The ultimate Chakras - The secret to reaching your wholeness in Hindi Health by Siddharth Raut books and stories PDF | The ultimate Chakras - अपनी संपूर्णता तक पहुंचने का रहस्य

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The ultimate Chakras - अपनी संपूर्णता तक पहुंचने का रहस्य

कहते है, यदि आपको ब्रम्हांड ( दुनिया ) को जानना है, तो सबसे पहले स्वयं को जानो। हमारा संपूर्ण ब्रह्मांड ऊर्जा से बना हुआ है और हमारा शरीर भी उसी ऊर्जा का एक हिस्सा है हमारे शरीर के भीतर साथ अलग-अलग ऊर्जा केंद्र हैं और इनमें इन जिनको चक्र कहा जाता है| शरीर में मौजूद इन चक्रों का बुनियादी ज्ञान हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को कई गुना तक बढ़ा सकता है|

चक्र क्या है ?
प्राचीन काल के ग्रंथों से पता चलता है कि चक्रों की उत्पत्ति प्राचीन हिंदू और बौद्ध परंपराओं से हुई है|

चक्र शब्द संस्कृत शब्द 'चक्र' से लिया गया है जिसका अर्थ होता है 'वृत्त' या 'चक्कर'। चक्र एक प्रकार का ऊर्जा केंद्र होता है जो हमारे शरीर में मौजूद होते हैं। सात चक्र हमारे पूरे शरीर में स्थित होते हैं| जो हमारी रीढ़ के आधार से शुरू होकर हमारे सिर के शीर्ष तक जाते हैं| प्रत्येक चक्र की अपनी अलग कंपन आवृत्ति होती है, और ये प्रत्येक चक्र शरीर में विशिष्ट कार्यों को नियंत्रण करते हैं| ये चक्र हमारे शरीर के रोगों के प्रतिरोध से लेकर भावनात्मक प्रसंस्करण तक हर चीज को प्रभावित कर सकते हैं| ये ऊर्जा केंद्र विभिन्न रंग और उनकी विशिष्ट विशेषताओं के साथ जुड़े होते हैं। चक्रों की विशेषताएँ उनके स्थान, रंग, तत्त्व, ज्ञान-इच्छा-क्रिया, और ऊर्जा के स्तर पर आधारित होती हैं।

सात प्रमुख चक्र होते हैं, जिन्हें शुद्धता और ऊर्जा को संतुलित रखने के लिए उपयोग किया जाता है।

१. मूलाधार —◆ गुदा के पास
२. स्वाधिष्ठान —◆ नाभि के नीचे
३. मणिपुर —◆ नाभि में
४. अनहद —◆ ह्रदय में
५. विशुद्धाख्य —◆ कंठ में
६. आज्ञा चक्र —◆ भौहों के बीच
७. सहस्रार —◆ चोटी वाले स्थान पर

1. मूलाधार चक्र (root chakra) - भौतिकता, सुरक्षा, स्थिरता, आर्थिक संतुलन।
यह चक्र साधारणतया शरीर के निचले हिस्से में स्थित होता है। इस चक्र के साथ मूलाधार नर और पृथ्वी तत्त्व जुड़े होते हैं। यह चक्र शक्ति का केंद्र होता है और संतुलित रखने के लिए योग और मेडिटेशन का उपयोग किया जाता है।

2. स्वाधिष्ठान चक्र ( sacral chakra) - भावनात्मकता, संयम, संतुष्टि, संतुलन।
यह चक्र नाभि के नीचे स्थित होता है। इस चक्र के साथ जल तत्त्व और रक्त मानव तन्त्र जुड़े होते हैं। इस चक्र का काम उत्साह, स्वास्थ्य और संतुलित भोजन रखना होता है।

3. मणिपूर चक्र ( solar plexus chakra)- स्वशक्ति, अभिवृद्धि, संयम, निर्णय लेने की क्षमता।
यह चक्र नाभि के ऊपर स्थित होता है। इस चक्र से अग्नि तत्त्व और प्राण जुड़े होते हैं। इस चक्र का काम संतुलित आत्मिक और शारीरिक ऊर्जा रखना होता है।

4. अनाहत चक्र (heart chakra) - प्रेम, मानवता, करुणा, भावुकता।
यह चक्र हृदय के पास स्थित होता है। इस चक्र सेवायु तत्त्व जुड़ा होता है और इसका काम मानसिक ऊर्जा को संतुलित रखना होता है। इस चक्र की विशेषता होती है भावनाओं, संवेदनाओं और प्रेम की ऊर्जा को संतुलित रखना।

5. विशुद्धि चक्र ( throat chakra) -स्वतंत्रता, सुनिश्चितता, सत्यनिष्ठा, स्पष्टता।
यह चक्र गले के ऊपर स्थित होता है। इस चक्र से आकाश तत्त्व जुड़े होते हैं और इसका काम शुद्धता और अन्तःकरण को संतुलित रखना होता है।

6. आज्ञा चक्र ( third eye chakra)- ज्ञान, विचार, अभिवृद्धि, समझ।
यह चक्र भ्रूमध्य स्थित होता है। इस चक्र से मनस्तत्व जुड़ा होता है। इस चक्र का काम मन की शक्तियों को संतुलित रखना होता है।

7. सहस्रार चक्र (crown chakra) - समझ, उच्च विकास, संदेह, अनुभव।
यह चक्र शीर्ष स्थित होता है। इस चक्र से अकाश तत्त्व जुड़ा होता है। इस चक्र की विशेषता होती है दिव्य ऊर्जा और ऊपरी विश्व से जुड़ना।
ये चक्र शरीर के ऊर्जा केंद्र होते हैं जो संतुलित रखने के लिए आवश्यक होते हैं। योग और मेडिटेशन के माध्यम से इन चक्रों को संतुलित रखा जाता है जो शरीर, मन और आत्मा के संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है।

चक्रों के सक्रिय करने के लिए, आप उपयुक्त आसनों, प्राणायाम, मंत्र, ध्यान या मेडिटेशन, और योग के साथ अपनी श्वास एवं ध्यान के ऊर्ध्वाधो मार्ग को नियंत्रित कर सकते हैं। इन तकनीकों का उपयोग करके आप अपने चक्रों के संतुलन को संभाल सकते हैं और अपने शरीर, मन, और आत्मा को एक साथ संतुलित रख सकते हैं।
चक्रों का संतुलन बढ़ाने के लिए आप अपने आहार का ध्यान रख सकते हैं। उच्च पौष्टिक भोजन और पानी की अधिक मात्रा से चक्रों के संतुलन को बढ़ाया जा सकता है। साथ ही, अपने आसनों को ध्यान से और नियमित रूप से करने से भी चक्रों का संतुलन बढ़ता है।

चक्रों के संतुलन को बढ़ाने के लिए, विभिन्न तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है। नीचे दिए गए कुछ अन्य तकनीकों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है| :-

1. ध्यान या मेडिटेशन - ध्यान या मेडिटेशन करने से चक्रों के संतुलन को बढ़ाया जा सकता है। यह तकनीक अपने दिमाग को शांत करने और ध्यान केंद्रित करने के लिए मदद करती है। इसके लिए, आप एक शांत महोल में बैठकर अपनी सांसों को ध्यान देने का प्रयास कर सकते हैं। आप अपने सांसों को नियंत्रित करने के लिए ध्यान केंद्रित कर सकते हैं ताकि आप अपने चक्रों के संतुलन को संभाल सकें।

2. योग - योग भी चक्रों के संतुलन को बढ़ाने के लिए उपयोगी है। योग आसनों की मदद से शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक संतुलन को बढ़ाता है। योग आसनों के द्वारा, आप अपने शरीर को फिट रख सकते हैं और आपके मस्तिष्क को भी शांत करने में मदद मिलती है। इससे आप अपने चक्रों को संतुलित बना सकते हैं।

3. प्राणायाम - प्राणायाम चक्रों के संतुलन को बढ़ाने के लिए एक और उपयोगी तकनीक है। प्राणायाम शांत मन के साथ साथ शरीर को भी स्वस्थ रखने में मदद करता है। इससे आप अपने चक्रों को संतुलित बना सकते हैं। आप अलग-अलग प्राणायाम तकनीकों का उपयोग कर सकते हैं जैसे कि नाडी शोधन प्राणायाम, उज्जयी प्राणायाम, भस्त्रिका प्राणायाम आदि।

4. रेकी - रेकी एक चिकित्सा विधि है जो चक्रों के संतुलन को बढ़ाने में मदद कर सकती है। इस तकनीक में, एक प्रशिक्षित रेकी चिकित्सक आपके शरीर में ऊर्जा का फ्लो बढ़ाने के लिए उपयोग करता है। इससे आप अपने चक्रों को संतुलित बना सकते हैं।

5. आहार - आपके खाने का विशेष ख्याल रखना भी आपके चक्रों के संतुलन को बढ़ाने में मदद कर सकता है। आपके भोजन में उच्च क्वालिटी के प्राकृतिक खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए जैसे फल, सब्जियां, अनाज, और दूध आदि। इससे आप अपने चक्रों को संतुलित बना सकते हैं।

इन तकनीकों का उपयोग करके, आप अपने चक्रों को संतुलित बना सकते हैं जो आपके शारीर, मन और आत्मा के संतुलन को बढ़ाएगा। आपको अपने शरीर को अच्छी तरह से समझने और उसके लिए उपयुक्त तकनीक का चयन करने की आवश्यकता होती है।
चक्रों को सक्रिय करने से शरीर, मन और आत्मा के संतुलन में सुधार होता है। इससे शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य, आत्मिक विकास, ऊर्जा के स्तर का बढ़ना और संतुलित जीवन जैसे बहुत से लाभ होते हैं।

धन्यवाद