*श्री यमुना जी एवं श्री गंगा जी का उत्सव मनाया जाता है. श्री यमुना जी ने कृपा कर अपनी बहन गंगा का प्रभु के साथ शुभ मिलन कराया एवं जल - विहार के निमित गंगाजी ने भी प्रभु मिलन का आनंद लिया था.*
*गंगा दशमी ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को ही गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था एवं सभी दस इन्द्रियों के ऊपर अधिपत्य प्राप्त कर उनकी प्रभु मिलन की आकांक्षा श्री यमुना जी द्वारा पूर्ण हुई अतः गंगा दशमी के दिन को गंगा दशहरा भी कहा जाता है.*
*श्री यमुना जी पृथ्वी के जीवों पर कृपा कर गंगाजी से मिले हैं. श्री यमुना जी के स्पर्श मात्र से गंगाजी भी पवित्र हो गयी हैं अतः गंगा जी के स्नान एवं पान से भी जीवमात्र का उद्धार हो जाता है.*
*गंगाजी और श्री यमुना जी के भाव से आज सभी पुष्टिमार्गीय मंदिरों में जल भरा जाता है और प्रभु जल-विहार करते हैं. कुछ पुष्टिमार्गीय हवेलियों में गंगा दशमी के दिन नौका-विहार के मनोरथ भी होते हैं.*
*वामन अवतार के समय भगवान ने त्रिलोकी को नापने के लिए अपना पैर फैलाया तब उनके बाए पैर के अंगूठे के नख से ब्रह्माण्ड कटाह का ऊपर का भाग फट गया. उस छिद्र में होकर जो ब्रह्माण्ड से बाहर के जल की धारा आई वह उस भगवान के चरणकमल को धोने से निर्मल हुई जिस कारण उस धारा के स्पर्श से संसार के सारे पाप नष्ट हो जाते है. इसी कारण गंगाजी का प्रथम नाम विष्णुपदी या भगवदपदी भी हुआ. गंगा दशमी के दिन भगीरथ राजा की भक्ति से प्रसन्न होकर लोगो का उद्द्धार करने के लिए भगवान श्री कृष्ण की प्रिया श्री गंगाजी का भूमि पर आगमन हुआ. गंगाजी ने भागीरथ राजा को भूमि पर न आने के दो कारण बताये. एक तो स्वर्ग से जब पृथ्वीतल पर गंगाजल प्रवाह के वेग को धारण करने वाला कोई होना चाहिए अन्यथा गंगा जल पृथ्वी को फोड़कर रसातल में चले जायेगा. दूसरा कारण यह था की यदि लोग केवल अपना पाप ही गंगाजी में धोयेंगे तो फिर स्वयं गंगाजी कैसे पवित्र होंगी ? प्रथम समस्या के हल के लिए राजा भागीरथ ने भगवान शिव को प्रसन्न किया जिससे समस्त संसार के कल्याण करनेवाले श्री शिवजी ने उस वेग को अपनी जटा में धारण किया. दूसरी समस्या के समाधान के रूप में भगवान के भक्त प्रभु की आज्ञा से गंगाजी का सेवन करेंगे उन भक्तो के ह्रदय में सदा बिराजमान प्रभु समस्त पापो को नष्ट कर पुनः गंगाकी को पवित्र कर देंगे.यही है भगवान के भक्तो का माहात्म्य !! (भागवत स्कंध ५ एवं ९). तभी से मर्यादा भक्ति प्रदान करने वाले श्री गंगाजी हुए है. पुष्टिमार्ग में तो श्री महाप्रभुजी यमुनाष्टक ग्रन्थ में आज्ञा करते है की जब गंगाजी भूमि पर पधारे और उनका संगम श्री यमुनाजी के साथ हुआ तभी यह गंगाजी भगवान श्री कृष्ण को अत्यंत प्रिय हुई एवं गंगाजी सकल सिद्धि को देने वाले हुए (यमुनाष्टक ५). पुष्टि भक्त तो भगवान श्री कृष्ण के भक्त होने के कारण श्री कृष्ण की कृपा के मूर्तिमान स्वरुप श्री यमुनाजी के संगम के कारण ही श्री गंगाजी की स्तुति किया करते है.*
*गंगा दशमी के उत्सव की मंगल बधाई*