daughters in Hindi Short Stories by DINESH KUMAR KEER books and stories PDF | बेटियाँ

Featured Books
Categories
Share

बेटियाँ

मैंने अपने बच्‍चों को कभी नहीं बताया कि मैं क्‍या काम करता था । मैं उन्‍हें कभी मेरी वजह से शर्मिंदा महसूस नहीं कराना चाहता था । जब मेरी छोटी बेटी ने मुझसे पूछा कि मैं क्‍या करता हूं तो मैं उसे हिचकिचाते हुए बताता , मैं एक मजदूर हूं । रोज घर जाने से पहले मैं सार्वजनिक बाथरूम में नहाता था , ताकि उन्‍हें पता न चले कि मैं क्‍या कर रहा हूं । मैं अपनी बेटियों को स्‍कूल भेजना , उन्‍हें पढ़ाना चाहता था । मैं लोगों के सामने उन्‍हें आत्‍मसम्‍मान के साथ खड़ा देखना चाहता था। मैंने कभी नहीं चाहा कि कोई उनकी तरफ उन्‍हीं नफरत भरी नजरों से देखें , जैसे सब मुझे देखते थे । लोग हमेशा मेरा अपमान करते । मैंने अपनी कमाई की एक - एक पाई बेटियों की पढ़ाई में लगाई । मैंने कभी नई कमीज नहीं खरीदी, उसकी जगह बच्‍चों के लिए किताबें खरीदीं । बस सम्‍मान मैं अपने लिए उन्‍हें यही कमाते देखना चाहता था ।

मैं सफाई किया करता था ।

बेटी के कॉलेज ए‍डमिशन की आखिरी तारीख से एक दिन पहले , मैं उसकी एडमिशन फीस की जुगाड़ नहीं कर सका । मैं उस दिन काम नहीं कर सका । मैं कूड़े के ढेर के किनारे बैठा हुआ अपने आंसुओं को छिपाने की कोशिश कर रहा था । मैं उस दिन काम नहीं कर पाया । मेरे सभी साथी मेरी ओर देखते रहे मगर कोई बात करने नहीं आया । ’

‘मैं नाकाम, बेबस था , मुझे नहीं समझ आ रहा था कि घर जाकर बेटी का सामना कैसे कर पाऊंगा जब वह मुझसे एडमिशन फीस के बारे में पूछेगी । मैं गरीब पैदा हुआ था । एक गरीब के साथ कुछ अच्‍छा नहीं हो सकता , ये मेरा मानना था । काम के बाद सभी सफाईवाले मेरे पास आए , पास बैठे और पूछा कि क्‍या मैं उन्‍हें भाई मानता हूं । मैं कुछ कह पाता , उससे पहले ही उन्‍होंने एक दिन की कमाई मेरे हाथों में रख दी । जब मैंने मना किया तो वे बोले , ‘ जरूरत पड़ी तो हम आज भूखे रह लेंगे मगर हमारी बिटिया को कॉलेज जाना ही होगा । ' मैं जवाब नहीं दे सका । उस दिन मैं नहीं नहाया । उस दिन मैं एक सफाईकर्मी की तरह घर गया ।

मेरी बेटी जल्‍द ही अपना कॉलेज खत्‍म करने वाली है । वे तीनों मुझे और काम नहीं करने देतीं । छोटी बेटी पार्ट टाइम नौकरी करती है और बाकी ट्यूशन पढ़ाती हैं। कभी-कभी वो मुझे मेरे पुराने काम वाली जगह ले जाती है । मेरे साथ - साथ पुराने साथियों को खाना खिलाती हैं । वे हंसते हैं और उससे पूछते हैं कि वह उन्‍हें खाना क्‍यों खिलाती हैं । मेरी बेटी ने उनसे कहा , ‘ आप सब उस दिन मेरे लिए भूखे रहे ताकि मैं वो बन पाऊं जो मैं आज हूं । दुआ कीजिए कि मैं आपको खिला सकूं , रोज । ’ आजकल मुझे नहीं लगता कि मैं गरीब हूं जिसकी ऐसी बेटियाँ हों , वो गरीब कैसे हो सकता है । ’