Apna Aakash - 19 in Hindi Moral Stories by Dr. Suryapal Singh books and stories PDF | अपना आकाश - 19 - फुलौरी बना रही हूँ

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अपना आकाश - 19 - फुलौरी बना रही हूँ

अनुच्छेद- 19
फुलौरी बना रही हूँ

आज नया लहसुन हजार रुपये कुन्तल बिका है। नागेश के मुनीम ने मंगल को बताया । । सुनते ही मंगल को झटका लगा। हजार रुपये......कुन्तल । वे गिरते गिरते बचे। 'यह भी कोई भाव है', उनके मुख से निकला । 'भाव हम लोग तो बनाते नहीं, भैया जी । भाव तो भाव है। कभी ऊपर चढ़ता है कभी नीचे जाता है। कभी आसमान छूता है तो कभी पाताल में बैठ जाता है । भाव का यही तो मजा है। कुछ भी निश्चित नहीं।' मुनीम जी बताते रहे ।
'किसी की गाढ़ी कमाई होती है मुनीम जी ।'
"कमाई तो सभी की गाढ़ी होती है भैया जी ।'
'नागेश जी कब आएँगे?"
'आज जिलाधिकारी कार्यालय में बैठक है। किसानों की बेहतरी पर कुछ चर्चा होनी है। व्यापारियों की भी बैठक है।'
'ठीक है', कहते हुए मंगल उठे।
'तो आज आप बेच नहीं रहे हैं।'
'नहीं। इस भाव पर कौन बेचेगा?"
'मालिक कह गए हैं कि मंगल भैया आकर हिसाब-किताब करना चाहें तो कर लेना ।
इसीलिए पूछ लिया।'
'नहीं, अभी नहीं।'
मंगल को लगा कि उनके पैरों के नीचे से धरती खिसक गईं। कहाँ पांच-छह हजार रुपये कुन्तल की उम्मीद किए थे वे और कहाँ एक हजार रुपये कुन्तल । इससे तो कर्ज़ भी नहीं निबटेगा, लाभ की कौन कहे? वे उठे । अख्तर की दूकान पर गए। अख्तर तो नहीं थे पर कारिन्दे ने भाव यही बताया। सभी ने तय किया है, मिली भगत है। वे सोचते रहे।
अख्तर की दूकान पर अखबार रखा था। मंगल ने लेकर पढ़ना शुरू किया। पहले ही पृष्ठ पर किसानों की आत्महत्या की खबर । विदर्भ और आन्ध्र में बहुत से किसानों ने आत्महत्या की है। महाराष्ट्र के एक किसान का चिट्ठा आज छपा है। उसने कर्ज लेकर प्याज लगाया था। उपज भरपूर हुई पर भाव इतना गिर गया कि लागत नहीं लौटी। किसान अवसाद से भर गया। कर्ज कैसे लौटाए ? उसने आत्महत्या कर ली ।
यही उसके साथ भी तो हो रहा है। भरपूर फसल पर लागत भी लौटने की उम्मीद नहीं। किससे कहूँगा मैं? क्या भँवरी, तन्नी किसी को बता पाऊँगा, फिर.....? अपने अन्दर के दाह को किसके सामने प्रकट करूँ? समाज बहुत निर्मम होता है। अभी अच्छी फसल देखकर लोग प्रशंसा करते नहीं अघाते । यदि घाटे का पता चलेगा तो लोग खिल्ली उड़ाएंगे। जो बच्चे अभी मेरे जोखिम उठाने को मील का पत्थर मान रहे हैं उनका सपना चूर होते देर न लगेगी।
अखबार के पहले पृष्ठ पर ही मुख्यंमंत्री का बयान भी छपा था। मेरे राज्य में किसी किसान ने आत्महत्या नहीं की है। यदि कोई किसान आत्महत्या करता है तो जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक सीधे जिम्मेदार होंगे। यह सूचना है या चुनौती ? वह सोचता रहा। किसान की समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं। ामकी से क्या किसान की दशा सुधरेगी? हजारों किसान आत्महत्या कर चुके हैं। क्या वे पागल थे? नहीं, इतने लोग पागल कैसे हो सकते हैं?
किसान स्वाभिमान पूर्वक जीने का आदी रहा है। कोई यदि उसके स्वाभिमान पर चोट करता है तो वह सहन नहीं कर पाता। कोई मेहनत कर फसल तैयार करे और माटी के भाव उसे खरीदा जाय तो कैसा लगेगा उसे? कर्ज देने वाले जब उसको घेरेंगे तो क्या करेगा वह ? उमस के कारण पंखे की हवा भी राहत नहीं दे पा रही थी। एक किसान एक बेलगाड़ी में आठ बोरा लहसुन लाया। अख्तर के आदमियों ने तुरन्त घेर लिया। 'क्या भाव खरीदेंगे आप?” उसने पूछा। 'आप तो पुराने आदमी हैं। भाव मालिक आएँगे तब बताएँगे। आप तौलवा कर रखवा दीजिए। मालिक के आने पर भाव ताव कर लेना।' 'ठीक है', उसने कहा । तौल होने लगी। उसी तरह कुन्तल पीछे पाँच किलो अधिक । ज्ञात हुआ वह किसान नहीं, बिचौलिया है। किसानों से खरीदकर लाता है? यहाँ बेचता है। वह जोखिम नहीं लाभ उठाता है।
जो पैदा करता है वह घाटा उठाता है । बिचौलिया लाभ उठाकर कोठियाँ खड़ी करता है। मंगल दुखी मन से उठे। मेरे राज्य में किसी किसान ने आत्म हत्या नहीं की। मुख्यमंत्री का बयान उनके दिमाग में घूमता रहा। क्या जानो तुम? वे बुदबुदाए। साइकिल उठाया और घर की ओर चल पड़े। साइकिल जैसे रेंगती हुई । एक नल पर रुके । चुल्लू से पानी पिया। साइकिल फिर बढ़ चली । व्यथित मन से बढ़ते रहे। भीड़ में साइकिल को बचाना पड़ता अन्यथा उनका ध्यान कहीं और ही उधेड़बुन करता रहता।
आज शाम को भँवरी ने बेसन मँगाया। उसे लगा आज तो हिसाब हो ही जायगा। मंगल कभी झूठ नहीं बोलते। परिवार से छिपाकर कोई काम भी नहीं करते। सब कुछ पारदर्शी । एक पैसा भी पास होगा तो भँवरी के हाथ में रख देंगे। भँवरी भी कोई बात छिपाती नहीं। अलग कुछ नहीं, परिवार ही उसका सब कुछ है इतना सौमनस्य, इतनी पारदर्शिता । पर आज मंगल घर जाने के लिए अपने में कोई उत्साह नहीं पाते। ऐसा क्यों हो जाता है? मंगल शहर से निकले तो सड़क से हटकर दो पेड़ों की छाया में साइकिल खड़ी की। अँगोछा को बिछाकर लेट गए। पुरवा हवा जिधर लगती उधर सुख देती दूसरी और पसीना टपकता रहता । आँख कभी बन्द हो जाती कभी खुल जाती। मन में हाहाकार मचा हुआ था। नींद ऐसे में कहाँ आती? क्या करना होगा अब ? मंगल सोचते। मेरे राज्य में किसी ने आत्महत्या नहीं की। बार बार यह वाक्य कौंधता । तन्नी, वीरू और ', भँवरी का चेहरा सामने आ जाता। मंगल पढ़े थे, समझदार थे। आवेश में आकर बहुत कम निर्णय लेते। पर आज आवेश से पार पाना मुश्किल ।
भैंस लगाने का समय हो गया। वे झटके से उठे । साइकिल पर बैठ चल पड़े। दरवाजे पर पहुँचते ही वीरू से कहा, 'बाल्टी लाओ, पड़िया छोड़ दो। 'वीरू ने पड़िया खोला, वह दौड़कर थन चूसने लगी। पन्हाने के पहले ही वीरू बाल्टी ले आया । पन्हाव आया तो वीरू ने पड़िया को खींच कर खूंटे में बाँधा। मंगल दुहने लगे । भँवरी भी बाहर निकली। दूध की बाल्टी मंगल ने उसके हाथ में पकड़ाई। भैंस को नांद पर लगाया और नल पर हाथ धोने लगे। 'आज भैंस ने खाया नहीं है। तुम्हें देखकर अब खाने लगी है। फुलौरी बनाने जा रही हूँ कहीं जाना नहीं।' कहकर भँवरी दूध लेकर अन्दर चली गई। चूल्हा जलाया । बेसन फेंट रखा था। कड़ाही में अदहन डालकर फुलौरी निकालने लगी। दो घान निकाल कर वीरू को पुकारा । 'बापू को दे आओ' । वीरू आया कटोरा उठाकर बापू को दे आया 'पानी भी दे आओ तब तुम्हें भी दूँ।' वीरू एक लोटा पानी बापू के पास रख आया। तब तक तीसरा घान निकल चुका था । उसे वीरू लेकर खाने लगा। दो घान और सूखा रख दिया। चार घान और निकालकर उसे सब्जी के रूप में छौंक दिया। धीमी आँच में सब्जी पकती रही। भँवरी वीरू के साथ बैठी फुलौरी खाती रही। दोनों के चेहरे खिले हुए। अच्छी फसल होने की चमक ही और होती है।
आज भी खाकर मंगल बैठे तो भँवरी भी आकर बैठ गई । 'आज नागेश लाला थे नहीं इसीलिए काम नहीं बना। कल भेंट होगी तब हिसाब किताब होगा'
'अपना माल दिया है तो हिसाब होगा ही। दो चार दिन आगे पीछे का क्या?" भँवरी का धैर्य जवाब नहीं देता। वीरू को उत्सुकता थी कि कितने रुपये का हुआ। पर किसी न किसी कारण से एक एक दिन टलता ही जा रहा है। मंगल ने लोटे में पानी लिया और मड़ई की ओर चल पड़े। पम्प सेट भी वहीं है । हरी सब्जी भी लगी है, रखवाली तो करनी ही है । जाते हुए उनका मन कचोटता रहा। भाव तुम्हें मालूम है पर तुमने छिपाया । तुम भँवरी को बता नहीं पाओगे। कैसे बताओगे? पहली बार उससे कोई बात छिपा रहे तो तुम । वे मड़ई पर पहुँचे । लोटा एक किनारे रख दिया। मन की व्यथा कम होने का नाम ही नहीं ले रही। फिर वही वाक्य, 'मेरे राज्य में किसी किसान ने आत्म हत्या नहीं की', बार- बार दिमाग में कौंधता रहा ।