रणधीर अपने पिता के देहांत के बाद अपनी विधवा मां के साथ शहर छोड़कर देहरादून रहने चला जाता है।
रणधीर नया मकान जिस जगह खरीदता है, उस जगह उसके मकान से बहुत दूर-दूर मकान थे।
रणधीर के पड़ोस का मकान काफी सालों से खाली पड़ा हुआ था। अभी तक उस मकान में कोई रहनेे नहीं आया था।
रणधीर जब शाम को अपने ऑफिस सेेेेे घर आता था, तो उसेे पड़ोस का खाली मकान देख कर बहुत बुुरा महसूस होता था।
रणधीर कभी-कभी रात को मां के साथ खाना खाते वक्त अपनी मां से कहता था कि "मां हमनेेे इस सुनसान जगह मकान खरीद कर कोई गलती तो नहीं कर दी है।"
रणघीर की मां रणधीर को हमेशा तसल्ली देते हुए कहती थी कि "देखना एक दिन पड़ोस के घर का सन्नाटा बिल्कुल खत्म हो जाएगा।"
रणधीर को अपनी मां की यह बात सुनकर पड़ोस के मकान का सन्नाटा खत्म होनेे की उम्मीद जाग जाती थी।
एक बार रणधीर दिवाली के त्यौहार पर अपने घर के चारों तरफ रंंग-बिरंगे बल्बों की लड़ी लगा रहा था, तो उस समय उसेे अपनेे मकान केे चारों तरफ सन्नाटा देखकर बहुत बुरा लगता है। और अकेले हंसी खुशी से दिवाली मनाने का उसका बिल्कुल भी मन नहीं करता है।
रणधीर रात को मां के साथ दिवाली की पूजा करके अकेले बम पटाखे लेकर उनको फोडने के लिए छत पर चला जाता है।
लेकिन छत पर पड़ोस के खाली मकान का सन्नाटा देख कर रणधीर का अकेले सुनसान माहौल में बम पटाखे फोड़ने का बिल्कुल भी मन नहीं करता है, और वह छत से नीचेे अपने कमरे मेंं आ जाता है।
और फिर मां के साथ खाना खाने केेे बाद रणघीर अपने कमरेे में सोने चला जाता हैै।
पड़ोस के खाली मकान की वजह से रणधीर को अपनेेे घर में भी बहुत अकेलापन महसूस होने लगा था।
और जिस दिन उसकेे ऑफिस का अवकाश होता था, तो उसे पड़ोस के खाली मकान की वजह से बहुत अकेलापन महसूस होता था।
ऑफिस से छुट्टी का दिन घर पर रणधीर का बड़ी मुश्किल से बीतता था।
और रणधीर अपने ऑफिस मेंं भी यही बात सोचता रहता था कि मां घर पर अकेले उस सुनसान माहौल में कैसे अपना समय बिताती है।
और ऑफिस से छुट्टी होने केेे बाद भी अपनी मोटरसाइकिल चलाते हुए यही सोचते हुए घर आता था की मां उस सुनसान माहौल में रोज अपना समय कैसे बिताती हैै।
और जब रात को रणधीर अपनी मां से बिना बातेंं किए चुपचाप खाना खाता था, तो उसकी मां को महसूस हो जाता था कि आज फिर रणधीर पड़ोस के खाली मकान के सन्नाटे की वजह से अकेेेेेलापन महसूस कर रहा है।
रणघीर की मां रणधीर की चिंता कम करनेे के लिए रणधीर से कहती थी कि "एक दिन जब पड़ोस केेे मकान में कोई परिवार रहने आ जाएगा तो उस खाली मकान का सन्नाटा बिल्कुल खत्म हो जाएगा।"अपनी मां कि उम्मीद भरी बातें सुुन कर रणधीर का अकेलापन कुछ कम हो जाता था।
एक दिन रणधीर के पास उसकी मामी का फोन आता है कि उसकेे मामा जी कि तबीयत बहुत खराब हैै। इसलिए रणधीर अपनी मां को अपने मामा जी के घर छोड़ आता है।