Kon ho Tum - 3 in Hindi Short Stories by rubA books and stories PDF | कौन हो तुम - 3

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कौन हो तुम - 3

                           भाग-3

( राधिका और आशी बारिश में फंस जाते हैं, दोनों किसी अजनबी से लिफ्ट मांगकर किसी तरह अपने घर पहूँचते हैं । लेकिन लिफ्ट देने वाले इंसान का आशी को यूं देखना राधिका को अजीब लगता है, लेकिन राधिका कुछ भी नहीं कहती और आशी को लेकर किसी तरह घर पहूँचती है ।)

अब आगे  .........

 

राधिका की माँ दरवाजे पर ही राधिका और आशी का इंतजार कर रहीं थीं । राधिका और आशी को देखते ही वह जल्दी से बाहर आती हैं ।और दोनों  को अंदर ले जाती हैं ।

 

 फिर राधिका की माँ  ने राधिका से कहा-तुम भी अपने कपड़े बदल लो, वरना ठंड लग जाएगी। मैं आशी की मदद करतीं हूँ , तब तक।

 

इतना कह के राधिका की माँ आशी की मदद करने चलीं जाती है और राधिका अपने कपड़े बदलने ।

 

जैसे-जैसे रात बढ़ रही थी, बारिश और भी तेज़ होती जा रही थी ।  काले  बादलों ने आसमान को इस तरह ढंक रखा था कि आसमान में  सिवाय बादलों के और कुछ भी नहीं देखा जा सकता था। और इस बारिश के  साथ चलने वाली ये ठंडी-ठंडी हवा इसे और भी सद॔ बना रही थी । बादलों की गरगराहट और बिजलियों की चमक ऐसी थी मानों कुछ डुबाने को तैयार हो ये बारिश ।

 

आशी अपने  कपड़े बदल कर अपने बेड पर लेटी थी।तभी रमा जी  (राधिका की माँ) आशी के कमरे में  आती हैं ।आशी को चाय का कप पकड़ाते हुए उन्होंने पूछा- ठीक  हो तुम ? ये लो चाय पी लो तुम्हें अच्छा लगेगा । आशी अपनी आँखें खोल के देखती है उसके सामने रमा जी थी । तभी राधिका भी कपड़े बदलकर  वहां  आ जाती है । राधिका की माँ राधिका को भी चाय का कप देती हैं ।

 

तभी राधिका रास्ते में हुई  बातों को अपनी माँ को बताने लगती है । राधिका की बात सुनकर रमा जी  आशी की ओर देखते हुए कहती हैं- क्या तुम जानती हो उस शख्स  को आशी ।

 

आशी जो कि खुद को नाम॔ल रखने की कोशिश कर रही थी, माँ की बात सुनते ही उसका ध्यान उनकी तरफ गया । और फिर आशी के ज़हन में वह नकाब से ढका चेहरा और उस इंसान की नीली आँखें उसके सामने आ गई। वह आंखें जिसे देखकर न जाने क्यों आज आशी को पहली बार कुछ अजीब लगा था । आशी अपने ख्यालों में खोई ही थी कि राधिका ने आशी के कंधे पर हाथ रखते  हुए उससे कहा- कहाँ खो गई? ठीक तो हो न।।।।।

तभी आशी  मानों उस ख्याल से बाहर आती हुई कहती है- हाँ,  मैं ठीक हूँ ।वो मैं बस  ..........

माँ मैं उस शख्स को नहीं जानती ,मैंने तो इससे पहले उसे कभी नहीं देखा है । लेकिन उसकी आँखें मुझे कुछ याद दिला रही थी ।शायद  ....

 तभी आशी ने दिवार पर टंगी घड़ी की तरफ देखते हुए कहा- माँ रात बहुत हो गई है ।आप जाके सो जाओ।

 

रमा जी आशी के पास बैठते हुए- क्या तुमने फिर से वही सब  देखा । आशी जो बहुत देर से खुद को संभाल रही थी, ये सुनते ही माँ के गले लगकर रोने लगती है ।।।।

"माँ मैंने फिर से वही सब देखा । बारिश, तूफान, बिजली और वो खंजर,  और हर तरफ बिखरे ख़ून ।"

रमा जी ने आशी को शांत कराते हुए  कहा वो सिर्फ सपना है तुम उसके बारे में सोचती ही क्यों हो। और खुद आशी के पास ही बैठ गईं, ताकि वो सो जाए।आशी माँ के गोद में सर रखकर थोड़ी देर में सो जाती है ।राधिका भी माँ के पास ही सर रखकर सो जाती है ।

अगली सुबह 

राधिका और आशी दोनों आज काफी देर तक सोते रहे । माँ ने ही नाश्ता बनाया, उसके बाद वह राधिका और आशी को आफिस जाने के लिए उठाने जाती है ।लेकिन दोनों को इस तरह निंद में देखकर उन्हें  उठाने  का मन नहीं हुआ। तभी आशी की निंद खुलती है ।आशी बेड से उतरकर माँ को  good morning कहती है, कि तभी राधिका भी उठ जाती है ।

रमा जी दोनों को जल्दी से तैयार हो के बाहर आने को कहती हैं ।और खुद बाहर चली जाती हैं ।राधिका और आशी भी जल्दी से तैयार होने लगती हैं ।

 

 

राधिका- मर गए, आज तो जल्दी आफिस जाना था ।आज आफिस के नए मालिक आने वाले थे ।लगता है हम पहले दिन ही देर से पहूँचेगे।।।

आशी तो अब तुम देर क्यों कर रही हो जल्दी से तैयार क्यों नहीं होती। दोनों जल्दी-जल्दी तैयार हो के आफिस के लिए निकलती हैं ।।

 

        next part........