The Author DINESH KUMAR KEER Follow Current Read प्रेम विवाह By DINESH KUMAR KEER Hindi Short Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books પ્રેમ સમાધિ - પ્રકરણ-119 પ્રેમ સમાધિ પ્રકરણ-119 વિજયની ગાડી બંગલાની સાવ નજીક આવી ગઇ વ... ક્યાં છે સોનાની નગરી અલડોરાડો? માનવીને હંમેશથી અખૂટ સંપત્તિ મેળવવાની ઝંખના રહી છે અને સોનાન... ભાગવત રહસ્ય - 99 ભાગવત રહસ્ય-૯૯ હવે કપિલ ગીતાનો પ્રારંભ થાય છે. આ દિવ્ય પ્ર... સિંદબાદની સાત સફરો - 6 6.ફરીથી સહુ મિત્રો અને હિંદબાદ, સિંદબાદને ઘેર ભેગા થયા. સહુન... ખજાનો - 66 "અરે એમાં આભાર શાનો..? આપણે સૌ મિત્ર છીએ. એક ચોક્કસ હેતુ સાથ... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Share प्रेम विवाह (1) 1.5k 3.4k 1 अनंत और भूमिका की शादी हाल ही में हुई, इनकी शादी प्रेम विवाह हुई थी । दोनों एक ही साथ स्कूली व महाविद्यालय की शिक्षा ग्रहण की थी । शिक्षा पाने के बाद भूमिका को तो जल्द ही कार्य मिल गया पर अनंत ने प्रशासनिक सेवा की तैयारी करने का निर्णय किया । इसी कारण अनंत घर पर ही शिक्षण करता और रहता था, और भूमिका हमेशा अपने कार्य स्थल पर जाती थी । दोनों की हामी से अनंत पीछे से घर का काम भी पूरा कर लेता था । इसके चलते भूमिका को थोड़ा-बहुत-सा समय मिल जाता था । पर यह बात अडोस-पड़ोस में वार्तालाप का प्रकरण बन चुका थी । _"आइए भूमिका जी ! एक कप चाय - पानी हो जाए" पड़ोस की श्रीमती अर्चना बोली । "जी जी बैठो बहन ! तुम तो बिल्कुल कम ही दिखाई देती हो" पास ही बैठी अनामिका जी ने कहा । "नहीं जी, बहन जी ! फिर कभी सही अभी तो मैं जल्दी में हूंँ" भूमिका ने कहां और अपने घर की ओर चली गई ।_ _भूमिका के जाते ही श्रीमती अर्चना मुंह पिचका कर, भूमिका की नकल करते हुए बोली "अभी तो मुझे जल्दी है... बहन जी" "खुद तो महारानी बाहर गुलछर्रे उड़ाती रहती है, और पति बिचारें को घर पर रहकर पूरे दिनभर नौकर की तरह सारा काम करना पड़ता है"। यह बात जब भूमिका की कामवाली ने उसे बतलाई तो भूमिका को बहुत बुरा लगा । जब इस बात का जिक्र भूमिका ने अनंत से किया तो अनंत बहुत जोर से हंसा और बोला "रानी ! इन लोगों की बातों पर ध्यान ना दे कर हमें अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए, ये लोग होते ही है कहने वाले हमें अपने निर्णय अपने स्वविवेक से सोचना चाहिए ।" यह कहकर अनंत ने भूमिका को अपने सीने से लगा लिया ।_ *जीवन एक साइकल चलाने की तरह है...........................**आपको संतुलन बनाने के लिए आगे बढ़ते रहना होता है....* Download Our App