the price of honesty in Hindi Short Stories by DINESH KUMAR KEER books and stories PDF | ईमानदारी की कीमत

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ईमानदारी की कीमत

ईमानदारी की कीमत

सीमा ने अपनी मैम से सिफ़ारिश कर धरमा को ड्राइवर की नौकरी पर लगवाया । क्योंकि धरमा को गलत बात पसंद नहीं थी, इसलिए हमेशा नौकरी से निकाला जाता था । बेटा ! बड़ी मुश्किल से नौकरी मिली है, बस दूसरो के लिए लड़ना छोड़ के अपने लिए कुछ करना सीखों । ठीक है माँ …. अगले दिन धरमा, दिनेश के घर पहुँचा और दिनेश के ऑफिस के लिए निकल गए । ऐसे ही दिन बीत गए, दिनेश की बीवी उर्मिला और बच्चों को कहीं ले के जाना हो या घर का कोई काम हो धरमा सब काम अच्छे से करता था । ये देख उर्मिला भी उस पर विश्वास करने लगी और उसे अपने भाई की तरह समझने लगी थी ।

उसकी माँ भी खुश थी कि धरमा अब अपनी ज़िम्मेदारियों को समझ रहा हैं । एक दिन बहुत तेज़ बरसात हो रही थी । तभी दिनेश का फ़ोन आया कि उसका पर्स कार में रह गया है । उसे लेकर ऊपर आ जाओ ! जैसे ही धरमा ऊपर पहुँचा और घंटी बजाई तो उसने देखा की दिनेश नशे में लड़खड़ाते हुए दरवाज़े पर आया और हाथ से पर्स छीन गिर पड़ा । आस - पास खड़े उनके दोस्त भाग के आए और मेरी तरफ़ देख कर बोले उठाओ इसे अंदर ले कर चलो । मैं जब अंदर पहुँचा तो मेरे पैरो तलों जमी खिसक गई । अंदर का वो नजारा बड़ा ही शर्मसार करने वाला था । मैंने देखा बहुत सारे युवक - युवतिया एक दूसरे की बाहों में बाहे डाले बेहोश पड़े है । थोड़ी देर में एक लड़की आयी और दिनेश सर के पास बैठ गई । नीचे आकर भी वो मंज़र मेरे सामने घूम रहा था । सर का इतना अच्छा परिवार है, फिर भी अपनी बीवी को धोखा दे रहे है ।

अगले दिन हम दोनों एक दूसरे से नज़र चुराए कार में जा बैठें । तभी दिनेश सर की आवाज़ आयी ये लो पैसें और कल जो भी हुआ उसे भूल के भी उर्मिला को मत बताना । ग़लत का साथ ना देने वाला सच में गलती कर बैठा, खामोशी की कीमत ले सच को झुठला बैठा !

दिनेश से लिए पैसों से वो घर में क़ीमती चीजे, खाने का महँगा सामान लेकर लाया । ये देख उसकी माँ को आश्चर्य हुआ ! ये सब कहाँ से आया है? …” कुछ नहीं माँ दिनेश सर ने खुश होकर दिया है “। धरमा को भी आख़िर झूठी शान की लत लग ही गई । कुछ दिन बाद दोपहर को उर्मिला ने धरमा को घर बुलाया । उर्मिला आरती का थाल लेकर आई, धरमा ये सब देख हैरान परेशान हो गया ! ये सब क्या है मैम ! ... आज राखी का दिन हैं और तुम मुझे हमेशा मेरे भाई की याद दिलाते हो । जो अब इस दुनिया में नहीं हैं ! तो क्या मैं तुम्हें राखी बांध सकती हूँ । ख़ामोश हिचकिचाते हुए सिर को हिला के बोला “ठीक है बांध दो “! उर्मिला की ख़ुशी उसके चेहरे से छलक रही थी जो धरमा को टीस की तरह चुभ रही थी । जैसे ही वो बाहर जाने लगा तभी वो मुड़ा और उर्मिला को राखी के पवित्र बंधन की खातिर दिनेश के बारे में सब बताने लगा । वो सब सुन उर्मिला ने उसे एक झन्नाते दार चाटा मारा… तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ? मेरे दिनेश के बारे में ऐसा बोलने की… मैंने तुम्हें अपने भाई का औदा दे इतनी इज़्ज़त दी और तुम… कुछ लोग होते ही नहीं है इस लायक़… निकल जाओ । लेकिन मैम, मैं सच कह रहा हूँ... मैंने दूसरो के भले के लिए कितनी बार अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारी, पर दुनिया को तो हर बार मैं ही ग़लत नज़र आता हूँ ।
हर बार की तरह इस बार भी सच झूठा निकला
किसी अपने के विश्वास को धोखा देना कितना आसान निकला।
अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारना