gold handcuffs in Hindi Motivational Stories by Wajid Husain books and stories PDF | सोने की हथकड़ी

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सोने की हथकड़ी

वाजिद हुसैन की कहानी

अंग्रेज़ो की हुकूमत थी। बुंदन का परिवार अमीर नहीं था। बहुत समझदार भी नहीं था। पर परले दर्जे का मांसाहारी था। बुंदन का स्कूल जाने का समय आया तो दादा ने कहा, 'पढ़ाई की कोई ज़रूरत नहीं है, पढ़ाई आदमी को बुज़दिल बना देती है।' उसके अब्बू ने भी रट्टू तोते की तरह इन्हीं शब्दों को दोहराया। उसकी मां पढे- लिखे घराने से ताल्लुक रखती थीं। उनके पापा तहसीलदार थे। उनका संबंध संसार के बड़े ऊंचे ओधे वाले लोगों से जुड़ता था। वह शौहर की दरिंदगी से पक चुकी थी, पर कभी शिकायत नहीं करती थी। एकदम जड़-सी हो गईं थी और बिना आह भरे ज़िंदगी का बोझ ढो रही थीं।
बुंदन 6 वर्ष का हुआ तो उसकी मां ने शौहर से बेटे को स्कूल ले जाने को कहा। वह बड़बड़ाए, 'नहीं, कोई ज़रूरत नहीं।' मां की बड़ी-बड़ी काली आंखें और काली हो गई, बस यूं चमकी। वह न बोली न आह भरी, न उनके आंसू निकले। अब्बू अचानक बोले, 'चल।' बुंदन ने सोचा, शायद ठीक से नहीं सुना है। एक पल रूका, पैर में जूते डाले और चल पड़ा।
पूरे रास्ते उसका दिल धड़कता रहा। स्कूल में पतलून में कमीज़ घुरसे आंखों पर मोटा चश्मा लगाए, मास्टर जी से अब्बू ने कहा, 'मेरा बेटा बुंदन खां 6 बरस का हो गया है, स्कूल में दाख़िला कराने लाया हूं।' मास्टर जी ने रजिस्टर में नाम, पता, वल्दियत लिखी और उसे बच्चों के साथ बिठा दिया।
बुंदन के अब्बू रोज़ जंगल को जाते थे और एक- आध हिरण को मार लाते थे। यही उनका रोज़ का काम था‌। उनके घर में आदमियों की कमी नहीं थी। अगर वह चाहते तो शिकार को जाते वक्त एक की जगह कई आदमी ले जा सकते थे लेकिन उनकी आदत कुछ ऐसी पड़ गई थी कि चोर की तरह अकेले जाना ही उन्हें अच्छा लगता था। शिकार के हाथ लग जाने पर उन्हें उतनी ही खुशी होती थी जितनी कि चोर को मनमाना माल मिल जाने से होती है।
बुंदन के घर में एक लंबा-चौड़ा काले रंग का बिगड़ैल घोड़ा था। उसके पापा कहते थे, 'यह घोड़ा उन्हें एक अंग्रेज़ साहब ने इनाम में दिया है।' इसकी भी कहानी सुनिए - एक दिन अंग्रेज़ साहब का घोड़ा बिदककर उनके गांव आ गया था। साहब के आदमी घोड़े को क़ाबू में करने में अपने हाथ पैर तुड़वा चुके थे। तभी अंग्रेज हाथी पर बैठकर गांव आ गया। उसने ऐलान किया, 'जो कोई इस घोड़े को काबू में कर लेगा, मैं उसे इनाम में यह घोड़ा दे दूंगा।' उनके कहने की देर थी, बुंदन के अब्बू घोड़े के पास गए, बाएं हाथ से उसकी गर्दन पर झूलते बाल पकड़े और छलांग लगाकर उसकी पीठ पर बैठ गए। अपने दोनों पैरों से घोड़े की पसलियां दबाईं, घोड़ा हिनहिनाने लगा। घोड़े को अंग्रेज़ के पास ले गए। उसका सिर झुकाकर साहब के क़दमों में रख दिया। अंग्रेज़ बहुत खुश हुआ। उसने अपना वचन निभाया और घोड़ा उन्हें ईनाम में दे दिया। ... पापा का घोड़े पर चढ़ने का स्टाइल बुंदन को विरासत में मिला और वह बिदके हुए घोड़े को काबू में करने की कला में माहिर हो गया था।
बुंदन की मां की सेहत दिन पर दिन गिर रही थी। उसने जिस दिन मिडिल पास किया था, वह मां का जन्मदिन था। उसके घर जन्मदिन मनाने का रिवाज नहीं था। उसने अपने जमा पैसों से मिठाई और मोमबत्ती ख़रीदी। रात को सब सो चुके, मां के कमरे में गया। उनका जन्मदिन मनाया और तोहफे में मिडिल पास की सनद दी। मां इस तरह खुश हुई जैसे मुर्झायी हुई घास, वर्षा की फुआर से खिल उठी। उन्होंने उसे बक्से से निकालकर सोने के कड़े दिये, 'यह तेरी दुल्हन के लिए बनवाये है, सम्भालकर रख ले।'
बुंदन के घर में एक नौकरानी थी, जमीला ख़ाला। जब उसकी मां इस घर में ब्याह कर आई थी, वह मायके से उनके साथ आई थी और उसकी सगी ख़ाला जैसी थीं। एक दिन बुंदन ने मां से कहा, 'पुलिस में सिपाही की भर्ती हो रही है, पर आपकी सेहत ठीक नहीं है। आपको छोड़कर कैसे जाऊं?' मां ने कहा, 'जमीला है मेरी देखभाल के लिए।' और उसे ख़ुशी-ख़ुशी विदा किया।
पुलिस लाइन में भर्ती हो रही थी। बुंदन फिज़िकल फिटनेस में पास हो चुका था तभी वहां अफरा-तफरी का माहौल हो गया। पता चला कप्तान की बेटी का घोड़ा बिदक गया। जो कोई उसे काबू में करने की कोशिश करता, चुटैल कर देता। बुंदन ने गोरी मैम से कहा, 'आप इजाज़त दें, तो मैं घोड़े को काबू में करूं।' 'गो' उसने चिल्लाकर कहा।' पलक झपकते ही वह घोड़े को गोरी मेम के पास ले आया। मैम ने ख़ुश होकर कहा, 'यंग चैप, हम तुमको दारोगा बनाता है। तुम हमको राइडिंग सिखाएगा।'
कप्तान के विशालकाय कैम्पस में बना एक क्वार्टर उसे एलाट कर दिया गया। स्टार लगी वर्दी पहन कर भी वह खुश नहीं था, उसे हर पल मां की याद आती थी।
डायना उसे राइडिंग के बहाने दूरदराज़ ले जाती और प्ले ब्याय की तरह उसका उपभोग करती थी। कुछ दिनों बाद उसे लगा यह नौकरी योग्यता से नहीं मिली है। दरअसल डायना उसके आकर्षक चेहरे मोहरे, लहराते भूरे बालों, भूरी आंखों और कद काठी से आकर्षित हो गई थी। एक दिन उसने बुंदन से बेझिझक कहा, 'हम तुमसे लव करता है, शादी बनाना चाहता है।' ...आम हिंदुस्तानी की तरह, सफैद चमड़ी बुंदन की भी कमजोरी थी। उसने झट से हां कर दी। डायना ने सुनसान मैं बने एक चर्च में जाकर उससे शादी कर ली।
सुहाग रात को बुंदन ने मुंह दिखाई में डायना को कड़े दिए और कहा, ' यह कड़े मेरी मां ने अपनी बहु के लिए बनवाए हैं।' वह बोली, 'तुम्हारी मां विच है, हमको सोने की हथकड़ी पहनाना चाहती है।' मां के बारे में अपशब्द सुनकर बुंदन का ख़ून ख़ौल गया। उसने डायना के गाल पर तमाचा मारा और गांव लौट गया।
गांव पहुंचा, पता चला, कई दिन पहले मां की मृत्यु हो चुकी थी। जमीला खाला जाने के लिए तैयार थी। वह बुंदन के इंतेजार में रूकी हूई थी। पापा ने उन्हें मां का कपड़ों से भरा बक्सा दे दिया था। जमीला ख़ाला ने उससे कहा, 'आमना के बक्से में बहुत हिफाज़त से रेशमी रुमाल में कुछ बंधा रखा है। मैं सोचने लगी, यह क्या है। खोल कर नहीं देखा।'... बुंदन ने ख़ाला से रुमाल ले लिया। खोल कर देखा मोमबत्ती का वह टुकड़ा था, जो मां का जन्मदिन मनाते समय बुझ गया था।
उस दिन उससे कुछ नहीं खाया गया। पूछे जाने पर यह कहकर टाल दिया कि सिर में थोड़ा दर्द हैै। बड़ी देर तक इधर-उधर टहलता रहा। जब सब सोने के लिए गए तब अपने कमरे में आया। उसे उदास देखकर जमीला ख़ाला पूछने लगी, 'सिर का दर्द कैसा है?' लेकिन बुंदन ने कुछ उत्तर न दिया, चुपचाप जेब से मोमबत्ती को निकालकर उसे जलाया और उसे एक कोने में रख दिया। यह देखकर ख़ाला ने फिर पूछा, 'यह क्या है?'
उसने उत्तर दिया- 'झिलमिला।'
ख़ाला कुछ समझ न सकी। फिर बोली, 'बेटा, मत रो!' ... 'कैसे नहीं रोऊं? पापा के ख़ौफ से मां मर गई, तुम भी जा रही हो, मैं कैसे जिऊंगा?' यह सुनकर ख़ाला के आंसू टपकने लगे। उन्होंने बुंदन के सिर पर हाथ फिराया और कहा, 'आमना की तरह, चाहे मैं भी मर जाऊं पर तुझे दरिंदे के पास अकेला छोड़कर नहीं जाउंगी।'
बुंदन के कमरे में झिलमिलाती रौशनी देखकर अब्बू कमरे में आए। उन्होंने उसकी और ख़ाला की बात-चीत सुन ली। उन्हें बेटा उस दयनीय अवस्था में लगा, जैसा फायर करने से पहले शिकार होता है। उनकी आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने बेटे को गले लगाकर दरिंदगी छोड़ने का वादा किया। फिर बेटे को साथ लेकर बीवी की क़बर पर गए और उनके साथ किये ज़ुल्म की माफी मांगी।

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