Apna Aakash - 14 in Hindi Moral Stories by Dr. Suryapal Singh books and stories PDF | अपना आकाश - 14 - हम तो डरे हुए थे

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अपना आकाश - 14 - हम तो डरे हुए थे

अनुच्छेद- 14
हम तो डरे हुए थे

तरन्ती की माँ आज तड़के ही उठ गई। राधा को जगाया। जल्दी से नहा धोकर तैयारी में जुट गई। आलू-परवल की सब्जी उन्होंने स्वयं बनाई। राधा ने आटा गूंधा, पूड़ियाँ बेलने लगी। फूलमती छानती रही। आज उन्होंने दही मथा नहीं है। जमा हुआ दही उन्होंने एक बर्तन में रखा। पूड़ी सब्जी और दही को सहेज कर उठीं तो लेन देन के बारे में सोचने लगीं। माई बाप और बेटा आ रहा है देखने। माई के लिए साड़ी, बाप बेटे के लिए कपड़ा कुछ नकदी सब कुछ सहेजते नौ बज गया। तरन्ती के पिता घर के अन्दर आते बाहर जाते। कोई बात याद पड़ती तो फिर फूलमती से समझने अन्दर जाते ।
‘आप खुद तो नहा धो लीजिए।' फूलमती ने कहा । 'सब इन्तजाम कर लूँ फिर नहाता हूँ।'
फूलमती और राधा जितनी ही जल्दी सब काम निबटा रही थी तरन्ती उतनी ही निश्चिन्तता से अपना काम करती रही। राधा ने रात ही में हल्दी तेल की मालिश शरीर में कर दी थी। आज उसके जिम्मे कोई काम नहीं था । इत्मीनान से उठी । उसे शायद यह लगा हो कि बहुत उत्सुक होकर जल्दी से तैयार होना लोगों में गलत सन्देश देगा। जब नहाने लगी तो राधा आ गई।
'रानी जी ज़रा पैर हमारी ओर कीजिए। पियाजी को पैर कहीं .....' कहकर वह तरन्ती के पैरों को रगड़ कर साफ करने लगी। 'पिया के रंग में अभी डूबो नहीं ज़रा जल्दी करो।' चुटकी लेते हुए राधा तरन्ती को नहला कर आई तो अपने पैरों को रगड़कर साफ किया। तरन्ती बालों को सुखा ही रही थी कि तन्नी आ गई।
'हाय मोरी ननदी ।' राधा ने चुटकी ली। 'भाभी तो ननदोई के रंग में रंग गई हैं।' तन्नी भी कहाँ चुप रहने वाली है।
फूलमती ने तन्नी को देखा । 'बेटी, तरन्ती को तैयार कर । अभी तक बाल ही सुखा रही है।' तन्नी को देखते तरन्ती हँस पड़ी।
'ला कंघी हमें दे।' तन्नी उसके बाल सँवारने लग गई।
"पिया पिया रटति पियरि भई देहियाँ।' तन्नी ने चिढ़ाया।
'तू भी', तरन्ती ने तरेरा ।
'आज नाराज न होना। नहीं तो चेहरे की सूरत बदल जायगी। समझी? 'समझ गई' । तरन्ती मुस्कराई।
'हाँ, अब ठीक ।' तन्नी ने बालों से बढ़िया चोटी बनाई। दोनों कमरे में बैठ गईं । तन्नी ने बिन्दी लगाई। बहुत हल्का मेकअप ।
शहरों में यह काम ब्यूटी पार्लर करने लगे हैं पर यहाँ पुरवे में तन्नी और राधा उसे चिढ़ाते हुए तैयार करती रहीं । तरन्ती भी कभी मुस्कराती, कभी हँसती ।
तरन्ती का भाई दिल्ली में ही था। उसने पिता जी से कह रखा था कि लड़की दिखाने ले जाने के लिए एक जीप ज़रूर कर लेना । केशव के निर्देशानुसार ग्यारह बजे जीप आ गई। माई ने कहा, 'जल्दी करो।' पूड़ी सब्जी सहित लेने देने का सामान जीप में रख गया। लड़की पक्ष लड़की दिखाते समय सशंकित रहता है कि कहीं वर पक्ष अस्वीकृत न कर दे। केशव की जीप पहुँचने के पहले ही लड़का और उसके माँ-बाप आ चुके थे। उनके चेहरे बता रहे थे कि उन्होंने सब कुछ तय कर लिया है। सीधे सरल लोग, किंचित चतुराई नहीं। जीप से जैसे ही केशव उतरे लड़के के पिता शिवबदन आ गए। दोनों में राम जुहार हुआ। लड़का और उसकी माँ मन्दिर में शिवलिंग पर जल चढ़ाकर बाहर आए। केशव और शिवबदन उसी तरफ बढ़ गए। मंदिर के बरामदे में एक किनारे सभी इकटठा हुए। लड़के और लड़की की माँएँ गले मिलीं । तन्नी और तरन्ती से सभी को प्रणाम किया। तन्नी ने दरी बिछा दिया। सभी बैठे। लड़के की माँ ने तुरन्त तरन्ती को अँगूठी पहना दी। पूरा परिवेश खुशी से भर उठा। लड़की दिखाई से सम्बन्धित जो कहानियाँ तन्नी और तरन्ती ने पढ़ रखी थीं, यहाँ उसका बिल्कुल अभाव। शिवबदन और केशव बात करते रहे। लड़का चन्द्रेश तरन्ती को एक नज़र देखने के बाद मंदिर परिसर देखने में मग्न । तन्नी और फूलमती ने मिलकर पूड़ी-सब्जी, दही सभी को परोसा । तन्नी चन्द्रेश को बुलाने गई,
"जीजाजी चलिए, कुछ खा लीजिए।'
'आप तरन्ती की सहेली हैं?' चन्द्रेश ने पूछ लिया ।
'हाँ', तन्नी ने उत्तर दिया।
'क्या कर रही हैं आप?”
'बी.एस-सी. ।'
'बहुत अच्छा।'
चन्द्रेश भी आकर दरी पर बैठ गया । तन्नी ने पूड़ी-सब्जी, दही और गिलास में पानी उसके सामने रखा। चन्द्रेश खाने लगा। तन्नी और तरन्ती नहीं खा रही थीं। चन्द्रेश की माँ ने कहा, 'बेटी, तुम लोग भी खाओ।' तन्नी और तरन्ती ने भी दो पूड़ी ले लिया।
केशव और शिवबदन घर-जँवार की बात करते रहे। दोनों महिलाएँ बच्चों के बारे में एक दूसरे को बताती रहीं। चन्द्रेश खा चुका तो तन्नी ने हाथ धुलाया। तन्नी रूमाल का एक जोड़ा उसके लिए लाई थी। लाकर दिया। उसने एक रूमाल से मुँह पोछा और तहाकर जेब में रख लिया। तरन्ती की माई वर पक्ष को देने के लिए जो कुछ लाई थी उसे चन्द्रेश की माँ को देकर गले मिलीं। उन तीनों को दिल्ली जाना था। समय नजदीक आ रहा था। सभी जीप में बैठे। स्टेशन पर चन्द्रेश, उनकी माँ शिवबदन, केशव और फूलमती उतरे। गाड़ी के आने का समय हो रहा था। तन्नी और तरन्ती ने शिवबदन और उनकी पत्नी का चरण स्पर्श किया। चन्द्रेश की माँ ने आँखों ही आँखों में प्रणाम किया। तन्नी और तरन्ती को छोड़ सभी प्लेटफार्म पर बढ़ गए। गाड़ी आई तो चन्द्रेश ने बर्थ देखी। उस पर सामान रखा । राम जुहार होते ही सीटी बजी। तीनों बर्थ पर जा बैठे। गाड़ी चल पड़ी। केशव और फूलमती गाड़ी को तब तक देखते रहे जब तक वह आँख से ओझल नहीं हो गई ।
तन्नी ने तरन्ती से कहा, 'रीढ़ की हड्डी नाटक पढ़ा है न? 'पढ़ा है?' तरन्ती ने मुस्कराते हुए कहा । 'हम तो थोड़ा डरे हुए थे।' तन्नी बोली । 'हम भी।' तरन्ती के मुँह से निकल गया।
'ज़रूर ये अच्छे लोग हैं। तू भाग्यशाली है रे ।'
तन्नी भी खुश हुई। 'नहीं तो आजकल कैसी कैसी घटनाएँ घट रही हैं।' केशव और फूलमती के आते ही जीप गाँव की ओर चल पड़ी। 'अच्छे लोग हैं न तन्नी।' केशव ने पूछा। 'बहुत अच्छे लोग हैं।' तन्नी ने उत्तर दिया।