Sharma ji in Hindi Motivational Stories by Yogesh Kanava books and stories PDF | शर्माजी

Featured Books
Categories
Share

शर्माजी

शर्माजी

शर्माजी रोजना की दिनचर्या के अनुसार ही आज भी सुबह-सुबह घूमने निकले।वापस आते समय अचानक ही जाने उन्हें क्या सूझा; सामने वाले घर की तरफ रूख किया और घर के आंगन में खुले नल को उन्होंने बन्द कर दिया। नल से पानी बड़ी देर से बह रहा था और जब वापस आये तब भी बह रहा था। पानी बह-बह कर सड़क की देहरी भी पार कर चुका था। उस बहते पानी की तरह ही शर्माजी की सोच की सीमाएं भी देहरी बांधकर खयालों में विचरण करने लगी। तभी अन्दर से घर की बड़ी बहु आयी और बड़बड़ाती सी बोली - नल तो जरूर आपने ही बन्द किया होगा। शर्माजी ने हाँ में अपनी गर्दन हिलाई। तभी बड़ी बहु चिल्लाई - आपने हमारे घर के भीतर आकर नल बन्द क्यों किया ? इतनी बड़ी उम्र है आपकी, फिर भी ये नहीं कि घर की घण्टी बजा दे या फिर दरवाजा ही खटखटा दे। शर्माजी बोले - बेटा वो पानी बह रहा था ना...इसलिए सोचा शायद गल्ती से खुला छूट गया होगा। मैंने बन्द कर दिया। वैसे भी पानी बिल्कुल सीमित है। हमें सोच समझकर उपयोग में लेना चाहिए। शर्माजी की इस बात पर वो उखड़ ही गयी और चिल्लाने लगी - तुम कौन हो, यहाँ ज्ञान देने वाले। इस पानी का बिल तुम्हारी जेब से थोड़े ही जा रहा है। इसका बिल भरते है हम, बिल, समझे तुम। और हाँ, एक बात और......आईन्दा इस तरह से घर में बिना घण्टी बजाए या बिना दरवाजा खटखटाए आने की कोशिश भी मत करना। बड़े आये पानी बचाने वाले, अरे....हमारा नल, हमारा घर, हमारा पानी, हम जैसे चाहे काम में लें, तुम्हे क्या मतलब है।
शर्माजी अपमानित होकर चुपचाप वहाँ से निकल गए। सोचने लगे क्या होगा देश का। लोगों को यह समझ हीं नहीं है कि आखिर हम क्या कर रहे है। जल सीमित है, इसे तो राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित कर दिया जाना चाहिए। इन लोगों के खिलाफ तो पब्लिक प्रोपर्टी एक्ट के तहत कानूनी कार्यवाही करनी चाहिए। बस इसी तरह से कुछ बड़बड़ाते से कुछ सोचते से वे अपने घर पहुंच गए। मन बड़ा ही उचटा हुआ था, पर कुछ भी सूझ नहीं रहा था कि आखिर क्या करें, किससे कहें, अपने मन की बात। घर में भी तो उनकी कोई सुनने वाला नहीं था। घर के भी सभी लोग उनकी इन्हीं बातों से परेशान थे।
एक दिन शर्माजी अपने स्कूटर पर पीछे बेटी को बिठाकर ले जा रहे थे। न जाने अचानक ही उन्होंने ब्रेक लगाए और स्कूटर रोककर बेटी को उतरने के लिए कहा। बेटी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि आखिर पापा ने क्यों रोका था, बीच रास्ते मे। एक तो टूटा-फूटा-सा ये स्कूटर जिस पर बैठते हुए सीमा - हाँ, हाँ शर्माजी की बेटी, बस उसे तो शर्म आती थी। वो हमेशा कहती - पापा बढ़िया सी एक कार ले आओ - और कुछ भी नही ंतो सस्ती वाली ही ले आओ। इस खटारा पर बैठते हुए मुझे ंतो बड़ी शर्म आती है। सारे फ्रेण्ड्स - कॉलेज में चमचमाती गाड़ियों में या बाईक्स पर आते है, एक हम है कि इस खटारा पर - पापा की अंगुली धामे कॉलेज आते है। खैर, शर्माजी के लिए अब ये सब बाते नई नहीं थी, हनुमान चालीसा की तरह रोजाना ही सुनने को मिलती थी। उन्होंने स्कूटर को एक साईड में खड़ा किया और बीच सड़क पर पड़े एक पत्थर को उठा साइड में कर दिया। स्कूटर स्टाटर्ट कर सीमा को बैठने को कहा। सीमा लगभग चिल्ला पड़ी। पापा - ये क्या है। अब तो बस हद हो गयी, गली-मोहल्ले में तो आप नालियों की, सड़कों की सफाई करते ही थे, अब तो आप शहर में भी चलते से रूककर पत्थर ही उठा-उठाकर डालने लग गए। मैं आपके साथ नहीं जा सकती। बस वो बड़बड़ाती एक ऑटो रोकर उसमें बैठ कर चली गई। शर्माजी देखते रहे और सोचने लगे आखिर मैंने क्या गुनाह किया है। बीच सड़क में इतना बड़ा पत्थर पड़ा था, किसी को नहीं दिखा या फिर अचानक साइड नहीं ले पाया तो कितना बड़ा हादसा हो जाता। किसी की जान भी जा सकती थी ना, फिर ये लोग मुझे क्यों इस तरह खरी-खोटी सुनाते है। क्या भलाई करना गुनाह है। मैंने किसी भी तरह से कोई अपराध नहीं किया है, कोई चोरी नहीं की है, बस बीच सड़क में पड़े उस पत्थर को उठाकर साइड में ही तो डाला है कि कोई एक्सीडेन्ट ना हो जाए। और इस लड़की को देखो किस तरह से चली गयी है।
उदास मन से शाम को शर्माजी घर में आये। घर में पत्नी, बेटा, बेटी सभी तो उनकी इन आदतों से परेशान थे। मोहल्ले में नाली ब्लाक हो गयी तो शर्माजी खुद ही जाकर उसे साफ कर आते है, गाय बीच सड़क में गोबर कर गई तो बस शर्माजी ही साफ करते थे। पूरे शहर में शर्माजी को पागल, सनकी माना जाता था। बच्चे उनसे झगड़ते थे कि उनको लोगों के ताने सुनने को मिलते है। लोग भी तो कम नहीं होते, गन्दगी जान-बूझकर फैलाते, हँसी-ठिठोली में कहते, क्या फर्क पड़ता है यार अपने मुनिसिपल-शर्माजी है ना - सफाई के लिए अभी आएगें और कचरा उठा ले जाएगें, फैंक दे यार, क्या फर्क पड़ता है। कोई भी शर्माजी को पसन्द नहीं करता था।
रवि, शर्माजी को जब भी इस तरह कचरा, पत्थर, गोबर, सड़क, मौहल्ले से उठाते देखता तो भीतर ही भीतर उनकी इज्जत करने लग गया। पहले तो वा भी सभी की तरह उन्हें पागल समझता था, लेकिन धीरे-धीरे न जाने क्यों उसे शर्मा अंकल अच्छे लगने लगे। और वो इज्जत करने लगा, पर कभी भी उनके साथ वो सब करने का साहस नहीं जुटा पाया था। संकोच की एक दीवार आज भी उसे यह सब करने की अनुमति नहीं देती थी। वो मन ही मन उनकी तारीफ करता था और सोचता था ‘‘चलो एक व्यक्ति तो है जो सच्चे मायने में मानवता की भावना पर चलता है।’’
आज रवि ने ठान लिया था कि मैं अपने संकोच की इस दीवार को गिरा दुंगा। वो इन्तजार करने लगा - शर्मा अंकल के आने का लेकिन आज शर्माजी नहीं आए। उसका मन दुःखी हो गया, क्यों नहीं आए आज शर्मा अंकल, कहीं बीमार तो नहीं हो गए.......नहीं-नहीं ऐसा नही हो सकता, इतने भले आदमी को भगवान कैसे सता सकता है। इसी उधेडबुन में वो कब अपने कॉलेज पहुंच गया उसे खुद नहीं मालुम, क्लास में भी आज उसका मन नहीं लग रहा था। उसके जहन में तो बस एक ही बात कौंध रही थी आखिर शर्मा अंकल क्यों नहीं आये। वो बार-बार अपना सर झटक कर इन खयालों को निकालने की कोशिश करता लेकिन हर बार - असफल ही रहता। कुछ मानसिक थकान लगने लगी थी, वो कॉलेज केन्टिन में चाय पीने के लिए चला गया। वहाँ सीमा अपनी सहेली को अपने पापा की बात बता इस समस्या का समाधान जानना चाहती थी। रवि चुपचाप सुनता रहा और सोचने लगा शायद ये शर्मा अंकल की ही बेटी है। उससे रहा न गया और पूछ लिया - एक्सक्यूज मी...आप शर्मा अंकल की बेटी है। सीमा ने उसे घूर कर देखा तथा कहा आपसे मतलब। रवि ने कहा जी बस युं ही जानना चाह रहा था। सीमा चिल्ला पड़ी - हाँ-हाँ मैं उन्हीं शर्माजी की बेटी हूँ जो सड़क से गोबर साफ करते है, पत्थर उठाते है, गली मौहल्ले में पड़े कचरे को साफ करते है। जीना मुश्किल कर दिया है उन्होंने मेरा, जी करता है आत्महत्या कर लूँ। रवि सहम गया, ‘‘जी मेरा मतलब वो नहीं था, मैंने आज शर्मा अंकल को नहीं देखा और आप इनसे बातें कर रही थी तो मैंने अनुमान लगाया कि शायद आप उनकी बेटी होंगी तो उनके हालचाल जान लूँ’’। वो फिर चिल्लाई, हाल जानने है तो घर जाकर मिलो, पड़े है बिस्तर में, कितनी बार मना किया है लेकिन नहीं मानते है, कल सड़क पर एक भारी पत्थर से कुश्ती कर रहे थे, कमर में झटका आ गया। डॉक्टर ने 15 दिन का आराम बताया है। बस जान लिया, या और कुछ जानना है। रवि को यह जानकर काफी दुःख हुआ , वो सीमा से बस केवल सॉरी कह पाया और मन ह मन आज ठान लिए कि अब सही राह जो शर्मा अंकल दिखा रहे हैं वो ही करने से उसका मन सुकून पा सकेगा ! अगले ही दिन रवि बिना कुछ कहे वो ही काम करने लगा जो शर्माजी करते थे। सड़क पर फैंका कचरा, गोबर, पत्थर उसने साफ कर दिया। आज रवि को एक अनोखे से संतोष की अनुभूति हो रही थी।