Ulte Pair - 2 in Hindi Horror Stories by Sonali Rawat books and stories PDF | उल्टे पैर - 2

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उल्टे पैर - 2





एक दिन, सोते हुए वो कुछ बड़बड़ा रहा था और उसके प्रिय मित्र ने सुना वो रोते हुए पिया से खुद को छोड़ने की गुहार लगा रहा था, उसने अगले ही दिन, शेंकी के पिताजी को टेलीफोन पर सूचित किया कि शेंकी किसी आत्मा के चक्कर मे फंस गया है, आप उसे संभालें आकर।

अगले हफ्ते, अपने पिता को अचानक आया देखकर

शेंकी को बहुत सुखद आश्चर्य हुआ, वो उनसे लिपट के फूटफूट के रोने लगा, उसने कहा-पिताजी, मुझे बचा लें, आइंदा कोई गलत काम न करूंगा।

उसके पिता ने सारी बात सुनी, अपने मित्रों से इस बारे में परामर्श किया और शेंकी को सारी योजना समझाई।

योजना अनुसार, शेंकी सुबह जल्दी ही पार्क पहुंच गया।थोड़ी देर में वो आवाज़ आई और वो लड़की उससे बातें करने लगी।आज फिर उसने शेंकी को सीधे अपने बताए रास्ते पर चलने को कहा, शेंकी चुपचाप चलता रहा, वो दोनों एक वीरान खंडहर तक जा पहुंचे, हवा की सनसनाहट, सूखे पत्तों की चिरचिराहट उस जगह को डरावना बना रहे थे।कुछ चमगादड़ उड़कर शेंकी के कान के पास से तीर की तरह निकले, वो डर गया।वो लड़की उसे उस वीराने में लाकर पटकने वाली थी कि शेंकी फुर्ती से पीछे मुड़ा और असावधानी में वो लड़की उसे कुछ न कह पाई।
मामला समझ आते ही वो गुर्राई-तुम पीछे कैसे मुड़े, मैं तुम्हारा खून पी जाऊंगी...

इतने में ही उस चुड़ैल बनी लड़की को, शेंकी के पिता और कई पुलिस वालों ने घेर लिया।इस अप्रत्याशित हमले के लिए वो तैय्यार न थीं l

पुलिस को उसने बताया कि उसके पिता गरीब थे, ठेला लगाते थे, एक बार किन्ही रसूखदारों ने उनसे उनका ठेला छीन लिया, उन्हें मार डाला, तब उनका परिवार भूखे मरने लगा और तब से उसने ये उल्टे पैर लगा कर चुड़ैल बन लोगो को लूटना शुरू किया, वो मानव अंगों की तस्करी भी करवाती थी, उसके बताने से समाज के कई इज्जतदार लोगों के नाम भी सामने आए।

शेंकी ने अब तौबा कर ली थी कि पढ़ने आया था शहर, बस पढूंगा, बाकी" फने खान "नहीं बनना अब।

🌷🌿

कभी कभी वो रात और वो मंज़र याद आता है तो मेरा दिल दहल उठता है आखिर वो क्या था?वो मह़ज मेरा कोई ख्वाब था या हक़ीक़त ,जिसे मैं आज तक भूल नहीं सका,जब कभी वो वाक्या मेरा सामने आता है तो ख़ौफ के मारे आज भी मेरे रौंगटे खड़े हो जाते हैं,उस रात की सारी घटना मेरी आंखों के सामने एक फिल्म की भांति चलने लगती है,भयानक और अंधेरी रात,ऊपर से सुनसान इलाका , बड़ा सा उजाड़ कमरा, फिर कंडक्टर की लाश का यूं मिलना,ना जाने उस रात क्या होने वाला था ?लेकिन हम उस रात सच में बच गए,अगर वो ना होता तो शायद हम सब भी उस कंडक्टर के साथ अपनी जान से हाथ धो बैठते..............

लगभग बीस साल पहले की बात है, मैंने अपने परिवार के साथ जयपुर घूमने का कार्यक्रम बनाया,बेटा बहुत दिनों से जिद़ कर रहा था कि पापा मुझे राजस्थान घूमने के लिए ले चलिए,सो मैं उसकी बात मानकर उसे जयपुर घूमाने को राज़ी हो गया।।

मैं,मेरी पत्नी रीमा और बेटा संयम घर से जयपुर के लिए रवाना हो गए,हमने दो दिन में पूरा जयपुर घूम लिया लेकिन मेरे पास अभी दो दिन की छुट्टी और भी बची थी तो मैंने सोचा क्यों ना अज़मेर शरीफ़ भी हो आते हैं, चूंकि हमारी ये प्लानिंग अचानक हुई थी तो हमें जल्दबाजी में बस का सहारा लेना पड़ा,उस बस में और भी यात्री थे, ख़ासकर बुजुर्गो की संख्या ज्यादा थी, हमारी जैसी केवल एक ही फैमिली थी,बस में यात्री भी कम ही थे, क्योंकि बस भी थोड़ी खजाड़ा थी इसलिए शायद उसमें ज्यादा यात्री नहीं बैठें होंगें।।

करीब रात के आठ बजे बस अपने गंतव्य की ओर रवाना हो चली,हम तीनों अपनी अपनी सीटों पर टेक लगाकर बैठ गए,संयम तो सो गया लेकिन मुझे और रीमा को बीच बीच में हल्की हल्की झपकी सी आ जाती,एक तो वीरान और अन्जानी जगह ऊपर से खजाड़ा बस में मुझे अनकम्फर्टेबल लग रहा था, ड्राइवर को भी शायद बहुत जल्दी थी गंतव्य तक पहुंचने की इसलिए वो भी बस को तेज़ रफ़्तार में भगाए चला जा रहा था,अंदर से डर भी लग रहा था कि कहीं वो बस को ठोक ना दें क्योंकि अंधेरा घना था,साथ में सुनसान सड़क के किनारे ,जिन पर ना कोई घर दिख रहा था और सड़क पर भी इक्का-दुक्का वाहन ही दिखाई दे रहे थे,कुछ बुजुर्गो ने ड्राइवर को टोका भी कि बस की रफ़्तार जरा धीमी करो,कुछ समय तक तो उसने बस को धीमी रफ़्तार में चलाया लेकिन फिर कुछ देर के बाद उसने फिर से बस की रफ़्तार बढ़ा दी।।

एक बुजुर्ग ने फिर से उस ड्राइवर को टोका कि बस की रफ़्तार कम करो लेकिन मना करने के बावजूद फिर से ड्राइवर ने रफ्तार बढ़ा दी,तब ड्राइवर ने जवाब दिया कि अंकल जी, जो मैं कर रहा हूं वो बिल्कुल ठीक कर रहा हूं, मैंने सुना है कि ये इलाका अच्छा नहीं है, बहुत ज्यादा खतरा है इस जगह और हम इस इलाके को जितनी जल्दी पार करके आगे बढ़ जाएं उतना अच्छा, ड्राइवर की बात सुनकर सबने कहा कि चलो ठीक है।।