Prem Ratan Dhan Payo - 5 in Hindi Fiction Stories by Anjali Jha books and stories PDF | Prem Ratan Dhan Payo - 5

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Prem Ratan Dhan Payo - 5






जानकी ने अपना फ़ोन और पर्स उठाया और जाने के लिए मुडी तभी उसकी नजर पीछे किसी पर पडी और उसके कदम रूक गए । सामने दीवार पर एक बडी सी तस्वीर लगी हुई थी । ये तस्वीर जानकी के माता पिता की थी । मां सुमित्रा देवी का बारह वर्ष पहले ही स्वर्ग वास हो चुका है । उस समय जानकी केवल दस वर्ष की थी । मां के गुजरने के बाद सारी जिम्मेदारियां पिता ने उठाई । पांच वर्ष पूर्व पिता शंकर झा कि भी एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी । उसके बाद से जानकी टूट सी गयी थी । बडी मुश्किल से उसने खुद को संभाला था । जानकी ने एक नज़र उस तस्वीर को देखा और फिर कमरे से बाहर चली आई । उसने बाहर से दरवाजा लॉक किया और कुछ दूरी का सफर पैदल ही तय किया । कुछ दूरी पर उसे रिक्शेवाला मिल गया । जानकी ने हाथ बढ़ाकर उसे रूकने का इशारा किया । रिक्शे वाले ने रिक्शा रोका । जानकी अंदर बैठते हुए बोली " भैया अहुजा क्लिनिक तक चलना है । रिक्शेवाले ने रिक्शा स्टार्ट कर आगे बढा दिया ।

__________

अहुजा क्लिनिक




जानकी रिक्शे वाले को पैसे देकर क्लिनिक के अंदर चली आई । गार्ड ने नमस्ते कहकर उसके लिए दरवाजा खोला । जानकी ने भी मुस्कुराकर नमस्ते कहा और अंदर चली आई । एक औरत सफाई के काम में लगी हुई थी । "

" नमस्ते दीदी " उस औरत ने काम करते हुए कहा ।

" कैसी हो गंगा ? " ये बोलते हुए जानकी अपने डेस्क के पास चली आई ।

" अच्छी हूं दीदी , आप ही के बारे में सोच रही थी । वैसे साहब भी अभी तक नही आए हैं ‌‌। "

जानकी अपने डेस्क पर रखी फाइलों को ठीक करते हुए बोली " जानती हूं , सर आज थोडा लेट से आएंगे । तुम ज़रा ये काम थोडा जल्दी निपटा लेना क्योंकि दो पेशेंट को मैंने आज सुबह की अपोइंटमेंट दी थी वो लोग आते ही होंगे । "

गंगा मुस्कुराते हुए बोली " वो लोग आ चुके हैं दीदी । हमने वेटिंग रूम में उन लोगों को बिठाया हैं । आप कहे तो भेज दे यहां । "

" हां एक एक करके भेज दो । ' जानकी ने कहा तो गंगा हां में सिर हिलाकर वहां से चली गई ।

कुछ देर बाद एक औरत अपनी गोद में तीन साल के बच्चे को लेकर अंदर आई । जानकी ने उसे सामने की चेयर पर बैठने का इशारा किया । " कहिए क्या दिक्कत है इसे ? "

" दो दिन से इसका बुखार उतर ही नहीं रहा हैं । आपने जो दवा दी थी उससे बुखार उतर गया था , लेकिन आज सुबह फिर से चढ गया । " सामने बैठी औरत ने कहा ।

जानकी ने उसकी पूरी बात सुनी और फिर उसे बच्चे को पर्दे के पीछे बने स्ट्रेचर पर लिटाने के लिए ‌‌। उसने उसकी नब्ज चेक की और स्टेथोस्कोप से हृदय गती को मापा । जानकी बच्चे को चैक करने के बाद बोली " ये बेहद ही कमजोर हैं । इसके खाने पीने का खास ख्याल रखिए । बच्चे हैं बाहर की चीजों के लिए जिद करेंगे लेकिन आपकी जिम्मेदारी हैं उन्हें घर का बना पोषक आहार दे । वैसे आपने इसे दवा अपने हाथों से खिलाइ थी । "

" हमारे हाथों से इसने खाई नहीं । जब खिला रहे थे तो रोने लगा । कहां मैं अपने हाथों से खाऊगा ....... उस औरत ने इतना ही कहा था , की तभी जानकी उसकी बात पूरी करते हुए बोली " इसने कहा और आपने दवा इसके हाथों में दे दी । आधी अधूरी दवा इसने आपके सामने खाई और बाकी की फेंक दी । अगर पूरी दवा खाई होती तो बुखार कब का उतर जाता । ...... क्यों नन्हे शैतान ऐसा ही किया था न आपने ? " ये कहते हुए जानकी ने उस बच्चे की ओर देखा जो बीमार पडा था । उसने कुछ रियेक्ट नहीं किया ।

उसकी मां ने उसे गोद में उठा लिया । जानकी ने पर्ची पर दवा लिखकर दी और उसे कब देनी हैं वो भी बताया । वो औरत अपने बच्चे को लेकर वहां से चली गई । जानकी ने कुछ और पेंशट को देखा । पेंशट को देखते देखते वक्त कब बीता पता ही नही चला । दोपहर के दो बज रहे थे । गंगा अंदर आते हुए बोली " दीदी लंच टाइम । "

इस वक्त जानकी सामने बैठे आदमी को उसकी तबियत के बारे में समझा रही थी । जानकी ने दरवाजा की ओर देखा जहां गंगा उसे आधा खोले खडी थी । " पहले सर को तो आ जाने दीजिए । "

" वो तो आधा घंटा पहले ही आ चुके हैं । "

" अच्छा ठीक हैं बस हम थोडी देर मे आते हैं । " जानकी के ये कहने पर गंगा वहां से चली गयी । उस पेशेंट के जाने के बाद जानकी ने गले से स्टेथोस्कोप निकालकर टेबल की ड्रोल मे रखा । जानकी मिस्टर आहुजा के कैबिन के पास आई । उसने दरवाज़ा नोंक किया तो अंदर से एक भारी आवाज आई ।

" कम इन "

जानकी ने दरवाजा खोला । इस वक्त चेयर पर साठ वर्षीय एक वृद्ध आदमी बैठा हुआ था । जिसके आंखों पर नज़र का चश्मा लगा था और वो हाथों में फाइल पकड़े दरवाजे की ओर देख रहे हैं । ( ये हैं मिस्टर सोमनाथ अहुजा । ये प्राइवेट क्लीनिक इन्हीं का हैं । जानकी इनकी पर्सनल सेक्रेटरी हैं । ) जानकी अंदर आते हुए बोली " गुड़ आफ्टरनून सर "

" गुड आफ्टरनून बेटा । "

" लंच का टाइम हो चुका हैं सर और आप अभी तक यही बैठे हैं । "

" तुम्हें तो पता हैं जानकी आज मेरे बेटे और बहु आने वाले थे , तो बस आज मैंने उन सबके साथ ही लंच कर लिया । " आहुजा जी ने कहा ।

" ठीक हैं फिर मैं चलती हु । " ये बोल जानकी वहां से चली गई । बाहर आकर वो रूकी और खुद से बोली " आज तो मुझे घर जल्दी जाना हैं और मैंने सर से बात भी नही की । " ये सब खुद से बोल जानकी वापस से उनके कैबिन में चली आई । " सॉरी सर मैंने आपको डिस्टर्ब कर दिया । वो दर असर मुझे कुछ पूछना था । क्या मैं आज जल्दी जा सकती हूं । मुझे कुछ जरूरी काम हैं । "

मिस्टर आहुजा कुछ सोचते हुए बोला " कोई बात नही मैं हु यहां पर, सब संभाल लूगा । " जानकी उन्हें थैंक्यू बोल वहां से चली गई ।

शाम के करीब चार बजे जनकी क्लिनिक से निकल गयी । उसने रिक्शा पकडा और सीधा अपने घर के लिए निकल गयी । मैथिली का घर उसके पडोस में ही था इसलिए अपने घर जाने की बजाय वो सीधा उसके घर चली आई । उसने दरवाज़ा खटखटाया तो एक औरत ने आकर दरवाज़ा खोला । सामने मैथिली की मां पूनम जी खडी थी ।

" प्रणाम काकी " जानकी ने कहा ।

" खूब खुश रहू , आही के इंतजार छले । कावेरी के देखइले लडका वला ऐलेया । अहा उनका कमरा में जाऊ आर देखू तैयार भेलए की नई । " पूनम जी ने धीमी आवाज ने कहा । जानकी की नज़र अंदर हॉल में बैठे कुछ मेहमानों पर गयी तो वो समझ गयी चाची धीरे से क्यों बोल रही हैं ।

" जी काकी " इतना कहकर जानकी कावेरी के कमरे में चली आई ‌‌। मैथिली अकेली उसे तैयार कर रही थी । जानकी ने दरवाजा नोंक किया तो दोनों बहनो ने आइने से अपने पीछे जानकी को खडे पाया । मैथिली पलटते हुए बोली " जानू कर दी न तूने देर । देख लडके वाले भी नीचे आ चुके हैं और जीजी अभी तक तैयार नहीं हुई । "

जानकी अंदर आते हुए बोली " जीजी क्या बात हैं ? आप अभी तक तैयार क्यों नही हुई ? "

कावेरी पलटते हुए बोली " तुम्हें तो पता हैं जानू मुझे इसकी तरह सजने संवरने का शोख नही हैं ।‌ सुबह से ये मेरे चेहरे पर पर पता नही क्या क्या पोते जा रही हैं । कभी मुल्तानी मिट्टी लगाती है तो कभी पपीते का लेप । मां से छुपकर अंडा ले आई था और बोली ' दी एग वाइट लगाओ बाल सिल्की हो जाएंगे । ' सबसे छुपकर मैंने इससे अंडा फिकवाया तुम्हें तो पता हैं न मां देख लेती तो आज सबकी शामत आ जाती । अभी भी इसे चैन नही है देखो क्या क्या पोते जा रही हैं । " ये बोलते हुए कावेरी ने मैथिली की बांह पर मारा ।

मैथिली चिढते हुए बोली " आहहहह ..... जीजी चोट लग रही हैं क्या करती हो आप भी ? थोडा सा मैक अप करने दो न । ज्यादा मारोगी तो अभी स्कैच पैन से दाढी मूंछें बना दूगी । फिर जाना उस हालत में लडके के सामने । डर के मारे नेपाल से भूटान न भागा तो नाम बदल देना मेरा । " उन दोनों की नोंक झोंक देखकर जानकी हंसे जा रही थी । बडी मुश्किल से वह वहां अपनी हंसी रोकते हुए बोली " अरे बस कीजिए आप दोनों । ..... मैथिली तुम थोडी देर शांत रहोगी । ..... जीजी आपको अगर कंफर्ट नही लग रहा तो ये जेवर पहनने की जरूरत नहीं है । "

" सही कहा जानू मुझे ये नेकलेस चुभ रहा हैं ।‌" ये बोलते हुए कावेरी उसे उतारने लगी । जानकी उसे निकालने में उसे मदद की । मैथिली अपने दोनों हाथ कमर पर रखकर बोली " दोस्त मेरी हैं और तरफदारी जीजी की करती हैं । "

जानकी कावेरी के बाल ठीक करते हुए बोली ' मैथिली खूबसूरती जेवरों और इन मैक अप के डिब्बों में बंद नही होती । खूबसूरती तो इंसान के अंदर होती हैं । अगर वो लडका समझदार होगा और जीवन भर साथ निभाने वाला होगा , तो जीजी को हर रूप में पसंद करेगा । जो खूबसरती देखकर पसंद करे वो सच्चा साथी कैसे बन सकता हैं । उम्र ढलने के साथ ये चार दिन की चांदनी भी ढल जाएगी । खूबसूरती का प्यार वही खत्म हो जाएगा । प्यार वो सच्चा जो सूरत नही सीरत देखे । "

कावेरी मुस्कुराते हुए बोली " सच कहा जानू तुमने । "

मैथिली अपने दोनों हाथ अपने गाल पर रखकर बोली " तुझसे सचमुच जीतना नामुमकिन हैं । "

उसकी बात पर मैथिली और कावेरी दोनों हंसने लगी । यूं नोक झोंक करते वो लोग कावेरी को तैयार कर रही थी । कावेरी को बुलाने के लिए पूनम जी ने एक छोटे लड़के को भेज दिया । वो दरवाजे पर खडा होकर बोला " मैथिली दीदी , जानू दीदी काकी कावेरी दीदी को नीचे बुला रही हैं । " इतना बोलकर लो लड़का वहां से भाग गया ।

" अरे गौरव सुन तो सही । " मैथिली ने उसे पीछे से आवाज दी लेकिन वो नही रूका । " बदमाश कही का मेरी कोई बात सुनता हु नहीं । पहले तू मिल फिर तुझे कुए में लटकाऊगी । "

" अब बस भी करो मैथिली चलो जीजी को लेकर नीचे नही चलना क्या ? " ये बोल जानकी कावेरी को लेकर आगे चल दी । मैथिली भी उनके पीछे चलने लगी । नीचे हॉल में बात चीत चल रही थी । मैथिली ऊपर से ही देखते हुए बोली " जीजी नीचे जाकर तो बस शर्माना हैं । यही से झांककर देख लो लडके को । "

" चुप शैतान कही की । " कावेरी ने धीरे से कहा और अपनी नजरें नीची कर ली । नीचे हॉल में कावेरी और मैथिली के माता पिता मौजूद थे । मां पूनव देवी और पिता सतीश झा । एक ओर व्हीलचेयर पर एक अस्सी वर्षीय वृद्ध महिला थी जो की मैथिली की दादी मां थी । वृद्ध होने के कारण न ही ठीक से देख पाती हैं और न ही ठीक से सुन पाती थी । मैथिली के परिवार वालों के सिवा कुणाल और उसके माता पिता थे । कुणाल उसी लड़के का नाम था जो कावेरी को देखने आए थे । जानकी और मैथिली कावेरी को नीचे ले आए और उन्हें पूनम जी के बगल में सोफे पर बिठा दिया । वही मैथिली और जानकी उन दोनों के ठीक पीछे जाकर खडी हो गयी ।

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ये बात सच हैं सच्ची मोहब्बत सूरज नही देखती । वो तो दिल से की जाती है । अगर मोहब्बत खूबसूरती से हो तो वो जीवन भर कैसे ठहरेगा ? खूबसूरत चले जाने के बाद वो भी चला जाएगा ? चार दिन की चांदनी की तरह ।

‌क्या कावेरी को वो लडका पसंद आएगा ? बात कितनी आगे बढेगी । क्या होगा आगे ये जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी नोवल

प्रेम रत्न धन पायो

( अंजलि झा )


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