चित्रलेखा
देवरानी व जेठानी का तकरार व दोस्ती की कहानी
हाल ही में चित्रलेखा व जेठानी में तकरार हुई, उन दोनों में मामूली सी बात पर हुई बहस देखते ही देखते लड़ाई में बदल गई, यानि राई से पहाड़ का रूप ले लिया गया । इतनी ज़्यादा कि उन्होंने कभी भी एक - दूसरे की शक्ल नहीं देखने की कसम भी खा ली, और दोनों ही अपने - अपने कमरे में चली गई ।
कुछ ही समय के बाद जेठानी के कमरें का दरवाजा खटखटाना शुरू हुआ...
जेठानी ने आवाज लगाते हुए कहाँ - " कौन है ? " जरा- सी तेज़ आवाज़ में वो बोलीं ।
चित्रलेखा ने कहां - " दीदी, मैं चित्रलेखा... जरा सा दरवाजा तो खोलो"
जेठानी जी - "अब क्या है ? यहाँ क्यों आई हो... फिर से लड़ने के लिये कुछ बाकी रह गया है क्या या अभी मन नहीं भरा ?" कहने के साथ ही उन्होंने दरवाज़ा खोला तो सामने प्लेट में दो कप चाय लिये हुए देवरानी (चित्रलेखा) खड़ी थी । चाय देखते ही वो फिर से भुनभुनाईं...
जेठानी जी बोली - "ये मेहरबानी क्यों...? अभी तो बड़ी - बड़ी कसमें खाकर गई थी ?"
चित्रलेखा बोली - "हाँ दीदी, सोचकर तो यही गई थी मैं, कि अब आपसे कभी बात नही करूँगी, लेकिन जब चुप - चाप बैठी तो, माँ की कहीं हुई बातें याद आ गई कि "जब किसी से लड़ाई हो तो कभी भी उसकी बुराइयाँ नही, बल्कि उसकी अच्छाइयाँ याद कर लेना चाहिए, जो उसने तुम्हारे साथ की गयी हों...
देखना इससे लड़ाई खत्म करने में मदद मिलती है" फिर वो मुस्कुराई... "बस मैं आपकी अच्छाइयाँ याद करने लगी, और आपके पास आ गई... " कहते हुए वह नम आँखों के साथ उनके गले से लग गई ।
अब दोनों हँसते हुए, बात - चित करते हुए एक साथ बैठी बड़े ही ठाठ बाट से चाय पी रही थीं ।