(रहस्य) गर्ल्स हॉस्टल -3
नेहा बेसुध पड़ी थी। वार्डन ने उसके चेहरे पर पानी की छींटें मारीं तो नेहा ने आँखें खोलीं।
“क्या हुआ नेहा, तुम्हारी तबियत तो ठीक है न”
“मैम कोई था यहाँ, उसने मेरा पानी पी लिया, मेरे कॉस्मेटिक्स फैला दिये और सृष्टि के बेड पर सोया भी था।”
“नहीं नेहा, ऐसा कुछ नहीं हुआ होगा, यह तुम्हारा वहम है।”
“नहीं मैम , यह वहम नहीं था"
“अच्छा, मेरे साथ चलो,”नेहा को लेकर वार्डन अपने कमरे में आ गईं। उन्होंने उसे गर्म कॉफी पिलाई। और वहीं आराम करने को कहा। कुछ देर बाद नेहा को अच्छा लगा तो वह क्लास करने चली गई।
जैसे जैसे शाम हो रही थी , नेहा का मन घबराने लगा। उसे अपने कमरे में जाते हुए भी डर लगने लगा। उसने यह बात अपनी एक सहेली को बताई तो वह साथ आ गई। नेहा ने अपना बॉटल लिया । सारे बिखरे सामान आलमीरा में बंद कर के ताला लगा दया। बिस्तर ठीक किया और उसी सहेली के साथ उसके कमरे में आ गई। आज उसे अकेले रहने की हिम्मत नहीं थी। वार्डन ने भी अनुमति दे दी कि वह उसी सहेली के रूम में रात को सो जाए।
रात हुई। नेहा की आँखों में नींद नहीं थी । बस आँखें बंद करके लेटी हुई थी। रात गहराने लगी तो धीरे धीरे नींद की आगोश में आ गई। नींद में ही उसे लग रहा था जैसे कोई पानी माँग रहा हो। उसने सोचा कि वही सहेली होगी, पर वह तो गहरी निद्रा में थी। फिर कौन था। उसका दिल जोर जोर से धड़कने लगा किन्तु उसने सहेली को जगाना उचित नहीं समझा। कुछ ही देर बीते थे कि उसे लगा जैसे उसके कमरे का आलमीरा का दरवाजा कोई जोर जोर से झकझोर रहा था। वह निष्प्राण सी पड़ी थी। एकाएक आवाजें आनी बंद हो गई। वह चुपचाप सुबह होने का इन्तेजार करने लगी। सुबह हुई तो सहेली ने कहा,” गुड मॉर्निंग नेहा, रात अच्छी नींद आई न”।”
“नहीं, कोई पानी माँग रहा था और मेरे कमरे में कोई मेरा आलमीरा झकझोर रहा था।”
“अच्छा, पर मुझे तो कुछ भी सुनाई नहीं पड़ा। चलो तुम्हारे रूम में चलते हैं।”
आगे आगे उसकी सहेली थी और पीछे डरती हुई नेहा जा रही थी। सहेली अन्दर जाकर उल्टे पैरों वापस आ गई। “क्या हुआ”, कहती हुई नेहा रूम के दरवाजे पर आ गई। आज भी बिस्तर पर सलवटें पड़ी थीं। नेहा का आलमीरा खुला था और टूटा ताला वहीं पर गिरा हुआ था। दोनों सहेलियाँ दौड़कर वार्डन के पास पहुँचीं और सारी बातें बताईं।
वार्डन ने सब कुछ अपनी आँखों से देखा। जल्दी नेहा के घर में फोन करके वार्डन ने बथाया कि यहाँ कुछ तो हो रहा। आप नेहा को ले जाएँ या यहाँ आकर दो तीन रहकर सब कुछ देखें।
शाम होते होते नेहा के पेरेन्ट्स आ गए। उनके साथ तंत्र मंत्र जानने वाला भी कोई था। नेहा को देखते ही उसने कहा कि नेहा अकेली नहीं, कोई उसके बगल में खड़ी है।
“कौन”
“एक लड़की हाथों में पानी का गिलास लिए खड़ी है। उसके होंठ सूखे हैं। लगता है जैसे वह कितनी प्यासी है”।
“ओह! अब क्या होगा।”
“देखता हूँ,” कहकर तांत्रिक ने अपने झोले से एक लकड़ी निकाली और से जलाया। वह छटपटा गई।
“आग बुझाओ,” वह जोर से चीखी।
“नहीं, पहले सबके सामने आओ”
“नहीं, वह मारेगी”
“कौन मारेगा”
“वहीं , जिसने रैगिंग के लिए मुझे एक बिल्ली के साथ कमरे में बंद कर दिया था।”
“हाँ है वह””
“यहीं खड़ी है हरे सूट में”
“ठीक है, पर अब तुम सामने आओ ताकि वह भी तुम्हें पहचान सके। वह तुम्हें मार नहीं सकती। हमलोग हैं यहाँ पर।’”
अचानक वहाँ पर हवा का झोंका सा आया और वह हाथों में गिलास लिए सामने खड़ी थी। हरे सूट वाली लड़की , जिसका अब फाइनल इयर था, उसे देखते ही घबरा गई।
उसे याद आया कि उसने उसे एक बिल्ली के साथ कमरे में बंद कर दिया था। उसके बाद कॉलेज में एक सप्ताह की छुट्टी हो गई थी। सभी अपने घर चले गये थे। स्टोर वाले उस कमरे की ओर किसी का ध्यान नहीं गया था।
जब वापस कॉलेज खुला तो उस कमरे से वह लड़की और बिल्ली की लाश मिली। यह सब किसने किया यह कोई नहीं जान पाया।
प्यासी थी, बहुत प्यासी थी मैं। बिल्ली ने मेरा चेहरा नोंच लिया था। मैं तड़प- तड़प कर मर गई। मुझे प्यास मिटानी है और अपना चेहरा भी वापस सुन्दर बनाना है।”
उस लड़की की ये बातें सबने सुनीं। हरे सूट वाली लड़की का अपराध सबके सामने आ चुका था।
“अब तुम्हें क्या चाहिए। कैसे जाओगी यहाँ से”
“प्यास बुझाकर”
कैसे”
“उसी लड़की के हाथों से मुझे पानी पीना है। और वही मेरा चेहरा सँवार दे , फिर चली जाऊँगी।”
“उस सीनियर लड़की ने उसे अपने हाथों से उसे पानी दिया जिसे वह गटागट पी गई। अब चेहरा सँवारने की बात हुई तो वह आगे बढ़ी। बिल्ली ने उसका चेहरा लहुलुहान किया हुआ था जिसे देख वह चीख पड़ी। फिर भी उसने अपने दुपट्टे से उसका चेहरा पोंछा। उसका हरा दुपट्टा लाल हो चुका था। अब वह सिर झुकाकर हाथ जोड़कर उसके सामने खड़ी हो गई।
“हा हा हा हा, चलो माफ किया। अब जाती हूँ। मेरी प्यास बुझ गई। अब नहीं आऊँगी।”
उसके बाद सबने हवा का झोंका महसूस किया। अब वहाँ पर वह नहीं थी।
रैगिंग का भयानक परिणाम सामने था जो हॉस्टल के कमरे में दबा ही रह जाता, पर नहीं...अपराध कभी न कभी सिर उठाकर सामने आ ही जाता है।