Mere Ajnabi Humsafar - 2 in Hindi Anything by DINESH KUMAR KEER books and stories PDF | मेरे अजनबी हमसफ़र - भाग 2

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मेरे अजनबी हमसफ़र - भाग 2

मेरे अजनबी हमसफ़र (भाग-2)

जिंदगी की राह में सिलसिले कुछ अजीब रहे ,अनजान रास्ते ,अनजाने से मोड़, अजनबी हमसफ़र, अजनबी सी दौड़, अनकहे रिश्ते, अनकही सी होड़, सफर तो फर्ज़ के दरवाजे पे जाके सुलझा है ,अजनबी हमसफ़र का हर अल्फ उलझा है ,

उसने अपना पता लिखा वह पता मेरे शहर से तीन सौ किलोमीटर के फासले पर था । मैं रात भर सोचता रहा कि सुबह तो उनके पास जाना ही है चाहे तूफान क्यों ना आ जाये ,मन मे अजनबी सफर से मिलने की लालसा रात भर जगी रही कि रात के दो बज गए, सोचते सोचते नींद भी नही आ रहा था , मैंने रात को सुबह की ट्रेन की सीट बुक करवा ली थी ,सुबह सात बजे की ट्रेन से अजनबी हमसफ़र से मिलने के लिये घर से निकल पड़ा , शाम को उनके शहर में पहुंचा अँधेरा सा हो गया था ,मेने इर्द गिर्द कई लोगो से पते पर पहुँचने की कोशिश की लेकिन लोग अनदेखा कर रहे थे , मैं इतना थक चुका था कि फिर पास में मुझे एक चाय की टपरी दिखाई दी वहां चला गया, वहां इतनी भीड़ की लोग चाय का आनंद उठा रहे थे , वहां मैंने चाय के लिए बोला तो उन्होंने एक चाय दी और मुझसे बोले आप हमे परेशान से लग रहे हो , क्या बात है मैंने उनसे जगह के बारे में पूछा ,पॉकेट से खत बाहर निकाला खत देखते समय उस लड़की के आंखों में आंसुओ की लहर दौड़ परी और मुझसे भी रहा नही गया मैं भी रोने लगा उसने अपनी दुःख भरी आवाज से बोली कि आप ही हो जो ट्रैन में पाँच सौ रुपये एक बच्चे से भिजवाए थे । मैने कहां हां , फिर ज़ोर से गले मिलकर रोने लगी कि मैं आपकी वजह से मेरी माँ का अंतिम बार मुँह देख पायी थी , मैं आपका ऐहसान कभी नही भूलूँगी, वो मुझे अपना दुःख सुनाने लगी ,अंदर से दिल इतना रो रहा था कि मध्यम परिवार के साथ कितने अत्याचार होते है ,लड़की बोली मेरा सब कुछ चला गया मैं अकेली ही हूँ,कोई अपना नही है ,परिवार में एक माँ थी वो भी मुझे छोड़ कर चली गयी ।

फिर मैंने आपके द्वारा जो पाँच सौ रुपये दिए थे उनमे से मैने सौ रुपये बचाए, उन सौ रुपयों से मैंने एक चाय की टपरी लगा ली , बस यही सहारा है कुछ करने का । रात होने लगी मैंने उनसे पूछा यहां कोई होटल है क्या खाने का उसने बोला नही घर पर खाना खायेंगे , मैंने कहा नही अभी रात हो गयी चलो हम होटल पर खाना खाने चलते हैं। फिर हम दोनों ने खाना खाया फिर मैं मन मे सोच रहा था कि यही होटल में रहने की जगह होगी यही रात गुज़ार लूंगा , होटल में लोग बाते करने लगे यह लड़की तो वही है जो सुबह को चाय की टपरी लगाती है।

लोग भला बुरा कहने लगे ,मैंने उनको बोला कि चलो मैं आपको घर तक छोड़ के आ जाता हूँ ,उसने बोला आप कहा रहोगे मैंने बोला कि मैं यही होटल में ठहर जाऊंगा , उसने अपनी दुःख भरी आवाज से बोला आप भी मुझसे दूर जा रहे हो क्या , मैंने मुस्कुरा कर कहा नहीं । हम सुबह वहां से दोनों अपने शहर के लिए चल पड़े ,घर पर पहुँच कर बड़े भैया और भाभी को इनकी सारी कहानी सुनाई तो वो भी अपने आँसू नहीं रोक सके ,फिर हम दोनों की भैया ने रीति-रिवाज से शादी अगले महीने में तय करवा दी,

उसने हाथ मेरा कुछ इस लहजे में थामा था जैसे अजनबी नही हमसफ़र हो मेरा
कितना खुबसूरत दिन अचानक जिंदगी में आता है ,
जब कोई अजनबी, रूह ए हमसफ़र बन जाता है।

फिर हमारी आँखे हर रोज ट्रैन के डिब्बे को देखती रही ,की जिस बच्चे द्वारा खत भेजा गया था वो बच्चा मिल जाये ,आखिरकार हमारी मेहनत सफल हुई ,बच्चा मिल गया शादी में हमारे साथ रहा फिर हम दोनों ने एक फैसला किया कि आज के बाद यह बच्चा घूम-घूमकर चाय नही बेचेगा ,खुद इनकी एक चाय की दुकान होगी खुद लोग चलकर इनके पास चाय पीने आएँगे।
आप हर किसी की सहायता नहीं कर सकते हैं लेकिन जो आपके सामने हैं आप उसकी सहायता जरूर कर सकते हैं, आप अजनबी बनकर किसी की सहायता करने
के लिए दौलत की आवश्यकता नही होती ,उंसके लिए साफ मन की जरूरत होती है ।।....