Aadipurush in Hindi Film Reviews by Amit Hirpara books and stories PDF | आदिपुरुष

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आदिपुरुष

रामायण को बड़े पर्दे पे प्रदर्शित करना बहोत ही गर्व की बात है ये में मानता हूं पर इसे दिखाओ एसे की जेसे वो है रूप बदल कर असुर कभी नारायण नहीं बन सकते उसी तरह हकीकत कभी झूठ साबित नहीं हो सकती।
बात करते हैं आज कल ही आयी हुयी फिल्म आदिपुरुष, पहले तो दिमाग में यही आता है कि रामजी प़र कहानी है तो उनको आदि पुरुष क्यु बना दिया फिल्म निर्माताओ ने चलो ठीक है उनके कुछ नियम होंगे जो उन्हें मजबूर कर रहे होंगे।
प्रारंभ इतना जोरदार होता है कि संगीत सुन कर रोंगटे सच में खड़े हो जाते हैं, मध्यांतर तक तो स्टोरी लोगों को पकड़े रखती है हाँ कहीं कहीं जो शब्द उपयोग किए गए हैं वो स्वीकार्य तो नहीं ही है। अब बात आती है रावण और उनकी लंका की हम सब जानते हैं कि रावण एक ज्ञानी व्यक्त्ति था पर इसमे देख के ये कोई मुगल सल्तनत का शासक ही दिख रहा है। अब बात करते हैं रावण की लंका की तो वो सोने की थी पर यहा पूरी लंका काली दिखाई गई है क्या त्रेतायुग में सोने का रंग काला था।
अब बात करते हैं वाणी से भटकने की तो सबसे खराब जब ये बाप बाप वाला भाग आता है इतना खराब तो हम कभी सुन ही नहीं सकते हम खुद हमारे घरों में पिताश्री सुनकर बड़े हुए हैं। और सीता जी माँ थी हनुमानजी के लिए पर आदिपुरुष में उन्हें बहन का दर्जा दे दिया है।

इस तरह तो इन्होंने हमारे सनातन धर्म और संस्कृति का उपहास ही किया है और एसी फिल्म हमारे बच्चों को दिखाएंगे तो हमारे बच्चे भगवान राम के सच्चे इतिहास को कैसे जान पाएंगे। जो जेसे है उसे वैसे ही स्वीकार करना चाहिए क्योंकि अपने मनोरंजन के लिए आप इतिहास को किसी भी मनगढ़ंत कहानी की तरह प्रस्तुत नहीं कर सकते क्योंकि इससे सामाजिक और व्यक्तिगत दोनों ही मूल्यों को हानि पहुंचती है। सभ्यता ही हमारे समाज की सच्ची सुंदरता है जिससे मोहित होके ही विदेशी संस्कृति को मानने वाले भी आज हमारी संस्कृति को अपना चुके हैं तो हमे तो अपनी इस विशाल विरासत पर गर्व होना चाहिए। अपने निजी फायदे से बढ़कर है हमारी संस्कृति और इतिहास तो इससे सम्मान में रखने के लिए उसे वैसे ही दिखाए। क्योंकि किसीको भी सम्पूर्ण नहीं माना गया है सिवाय प्रभु श्री राम के इन्होंने तो उन्हें भी आदि पुरुष दिखाकर अपूर्ण बताने की ही चेष्टा कीयी है जो एक हिन्दू तो क्या इस भारत वर्ष का कोई भी नागरिक स्वीकार नहीं ही करेगा फिर चाहे वो भले ही किसी भी धर्म से संबंधित ही क्यों न हो
अपेक्षा से बहोत ही नीचे स्तर में बनाया गया है और उसमे जो युद्ध दिखाया गया है वो तो शायद आज से भी पच्चास साल के बाद का दिखाया गया है। बाकी तो आप सब समझदार हैं अपने आप ही निर्णय लीजिए रामानंद सागर की रामायण या ये आदि पुरुष

मेरे शब्दों की कठोरता के लिए माफी चाहता हु पर जो मुजे लगा वही मेने यहां लिखा मे अपने इतिहास को इस तरह तो कभी भी स्वीकार्य नहीं कर सकता आप बताइए कि क्या आपको ये स्वीकार्य है या नहीं।