mother daughter union in Hindi Motivational Stories by Wajid Husain books and stories PDF | मां बेटी का मिलन

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मां बेटी का मिलन

क़ाज़ी वाजिद की कहानी

‌ जब मैंने हाई स्कूल परीक्षा में टॉप किया, मुझे सम्मानित करने के लिए जेल अधीक्षक मि. सिन्हा ने आमंत्रित किया था।
सरकारी गाड़ी में बैठते ही मां याद आई। बचपन में मैंने मां से गाड़ी में बैठने की ज़िद की थी, तो मां ने कहा, 'गाड़ी में बैठने के लिए पढ़ाई करना पड़ती है‌।' उस समय मैं नहीं जानती थी, पढ़ाई क्या होती है? 'मां ने ठीक कहा था।' यह मैं मां से कहना चाहती हूं, पर पता नहीं वो कहां है? आज पप्पा से पूछा तो कोई उत्तर नहीं दिया, बस आखें सजल हो गईं। दोबारा पूछने की हिम्मत नहीं हुई।
मैं यादों से बाहर आई जब ड्राइवर ने कहा, 'हमारे सिन्हा साहब बहुत उदार व्यक्ति हैंं। उनकी आहट पाकर कैदी बैरक के दरवाज़े पर आ जाते हैं और अपनी फरियाद सुनाने लगते हैं। वह हर क़ैदी की इच्छा पूरी करना अपना फर्ज़ समझते हैं। कुछ देर बाद उसने गाड़ी रोकी, दरवाज़ा खोला और मुझे समारोह स्थल पर ले गया।
चेहरे की आभा और वर्दी पर लगे स्टार व मेडल देखकर मैं समझ गई यह सिन्हा साहब हैं। मैंने उनके पैर छुए तो वह हंसकर बोले, 'हमें तो फर्स्ट डिवीज़न लाने के भी लाले पड़ते थे, बच्ची, टॉप कैसे कर लिया, नक़ल-वक़ल तो नहीं की?' सभी को हंसता देखकर मुझे भी हंसी आ गई, जो मैं बरसों पहले भूल चुकी थी।
स्वागत समारोह में जिस मंच पर मेरे बैठने की व्यवस्था की गई थी, वहां पहले ही से एक औरत बैठी हुई थी। वह औरत अपना एक गाल साड़ी के पल्लू से ढके हुए थी। उसका दूसरा गाल गुलाबी था। उसमें गड्ढा था, ठीक वैसा ही जैसा मेरी मां के गाल में था। उसने मुझे माला पहनाई। माला पहनाते समय मुझे उसका दूसरा गाल दिख गया जो उस चुड़ैल के गाल जैसा था जो बरसों पहले मेरी मां बनकर मुझे खिलौने देने आई थी। फिर उसे पुलिस पकड़ कर ले गई थी। ... मैं बहुत डिस्टर्ब हो गई थी, रोकर जी हल्का करने को मन कर रहा था पर यह संभव नहीं था।
समारोह समाप्ति के बाद मैंने मिस्टर सिन्हा से पूछा, 'अंकल जिस औरत ने मुझे माला पहनाई थी, उसका गाल कैसे जल गया?'
मि. सिन्हा ने मुझे यह कहानी सुनाई। ... कभी वह हसमुख लाल गालों वाली थी। वो हंसती थी तो उसके गालों में गड्ढे पड़ जाते थे। उसकी बेटी उन गड्ढों में अपनी उंगली घुसाती, हंसती और मां से बार-बार हंसने को कहती। ... उसके पड़ोस में एक गुंडा रहता था जो छिपकर मां-बेटी का हंसी का खेल देख रहा था। वह उसकी हंसी पर मुग्ध हो गया। उसने कहा, 'तेरा पति मज़दूर है। उसे छोड़ दे और मुझसे ब्याह रचा ले, मैं तुझे फटफटिया पर सैर कराऊंगा। ... वह स्त्री गुस्साकर बोली, 'बदमाशी की, तो बंजारिन खांद के रख देगी।' गुंडा अनाप-शनाप बकता हुआ, घर में से तेज़ाब लाया और उस पर डाल दिया। उसका एक और का गाल झुलस गया। उसके पति ने पत्नी को सरकारी अस्पताल में भर्ती कर दिया और पुलिस में रपट लिखा दी। पुलिस ने गुंडे से साठ-गाठ कर ली और कोई कारवाई न की। उलटे पति पर आरोप लगाया, 'तेरी पत्नी बदचलन है। उसकी बदचलनी से तंग आकर तूने उसे तेज़ाब डालकर मारने की कोशिश की है और पैसा ऐठने के लिए शरीफ आदमी को फंसा रहा है।' ... बेचारा पति क्या करता, मन मार कर रह गया? बेटी मां के बारे में पूछती तो कह देता, 'मां तेरे लिए खिलौने लेने मेले गई है।' ... बेटी सोचती थी-- मेरी मां कब आएगी? हर रोज़ वह सपने में मां को देखती और काम पर जाते समय पिता को याद दिला देती थी कि वह मां को वापस लाने का याद रखें। उसका सारा दिन बीतता था, मां का इंतिज़ार करते पिता के काम से वापस लौटने तक।
कठिन ईलाज के बाद पति, पत्नी को लेकर, कुछ सोचते हुए भारी क़दमों से धीरे-धीरे घर लौट रहा था। पत्नी ने जला हुआ गाल साड़ी के पल्लू से छिपा लिया था। उसकी सुंदरता कुरूपता में बदल चुकी थी। मां को देखकर बेटी बोली, ' यह मेरी मां नहीं है।' मां हंसी, बेटी ने नन्ही सी उंगली उसके गाल के गड्ढे में डाली। बेटी ने मां को पहचान लिया, बोली, 'मां मेरे खिलौने।' मां बेटी दोनों खुश थे। उत्साहित मां खिलौने देने बढ़ी तो उसकी साड़ी का पल्लू खिसक गया। बेटी की नज़र मां के जले हुए गाल पर पड़ी तो चुड़ैल समझकर चीख पड़ी। मां झोपड़ी के बाहर चली गई। पापा ने उसे गोद में ले लिया। बेहोशी में वो बड़बड़ाते हुए मां को पुकारती पर मजबूर मां कैसे आती?
वह झोपड़ी के बाहर बैठी आंसू बहा रही थी। तभी वह गुंडा नशे में धुत बोला, 'तू तो चुड़ैल हो गई, किसी काम की नहीं रही पर तेरी बेटी कली है, मैं उसके फूल बनने का इंतिज़ार करूंगा।' ... घनी काली रात थी, भीषण गर्मी पड़ रही थी। गुंडा अपने घर के बाहर खाट पर सो गया था। मां सोचती, 'बेटी की रक्षा कैसे करे?' फिर वो दबे पैर झोपड़ी में गई, हसिया लेकर आई । उसने गुंडे पर हसिये से प्रहार किया और उसका सिर धड़ से जुदा कर दिया।
पुलिस उसे ले जा रही थी। उसका पति बेटी को झोपड़ी के बाहर लाया और कहा, 'बेटी चुड़ैल को पुलिस ने पकड़ लिया, जेल में बंद कर देंगे, अब नहीं आएगी। बेटी ने खुशी में ताली बजाई और मां के लाए खिलौनों से खेलने लगी।
जेल में उसका मोह बेटी के प्रति कम नहीं हुआ। वह कंबल बुनती हैै, जो परिश्रमिक मिलता, बेटी की पढ़ाई के लिए भेज देती है। उसकी बेटी ने हाई स्कूल में टॉप किया है, परंतु बेटी बेखबर है, मां जेल में है।'
गुंजन बोली, 'अंकल, मुझे यह कहानी अपनी-सी लगती है।' ...मि. सिंहा ने उत्साहित होकर कहा, 'बेटी, यह कहानी तुम्हारी ही है। वह तुम्हारी मां है। एक दिन मैंने उससे पूछा, 'तुम्हारी सज़ा पूरी हो चुकी है, घर क्यों नहीं जाती? उसने मुझे यह कहानी सुनाई और अखबार की कटिंग दिखाई जिससे मुझे पता चला, इसकी बेटी ने हाई स्कूल में टॉप किया है। मैंने यह आयोजन मां- बेटी के मिलन के लिए किया था।
गुंजन के आंसू टपकने लगे, बोली, 'अंकल मुझे मां से मिला दो।' मां आई। गुंजन बस इतना बोल पाई, 'मां मैंने तुम्हें बहुत दर्द दिया।' और उसका गला रूंध गया। मां ने बेटी को गले लगा लिया, कहा, 'बेटी तू क़सूरवार नहीं।' विदाई के समय मां-बेटी ने पैर छूकर मि. सिंहा से आशीर्वाद लिया तो सभी की आखें भर आईं। वातावरण सिन्हा साहब की जय के नारे से गूंज उठा।
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