Apna Aakash - 21 in Hindi Moral Stories by Dr. Suryapal Singh books and stories PDF | अपना आकाश - 21 - सही प्रतीत होने वाली कहानी

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अपना आकाश - 21 - सही प्रतीत होने वाली कहानी

अनुच्छेद- 21
सही प्रतीत होने वाली कहानी

अपराह्न मंगल शहर जाने लगे तो भँवरी ने कहा, 'गेहूँ में डालने के लिए दवा ले लीजिएगा।' वह छोटी सी डेहरी में गेहूँ भर चुकी है। घुन से बचाने के लिए दवा चाहिए। कई तरह की दवाएँ बाजार में बिक रही हैं। अनेक दवाओं को प्रतिबन्धित कर दिया गया है पर चोरी छिपे लोग बेचते खरीदते हैं। बाजार से गेहूँ में डालने की दवा लेकर मंगल नागेश की दूकान पर पहुँचे । आज वे मिल गए। मंगल की पीड़ा सामने आ गई।
'लाला जी, आपने पैदावार क्या देखी, भाव ही खा गए।'
'भाव पर न आपका बस है न मेरा। भाव-भाव है मंगल भाई ।'
"लाला जी मेरा मन इसे मानने को तैयार नहीं है। भाव आप लोग बनाते हैं। वह भी अपना स्वार्थ देखकर। किसान का भला कौन देखता है? अस्सी रुपये किलो आपने लहसुन हमें दिया। अब मेरे यहाँ तैयार हुआ तो दस रूपया किलो। ऊपर से आप किसान की बेहतरी के लिए बैठक करते हैं।' 'बैठक जिलाधिकारी महोदय ने बुलाई थी। मैं तो उसमें शामिल हुआ था।' 'मुंशी जी ने आपका हिसाब बना दिया है।' मुशी ने हिसाब की पर्ची आगे बढ़ाई। नागेश लाल ने बताया कुल बीज का दाम 28000/-
आप द्वारा भुगतान 10000/-
अवशेष 18000/-
ब्याज 16200/-
कुल देय 34200/-
ट्राली भाड़ा दिया 200/-
योग 34400/-
बत्तीस कुन्तल चालीस किलो का दाम- 32400/-
देनदारी बाकी 2000/-
'छह माह हमारा परिवार इसमें लगा रहा। पचपन हजार बैंक के कर्जदार हो गए और दो हजार अभी आपका बाकी भी रहा।' 'भैया जी इसका जिम्मा हम तो नहीं ले सकते। भाव राजा है। जो भाव है वह हम लगा रहे हैं।
'तो हमारा लहसुन लौटा दो।'
'हमारा कर्ज़ लौटा दो। हम लहसुन लौटा देंगे।' नागेश लाल के कारिन्दों की नज़र मंगल पर थी। मालिक का हुक्म हो तो......। पर मालिक वणिक है। वह स्वयं कोई ऐसी पहल नहीं करेगा जिससे विवाद बढ़े। मंगल का चेहरा लाल हो गया। उसकी मुट्ठियाँ बंध गई।
'लाला जी, लडूंगा मैं। इस तरह हार नहीं मानूँगा ।
मेरी छह महीने की कमाई का मामला है।'
'भाई आपने बेचा, मैंने खरीदा। इसमें हारजीत का मसला कहाँ से आ गया।' “यह उससे पूछो लाला जी जिसका सबकुछ आपने लूट लिया हो ।' मंगल ने इतने जोर से कहा कि और लोगों की भी नज़र इधर घूम गई। मामला तूल न पकड़ जाय इसलिए नागेश ने अन्दर जाकर कोतवाली फोन कर दिया।
एक दरोगा जी खाली बैठे थे। सामने बुलेट खड़ी थी। दीवान जी को साथ ले बुलेट पर किक मारी और आ गए। दरोगा जी को देखते ही न जाने मंगल को क्या सूझी, कह बैठा, 'आप लोग लालाजी की मदद करने आ ही गए।'
दरोगा जी को मंगल की यह बात अखर गई। उनकी आँखें चढ़ गई। कड़क कर पूछा- 'क्या बात है लालाजी ?"
नागेश उन्हें अन्दर ले गए। पूरी बात समझाई। वर्दीधारी देखकर लोग जुटने लगे। भीड़ जुटते देख दरोगा निरंजन प्रसाद ने दीवान जी को गाड़ी पर बिठाया पीछे मंगल को भी। मंगल का दिमाग चढ़ा हुआ था। उन्हें लगा कि अभी तक लालाजी से निपटना था आज शायद पुलिस से भी......।
दरोगा जी थाने पहुँचे तो उनका पारा गरम ही था। गाड़ी रुकी। मंगल और दीवान जी उतरे। दरोगा जी के हाथ में नागेश लाल द्वारा दी गई पर्ची थी ।
'कर्ज़ भी लेते हो और गुंडई भी करते हो ।' 'कौन कहता है?' मंगल की आवाज़ कुछ कटु थी। दरोगा जी का एक झन्नाटेदार झापड़ मंगल के गाल पर । 'हाथ न चलाइए दरोगा जी’, मंगल का प्रतिरोध दरोगा जी को बर्दाश्त न हुआ। ताबड़तोड़ झापड़ ।
'मेरी भी इज्जत है।' कहते हुए मंगल पास खड़ी बुलेट पर ही गिर पड़े। सिर में चोट । बुलेट भी गिर पड़ी। 'इसे बन्द करो।' हाँफते हुए दरोगा जी ने दीवान जी को निर्देश दिया।
हवालात का दरवाजा खुला और मंगल अंदर। हवालात में बैठा मंगल चोट की पीड़ा से कराह उठा। धीर गंभीर संयत मंगल की यह दशा! वह विचलित हो उठा। किसी की एक पत्ती भी कभी छुआ नहीं था। पुरवे के लोग ही नहीं गाँव-जँवार के लोग भी उसे मान देते थे। अनेक मुश्किल मामलों में उसके फैसले को लोगों ने स्वीकार किया था। पुरवे के किसान, उनके बच्चे मंगल के लहसुन की खेती में अपना भविष्य देखते थे। तन्नी, वीरू ही नहीं अनेक छोटे किसान मंगल की छलांग को अपनी मान रहे थे। सबके सपने ध्वस्त हो गए । तन्नी, वीरू न पढ़ पाएँगे न कुछ कर ही सकेंगे। हो सकता है खेत से भी हाथ धो बैठें। पचपन हजार बैंक का कर्ज़ बढ़ता जायगा, वत्सला जी को कोचिंग का दस हजार देना है। नागेश अभी अपना भी दो हजार बही में चढ़ाए बैठा है। क्या एक छोटे किसान की यही नियति है? इन्हीं स्थितियों में किसान आत्म हत्या कर रहे हैं। पर मैं लड़ना चाहता हूँ इन स्थितियों से । भीख पर नहीं श्रम पर जीना चाहता हूँ । देश और समाज यह न कह सके कि मंगल बुजदिल था । आत्महत्या कोई निदान नहीं है । पर ......। मंगल का दिमाग उड़ता रहा। समय बीतता गया। कान में तेज दर्द उठा। कराह के साथ वे लेट गए । 'साला कराहता है देख तो ।' एक आवाज़ 'नखरा कर रहा होगा। हवालाती यही सब करते ही हैं।' दूसरी आवाज़। मंगल कराहता पड़ा रहा। दीवालें और सीखचे कराह से पसीज उठे पर आदमी का काइयाँपन उसे पसीजने नहीं देता।
‘देख ले। कहीं गड़बड़ न कर दे।' पुनः वही आवाज़ । 'देख लेता हूँ इसे, है यह चोंचलेबाज ही।'
हवालात में कराह धीमी होती गई । 'अभी देखा नहीं।' आवाज़ आई । 'कराहता नहीं है।' दूसरी आवाज़ ।' तब और ज़रूरी है देख।' दूसरा सिपाही गया। कोई आवाज़ नहीं । लौटकर आया। बताया कोई आवाज़ नहीं आ रही है। "हवालात में भरपूर नींद बड़े शातिर बदमाशों को ही आती है। दरोगा जी को बता।' कोतवाल साहब को एक पुराने मुकदमें में लखनऊ की अदालत ने तलब किया था। अभी वे लौट नहीं पाए थे। दरोगा जी को जैसे ही सिपाही ने बताया उन्हें शंका हुई। बैठे बैठाए क्या कर लिया?
वे तुरन्त निकले। हवालात का दरवाजा खुला । बन्दी में हरकत नहीं । सिपाही ने उठाने की कोशिश की। बन्दी नहीं उठा। नाड़ी लुप्त प्राय । 'देह गरम है, अभी जिन्दा है । यह भी इसकी एक चाल हो सकती है।' सिपाही ने कहा । 'बाहर निकाल लो' दरोगा जी फुसफसाए। दोनों सिपाहियों ने उसे उठाकर बाहर किया । 'देह बिल्कुल ढीली कर दिया है साहब । यह अपने से नहीं उठेगा।'
'दौड़कर एक जीप ले आओ।' दरोगा जी का होश गुम । जीप आई। उसी में पीछे लिटा दिया मंगल को। आगे दरोगा जी पीछे दो सिपाही बैठ गए। अस्पताल में रात डयूटी पर नियुक्त सीनियर डाक्टर से कहा, 'गश्त में एक आदमी सड़क किनारे पड़ा मिला है । बेहोश लगता है। आप देखकर उसे भर्ती कर लें।'
डाक्टर साहब जीप तक आए। जाँचा, कहा 'यह तो मर चुका है।' 'तब?' 'अस्पताल में मरीज भर्ती किए जाते हैं दरोगा जी, लाश नहीं', कह कर डाक्टर साहब लौट पड़े।
दरोगा जी ने जीप घुमवाई। कोतवाल वंशीधर देर रात कोतवाली पहुँचे तो दीवान जी ने घटना की सूचना दी। उन्होंने दरोगाजी को फोन मिलाया ।
'क्या हुआ दरोगा जी ?"
'सर, आकर बताता हूँ।'
'कुछ तो बताओ?'
'आ रहा हूँ सर ।'
जीप को कोतवाली के बाहर ही खड़ीकर दरोगा जी ने कोतवाल साहब को सारी बात बताई। 'कैसे दरोगा हो जी बैठे ठाले एक आफ़त ले लिया। वह साला नागेश कहाँ है?"
'बुलाता हूँ सर?"
दरोगाजी ने नागेश को फोन मिलाया । 'जल्दी कोतवाली पहुँचो ।' नागेश के पहुँचते ही कोतवाल ने अलग ले जाकर फुसफुसाते हुए कहा, 'मंगल मर चुका है यह जानते हो।'
'नहीं साहब।'
'तो जान लो और मारने वाले आप हैं। आपने उसका लहसुन हड़प लिया। दफा 302 के मुजरिम होंगे आप।' 'हुजूर, बचाओ किसी तरह आप की कृपा......।' 'पर कृपा सूखे सूखे चाहते हो।'
'नहीं साहब, जो हुक्म होगा उसका पालन होगा।'
'जल्दी फिर घर से लौटो।'
'जी साहब।' कहते हुए नागेश भागे ।
कोतवाल साहब चिन्तित टहलते रहे।
क्या किया जाए? सोचने लगे। गश्त में यह आदमी सड़क किनारे पड़ा मिला। यहाँ तक तो ठीक है। संभवतः शराब पीकर गिरा होगा। उसे शराब पिला दिया जाय.....। मरा हुआ आदमी शराब कैसे पियेगा?....... नहीं पियेगा तो उसके ऊपर शराब तो छिड़का ही जा सकता है। इससे जनता में यह संदेश दिया जा सकता है कि इसने शराब पी होगी। लड़खड़ा कर गिरा-सिर में चोट लगी और टें। यदि शव परीक्षा में शराब का नहीं, चोट का जिक्र आया तो? शव परीक्षा क्यों होने ही दिया जाय ।......हर कीमत पर बिना परीक्षा के ही लाश को जलवाना होगा।
जनता के सामने कोई कहानी पेश करनी होती है। ऐसी कहानी जो तार्किक लगे। यहाँ सही गलत का प्रश्न नहीं है प्रश्न है सही प्रतीत होने का।...... क्या आत्महत्या की कहानी नहीं परोसी जा सकती है?. .....यह क्या सोच लिया? मुख्यमंत्री का बयान- उत्तर प्रदेश में किसी किसान ने आत्महत्या नहीं की। यदि कोई किसान आत्महत्या करता है तो जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक ज़िम्मेदार होंगे। ......
जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक नपेगा तो तुम? नहीं..... नहीं, यह कहानी सोची भी नहीं जा सकती।...... वही शराब पीकर गिरा। सिर में चोट लगी और टें।..... बिना परीक्षण के शव को जलवाना होगा......हर कीमत पर। किसी से कोई चर्चा नहीं यही है सही कहानी ।
थोड़ी दूर खड़े दरोगा जी को बुलाया। किया तो अहमकपने का काम । पर मैंने दवा ढूँढ़ ली है। सही प्रतीत होने वाली कथा उन्होंने समझाई। कहा, 'कोई और चर्चा नहीं। स्टाफ से भी कह दो रात गश्त के लिए अपनी रवानगी दस बजे दिखाओ। जाओ जल्दी करो ।'
घबड़ाए हुए नागेश तब तक कोतवाल के सामने पहुँचे। कोतवाल उन्हें अपने आवास पर ले गए। नागेश ने पचाह हजार की गड्डी उन्हें दी। गड्डी अन्दर रखकर कोतवाल और नागेश बाहर आ गए। 'वैसे यह रकम बहुत कम है लाला जी।' कोतवाल साहब मुस्कराए। 'हुजूर, मैं आपसे बाहर नहीं हूँ।' 'ठीक है जाओ । पर किसी से मंगल की चर्चा न हो। वह आपके यहाँ आया, हिसाब किया और चला गया। 'जी साहब। पर उसकी साइकिल हमारी दूकान पर.....।’
" दरोगा जी, सिपाही इनके साथ भेजकर उसकी साइकिल मँगवा लो।'
'जी सर।' एक सिपाही नागेश के साथ गया। मंगल की साइकिल चलाकर लौटा।
रात के दो बज रहे थे। 'उसके गाँव के रास्ते पर मंगल को छोड़ आओ। उसे शराब से सराबोर कर देना। साइकिल उसी जगह डाल देना। फिर जीप को नौ दो ग्यारह करो । तत्काल यह काम हो । सुबह गश्त से लौटते हुए शव बरामद करो।'
'जी सर ।'
'जब कुछ लोग इकट्ठे हो जाएँ तो मुझे फोन से सूचित करो।
मैं आकर पंचनामा कर लाश जलवाऊँगा ।' 'जी सर । 'दरोगा जी कहानी को मूर्त रूप देने के लिए जीप के साथ । एक सिपाही हीरो होण्डा मोटर साइकिल पर ।