जनकपुरजनकपुर नेपाल का धार्मिक स्थल हैं । यूं तो नेपाल का इतिहास भारत से अछूता नही रहा । पूर्व काल में यह मिथिला की राजधानी हुआ करता था । जनकपुर नेपाल की राजधानी काठमांडू से 400Km दक्षिण पूर्व में स्थित है । मां सिया की नगरी कहिए या फिर राम जी का ससुराल बात में वजन कम नही होगा । इस नगर की अपनी ही खासियत हैं । इसके लिए ह्रदय से एक कविता निकलती है । उम्मीद है आपको पसंद आएगी ......
राधा बनने को सब चाहे, माता सीता सी कोई नहीं!
सब कृष्ण के प्रेम में भटक रही ,संग राम के वन में कोई नही !!
ये क्यों कहते हैं धोखा खा गई ,रो रो वक़्त गुज़ार रही!
सब ढूंढ़ती रही है राजभवन ,सीता सा वन पथ कोई नहीं ।।
फिर कहां मिलेगा सत्य प्रेम ,जो कर्तव्यों से जूझी नहीं।
वो जनकसुता महलों की ज्योति ,वन आकर भी बूझी नहीं । ।
बिता दिया कांटों में जीवन ,फिर भी लंका की हुई नहीं।।
राम हुए बस सीता के ....... वो और किसी की हुई नहीं । ।
राधा बनने को सब चाहे माता सीता सी कोई नहीं!
सब कृष्ण के प्रेम में भटक रही संग राम के वन में कोई नही !! __________
सुबह का वक्त , जानकी मंदिरइसे सीता मंदिर और जानकी महल के नाम से भी जाना जाता है । इस वक्त पूजा के लिए मंदिर में भीड उमडी हुई थी । कही घंटियों का शोर तो कही पक्षियों का । सुगंधित धूप व पुष्प कि खुशबू । इन सबमें एक आवाज ऐसी भी थी जिसे सुन सभी लोग मंत्रमुग्ध हो चुके थे । ..........
आये हैं राम मेरे राम राम
आये हैं राम मेरे राम राम .....(2)( व्हाइट कलर का फ्राकसूट पहने एक लडकी वीणा बजा रही थी । वीणा के तारों संग उंगलियां खेल रही थी । काले और लंबे रेशमी बालों तले चेहरा छुप चुका था जैसे आसमान को काले बादलों ने घेर लिया करते हैं । आवाज का जादू निष्छल व मनभावन था । स्वर कोकिला की भाती कंठ से मधुर ध्वनि निकल रही थी । )
कितने बरस रहे दूर वो घर से
जिनके दरस को नैना तरसे
देश ये सारा कहने को उनका
पर ना मिला एक भूमि का तिनका
समय का पहिया घूम गया फिर
पहुंचा अयोध्या उनका नाम
आये राम मेरे राम मेरे राम
आये राम मेरे राम मेरे राम.....
( धीरे धीरे कर मंदिर का समूचा प्रांगण भक्तजन से भर चुका था । इतना कि पैर रखने तक की जगह न मिले । सब हाथ जोड़े भकतीमय भाव से आंखें बंद किए उस मधुर धुन में खोए हुए थे । )
दीप जलाओ मंगल गाओ
नाम जपो सब सुबह शाम
राह पे उनकी फूल सजाओ
मिल कर बोलो जय सियाराम
खतम हुई बनवास की अवधि
अपने घर में आये राम
आये राम मेरे राम मेरे राम
आये राम मेरे राम मेरे राम...( पंडित जी राम सिया की मूर्ति के आगे जल रहे दीपक में घी डाल रहे थे । इस वक्त उनके चेहरे पर बडी सी मुस्कान थी । )
गंध की नदिया सेतु पावन
आयी शिला है शालिग्राम
उसमें बसे हैं दशरथ नंदन
कौशल्या माँ के श्री राम
खतम हुई बनवास की अवधि
अपने घर में आये राम
आये राम मेरे राम मेरे राम
आये राम मेरे राम मेरे राम....
भजन खत्म कर उस लड़की ने वीणा को साइड मे रखा और हाथ जोड़कर उठ खडी हुई । मूर्ति के आगे शीश नवाने के बाद उसने जब अपनी आंखें खोली , तो पंडित जी उसकी पुजा की थाल उसे देते हुए बोले " ये लो जानकी बिटिया अपनी पूजा की थाली । " जानकी ने मनमोहक मुस्कान के साथ वो थाल पकड ली । पंडित जी आगे बोले " तुम्हारा भजन सुने बगैर तो हम लोगों की सुबह नही होती । देखो तुम्हारी आवाज़ सुनने के लिए कितनी भीड उमड पडी हैं । "
जानकी मुस्कुराते हुए बोली " मैं तो बस जरीया हूं पंडित जी । आए तो वो हमारे सिया राम के दर्शन के लिए हैं । " इतना बोल जानकी पलट गई । गोरा रंग , बडी बडी पलकें जो काजल लगाने से और बडी लग रही थी । होंठों पर हल्का गुलाबी रंग जो प्राकृतिक था । माथे पर छोटे सी गुलाबी रंग की बिंदी , कानो में छोटे छोटे बूंदें । होंठों पर पसरी मुस्कान आसमान में दमकती दामिनी को भी लज्जा से सिमटने पर मजबूर कर दे । जानकी भीड को चीरती हुई मंदिर से बाहर चली आई ।
जानकी मंदिर से बाहर निकल आई थी तभी पीछे से किसी नू उसे आवाज दी " जानू .....
जानकी आवाज सुनकर पीछे की ओर पलटी । नजरें नाम पुकारने वाले को तलाश रही थी , तभी उसे थोडी ही दूरी पर एक लडका अपनी बाइक के पास खडा नज़र आया । वो अपने दोनों हाथ बांधे बाइक से टिककर खडा था । उम्र करीब अट्ठाइस तीस के आस पास होगी उसकी । दिखने में भी अच्छी कद काठी था । चेहरे पर हल्की हल्की दाढी मूछे थी । जानकी मुस्कुराते हुए उसके पास चली आई ।
" तो आज हमारे मोहन की सवारी यहां क्या कर रही हैं ? पूजा पाठ में उन्हें कोई दिलचस्पी हैं नही । कही चाची को तो छोडने नही आए थे । " जानकी ने पूछा ।
" अरे नही यार मैं घर से नही बाहर से आ रहा हूं । पास से गुजर रहा था । गाते हुए तुम्हारी आवाज़ सुनी तो ठहर गया । चलो तुम्हें क्लिनिक छोड दू । " मोहन ने कहा तो जानकी इनकार करते हुए बोली " नही मैं पहले घर जाऊगी । उसके बाद क्लिनिक , आज अंकल देर से आएंगे । "
मोहन बाइक पर बैठते हुए बोला " अच्छा ठीक हैं घर छोड देता हूं , चलो आओ बैठो । "
" तुम परेशान मत हो मैं पैदल चली जाउगी । "
" अरे यार बचपन से सुनता आ रहा हूं । दुनिया में तुम इकलौती होगी जो दोस्तों से फारमेलिटी करती हैं । मैं सुन सुनके पक गया हूं चलो अब जल्दी बैठे । " मोहन के ये कहने पर जानकी ने आगे कुछ नहीं कहा । उसने थाली पकडने के लिए मोहन को दी और संभलकर उसकी बाइक पर बैठ गयी ।
" बैठ गयी अच्छे से । " मोहन ने पूछा ।
' हां ' जानकी ने जवाब दिया । मोहन ने उसे वापस थाली पकडाई और बाइक स्टार्ट कर आगे बढ़ा दी । जानकी उससे सवाल करते हुए बोली " तुम घरपर नही थे तो फिर कहा से आ रहे हो ? "
" इंटरव्यू देने गया था । "
" क्या इस लिवाज में ? " जानकी ने चौंकते हुए पूछा तो महेश ने बाइक की स्पीड धीमी कर ली । " क्यों क्या बुराई हैं मेरे कपड़ो में ? "
' कोई बुराई नही हैं बस जोकर का रोल तुम्हें बडी आसानी से मिल जाएगा । " जानकी के ये कहने पर महेश अजीब सा रिएक्शन देते हुए बोला " तुम मेरे मूंह पर मेरा मज़ाक उडा रही हो यार । दोस्त हूं थोडी तो रिस्पेक्ट दो । "
' बस यही आदत तुम्हारी पसंद नही । जब देखो तब रिस्पेक्ट की भीख मांगते रहते हो । रिस्पेक्ट कमाई जाती है, मांगी नही जाती । इंटरव्यू पर जाने से पहले थोडा अपना हूलिया तो ठीक कर लेते । फटी जींस पहनकर कोई जाता हैं भला । ऊपर से गले में चेन तो गुंडे मवालियों की तरह डाली है । वैसे उन लोगों ने तुम्हें अंदर आने की परमिशन दी या बाहर से ही भगा दिया । " जानकी ने कहा ।
" अब बस भी कर यार मुझे इतना गैर गुजरा समझा हैं क्या ..... महेश कह ही रहा था कि तभी जानकी बोली " अच्छा ठीक हैं तुम्हारी महेशवाणी मैं बाद में सुनूगी पहले गाडी रोको घर आ चुका हैं । " महेश ने बाइक रोकी और जानकी नीचे उतरी ।
" महेश फिर से बाइक स्टार्ट करने लगा तो जानकी बोली " अब कहा चले , चलकर बैठो चाय बना देती हूं पीकर जाना । "
" नही मिस जानकी झा फिलहाल तो मैं घर जाऊंगा । मां ने फ़ोन कर कुछ सामान लाने के लिए कहा था और मैं दोस्तों के चक्कर में सब भूल गया । अब तो पक्का जूते पड़ेंगे । " महेश के ये कहते ही जानकी को हंसी आ गयी । वो हंसते हुए बोली " चिंता मत करो चाची इस वक्त मंदिर में हैं । जब मैं बाहर निकल रही थी तब वो अंदर जा रही थी । अंदर उनकी संगी सहेलियां भी मौजूद हैं बिना दो घंटा बिताए वो घर नही लौटेंगी , तब तक उनका कहा सब काम पूरा कर दो । " महेश ने हां में सिर हिलाया और उसे बाय बोल बाइक स्टार्ट कर वहां से चला गया । जानकी कुछ देर उसे जाते हुए देखती रही फिर पीछे की ओर पलटी । बाहर खुला बरामदा था । किनारे पर रंग बिरंगे फूल खिले थे । जानकी आगे बढ गयी । इस वक्त दरवाजे पर ताला लगा था । उसने चाबी से ताला खोला और अंदर चली आई । अंदर का वातावरण काफी शांतिपूर्ण था । चारो ओर कमरे बने हुए थे और बीच में बडा सा खुला आंगन था । जानकी ने आंगन के हिस्से में चप्पलें उतारी । आंगन के दूसरे हिस्से में तुलसी का पौधा था । घर कोठी के बराबर ही था । जानकी ने पूजा की थाल तुलसी के पौधे के पास रखा और हाथ जोड खडी हो गयी । कुछ पल बाद उसने अपनी आंखें खोली और अंदर कमरे में चली आई । नीचे का कमरा हॉल की तरह बना हुआ था । जिसके एक हिस्से में किचन था वही दूसरे हिस्से से लगकर छोटा सा मंदिर था , जिसमें राम सीता और लक्ष्मण की प्रतिमा थी । जानकी ने जैसे ही आरती की थाल रखी पीछे से किसी की आवाज आई ।
" तो आ गयी महारानी । "
जानकी मुस्कुराते हुए पीछे की ओर पलटी । इस वक्त दरवाजे की चौखट के पास एक बाइस तेइस साल की लडकी खडी थी , जिसने जींस और कुर्ती पहनी हुई थी । दुपट्टे को गले में लपेट रखा था । बालों की पोनी टेल बनी थी । चेहरे पर हल्का सा मैक अप था ।
" मैथिली वहां क्यों खडी है अंदर आ ? " जानकी ने कहा ।
मैथिली अंदर आते हुए बोली " पूजा पाठ से तेरी नजरें हटे तब तो मैं दिखाई दू । दो बार घर के चक्कर लगा चुकी हु । आज इतनी देर क्यों लगा दी ? "
जानकी मेज पर रखी किताबों को समेटते हुए बोली " आज भजन कुछ ज्यादा ही लंबा हो गया था , बस इन्हीं सब में देर हो गयी । "
मैथिली चेयर उल्टी कर उसपर बैठते ही बोली " अच्छा सुन तूं अभी क्लिनिक जाएगी । "
" हां बस जा ही रही हूं । " जानकी ने कहा ।
" शाम को थोडा जल्दी आ सकती है । " मैथिली ने कहा तो जानकी बोली " क्यों कही चलना है ? "
" नही यार आज जीजी को लडके वाले देखने के लिए आ रहे हैं । तू भी साथ रहेगी तो अच्छा रहेगा ? "
" अच्छा तो ये बात हैं, लेकिन काकी ने तो कहा था वो लोग संडे को आने वाले हैं । " जानकी ने कहा ।
" संडे को ही आने वाले थे लेकिन पता नही आज आने का प्लान कैसे बन गया ? वैसे भी बडे पीसा ने ये रिश्ता दिखाया और तुम्हें तो पता हैं मां किसी की बात माने या न माने लेकिन पीसा की बात कभी नही टालती । " मैथिली ने कहा ।
" ठीक हैं मैं कोशिश करूगी .....
" कोशिश नही तुझे आना है तो बस आना हैं । मैं आगे कुछ नहीं सुनने वाली ..... हां .... मैथिली ने लगभग उसकी बात काटते हुए कहा ।
जानकी अपने हाथ जोडते हुए बोली " माते तुझसे बहस करने की ताकत मेरे अंदर नही । मैं वक्त पर पहुंच जाउगी । मुझे न तो अपने हाथ पैर तुड़वाने हैं और न ही अपना सर कलम करवाना है । "
मैथिली उठते ही बोली " तथा आस्तू पुत्री , हम शाम को तुम्हारा घर पर इंतजार करेंगे । " मैथिली के ये कहते ही दोनों को हंसी आ गयी ।
" अच्छा मैं चलती हु शाम को इंतजार करूगी । " ये कहते हुए मैथिली वहां से चली गई ।
जानकी ने अपना फ़ोन और पर्स उठाया और जाने के लिए मुडी तभी उसकी नजर पीछे किसी पर पडी और उसके कदम रूक गए ।
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जानकी का पूरा परिचय अभी बाकी हैं । कहानी के साथ बने रहिए धीरे धीरे आप सब जान जाएंगे । अभी कितने ही नए किरदार और शामिल होंगे ।
क्या जानकी शाम को वक्त पर मैथिली के घर पहुंच पाएगी ? अगर वो नही पहुंच पाई तो मैथिली का रिएक्शन कैसा होगा ? ये हम अगले भाग में जानेंगे तब तक के लिए पढ़ते रहिए मेरी नोवल
प्रेम रत्न धन पायो
( अंजलि झा )*********