Nilavanti Granth - 6 in Hindi Spiritual Stories by Sonali Rawat books and stories PDF | निलावंती ग्रंथ - एक श्रापित ग्रंथ... - 6

Featured Books
Categories
Share

निलावंती ग्रंथ - एक श्रापित ग्रंथ... - 6

फिर किसी ने जाना की बच्चे का जन्म हो जाने के बाद यदि उसको पहली बार पिलाया जाने वाला पानी जंगल में रख कर जब सभी पशु, पक्षी, जानवर पी ले तो उसका एक घूँट बच्चे को उन सभी जानवरों की भाषा का ज्ञानी बनायेगा जिन्होंने वह पानी पिया है। जिसने यह बात खोजी थी वह मनुष्य था निळावंती का पिता।

जब निळावंती पैदा हुई थी उसके तीन दिन पहले उसके पिता ने जंगल मे एक बर्तन मे पानी भरकर रखा था। उन तीन दिनों मे जंगल के लगभग सभी जानवरों का मुँह उस पानी को लग गया था। निळावंती पैदा होने के तुरंत बाद उसको वह पानी पिलाया गया। उसका प्रभाव यह हुआ की वह चिड़िया , चींटी, कौए, कुत्ते आदि बहुत से जानवरो की भाषा समझने लगी। वह जानवरों की भाषा समझती थी तो उनको उन्हीं की भाषा में उत्तर देती थी। लेकिन जब गाव के लोगों ने यह सुना की छोटी सी लड़की के मुँह से इंसानी भाषा से पहले जानवरों की आवाजें निकल रही है तो उन्होंने उसके पिता से कहा की यह लड़की शापित है। इससे गाव पर कोई संकट आ सकता है तुम इसे जिंदा नहीं रख सकते। निळावंती के पिता ने गाववालो को समझाया की यह सिर्फ उसके किये हुए प्रयोग का नतीजा है पर किसी ने उसकी एक ना सुनी।

पंचायत बिठाई गयी और सभी ने एकमत से निर्णय किया की ऐसी लड़की जो जानवरों की आवाजें निकालती हो उसे जीने का कोई अधिकार नहीं है। हो सकता है उसके माध्यम से जंगली श्वापद, साँप, बिच्छु गाँव में घुसे और हमारे बच्चों और प्रियजनों को नुकसान पहुँचाये। उससे पहले ही यदि इस लड़की को मार दिया जाये तो उसकी नौबत ही नहीं आयेगी। निळावंती के पिता ने यह प्रयोग इसलिये किया था की उसे पशुओ की अद्भुत दुनिया को रहस्य समझने थे की कैसे भूकंप, उल्कापात, बाढ़ , बारिश का प्रमाण और समय इसका पता इन जानवरों को पहले ही चल पाता है। यदि इनसे यह बातें जान ली जाये तो हम भी मनुष्यों की कितने संकटों से रक्षा कर सकते है।

जब पंचायत के निर्णय का पता निळावंती के माता पिता को चला तो उनके पैरो तले जमीन ही खिसक गई। निळावंती की माँ ने कहा की हमें कैसे भी करके इस लड़की को बचाना चाहिये, जिन पशुओं की भाषा जानने की वजह से इसकी जान खतरे में पड़ गई है अब वे ही इसकी रक्षा करेंगे। सिर्फ बारह दिन की निळावंती को लेकर उसके माता-पिता जंगल की ओर भागे और उसे लेकर वही रहने लगे। निळावंती को भी जंगल बहुत पसंद आया और जंगल के श्वापदो को भी निळावंती भा गई। सभी जानवर जिनकी निळावंती भाषा बोलती थी वे निळावंती से बहुत प्यार करते थे। जिनकी भाषा नहीं आती थी उनकी भाषा निळावंती सहवास से सीख गई। दो साल की होने तक तो निळावंती जंगल के किसी भी जीव की भाषा बोल और समझ रही थी। और साथ ही अपने माता-पिता के साथ मनुष्यों की भाषा में भी बोल रही थी। उसके पिता का जो सपना था वह साकार हो चुका था। उन्हें ऐसे ऐसे रहस्य निळावंती के माध्यम से पता चल रहे थे जो कभी कानों से भी नहीं सुने थे। निळावंती को कई बार जानवर या साँप कही दबे हुए खजाने के बारे बता देते थे तो निळावंती के पिता जाकर उस जगह से वह खजाना लाते और उससे कई गरीबों की गुप्त रूप से मदद करते थे। ऐसे ही सोलह साल निकल गये। अब निळावंती एक बहुत ही सुंदर किशोरी मे बदल गई थी।

एक बार की बात है जब ५-६ लुटेरे कही से निळावंती के पिता का पीछा करते हुए उस जंगल में पहुँच गये। निळावंती और उसके परिवार को जीने के लिये जो भी आवश्यक था वह उस जंगल से मिल जाता था। थोड़ा बहुत खर्चा सिर्फ कपड़ों पर ही होता था तो बहुत सा खजाना उसी गुफा में पड़ा हुआ था। लुटेरों ने जब वह देखा तो उनकी आँखे चौंधिया गई। बहुत सारा खजाना बिना किसी मेहनत के मिल गया यह उनके लिये बड़ी खुशी की बात थी। निळावंती के उपस्थित रहते कोई भी उस गुफा की तरफ नहीं आ सकता था क्योंकि जंगल के सभी जानवर उसकी रक्षा करते थे। और उनसे उसे कही की भी घटना का पता चल जाता था।

लुटेरों ने खजाना छीनने के लिये निळावंती के माता-पिता को मार डाला। हालाँकि यह घटना एक चील के माध्यम से निळावंती को तुरंत पता चल गई मगर उसे आने में थोड़ी देर हो गई। वह पहुँची तब तक लुटेरें जा चुके थे मगर ज्यादा दुर नहीं जा सके। निळावंती ने जानवरों को संदेश भेजा की कोई भी जिंदा जंगल से बाहर नहीं निकल पाये। लुटेरे जंगल से नहीं निकल पाये रास्ते में ही हाथियों के झुंड ने उन्हें कुचल डाला। पर इस घटना ने निळावंती को बहुत आहत किया। उसके हृदय को बड़ी चोट पहुँची उसके पिता बहुत ही साधु स्वभाव के इंसान थे उन्होंने कभी भी किसी का बुरा नहीं चाहा था।

अबतक तो जंगल के पशु ही निळावंती के सब कुछ थे। उन्हीं के लिये जीना और उन्ही के लिये मरना यही निळावंती के जीवन का उद्देश हो गया था। लेकिन उसके माता-पिता की हत्या के साथ उसको एक और उद्देश्य हो गया समाज के बुरे लोगों का नाश करना। इसके लिये जरूरी था की वह खुद भी मौत से बच सके। उसने जानवरों से पुछकर संजीवनी बुटी का पता लगाया जिसके खाने से मनुष्य मौत को टाल सकता था। जब उसने वह बुटी खाई तो वह भी मृत्यु के भय से रहित हो गयी। उसने अनेक ऐसे लोगों को मौत के घाट उतार दिया जिनसे समाज को खतरा था। और अपने पिता के जैसे बहुत से लोगों की मदद भी की। उसकी अमरता, जानवरों की भाषा समझने की उसकी अद्भुत शक्ति इससे उसकी गणना कुभाण्डो में होने लगी। कुभाण्ड वह लोग है जिनमें अद्भुत शक्तियाँ होती है। उन्हें भगवान शिव के गणों में भी गिना जाता है।

एक दिन की बात है एक तरूण व्यापारी जंगल के रास्ते से कही जा रहा था। वह बैलगाड़ी में अपना माल एक गाव से दुसरे गाव जाकर बेचता था। वह पहले कभी भी इस रास्ते से नहीं गया था इसलिये उसे यह नहीं पता था की इस जंगल मे किसी अपरिचित का आना प्रतिबंधित है। क्योंकि निळावंती के माता-पिता की हत्या के बाद से जंगल के पशु निळावंती की सुरक्षा की बहुत चिंता करते थे। वे किसी को भी जंगल मे घुसने नहीं देते थे। मगर वह व्यापारी तो अंदर आ गया था। भेड़ियों ने उसकी बैलगाड़ी का पीछा शुरु किया। भेड़ियों के झुंड को देखकर बैल डर गये और उन्होंने जोर से दौड़ना शुरू किया। बैलगाड़ी बुरी तरह से खिचने के कारण पत्थरों पर टकरा के टूट गई। व्यापारी नीचे गिरकर बेहोश हो गया। बैला जंगल के बाहर भाग गये।

निळावंती को उस व्यापारी के बारे मे पता चला तो वह उसके पास पहुँच गई। उसने देखा की एक खुबसूरत नौजवान बेहोश पड़ा है। उसके सर पर गहरी चोट आयी है। उसका अगर इलाज नहीं किया गया तो वह मर जायेगा। वह उसे अपने साथ अपनी गुफा मे लेकर गई। निळावंती को जड़ी बुटियों का ज्ञान था तो उसने उसका अच्छी तरह से इलाज किया। दो दिन बाद जब उस नौजवान को होश आया तो उसने देखा की एक अतिसुंदर लड़की उसका खयाल रख रही है। उसने निळावंती से बात की और अपना नाम अनिल बताया। निळावंती ने अनिल से कहा की उसका पुरी तरह से इलाज होने में कुछ और दिन लग सकते है। उन "कुछ" दिनों में अनिल को निळावंती से प्यार हो गया। कुछ ही दिनों में अनिल पुरी तरह से ठीक हो गया। उसने अपने मन की बात निळावंती को बता दी। निळावंती को भी अनिल अच्छा लगा था और वह उसकी इस हालत का खुद को जिम्मेदार मान रही थी। सहानुभूति भी प्यार होने की एक वजह होती है। इसी वजह से निळावंती को भी उससे प्यार हो गया था।

अनिल ने निळावंती से विवाह के लिये पुछा। निळावंती ने कहा की वह उससे विवाह करेगी लेकिन उसकी कुछ शर्तें है। अनिल ने शर्तें पुछी तो निळावंती ने बताया उसकी पहली शर्त यह है की वह रात में कभी भी उसके साथ नहीं सोयेगी। दूसरी शर्त यह है की वह अगर रात को कही जाये तो वह उसे नहीं ढूँढेगा। अनिल ने उसकी दोनों शर्तें मान ली। ५ साल वे बहुत खुशी खुशी साथ रहे।

एक दिन दोपहर को निळावंती और अनिल जंगल में भटक रहे थे तभी एक नेवला और नेवली कही जाते दिख गये। नेवली उदास लग रही थी। निळावंती ने पुछा की वह क्यों दुःखी है। नेवली ने बताया कि उसका पती अंधा है इसलिये वह उसको कभी अकेला नहीं छोड सकती। निळावंती के पास अंजन था। जो निळावंती ने उस नेवले की आँख मे लगाया। तुरंत नेवले को सबकुछ दिखायी देने लगा। नेवली ने निळावंती को दो दिव्य रत्न दिये कहा की यह दो रत्न बहुत शक्तीशाली है। इसमे से पहला जिसके पास होगा वह किसी के भी मन की बात जान सकता है। और दुसरा पास होने से वह किसी से भी हारेगा नहीं।निळावंती का पति अनिल दूर से सब देख रहा था। जब उसने निळावंती से पुछा तो निळावंती ने भोलेपन से बता दिया मगर सिर्फ एक मणि के बारे में जिससे कभी हार नहीं होती थी। दूसरे मणि के बारे में उसने कुछ नहीं बताया। इसलिये नहीं की उसका अनिल के उपर विश्वास नहीं था बल्कि वह उस मणि की परीक्षा लेना चाहती थी।

अनिल की इच्छा हुई की सदा जीत दिलाने वाली वह मणि उसके पास हो। उसने निळावंती से वह मणि माँग ली निळावंती ने कहा की उसे उनकी क्या जरूरत है तो अनिल ने कुछ नहीं बताया। लेकिन उसने दूसरे मणि के प्रभाव से उसके मन की बात जान ली की अनिल उस जंगल के बाहर जाकर उस राज्य पर विजय प्राप्त करना चाहता था जिसमें वह जंगल था। वह मणि उसके पास होने से यह बहुत आसान हो जाता।

निळावंती को उसके विचार जानकर आश्चर्य हुआ लेकिन उसने अनिल को यह पता नहीं चलने दिया। एक रात जब निळावंती और अनिल जो शर्तों की वजह से अलग अलग सोते थे, सोये हुए थे तब अनिल को दूर से भेड़िये के चिल्लाने की आवाज आयी। वह निळावंती को बता रहा था की उसे अब भगवान शिव के गणों मे जाके रहना चाहिये। लेकिन शिवगणों में स्थान पाने के लिये जो चीज आवश्यक है वह एक प्रकार का तावीज था। जिसका पता भेड़िया उसे बताना चाहता था।

निळावंती ने भेड़िये का संदेश सुना तो तुरंत वह नदी की तरफ निकल पडी। निळावंती जाने के थोड़ी देर बाद अनिल भी उसके पीछे निकल पड़ा। निळावंती जान गई की अनिल उसका पीछा कर रहा है लेकिन उसने उसे मन नहीं किया।

नदी के किनारे पहुँचने पर भेड़िया निळावंती से मिला और उसने बताया की अभी थोड़ी देर बाद एक प्रेत नदी में बहता हुआ आयेगा उसकी कमर में वह तावीज बंधा हुआ है जिसकी मदद से वह भगवान शिव के गणों में शामिल हो सकती थी। निळावंती नदी के किनारे ही उस प्रेत का इंतजार करती हुयी बैठ गयी। आधी रात के समय नदी में एक प्रेत बहता हुआ आया। निळावंती उस प्रेत के पास गई और उसे खींचकर किनारे पर लेकर आयी।

अनिल पुरी घटना पेड़ के पीछे छुपकर देख रहा था। निळावंती की पीठ अनिल की तरफ थी तो उसे वह क्या कर रही है यह नहीं दिख रहा था। निळावंती ने प्रेत के कमर मे बंधा तावीज देखा वह बहुत ही विशेष दिख रहा था। और खुद से चमक रहा था। निळावंती तावीज खोलने लगी लेकिन वह इतनी मजबूती से बंधा था की छुटने का नाम नहीं ले रहा था। निळावंती ने आस पास देखा की काटने के लिये कोई चीज मिल जाये लेकिन पत्थर भी नहीं थे सिर्फ रेत ही थी। निळावंती दांत से रस्सी काटने के लिये प्रेत के उपर झुक गई। अनिल जो पीछे से घटना देख रहा था उसे लगा की निळावंती प्रेत खा रही है। वह बहुत डर गया और भाग कर गुफा में जाकर बैठ गया। जिससे निळावंती को कुछ पता ना चले। अनिल को नहीं पता था की निळावंती ने उसे उसके पीछे आते हुए देख लिया था।

बड़ी मुश्किल से वह तावीज निकालने के बाद निळावंती उसे लेकर अपनी गुफा में आ गई। अनिल वही पर बैठा हुआ था। उसने पुछा की वह कहाँ गई थी। निळावंती ने उसे विवाह के वक्त की शर्त याद दिलायी। लेकिन अनिल ने कहा की वह सब जानता है की वह मुर्दा खाने के लिये गई थी और उसे अब ऐसी औरत से कोई संबंध नहीं रखना है वह उसे छोड़कर जा रहा है। निळावंती ने उसे रोका नहीं पर समझाने की कोशिश की की वह मुर्दा नहीं खा रही थी पर अनिल कुछ सुनने की हालत में नहीं था। वह तुरंत वहाँ से चला गया।

Read continue (part-7)