काज़ी वाजिद की कहानी-मार्मिक
सुबह-सुबह जब सूरज की किरणें ओस की बूंदों को चूमती तो धरती जीवंत हो उठती। वायुमंडल हर्षोल्लास और आशा के स्वरों में भर जाता,औरतें घरेलू कार्य में लग जाती, मर्द काम पर निकल पड़ते और बच्चे स्कूल चले जाते। इस सब से बेख़बर मदरसे में मदरसेवासी अपनी सिमटी हुई दुनिया मैं व्यस्त रहते, नमाज़ पढ़ते और क़ुरान याद करते। उनके उस्ताद मौलवी मोहसिन उर्दू में 'नातें' यानी पैगंबर हज़रत मुहम्मद की तारीफ वाली शायरी रचते, सितार बजाते और संगीत की धुनें बनाते। उस चमत्कारिक मौलवी के पास रूहानी ताक़त थी। वह सितार बेहद कलात्मक रूप से बजाते थे। यहां तक कि मदरसे से सबसे बूढ़े मदरसेवासी, कोठरी से बाहर आकर सितार के स्वर सुनकर अपने आंसू न रोक पाते। जब मौलवी किसी विषय पर बोलते, चाहे वह साधारण ही क्यों न होता, मसलन पेड़, जंगली जानवर या समुद्र आदि, सब के सब मदरसेवासी उनका भाषण सुनते हुए मुस्कुराते और भावुक होकर आंसू बहाते। मौलवी जज़्बाती मुद्दे पर बोलना शुरू करते, तो उनकी रूहानी ताक़त जाग जाती, उनकी चमकती आंखों में आंसू झलक आतेे, उनका चेहरा लाल हो जाता, उनकी असरदार आवाज़ गरजने लगती और जैसे-जैसे मदरसेवासी उन्हें सुनते उन्हें लगता कि उनकी रूह हिप्नोटाइज हो गई है और उन पर मौलवी का इतना गहरा प्रभाव होता कि अगर वह समुद्र में छलांग लगाने का आदेश देते तो वह तैयार हो जाते। उनका संगीत, उनकी वाणी उनका काव्य जिसमें वह ख़ुदा की बड़ाई, स्वर्ग और धरती का गुणगान करते मदरसे वासियों के आनंद का निरंतर स्रोत होता। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि मदरसे वासी अपने जीवन की नीरस्ता में पेड़, फूल, बसंत, पतझड़ से ऊब जाते, उनके कान रेगिस्तान की लू के शोर से पक जाते और पक्षियों की चहचहाहट सुनना उनके लिए असह्य हो जाता तो ऐसे अवसर पर उनके उस्ताद की वाणी और प्रतिभा उनके लिए अमृत का काम करती।
कई वर्ष बीत गए। हर दिन दूसरे दिनों की तरह होता और हर रात दूसरी रातों की तरह। चिडि़यों और जानवरों को छोड़कर मदरसे के पास कोई नहीं फटकता। एक दिन जब किसी औरत ने मदरसे के फाटक पर दस्तक दी तो सभी मदरसेवासी हैरान हो गए। वह बस्ती से रेगिस्तान होकर कैसे आई? इस प्रश्न के उत्तर में उसने अपना नाम हसीना बताया और चोर का पीछा करने की लंबी कहानी सुनाई; उसके मालिक ने उसे कुछ रुपए देकर सामान खरीदने भेजा था। एक चोर उसके रुपए छीनकर रेगिस्तान में घुस गया। उसका पीछा करते-करते वह रेगिस्तान में चली गई और रास्ता भटक गई।
मौलवी मोहसिन हसीना की मेहमान नवाजी करते-करते उसके हुस्न की गिरफ्त में आ गए। उसके चले जाने के बाद, उन्हें न भूख लगती न प्यास, न नींद आती, न चैन पड़ता। उनके संगीत में न लय बची न ताल: तकरीर में गर्मजोशी नहीं रही, इबादत में दिलचस्पी नही रही। उनका दिल हसीना से विवाह करने के लिए मचलता रहता। ... फिर एक दिन मौलवी ने अपने शिष्यों को इकट्ठा किया। उन्होंने शिष्यों को अलविदा कहा। हसीना को ढूंढने बस्ती की ओर चल पड़े और उस तक पहुंच गए।
उन्होने हसीना से कहा, 'मैं तुमसे मोहब्बत करने लगा हूं और तुम्हें अपने निकाह में लेना चाहता हूं। हसीना ने उन्हें देखते हुए अपना सिर हिक़ारत भरे अंदाज में हिलाया और कहा, 'आप कुछ नहीं करते हैं। आप किसी काम के नहीं हैं सिवाय खाने पीनेे के। ज़रा सोचो क्या तुम यहां शांति से बैठते हो, खाना खाते हो, पीते हो, ख़ुशी के सपना देखते हो तो तुम्हारे पड़ोसी मरकर जहन्नुम में जाते हैं। तुम्हें देखना चाहिए कि शहर में क्या हो रहा है। कुछ लोग भूख से मर रहे हैं और कुछ लोगों को यह नहीं पता है कि वह अपने पैसे का क्या करे, बस वह फिज़ूल ख़र्च में लिप्त हैं और शहद में चिपकी मक्खियों की तरह मर जाते हैं। उनको नसीहत देने का काम किसका है? यह काम मेरा तो नहीं है जो सुबह से शाम तक काम करके अपना और बूढ़े मां-बाप का पेट भर्ती है। क्या मदरसे में आपको काम इसलिए दिया गया है कि आप चाहर दीवारी के बीच बिना कुछ किए बैठे रहें।'
हसीना के शब्द कटु और असंगत थे, पर उन्होंने मौलवी पर अभूतपूर्व प्रभाव डाला। उन्हें लगा कि वो सच बोल रही है।
'मदरसेवासी उनकी तक़रीरों और नातों से वंचित रहे। एक महीना नीरसता में बीता, फिर दूसरा, लेकिन मौलवी वापस नहीं आए। आखिरकार तीन महीने बीतने पर उनके शिष्यों को उनके क़दमों की आहट सुनाई दी। मदरसेवासी मौलवी से मिलने भागे आए और उन पर प्रश्नों की बौछार कर दी। मदरसे वासियों को देखकर मौलवी फूट-फूट कर रोने लगे और उनके मुख से एक भी शब्द न निकला। मदरसे वासियों ने देखा कि मौलवी बेहद बूढ़े और कमजोर हो गए हैं। उनका चेहरा थका- थका है और चेहरे पर गहरे दु:ख के भाव स्पष्ट हैं। मदरसेवासी ने हमदर्दी के साथ उनसे पूछा, कि वह क्यों रो रहे हैं? वह इतने उदास क्यों हैं? लेकिन बिना एक शब्द बोले मौलवी ने अपने आप को एक कोठरी में बंद कर लिया। सात दिन तक बिना खाए-पीए रोते और बिना सितार बजाय अपनी कोठरी में बंद बैठे रहे। उनके दरवाज़े पर दस्तक देने उनके बाहर आकर अपने दुख को मदरसे वासियों से साझा करने की गुज़ारिश का उत्तर उन्होंने ख़ामोशी से दिया।
आखिरकार वह बाहर आए। सारे मदरसे वासियों को उन्होंने अपने पास इकट्ठा किया। आंसू भरे चेहरे, रोष से भरे भाव में उन्होंने बताना शुरू किया जो कुछ भी उनके साथ पिछले तीन महीनों में उनकी नज़रों के सामने हुआ था। ...उन्होंने निसंकोच कहा, 'वह हसीना से प्यार करने लगे थे और निकाह के इरादे से शहर गए थे। मदरसे से शहर तक के सफर के बारे में उन्होंने बताया कि पक्षियों ने उन्हें गाना सुनाया। छोटी नदियां कल- कल बह रही थी। हसीना को निकाह में लेने का ख़ुमार उनकी रूह को ख़ुश कर रहा था। युद्ध के मैदान में विजय के आत्मविश्वास से पूर्ण एक सैनिक की तरह वह चलते जा रहे थे। वह चलते गए अपनी धुन में नात रचते। उन्हें पता भी नहीं चला कि कब वह मंजिल पर पहुंच गए।
हसीना रेगिस्तान की तपती धूप में अपने मालिक के पौधो को बचाने के लिए, कहीं दूर से पानी लेकर आती और जब पौधों पर छिड़कती थी तो लगता, पौधे जान बचाने के लिए मुस्कुराकर शुक्रिया कह रहे हैं।
अचानक उनकी आवाज़ कांपने लगी उनकी आंखें डूब गई, जब उन्होंने अपने शिष्यों को वह सब बताना शुरू किया जो हसीना ने उनसे कहा था। ...मेरी तालीम बाहर काम न आई। हर जगह एक ही बात सुनने को मिली, अंग्रेजी और तकनीक का ज़माना है ...। मौलवी ने मदरसे वासियों से नजरें मिलाई फिर बेहिचक बोले, 'मेरे प्यारे भाइयों उस समय मुझे लगा कि वह औरत सच बोल रही थी। अगर मैंने दीनी तालीम के साथ तकनीकी पढ़ाई भी की होती और किसी अच्छे ओहदे पर होता तो हसीना मुझे अपना शौहर बनाने में गर्व महसूस करती।' फिर कहा, 'मैं पढ़ाई के लिए शहर जा रहा हूं।
उन्होंने हसीना के सामने अपनी तजवीज़ रखी पर उसने साफ-साफ कहा मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती। मौलवी ने उदास होकर पूछा, 'क्यों।'
हसीना ने सीधा सा जवाब दिया, 'तुम्हारी दुनिया फूलो की सेज है, पर सिमटी हुई है। मेरी दुनिया कांटों भरी है पर बंदिशों से आज़ाद है।
कई वर्ष बाद मदरसे वासियों को पता चला मदरसे में अंग्रेज़ी और तकनीकी तालीम के लिए एक अमीर दस हज़ार रुपये का अनुदान देने के लिए आ रहे हैं। मदरसेवासी उनके स्वागत की तैयारी में जुट गए।
उनके आश्चर्य की सीमा नहीं रही जब मौलवी मोहसिन आए और दस हज़ार रूपए बड़े मौलवी को दिए। उन्होंने अपने भाषण में कहा, 'जब मैं मदरसे से गया था मेरे पास न खाने को था, न रहने का ठिकाना था। मैं इस मुश्किल समय में जो भी काम मिलता, बेझिझक करता। जो आमदनी होती उससे गुज़ारा करता और पढ़ाई पर ख़र्च करता। पढ़ने के बाद मुझे नौकरी मिल गई। आज मेरे पास वह सब कुछ है जो एक खुशहाल जीवन जीने के लिए चाहिए पर हसीना से शादी न होने की कसक सताती रहती है।
उनके विदाई भाषण में बड़े मौलवी ने कहा, 'मैं मौलवी मोहसिन का शुक्रगुजार हूं, जिन्होंने मदरसे में आईटीआई खोलने के लिए दस हज़ार रुपये दिए। अब हमारे बच्चे भी पढ़ लिख कर नौकरियों में लगेंगे। वे सिमटी हुई दुनिया से निकलकर खुली हवा में सांस लेना सीखेंगे।
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