योजना के अनुसार असिस्टैंट भानु प्रताप को अपने और तीनों असिस्टेंट्स को किले के चारों और की निगरानी करनी थी। आई बी आफिसर राजेश राजपूत के चारों जूनियर्स को चुपचाप महल की छत पर से दूरबीन द्वारा अरावली की श्रेणियों पर निगाह रखना है। लेडिज़ कांस्टेबिल 2 तो उन औरतों को आपनी बातों में उलझाये रखेंगी, और 2 चुपचाप उन झोपड़ियों में घुसकर अंदर का मुआयना करेंगी।
एसपी सत्यार्थ अष्ठाना, राजेश राजपूत और
विक्रम तीनों अमित अवंतिका के साथ खजाने की ओर जायेंगे और संजू व रोहित सुरंग के बाहर ही बैठ कर पहरेदारी देंगे।
दिन के ठीक 12 बजे रोहित और संजू को उन लोगों
ने सुरंग के बाहर, निगरानी रखने को बैठा दिया।
कुछ देर बाद जब यह तसल्ली हो गई कि अंदर सुरंग में कोई नही है और बाहर भी दूर तक कोई नही है वो सब सुरंग में प्रविष्ट हो गये। घुप्प अंधेरे में पहले एक दूसरे का हाथ पकड़ कर बहुत सावधानी से एक एक कदम रख रहे थे।
कराब 15 मिनट चलन के बाद उन सब न अपना टाच जला ली। सुरंग घुमावदार थी और ढलान पर थी 115 मिनट और चलने के बाद वोसब शिव मूर्ती वाले हॉल कक्ष में पहुंच गये। अमित ने करीब 15-20 मोमबत्तियां चारों ओर जला दी।
वाह, अद्भुत, अति विस्मयपूर्ण, वो तीनों भी देखते ही रहे, शायद अंधेरा होने के कारण वो इस सुरंग में कभी आये ही नहीं थे।
शिव मूर्ती जटाओं से बहती जलधारा सीधे कुंड में शिव लिंग पर पड़ रही थी और चांदी की तरह चमकता इतना स्वच्छ जल कि यदि पिन भी डाल दो वह भी चमक उठे । आश्चर्य 340 वर्ष पूर्व क्या विज्ञान इतना विकसित था । दीवारों पर नक्काशी दार मूर्त्तियां अद्भुत बारीक नक्काशियों से सुसज्जित स्तंभ सभी कुछ तो दांतो तले अंगुली दबाने लायक था।
अमित ने उन्हे वो स्तंभ दिखाया जहां संस्कृत भाषा में बहुत कुछ लिखा हुआ था, जो उनमें से किसी के भी समझ में नहीं आया। उसे तो सिर्फ अमित समझ सकता था । देखिये सर ये हिन्दी की गिनती अवंतिका ने उन्हें दूसरा स्तंभ दिखाया
। वो भी उनमें से किसी को समझ नहीं आया, उसे भी सिर्फ अमित ही पढ़ सकता था। उन सबने मिलकर चौथे स्तंभ को सात बार घुमाया शिवजी के पीछे की दीवार फटी और वो सभी दीवार के उस पार चले गये
जैसे ही अवंतिका ने मोमबत्तियां जलाई वो तीनों तो पलक झपकना ही भूल गये । स्वर्ण प्रतिमाओं और हीरे मोती के आभूषणों को इतना विशाल खजाना ना कभी देखा ना ही सुना ।
किले के बाहर सभी अपनी ड्यूटीज पर मुस्तैद थे। आज काकी सा के साथ दो अन्य स्त्रियां भी कुओं से जल भर रहीं थी। दो लेडिज कांस्टेबिल रिचा और मधु उन से आकर बतियाने लगी।
रिचा --- "काकी सा थे अठे ही रहो कांई ।"
काकी" रहे तो बेटी अठे ही से।"
मधु -- "अच्छा काकी सा म्हारै को बात बताओ कै अठे किला
में सचमुच भूत प्रेत छै।"
काकी उसकी रोनी सूरत देखकर -
क्यों " काई हो गयो।"
रिचा --"के बताऐं काकी सा म्हारे दोनों के घर आले कोई --- हप्ते पहले एठे घूमन खात्तर आऐ थे तब से उनका कोऊ पती नाहीं।"
मधु रोने लग जाती है। औरते उसे तसल्ली देती हैं।
रिचा - "हम इहां रोज आर है चप्पा चप्पा ढूंढ लिया कोऊ ना
ही मिले सोचा आज तुम्ही से पूछ ले।"
काकी - - "नाही बेटी इधर तो कोई आदमी आवत ही ना
है।"
उन दोनो ने रो रो कर उन तीनों स्त्रियों को उलझा रखा था इतनी देर में शेष दोनों कांस्टेबिल तीनों झोपड़ियों की खोजबीन कर लाई।
सांझ होने को चली थी, सभी पर्यटक चैतावनी के अनुसार किले के बाहर निकल रहे थे, लेकिन राजेश राजपूत के सभी जूनियर्स महल की छत पर कंगूरों पर दूरबीन को सेट कर आंखें गड़ाये सामने की पर्वत श्रंखला को देख रहे थे। रात गहन अंधकारमय स्याह एक दम स्याह थी।
चमगादड़ों का चीखना वातावरण को बहुत डरावना बन रहा था। किसी के नृय की मधुर झंकार उठी वो देखो किले की दीवार पर शायद वो भूतनी नाच रही थी, उसे पता ही नहीं चला और दो बाजुओं ने पीछे से उसे जंजीरों में जकड़ लिया कस के मुंह बंद कर लिया।
कुछ पलों में ही वो साया नर्तकी को दीवार के पीछे लै चला । इसी प्रकार से शेष दो और नर्तकियां पकड़ ली गई। जिनके पीछे लेडि कांस्टेबिल साये की तरह लगी हुई थी एक पल की भी देर न करके तीनों नर्तकियों की नाक पर रूमाल रख कर बेहोश कर दिया, फिर फिलहाल तो उन्हें घने वृक्षों के पीछे ही छिपा दिया । रात घनेरी होती जा रही थी और घुंघरुओं की आवाज तीव्रतर होती जा रही थी। अब वो पांचों श्री महल की छत पर थे। राजेश के चारों जूनियर्स अब किले के पिछवाड़े फैल गये थे।
रात के करीब 12 बजे उन सभी ने महल की छत पर दूरबीन लगाये देखा गाड़ियां अरावली श्रेणियों से रेंगती हुई सी दिख रही है करीब 15 मिन्ट बाद वो गाड़ियां झोपड़ियों के सामने आकर खड़ी हो गईं। फिर वहीं 6 आदमी गाड़ियों से उतर कर किले की ओर बड़े जैसे ही वो लंबे काले बक्से लेकर बाहर निकले राजेश के दो जूनियर्स छिपते छिपाते उनके पीछे हो लिये बाहर खड़े 4 मजदूरों को बक्से देकर वो6 फिर अंदर किले में जाने लगे तो शेष 2 जूनियर्स उनके पीछे हो लिये। सिग्नल मिलते ही असिस्टेंट इंसपेक्टर अपने साथ एक हवलदार को लेकर जूनियर्स से कुछ पीछे को छुप कर चल रहे थे। जैसे ही वो सब कक्ष में घुसे।
धांय धांय धांय तीनहवाई फायर के साथ उन 6 को अरेस्ट कर लिया। जैसे ही आगे वाले विदेशियों ने रिवॉल्वर निकालने की कौशिश की। भानु प्रताप और दूसरे हवलदार ने उन्हें इतना मोका ही नहीं दिया एकदम दबीच लिया। रिवॉल्वर की आवाज सुनते ही बाहर वाले चारों मजदूर हड़बड़ा गये वो संदूक धरती पर पटक कर भागने लगे, राजेश के दोनों जूनियर्स और शेष दोनों हवलदारों उन्हे दबोच लिया। कनपटी पर रिवाल्वर रखकर उनसे सुरंग खुलवाई। वंडर फुल सुरंग तीनों ही झोपड़ियों में खुलती थी। वहां एक
के ऊपर एक कई बक्से थे और लंबे बक्सों में बंदूकें अन्य बक्सों में रिवाल्वर और कई प्रकार के विस्फेटक पदार्थ थे।
मैसेज़ मिलते ही वो पांचों नीचे उतरकर किले में उस अवैध कारोबार वाले कक्ष में गये। एस पी सत्यार्थ अष्ठाना की आंखें विस्फारित हो उठी।
O.M.G इतने बड़े पैमाने पर अवैद्य जखीरों का भंडार, और वो भी वहां जहां हजारों लोग रोज घूमने आते हैं।
कुछ ही देर में चार पुलिस की वैन किले के अहाते में आ गई । एक वैन में बैठकरवो पांचों उन झोपड़ियों को देखने गये तो देखते ही रह गये।
आधुनिक साज सज्जा बैटरी के द्वारा लाइट कनेक्शन्स, सूचना यंत्र, लैप टॉप सभी कुछ तो था वहा पर समझ गये सत्यार्थ अष्ठाना सब समझ गये कि इस अवैद्य कारोबार के कारण ही ये खौफनाक अफवाहें फैला रखी थीं और अब समझ जायेगी सारी दुनिया भी।
बेहोश नर्तकियों को अब होश आ चुका था, मुंह पर उनके काले पट्टे बंधे हुऐ थे, आंखे फाड़ फाड़ कर वो अपने चारों ओर देख रहीं थी । रिचा हंसकर बोली "काकी सा घड़ों शौक छे ना थाने नाचन को इब नाच लीजो स्टेज पे छम छमा छम" सारी लेडिज कांस्टेबिल खिलखिला पड़ी। सभी कैदियों को वैन में ठूस कर लॉक कर दिया गया, और उनकी चारों गाड़ियां जब्त कर ली गई।
समाप्त