'जन चेतना मंच' द्वारा उठाया गया नशे का मुद्दा भी सबसे ज्यादा शंभूदीन को प्रभावित कर रहा था। भ्रष्टाचार के आरोप तो पूरे राज्य में सभी दलों के लगभग सभी नेताओं पर लग रहे थे, लेकिन नशे को राज्य में लाने का आरोप सिर्फ 'जन उद्धार संघ' के उम्मीदवारों पर ही था। यादवेंद्र का नाम तो उछलना ही था, क्योंकि उससे नशा पकड़ा गया था और वह केस अदालत में चल रहा था। यादवेंद्र के कारण शंभूदीन भी सबके निशाने पर था। टी.वी. चैनलों पर होने वाली बहस में अकसर यादवेन्द्र का नाम उछलता। दूसरी पार्टी के लोग यह भी आरोप लगाते कि पहले तो पोस्त-अफीम जैसा नशा था, अब तो स्मैक बेची जा रही है। यूँ तो नशा कोई भी हो, सेहत के लिए हानिकारक है, लेकिन पोस्त-अफीम और स्मैक में एक बड़ा अंतर यह है कि स्मैक एक कैमिकल नशा है, जो नशा करने वालों को अपराध की और ले जाता है, जबकि पोस्त-अफीम खाने वाले लोग काम करते थे। अपराध की प्रवृत्ति उनमें कम थी, हालाँकि जब नशे के लिए पैसे न मिलेंगे तो सभी अपराध करेंगे, फिर भी स्मैक के नशे के प्रचलन ने चुनावों में इस मुद्दे को केंद्र में ला दिया। जो अपनी गलती मान ले, वह नेता ही क्या। सभी बहसों में शंभूदीन का प्रवक्ता शंभूदीन और यादवेंद्र को पाक साफ सिद्ध करता, लेकिन जनता अपना फैसला तुरन्त सुनाती है। हर नुक्कड़ पर उपलब्ध कैमिकल नशे से हर कोई परेशान था और बहस में जब इसके आरोप 'जन उद्धार संघ' पर लगते तो वे इस पार्टी से छोड़कर दूसरी पार्टियों की तरफ गए। वोट काफी मात्रा में चार हिस्सों में बंट गए, फिर भी अंत में सफलता 'जन मोर्चा पार्टी' को मिली। 'जन मोर्चा पार्टी' को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला, लेकिन वह बहुमत के काफी नजदीक थी। आदाज़ उम्मीदवारों की सहायता से वह निश्चित आँकड़ा पर कर रही थी। 'लोक सेवा समिति' ने उसे बाहर से समर्थन दे दिया। शंभूदीन चुनाव हार गए थे, लेकिन यादवेन्द्र के लिए खुशी की बात यह थी कि सन्नी चुनाव जीत गया। बाहर से समर्थन के कारण 'लोक सेवा समिति' को कोई पद नहीं मिला। यादवेंद्र सन्नी से कभी कभार इस बारे में प्रश्न करता तो सन्नी कहता, "बाहर से समर्थन पार्टी के लिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इससे हम उन कार्यों के जिम्मेदार नहीं, जो सरकार कर रही है और सरकार कुछ भी करे जनता तो नाराज़ रहती है है, क्योंकि सुरसा के मुँह की तरह फैलती जनता की उम्मीदें कोई भी सत्ताधसरी दल पूरा नहीं कर सकता। बाहर से समर्थन के कारण हम जनता का रुख देखकर सरकार का विरोध भी कर सकेंगे।
यादवेंद्र सन्तुष्ट हो जाता, लेकिन यादवेंद्र की पत्नी ने चुनाव के दिनों जो आरोप सुने थे, उससे उसे डर लगता कि कहीं उसका बेटा 'यशवंत' नशे का ही शिकार तो नहीं। वह यादवेंद्र से भी पूछती कि स्मैक बेचने के जो आरोप आप पर और नेताजी पर लगें हैं क्या वे सही हैं। उसके इंकार करने पर वह कहती तो इन पर मानहानि का दावा कर दो। मानहानि का दावा तो तभी किया जा सकता है, जब वह दूध का धुला हो। यादवेंद्र यह तो नहीं कह सकता कि ऐसा वह नहीं कर सकता, बस उसने इतना कहा कि चुनाव के दिनों में यह आम बात है। हम भी झूठे-सच्चे आरोप लगाता हैं और वे भी। यह तो लोगों को मूर्ख बनाने के लिए है, इसके लिए न हम कोर्ट-कचहरी जाएँगे, न वे। रमन अपने पति का जवाब सुनकर कभी-कभी सोचती कि कहीं यह आरोप सच ही तो नहीं। भले ही वह इस बात को मानती थी कि चुनावों में झूठे आरोप-प्रत्यारोप लगते ही हैं, लेकिन यादवेंद्र जब पहले पकड़ा गया था, तब झूठ नहीं था। जब वह पोस्त-अफीम बेच सकता है तो स्मैक क्यों नहीं?, लेकिन कभी वह पति के कहने पर मान लेती कि ये आरोप सिर्फ राजनैतिक षड्यंत्र हैं।
चुनाव के नतीजों के बाद यादवेंद्र की जीवनशैली में बस इतना परिवर्तन आया कि अब उसका ध्यान अपने धंधे पर अधिक हो गया क्योंकि उसके संबन्ध सन्नी से अच्छे थे। शंभूदीन हार के बाद अपनी ही पार्टी के हाशिए पर चला गया था। शंभूदीन को स्पष्ट हो गया था कि अगली बार उसे टिकट नहीं मिलेगी, इसलिए वह पार्टी के कामों से दूर होने लगा। यादवेंद्र की निष्ठा पार्टी से ज्यादा शंभूदीन के साथ थी, इसलिए पार्टी के कार्यक्रमों में भाग लेना उसने भी बंद कर दिया था क्योंकि अब शंभूदीन उसे ऐसा करने के लिए नहीं कहता था। शंभूदीन खुद अंदर-ही-अंदर 'जन मोर्चा पार्टी' से संपर्क साधने लगा था। यादवेंद्र का धंधा पूरे शबाब पर था, लेकिन उसके धंधे की तपिश घर तक पहुँचने लगी थी। 'यशवंत नशा करता हो सकता है' -यह संदेह तो रमन को उन्हीं दिनों हो गया था, जब उसने समाचार चैनलों पर खबरों को सुना था। यशवंत के बदले व्यवहार के बारे में वह अपने पति से पहले ही बात कर चुकी थी, लेकिन उस समय उसका शक किसी लड़की के साथ चक्र को लेकर था। यशवंत उन दिनों थोड़ा नशा करता होगा या उसने अभी शुरू ही किया था, इसलिए ज्यादा पता भी नहीं चलता, लेकिन साल बीतते-बीतते उसका व्यवहार रमन के शक को यकीन में बदलने लगा। दिन-ब-दिन पैसों को लेकर उसकी माँग बढ़ने लगी। पैसे न मिलने पर झगड़ा करता। उसके चेहरे की रौनक गायब होने लगी थी। वह अब कई बार रात को भी घर नहीं आता और अगले दिन जब आता तो सीधे मुँह बात तक नहीं। यादवेंद्र भी समझ गया था कि जो कांटेदार झाड़ियाँ वह समाज के लिए बो रहा था, वह उसके घर भी उग आई है। उसने यशवंत को समझाने की कोशिश की। उसके साथ प्यार से बात की। रमन से भी कहा कि लड़ने का कोई फायदा नहीं। हमें प्यार से ही इसे सही रास्ते पर लाना होगा।
प्यार से बात करने पर यशवंत मान गया कि वह स्मैक पीता है और जब स्मैक नहीं मिलती तो वह मेडिकल से गोलियाँ लेकर भी खा लेता है। वह आश्वासन भी देता कि वह अब नशा नहीं करेगा, लेकिन वह अपनी बात पर रह नहीं पाता, क्योंकि शरीर नशे का आदि हो चुका था।
क्रमशः