रुको बिना खाना खाए मत जाना! वहां पहले बैठो खाना खाओ"
"मुझे कुछ खाना वाना नहीं खाना,, कहीं बाहर खा लूंगा ,, अब खाना खिला रही हो अभी तो बड़ा जोर से लड़ रही थी।"
इतना कहते - कहते घर से बाहर निकला ,,लेकिन अगले ही पल पत्नी ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे डायनिंग टेबल पर दुबारा बैठा दिया।
उसके दूसरे पल खाने से सजी हुई थाली मेरे सामने रख दी।
आज खाने की थाली में सब्जियां ज्यादा थीं और बहुत ही स्वादिष्ट खाना था,,,,
खाने के दो कौर मुंह में पहुंचते ही,,, मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई,, और पत्नी भी खिलखिला कर हंसती हुई रसोई में चली गई।
खाना खाते खाते मैं सोचा जा रहा था कि आखिर अभी कुछ देर पहले हम दुश्मनों की तरह लड रहे थे,, वह लड़ाई पल भर में ही क्षणभंगुर हो गई।
आखिर मां मां होती है तो आखिर पत्नी भी पत्नी होती है।

पत्नी भी खिलखिला कर हंसती हुई रसोई में चली गई।
खाना खाते खाते मैं सोचा जा रहा था कि आखिर अभी कुछ देर पहले हम दुश्मनों की तरह लड रहे थे,, वह लड़ाई पल भर में ही क्षणभंगुर हो गई।
आखिर मां मां होती है तो आखिर पत्नी भी पत्नी होती है।