लीला व माया में बहुत गहरी दोस्ती थी... लीला अपने घर में माता - पिता व भाई की लाडली थी जो वो मुँह से निकालती वो उपलब्ध हो जाता था उससे विपरीत माया के माता - पिता नहीं थे व भाई - बहन भी नहीं था तो काका - काकी के पास रहती थी व अपने दिल की हर बात वो लीला से ही करती थी... सच तो ये था दोनों एक - दूसरे से हर बात कर लेती थी...!
एक दिन माया ने दो लाइन लिखकर लीला को सोशलमीडिया पर भेजी...
"खामोशियों का दामन थामें थे जो रिश्तें....
खामोशियाँ क्या टूटी रिश्तें टूट गयें...! "
लीला ने जैसे ही पढ़ा उसी समय फोन लगाया और बोला कि बहुत अच्छा व गहरा लिखा है... तुम लिखा करो...!
अरे ! क्या यार मैंने तो ऐसे ही लिख दिया... सच बताऊँ तो मैं अपनी पीड़ा किसी को नहीं बताना चाहती और बताऊँ भी क्यूँ... तुम्हारे सिवाय कोई नहीं समझता है मुझे... मैं इसलिए कोई बात भी हो तो सिर्फ तेरे सामने ही रोती हूँ और किसी को अपने आँसू भी नहीं दिखाना चाहती हूंँ...!
अच्छा ! ठीक है तू लिख और मुझे बताया कर... समझी !
हाँ ! समझ गयी... दोनों जोर से हँस दी...!
वक्त बितता गया माया बहुत अच्छा लिख रही थी अब वो छोटी - छोटी कहानियाँ भी लिखने लगी... लीला ने सब सहेज रही थी... एक दिन उसने अपने पिताजी को बताया तो पिताजी ने जब पढ़ा तो उनकी आँखों में भी पानी आ गया... उन्होनें लीला से वादा किया कि वो पता करतें है कि पुस्तक कहाँ व कैसे छपती है... जल्द ही पिताजी ने प्रकाशन वालों से बात कर और आज पहली किताब छपकर लीला के हाथ में आयी तो वो खुशी से पागल हो गयी... और फिर पिताजी से उसने वादा ले लिया कि किताब प्रकाशित भी रखेगें तो वो भी मान लिया...!
तुरंत अपनी स्कूटी निकाली व किताब लेकर माया के घर की ओर चल पड़ी... उसे लग रहा था वो उड़कर पहुँच जायें और अपनी प्यारी दोस्त के गले लग कर उसे अपना सपना जो वो उसके लिये देख रही थी वो बताये... पर ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था... लीला की खतरनाक दुर्घटना हो गयी... मौके पर ही उसका निधन हो गया... उसके घर में तो दुँखों का पहाड़ टूट गया... हर कोई बदहवास सा अपनी बेटी - बहन को पुकार रहा था जानकारी जब माया को मिली तो उसे ऐसा लगा कि जैसे उसका ही दिल किसी ने निकाल लिया हो... वो लीला के घर पहुँची और उसने आखरी दर्शन कियें और एक कोने में बैठ गयी... आज भी वो नहीं रोयी... बाहरवें तक ये रोज का था वो जाती और एक कोनें में बैठे जाती सब उसको नफरत से देखतें कि उसकी वजह से उनकी लीला उन्हें छोड़ गयी... पर उसे तो कुछ पता भी नहीं था...
पिताजी उसका दर्द समझ रहें थे आज वो उसके पास गयें और उसे गले लगाया तो वो फफक - फफक के रोने लगी... फिर उन्होनें उसे किताब के बारें में बताया कि कैसे वो किताब उनकी बेटी का सपना बन गयी थी... उन्होनें उसे प्रकाशित का भी बोला तो वहाँ हर इंसान हैरान था... माया ने भी मना कर दिया आने से... पर पिताजी ने कहा मेरी बेटी का आखिरी सपना है... मैं जरूर पूरा करूँगा और बेटा तुम्हें आना ही होगा... परसों आऊँगा तुम्हें लेनें...!
आज वो दिन आ गया था... माया ने जब किताब को हाथ में लिया तो उसकें हाथ काँप रहे थें... उसकों उसमें अपनी दोस्त का चेहरा दिख रहा था... उससे बोलनें को कहा गया...
किताब अपनें सीने से लगायें वो माईक के सामने आ गयी... मैंने तो अपनी पीड़ा शब्दों में पिरोकर सिर्फ अपनी दोस्त को बताया था... पता ही नहीं चला कि उसने कब अपना सपना बना लिया... पर अब मैं अपनी पीड़ा किसे बताऊँ... वो ही सुनती थी मुझे समझती थी... माता - पिता के जाने के बाद आज मुझे लगा कि मैं कितनी अधूरी रह गयी... वो फफक - फफक कर रोनें लगी बोली...
लीला ! मैं जो आँसू तुम्हें दिखाती थी आज मैं... तूने तो अपनी दोस्ती निभा दी मेरी पर मैं तेरे लिये कुछ ना कर सकी...
मेरी तरफ से दोस्ती अधूरी रह गयी...
अधूरी रह गयी....!