पिछले भाग में आपने पढ़ा कि अमित अवंतिका और रोहित उस सर्पीली घुमावदार सुरंग के जब अंतिम छोर पर पहुंचे तो स्वयं को बहुत बड़े हॉल में पाया और सामने देखते ही वे अचंभित हो उठे।
अब आगे-
बहुत बड़ा आयताकार कक्ष था सामने बिल्कुल सामने शिवजी
की करीब सात फुट ऊंची प्रतिमा थी, शिव की जटाओं से बिल्कुल फव्वारे के रूप में पानी की धारा प्रस्फुटित हो रही
थी।
मूर्ति के चरणों से थोड़ा आगे एक स्वच्छ जलकुंड था।
जलकुंड के बिल्कुल मध्य में करीब तीन फुट ऊंचा शिवलिंग
था,
शिव जटाओं से निकली जल धारा सीधे शिवलिंग पर पड़
रही थी,
किंतु कुंड का जल बड़ नहीं रहा था। उतना ही रहता था और जल था बिल्कुल चांदी के तरह और साफ इतना कि शिव लिंग पूरा दिखाई दे रहा था।
तीनों ने एक दूसरे की ओर विस्फारित नेत्रों से देखा।
अमित - अद्भुत आश्चर्य से परिपूर्ण, यह रहस्य समझ आया अवंतिका जटाओं से जल धारा सीधे शिव लिंग पर पड़ रही
हैं
लेकिन कुंड के जल की सतह परिवर्तित नही हो रही ।
अवंतिका - वो इसलिये कि यह सिस्टम फव्वारे के
सिद्धांत पर बनाया गया है।
अमित - देखो अवंतिका प्रतिमा करीब सात फुट ऊंची है और कक्ष की छत प्रतिमा से करीब चार फुट ऊंची, अर्थात हम धरती से करीब बारह फुट नीचे आ चुके है, लेकिन कैसे ?
अवंतिका -अमित ध्यान करो कि जब हम अंधेरी सुरंग में चल रहे थे तो सुरंग ढलान पर थी, और जब भी मोड़ आया ढलान कुछ ज्यादा ही था। -
अमित - हां और ढलान दार सुरंग होने के कारण हमें यह पता ही नही चला कि हम इतने नीचे आ गये।
रोहित मोमबत्तियां जलाना कम से कम दस
जब उन्होने मैमबत्तियां जलाकर कक्ष में चारों तरफ सेट की।
तो मोमबत्ती के प्रकाश में जब चारों दीवारों पर नजरें दौड़ाई
तो अपनी आंखों पर ही यकीन नहीं हुआ।
चारों दीवारों पर देवी देवताओं की स्फटिक मूर्तीयां
और छत को छूते हुए नक्काशीदार स्तंभ ।
रोहित आआओ अमित आओ तो देखो तो इन स्तंभो पर पता नही किस भाषा में कुछ लिखा हुआ है।
अमित - अवंतिका । यह भाषा तो समझ नही आ रही,
लेकिन
स्तंभ में संस्कृत भाषा में लिखा है, वो समझ आ रहा है।
अवंतिका • क्या लिखा है अमित ?
अमित • लिखा है यह तहखाना जनता के भले कार्यों के
लिये
राजा माधोसिंह ने निर्माण करवाया है।।।।
समय है--- विक्रम संवत् १६८८
अवंतिका - O.M.G. यानि कि आज से करीब ३४० वर्ष पूर्व
बनवाई गई इतनागुप्त और भव्य स्थान ।
और यह भी देखो गौर से देखो यहां पर संख्याऐं क्यूं लिखी
शायद कोई गुप्त संदेश इन संख्याओं में छिपा पड़ा है।
अमित --- मैं इन संख्याओं की फोटो स्टेट करता हूँ।
चारोंस्तंभों को घेरती हुई सीढ़ियां थी, वो तीनो बहुत थक गये
इसलिये उन्ही सीढ़ियों पर बैठकर सुस्ताने लगे।
रोहित ने अपने झोले में से बिस्कुट भुजिया और मठियां
निकाली
अवंतिका ने जौधपुर से लाया डिब्बा और बिसलरी जल की बोतलें निकाली।
सबसे पहले उनतीनों ने अपने मोबाइल चेक किये।
कोई मैसेज नही था, आश्वस्त होकर वो तीनों खाने पीने लगे।
जब क्षुधा शांत हुई तो उन्हें फिर वो संख्याओं का ध्यान आया और अवंतिका और अमित के जासूसी दिमाग में टन्न टन्न टना
टन
घंटियां बजनज लगी।
अमित -- अवंतिका तुम्हे हिन्दी की वर्णमाला आती है।
अवंतिकानही अमित।
तो फिर सर्च करो और जो संख्या में बोलता हूं उतनी संख्या
पर अंगुली रख कर डायरी में लिख लेना।
अवंतिका ने अपने बैग मेसे वहीं नीली डायरी निकाली और
नेट पर वर्णमाला खोल ली।
अमित संख्यां १५,२१ और ३३ !
क्या बना ?
अवंतिका वंडर फुल अमित यह अक्षर तो खजाना बना।
अमित - वाहो ।।।।। अर्थात यहां कहीं राव माधोसिंह जी
का गुप्त खजाना है, लेकिन कहां? चलो दूसरे स्तंभ का
निरीक्षण करते हैं।
अवंतिका रोहित अमित दूसरे स्तंभ पर जाकर सूक्ष्म निरीक्षण करते हैं।
रोहित उछलकर यह रहे यह रही संख्याऐं ।
अमितउस स्थान पर आकर उन संख्याओं को नोट कर लेता है
और अवंतिका को वर्णों में व्यवस्थित करने को कहता है।
अमित - अवंतिका लिखो १९३० ४५ / २२९३७३१॥
४१०
४०४५२९३६४० १७३८! १०
जोड़ो अवंतिका क्या बना ।
अवंतिका ताली बजाते हुऐ
वंडर फुल वंडरफुल अमित इन संख्याओं से बना है
चौथा स्तंभ दांई और सात बार घुमाओ
मिल गया मिल गया राव माधो सिंह जी का खजाना।
अमित -रुको अवंतिका पहले हम तीनो अपने मोबाइलों से यहां की तस्वीरें खींच कर उन चारों को सेंड कर देते हैं,
यदि हमें कुछ हो भी गया या हम कहीं फंस गये तो वो और लखनवा प्रशासन की मदद से हमें ढूंढ लेंगे।
अवंतिका ये हुई ना कोई बात एक तीर से दो निशान,
हमें ढूंढने से उन्हें इस अभिक्षप्त किले के सारे रहस्य भी पता लग जायेंगे और एक विपुल ऐतिहासिक खजाना भू हाथ लगेगा।
उन तीनों ने कई तस्वीरें शिव प्रतिमां जल कुंड शिल लिंग और चारों स्तंभों और दीवारों में लगी मूर्तियों की खींच कर उन चारों को सेंड कर दी और मैसेज लिख दिया।
अब उनका ध्यान था चौथे स्तंभ पर ।
वो तीनों अपने पूरे जोर शोर के साथ चौथे स्तंभ को दांई ओर घुमाने लगे, सातवां घुमाव पूरा होते ही अचानक ही शिव प्रतिमां के पीछे की नक्काशी दार दीवार पट की तरह खुल गई।
जबरदस्त खुशबू का झौंका आया, एक दूसरे से आंखों ही आंखों में बात करके उन्होने पट के भीतर प्रवेश कर लिया।
तीनों के अंदर जाते ही दीवार फिर जुड़ गई।
लेकिन सामने की चकाचौंध देखकर ही उनकी आंखें चौंधिया उठी।
अपनी सांसों को रोक कर वो तीनों अपलक अचंभित सामने की ओर ही देखे जा रहे थे।
क्या दिख रहा था उन्हें सामने ." जानने के लिये बने रहियेगा अगले भाग में