राधारानी का प्रेम
एक बार अधिक गर्मी पड़ने से राधारानी का चेहरा थोड़ा क्लांत हो गया।
यह देखकर कीर्ति मैया को बड़ी चिंता हुई।
कीर्ति मैया ने ललिताजी को बुला कर कहा-
"ललिते! अब कुछ दिन राधा कहीं बाहर नहीं जाएगी। तुम इस बात का ध्यान रखना।
मैं नंदरानी को कहलवा दूँगी, कुछ दिन राधा रसोई करने नहीं जाएगी, वो कृष्ण के लिए भोजन रोहिणी से बनवा ले।
पूरा ब्रज जानता है राधा के बाद कोई अमृत तुल्य भोजन बनाता है तो वो है माता रोहिणी।
और यदि यशोदा अधिक आग्रह करे तो मैं तीनों समय राधा के बनाए मिष्टान्न कृष्ण के लिए भिजवा दिया करूंगी।
पर राधा को मैं इतनी गर्मी में रोज़ नंदालय जाने नहीं दूँगी"
मैया की आज्ञा कोई टाल नहीं सकती थी।
जो राधारानी विधाता को पलकें बनाने के लिए दोष देती है,
कि विधाता ने पलकें क्यों बनाई,
न पलकें होतीं न वो झपकती और कृष्णदर्शन एक निमेष के लिए भी छूटता।
वो राधारानी श्रीकृष्ण के दर्शन बिना कैसे रहेंगी?
(एकबार पलक झपकने जितना समय एक निमेष कहलाता है)
राधारानी तड़प कर विधाता से मछली की पलकें मांगती हैं कि "हे विधाता ! मुझे मछली की आंखे क्यों नही दी। श्यामसुन्दर सामने हो तो पलकें झपकाने में भी मुझे असह्य वेदना होती है"
(मछली की आंख कभी भी झपकती नहीं है)
ऐसी राधारानी श्रीकृष्ण को देखे बिना कुछ दिन तो क्या, कुछ घण्टे भी कैसे बिताएगी यह सोचकर सखियाँ व्याकुल हैं।
कृष्ण विरह से राधारानी का शरीर जल रहा है।
सखियों ने कमल पुष्प की शय्या पर राधारानी को लाकर सुलाया तो उनके तप्त अंगों के स्पर्श से कमल पुष्प तत्काल जलकर मुरझा गए।
सखियों ने उनके अंग पर चन्दन लेप किया तो वो भी तत्काल सूखकर झड़ गया।
कमल पत्तों को गीला कर पंखा करना चाहा तो राधारानी के विरह ताप से पत्ते मुरझा गए।
राधारानी यह विरह व्यथा ज़्यादा देर सह न सकीं, वो मूर्छित हो गईं।
सखियाँ निरुपाय हो रही थीं। सभी प्रयास विफल हो चुके थे। वो चिंतित होकर उन्हें घेरे हुए खड़ीं थीं।
तभी नंदभवन से सन्देश लेकर धनिष्ठा आई...
धनिष्ठा ने आकर ललिताजी से कहा-
"सखी! आज राधा रसोई करने नहीं गई तो रोहिणी माँ ने ही कृष्ण के लिए रसोई बनाई।
कृष्ण वही भोजन कर गौ चराने चले गए।
पर आज कृष्ण ने कितने अनमने भाव से भोजन किया यह हम सबने देखा।
यशोदा मां ने चिंतित होकर मुझे यहां भेजा है कि मैं राधा से कुछ मिष्ठान्न बनवा लाऊँ, ताकि गोचारण से लौटकर कृष्ण प्रसन्न मनसे भोजन करे।
परन्तु हाय! राधा तो मूर्छित है, अब मैं क्या करूँ?"
कुछ देर सोचकर धनिष्ठा ने राधारानी के कान के पास जाकर कहा-
"राधे! वो देखो श्यामसुन्दर तुम्हारे सामने खड़े हैं"
इतना सुनते ही राधारानी की मूर्छा जाती रही। वह उठकर बैठ गई।
अब झट से धनिष्ठा ने यशोदा मैया का आदेश राधारानी को सुना दिया।
विरह ताप से तापित होने पर भी राधारानी ने जैसे ही धनिष्ठा के मुखसे व्रजेश्वरी का आदेश सुना,
उन्हें मानो शरीर मे प्रचुर बल मिल गया
राधारानी सखियों से बोली-
"हे रूपमंजरी! शीघ्र चूल्हे को लीपकर उसमे अग्नि प्रज्ज्वलित करो।
यहां कड़ाही ले आओ।
व्रजेश्वरी के आदेशानुसार मैं श्यामसुन्दर के लिए भोजन बनाउंगी
हे सखी! मैं प्रतिदिन जितने मोदक बनाती हूँ, उससे चार गुणा अधिक बनाउंगी।
तुम सब मेरे स्वास्थ्य की तनिक भी चिंता मत करो"
ऐसा कहकर राधारानी चूल्हे के पास चौकी पर बैठ गई
यह महा आश्चर्य सखियाँ देख रही हैं
प्रेम की कैसी महिमा
कुछ देर पूर्व जिनके विरह ताप से तपित शरीर के संस्पर्श से कमल पंखुड़ियों की शय्या मुरझा गई,
वही राधारानी प्रियतम के लिए मिष्टान्न बनाने के लिए अग्नि के पास ऐसे बैठी है मानो शीतल चांदनी में बैठी हो
धन्य प्रेम
प्रियतम सुख के लिए आज अग्नि उनके शरीर को महाशीतल कर रही है
उत्तम प्रेम का कैसा अचिन्त्य प्रभाव
राधारानी की प्रसन्नता, उनका चौगुना उत्साह देख ललिताजी कीर्ति मैया को बुला लाई और बोली-
"मैया! आप देख रही हैं व्रजेश्वरी की आज्ञा पालन में राधारानी का कैसा उत्साह है
यह सब मैया यशोदा के वात्सल्य प्रेम का प्रभाव है। वो राधारानी से श्यामसुन्दर जितना ही प्रेम करती हैं"
इतना कहकर ललिताजी चुप हो गईं, आगे कुछ न बोली
कीर्ति मैया बोली-
"सही कह रही हो ललिता,
यशोदा राधा को देखे बिना एक दिन नहीं रह सकती
यशोदा राधा को अपने स्नेह से सिक्त कर देती है,
अपना वात्सल्य इसपर उड़ेल देती है। उसका वात्सल्य इसके लिए आशीर्वाद है
इस आशीर्वाद से मैं राधा को वंचित क्यों करूँ?
ललिते! कल से तुम राधा को नंदालय ज़रूर ले जाना"
यह सुनकर ललिताजी सहित सभी सखियाँ अत्यंत प्रसन्न हुईं।