Yugantar - 33 in Hindi Moral Stories by Dr. Dilbag Singh Virk books and stories PDF | युगांतर - भाग 33

Featured Books
  • सनातन - 3

    ...मैं दिखने में प्रौढ़ और वेशभूषा से पंडित किस्म का आदमी हूँ...

  • My Passionate Hubby - 5

    ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन...

  • इंटरनेट वाला लव - 91

    हा हा अब जाओ और थोड़ा अच्छे से वक्त बिता लो क्यू की फिर तो त...

  • अपराध ही अपराध - भाग 6

    अध्याय 6   “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच...

  • आखेट महल - 7

    छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया, उसक...

Categories
Share

युगांतर - भाग 33

ग़म का अँधेरा खुशियों के उजाले को लील जाता है। यशवंत का बाहर आना-जाना बंद कर दिया गया, लेकिन जब उसे नशा नहीं मिलता, तो वह तड़पता और उसे तड़पते देख माँ का कलेजा फटता, लेकिन वह कर भी क्या सकती थी। न उससे बेटे को तड़पते देखा जाता और न ही बेटे को नशा खाने की छूट दी जा सकती थी। यशवंत ने उसे नशा मुक्ति केंद्र में दाखिल करवाने का फैसला किया। जिस दिन उसे नशा मुक्ति केंद्र छोड़ना था, रमन भी साथ गई। नशा मुक्ति केंद्र को देखकर वह और दुखी हुई। बड़े लाड़-प्यार से पला और हर प्रकार की सुविधा में रहने वाला यशवंत यहाँ कैसे रहेगा? नशा मुक्ति केंद्र वालों का व्यवहार भी उसे बड़ा अजीब लगा। इस संबन्ध में उसने यादवेंद्र से भी बात की, लेकिन यादवेंद्र ने कहा, "ये इनकी मज़बूरी है।"
"क्यों, क्या ये सबसे प्यार से व्यवहार नहीं कर सकते।"
"यहाँ कोई अकेला यशवंत है, बहुत सारे नशेड़ी हैं और ये प्यार से मानते भी कहाँ होंगे। सबको नियंत्रित करने के लिए थोड़ी सख्ती तो करनी ही पड़ती होगी।"
नशेड़ी! यादवेंद्र ने यह शब्द उन सबके लिए बिना सोचे-समझे बोला था, मगर यह रमन को तीर-सा चुभा। उसका लाड़ला अब नशेड़ी हो गया था। यादवेंद्र अपने बेटे को तो शायद ऐसा नहीं बुलाएगा, लेकिन लोग तो शायद अब उसे यही कहेंगे, यह सोचते ही उसकी आँखों से अश्रुधार बह निकली। यादवेंद्र ने उसे अपनी छाती से लगाते हुए कहा, "रोती क्यों है पगली! सब ठीक हो जाएगा।"
'हम अपने एक बच्चे को नहीं संभाल पाए, लानत है हम पर।"
"ऐसा नहीं कहते, तुम तो कितना प्यार करती हो उससे। तुम्हारी तरफ से कोई कमी नहीं रही। बस हमारी किस्मत हार गई, लेकिन तू चिंता न कर, यशवंत नशा छोड़ देगा।"
रमन को आश्वस्त कर वे घर को चल पड़े। जाते समय कार पर उनके साथ उनका बेटा था और अब उसके बिना कार काट खाने को दौड़ रही थी। ऐसा नहीं कि पति-पत्नी ने पहले कभी अकेले कार में सफर नहीं किया था, लेकिन आज उन्हें यह बात रह-रहकर सता रही थी कि वे अपने बेटे को एक ऐसी जगह छोड़कर आए हैं, जो क़ैदख़ाने से कम नहीं। यादवेंद्र को पता है कि इसका दोषी वही है। स्मैक को शहर में लाने वाला वही है। जो चीज उसने दूसरों के बेटों के लिए उपलब्ध करवाई, वह उसके अपने बेटे के लिए भी तो उपलब्ध होगी, ऐसा उसने कभी सोचा ही न था। एक पिता के नाते उसने बेटे से कब दुख-सुख साझे किए, उसे यह भी याद नहीं आ रहा था। वह सोच रहा था कि जैसे उसका और उसके पिता का रिश्ता बाप-बेटे से बढ़कर दोस्ती का था, वैसा वह अपने बेटे के साथ क्यों नहीं बना पाया। काश! वह अपने बेटे का दोस्त बना होता, तो शायद उसका बेटा नशे की इस दलदल में न धँसता।
जब वे घर पहुँचे, तो रश्मि का रो-रोकर बुरा हाल था। उसके स्कूल जाने के बाद वे यशवंत को लेकर आए थे। उसे पता था कि मम्मी-पापा भैया को नशा मुक्ति केंद्र भेजने की योजना बना रहे हैं और जब वह स्कूल से घर आई तो तीनों को न पाकर उसने अनुमान लगा लिया था कि मम्मी-पापा आज भैया को छोड़ने गए हैं। माँ ने कार से उतरते ही बेटी को गले लगा लिया। उसका खुद का मन कर रहा था कि वह भी जोर-जोर से रोए, लेकिन इस समय बेटी को संभालना ज़रूरी था। सच छुपाते हुए बोली, "तू चिंता न कर। बढ़िया ए.सी. रूम में उसको रखा गया है। एक नर्स हमेशा उसकी देखभाल के लिए रहेगी और वह जल्दी ही ठीक होकर आ जाएगा।"
"मम्मी! मैं अब डॉक्टर नहीं बनूँगी।" - रश्मि ने सुबकते हुए कहा। रश्मि 10 2 मेडिकल की छात्रा थी। डॉक्टर बनना उसका सपना था और इसके लिए वह दिन-रात मेहनत कर रही थी। 10 1 में दाखिला लेते ही उसने नीट की तैयारी शुरू कर दी थी और उसे उम्मीद थी कि वह एम्स या अच्छे कॉलेज में दाखिला ले लेगी। इसके लिए वह शहर के प्रमुख इंस्टीट्यूट से कोचिंग ले रही थी। सुबह पाँच बजे से रात ग्यारह बजे तक बस पढ़ना ही उसका काम था। आज उसके यह कहने पर कि वह डॉक्टर नहीं बनेगी, रमन को हैरान कर दिया, वह बोली, "क्यों, तुझे अब क्या हो गया?"
"मुझे वकील बनना है।"
"पर तेरा सपना तो डॉक्टर बनना था।"
"था, मगर अब मैं वकालत करूँगी।"
"पर क्यों?"
"क्योंकि मुझे उन लोगों को बेनकाब करना है, जो नशे का व्यापार करते हैं, जिनके कारण भैया की ये हालत हुई है।"
"ठीक है, जैसी तेरी मर्जी।" - रमन ने उसे गले से लगा लिया। उसे लगा कि रश्मि ने भावावेश में आकर ऐसा कहा है, लेकिन रश्मि ने उसी दिन से पाँच वर्षीय लॉ के।लिए CLAT, D.U. और P.U. का सिलेबस डाऊनलोड कर लिया। कोचिंग में जाना बंद कर दिया और पिता जी से लॉ की तैयारी की पुस्तकें मंगवा ली।
रश्मि को इस कद्र लॉ की तैयारी में जुटे पाकर रमन को अपनी ही कही बात याद आने लगी। जब यादवेंद्र ने उसे अपने लिए अशुभ कहा था, तब उसने कहा था कि मेरी बेटी युगान्तरकारिणी बनेगी। रमन को लग रहा था कि शायद उस समय उसकी जुबान पर सरस्वती माँ बैठी थी। बेटी ने इस दिशा में क़दम उठा लिया था। रश्मि अपने भैया के लिए भले कुछ नहीं कर सकती, लेकिन वह देश की बहुत सी बहनों को अपने भाई को इस प्रकार तड़पने से बचा सकती है। रमन ने मन ही मन रश्मि की बलैया ली और दुआ की कि वह युगांतर ला सके।

क्रमशः