backlight in Hindi Love Stories by Wajid Husain books and stories PDF | बैकलाइट

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बैकलाइट

वाजिद हुसैन की कहानी - प्रेम कथा

‍ मेरे पापा ‌घर में रहते ही नहीं थे, जब आते, गालियां बकते हुए‌। अपनी नाव से लोगों को नदी पार कराते थे। शाम को नाव नदी किनारे खूंटे से बांधकर दारु पीने चले जाते। अच्छी मज़दूरी होती तो ठररे के साथ मांस- मछली खाते, नहीं तो पकौड़ी खा कर मुंह का कसैलापन दूर कर लेते।
मैं पांचवी कक्षा में था‌। झोपड़ी में तेल की डिब्बी जल रही थी, मम्मी- पापा सोए हुए थे, मैं गणित के प्रश्नो से माथापच्ची कर रहा था। दरवाज़े पर दस्तक सुनकर बाहर गया। सरदार सतनाम सिंह को देख कर चौक गया। वह गुरुपर्व पर स्कूल में बच्चों को हल्वा-छोले खिलाते हैं और प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण बच्चों को इनाम बाटते, जो मुझे भी मिलता था। मुझसे बोले, 'पुत्तर कचहरी जाते समय मैं तेरे पापा की नाव में जायदाद के कागज़ भूल गया। उससे पूछा तो मुकर गया पर मै यक़ीनन कागज़ नाव में ही भूला था। कागज़ नहीं मिले तो मैं बर्बाद हो जाऊंगा, मर जाऊंगा।' यह कहते-कहते उनकी आंखें नम हो गई और गला रूंध गया।
मैं दबे पैरों झोपड़ी में गया और एक कनस्तर से निकालकर कागज़ उन्हें दे दिए। उन्होंने मुझे कुछ रुपये दिए जो मैंने नहींं लिए‌। मैंने उनसे कहा, 'अंकल पापा को पता चला, मारकर नदी में डाल देंगे।' ... 'पता नहीं चलेगा।' सिर पर हाथ रखकर कहा, 'पुत्तर, कोई परेशानी हो तो निसंकोच बताना।'
सवेरे मेरी आंख मम्मी की चीख़ से खुली‌। वह मेरे किए की सज़ा भुगत रही थी। कनस्तर में कागज़ न पाकर, पापा उन्हें बेरहमी से मार रहे थे। मैं तमाशबीन बना खड़ा था। मैं जानता था, 'मां अपनी मार सह लेगी, पर बच्चे का पिटना न सह पाएगी।'
पापा के जाने के बाद घावों पर हल्दी का लेप लगाते समय मम्मी ने मुझसे कहा, 'रमेश, मैं जाग गई थी जब तूने सरदार जी को कागज दिए थे। मुझे खुशी है, तू अपने पापा जैसा नहीं है।'
मम्मी के घाव भरे भी न थे, गांव में ज़हरीली शराब पीकर मरने वालों का तांता लग गया। ज़मीन पर पड़ी टूटी चूड़ियों में मां की चूड़ियां भी थी। मेरा स्कूल जाना बंद हो गया था, ढोर- डंगर चराकर अपना और मां का पेट भरता था।
गुरुपर्व का उत्सव आ गया था‌। सरदार जी स्कूल के बच्चों को हल्वा- छोले बांटने आए। वहां उन्हें मेरे साथ घटित त्रासदी का पता चला तो मुझे और मम्मी को अपने फार्म हाउस ले गए। उन्होंने सर्वेंट क्वार्टर में हमारे रहने की व्यवस्था कर दी। मम्मी उनके घर में काम करने लगी थीं और मैं फिर से स्कूल जाने लगा था।
सरदार जी की पांच वर्षीय पोती परमीत से पल भर भी बात किए बिना नहीं रहा जाता। वह जितनी देर तक सो नहीं पाती थी, उस समय का एक पल भी वह चुप्पी में नहीं खोती। उसकी मम्मी अक्सर डांट- फटकार से उसकी चलती हुई ज़ुबान बंद कर देती थी। किंतु उसके दादा से ऐसा नहीं होता।उसका मौन उनसे अधिक देर तक सहा नहीं जाता और यही कारण था कि दादा के साथ उसकी बातें फ्रैंडली होती रहती थीं। एक दिन आटा पिसाने जाते समय, मम्मी मुझ से बोली, 'मूड़ पर धर ले।' परमीत दादा के पास गई, 'दादा! रामकली आंटी, 'सिर पर रखने' को मूड़ पर धरना कहती हैं। वह कुछ भी नहीं जानती, हैं न दादा?' ... दादा बोले, 'न बाबा न' उसके हर प्रश्न का उत्तर देना किसी भंवर में फंसने के बराबर है। इसलिए उन्होंने काम के समय उसका ध्यान हटाने के लिए कहा, 'परमीत जा, तू रमेश के साथ खेल, मुझे अभी काम है।'
... 'अच्छा!' ... उसने मेरे पास बैठकर अपने दोनों हाथों को हिला-हिलाकर तेज़ी से मुंह चलाकर 'अक्कड़ बक्कड़ बाम्बे बो अस्सी नवे पुरे सौ' कहना आरंभ कर दिया। उस दिन के बाद से हमारे बीच की झिझक दूर हो गई थी। हम साथ में छुपा- छुपी खेलते और तितलियां पकड़ते। हाई सोसाइटी गर्ल और गंवार की दोस्ती परमीत की मम्मी डॉली मैम को रास नहीं आई। अत: एक दिन परमीत मचलती रही, पर उन्होंने इस दोस्ती पर विराम लगा दिया।
शुगर फैक्ट्री की टाउनशिप के इंग्लिश मीडियम स्कूल में परमीत को एडमिशन मिल गया था। वहां से परमीत ने इंटर पास कर लिया था। आगे पढ़ने के लिए उसने शहर में डिग्री कॉलेज में एडमीशन ले लिया था, जो अच्छी ख़ासी दूरी पर था।
इलाक़े के बड़े कारोबारी ख़ान रशीद का पोता सलमान, पहले ही से डिग्री कॉलेज में पढ़ता था। वह कार से कॉलेज जाता था जबकि परमीत को ट्रैक्टर ड्राइवर मोटरसाइकिल से पहुंचाता था। ख़ान रशीद की‌ बेगम और डॉली मैम में दोस्ती थी। एक दिन किटी पार्टी में बेगम ने डॉली मैम से परमीत को सलमान के साथ कालेज भेजने के लिए कहा, जिस पर उन्होंने रज़ामंदी जताई। उसके बाद से सलमान और परमीत साथ में कॉलेज जाने लगे थे।
सलमान और परमीत को करीब आते ज़्यादा देर न लगी। कुछ ऐसा महसूस होता है जैसे बनाने वाले ने उन दोनों को बनाया ही एक दूसरे के लिए था। दोनों बहसी और मगरूर थे। न किसी से डरने वाले न किसी को बेजाह दबाने वाले। रूतबा यह कि दोनों खूबसूरत और हसीन थे, लगता था क़ुदरत ने दोनों को एक ही साचे और ठप्पे में ढालकर जुदा धर्म में भेज दिया है।
मैं प्राइवेट एम.ए कर रहा था। पढ़ाई के ख़र्च के लिए टेम्पो चलाता था। मुझे अक्सर कॉलेज टाइम में सलमान और परमीत होटल पी.वी.आर आदि में दिखाई देते थे। आउटस्कर्ट में सलमान का एक रिज़ोर्ट था। वहां भी दोनो को तफरियन साथ घूमते देखता था जो मुझे ठीक नहीं लगता था। मैंने डॉली मैम को इस बात से अवगत किया। उन्होंने कहा, 'मेरी परमीत: हाई सोसाइटी गर्ल है। तुझे पता है, आजकल लड़की लड़के का डेट पर जाने का चलन है। एक बात कान खोलकर सुन, उसकी जासूसी करना बंद कर दे, ठीक नहीं होगा।' उनकी कही बात मेरे दिल पर लग गई। मैंने टेम्पो में सामान रखा और मां को लेकर जाने लगा। चलते समय सरदार जी ने रूंधे गले से कहा, 'पुत्तर तुझे घर की इज़्ज़त का ख़्याल था, तू भी जा रहा है, रब जाने क्या होगा?'
घनी काली रात थी। मैं सलमान के रिसोर्ट के पास खड़ा सवारियों का इंतजार कर रहा था। मेंने किसी लड़की को बचाओ-बचाओ चिल्लाते सुना। देखा, वह परमीत थी। तभी नशे में धुत सलमान आ गया। वह खूंखार शेर की तरह पंजे से छूटे शिकार को दुबारा दबोचने में लगा था।
मैं परमीत को सलमान के चंगुल से छुड़ाने लगा। हालांकि मैं उसे बचाने में सफल हो गया पर चोटिल हो गया था। मैं उसे लेकर फार्म हाउस पहुंचा। चिंता में डूबी डॉली मैम और दादा गेट पर उसका इंतज़ार कर रहे थे। उसके फटे वस्त्र किसी अनहोनी की गाथा कह रहे थे, जिन्हें देखकर डॉली मैम के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं। ...मैने कहा, 'सलमान अपने रिज़ोर्ट में परमीत की इज़्ज़त लूटने की कोशिश कर रहा था। मैं समय रहते न पहुंचता तो अनर्थ हो जाता।'
बेटी की सलामती सुनकर उनके चेहरे की रंगत लौट आई। डॉली मैम ने कहा, 'पुत्तर, मेरी कही बात को अभी तक दिल से लगाए बैठा है। घर में चल मैं तेरी मरहम पट्टी कर देती हूं।' सरदार जी ने कहा, 'मुंडे तू हमारी बेटी की इज़्ज़त बचाने के लिए जान पर खेल गया, ज़िंदगी भर तेरी गुलामी करेंगे, फिर भी तेरा कर्ज़ न उतार पाएंगे।'
'यह मेरी बचपन की दोस्त है, नहीं बचाता, तो लोगों का दोस्ती पर से एतबार उठ जाता।' फिर हाथ जोड़कर कहा, 'मुझे चलना होगा, मां बाट जोह रही होगी और टेंपो भी चलाना है, यही मेरी जीविका का साधन है।'
एक बार फिर परमीत का दिल मुझे रोकने के लिए मचलता रहा, पर कैसे रोकती, उसकी मां मुझे ठेठ गंवार समझती थी।' सूनसान सड़क पर टेम्पो चल पड़ा था। बैक मिरर में मुझे परमीत दिखाई दे रही थी। उसकी आंखें दूर होती टेम्पो की बैकलाइट पर गड़ी थी।'
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