भाग -17
लियो के लिए यह पहला अनुभव था कि मैं रो रही थी। मैं भी रोती हूँ यह उसके लिए आश्चर्यजनक था। उसे इतना घबराया हुआ मैंने पहले कभी नहीं देखा था। मैं बहुत देर बाद स्वयं को सँभाल पाई।
लियो को चुप कराने लगी, लेकिन वह चुप होने का नाम नहीं ले रहा था। किसी छोटे बच्चे की तरह लगातार रोता ही जा रहा था। बड़ी मुश्किल से कुछ सोचकर उसे लेकर बेड से नीचे उतरी। और बड़े प्यार से उसे किचन में ले गई।
रेफ्रिज़रेटर से निकाल कर उसे एक चॉकलेट दी। पानी पिलाया। फिर उसका हाथ पकड़ कर पूरे घर में ऐसे टहलने लगी, जैसे कि किसी पार्क में टहल रही हूँ। लियो अभी भी मुझसे जानना चाह रहा था कि मैं क्यों रो रही थी।
मैं उसे उसके प्रश्न के जवाब के सहारे यह समझाने की सोच रही थी कि हम-दोनों जो कर रहे हैं, वह अच्छा नहीं है। गॉड नाराज़ होंगे।
लेकिन साथ ही यह बात भी दिमाग़ में आई कि यह इस बात को लेकर इतना अधिक संवेदनशील है कि कहीं बात को ठीक से समझ न पाया, या उलटा समझ-सोच लिया, तो यह बात फ़हमीना से सम्बन्ध की बात की तरह, किसी ग्रंथि के रूप में इसके दिमाग़ में बैठ सकती है। भविष्य में इसके लिए कोई नई समस्या न बन सकती। यह सोचते ही मैं फिर ठहर जाती। सोचती इसे कैसे क्या समझाऊं।
वह एक सेकेण्ड को भी मानने को तैयार नहीं हो रहा था। अपने लिए उसके मन में इतने प्यार को देखकर मैं अभिभूत थी। मैंने सोचा अब इसे कुछ भी समझाने से पहले, उस बात की हर एंगल से, सारे प्रभावों को पहले ख़ुद समझना बहुत ज़रूरी है।
इस बेचारे को क्या मालूम कि जिसे यह केवल एक खेल समझ रहा है, वह सिर्फ़ एक खेल नहीं, दो आत्माओं के बीच का भावनात्मक तंतुओं से जुड़ा अति संवेदनशील रिश्ता होता है।
इस रिश्ते की भी, दुनिया की बाक़ी बातों की तरह एक मर्यादा है। उस मर्यादा के पालन से ही जीवन में ख़ुशियाँ मिलती हैं। उनको तोड़ने से अंततः परेशानियाँ ही मिलती हैं। जैसे इस समय हम-दोनों परेशान हैं।
मगर हम-दोनों की परेशानी अलग-अलग है। मैं परेशान हूँ कि मर्यादा छिन्न-भिन्न हो रही है। तुम परेशान हो कि मैं रोई क्यों? तुम अपना पसंदीदा खेल जब चाहे, तब मेरे साथ क्यों नहीं खेल पा रहे हो, जीवन में मर्यादा जैसा भी कुछ है, तुम यह जानते ही नहीं।
मैं मर्यादा पर ही टिकी टहल रही थी कि लियो अचानक ही रुक गया। उसने मुझे मज़बूती से पकड़ा हुआ था, इसलिए मुझे झटका लगा, और मैं झटके से पीछे की तरफ़ मुड़ गई। लियो रुका हुआ मुझे खींच रहा था अपनी तरफ़।
मैं उसके क़रीब पहुँची ही थी यह सोचती हुई कि फिर वही मैया, मैं तो चंद्र-खिलौना लैहों . . . वही डिमांड . . . मैंने महसूस किया कि लियो की बाजुओं में हृष्ट-पुष्ट युवकों सी शक्ति है। उससे पूछा, “क्या हुआ?” तो लियो ने मेरी आशंकाओं से एकदम उलट फिर वही पूछा, क्यों रोई?
मुझे अपनी सोच पर बड़ा पछतावा हुआ कि मैंने अपने प्यारे लियो के बारे में इतना ग़लत क्यों सोचा। मैं उसके चेहरे तक तो पहुँच नहीं सकती थी, इसलिए प्यार से उसके हाथों को चूमते हुए कहा, बाद में बताएँगे।
असल में जितने झटके से मैं पलटी थी, उतनी ही तेज़ लियो के क़रीब पहुँचते ही मेरे दिमाग़ में एक विचार कौंध गया था, लियो को व्यस्त रखने का ही नहीं, बल्कि उसे कुछ ख़ास बना देने का भी।
जिस ढंग से मैं पलटी थी, उससे मेरे मन में एकदम से ‘सालसा’ नृत्य घूम गया। लियो के चलते मेरा दिमाग़ कब, कहाँ पहुँच जाएगा, यह मुझे भी पता नहीं होता था। सेकेण्ड भर में मेरे दिमाग़ में पूरी योजना बन गई कि इसे एक डांसर बनाऊँगी। ‘सालसा’ नृत्य ऐसा है, जिसे इसको सिखाना ज़्यादा मुश्किल नहीं होगा।
यदि यह सुनता होता, तो किसी म्यूज़िकल इंस्ट्रूमेंट का आर्टिस्ट बना कर, ढेरों लोगों के बीच इसे सेलिब्रिटी बना देती। लेकिन डांसर भी तो कम नहीं है। इसे सोलो ‘सालसा’ डांसर बनाऊँगी।
सुएल्टा या रुएडा दे कैसिनो के रूप में। या फिर ख़ुद ही इसकी डांस पार्टनर बन जाऊँगी। इसके साथ-साथ सीखूँगी, सिखाऊँगी। दोनों यदि मन से मेहनत करते रहेंगे तो ज़रूर एक दिन अपना बड़ा स्थान बना लेंगे। छोड़ दूँगी हॉस्पिटल, अलविदा कह दूँगी नर्सिंग के प्रोफेशन को।
अपना एक डांस स्कूल खोल कर लियो को उसका मालिक बनाऊँगी। दोनों मिलकर स्टूडेंट्स को सिखाएँगे। फिर धूम-धाम से इसकी शादी करके, इसकी मिसेज़ को भी सिखाएँगे। आगे यह दोनों मिलकर अपना एक बहुत बड़ा संसार बनाएँगे। और इनके बड़े से संसार में इनके, इनके बच्चों संग मैं मज़े से जीवन बिताऊँगी।
इस लॉक-डाउन में मिले अथाह समय को यूँ ही व्यर्थ नहीं जाने दूँगी। यू-ट्यूब पर ढेरों वीडियो होंगे, उन्हें देख कर लियो के साथ प्रैक्टिस करूँगी। लॉक-डाउन के बाद किसी प्रोफ़ेशनल को यहीं बुला कर अपने डांस को और पॉलिश करूँगी।
ये क्यूबा, प्योर्टिकोरिको ने भी क्या डांस बनाया है। ‘सालसा।’ आया और पूरी दुनिया में छा गया। टीवी पर इसके कितने प्रोग्राम आ चुके हैं।
मेरी बचपन से यह आदत रही है कि मेरी किसी सोच को कुलाँचें भरने में देर नहीं लगती। जितनी जल्दी सोचती हूँ, उतनी ही जल्दी निर्णय लेती हूँ, उससे भी ज़्यादा तेज़ी से उस पर क़दम भी बढ़ा देती हूँ। मैंने तुरंत ही टीवी में देखे ‘सालसा’ डांस के एक-दो स्टेप लियो के साथ करने की कोशिश की। उसे पकड़ कर, उसकी ही जगह पर तीन सौ साठ डिग्री पर घूमीं। फिर एक हाथ उसकी कमर पर, एक कंधे पर रखकर, ऐसे ही उसके हाथों को अपने पर रखवा कर, कई बार क्लॉक, एंटी क्लाक वाइज़ उसे लेकर घूमीं।
कभी पैर खोलती, कभी वापस ले आती। लियो से भी वैसे ही करवाती। कई बार ऐसा करने पर उसे हँसी आने लगी। कमर में उसे मेरी उँगलियों के कारण गुदगुदी भी लग रही थी।
वह ख़ुश था, मैं भी ख़ुश थी, कि कोरोना वायरस की वैक्सीन पूरी दुनिया अभी भी नहीं ढूँढ़ पाई है, लेकिन लियो को व्यस्त रखने की, उसे और ख़ुद को भी कुछ ख़ास बनाने का रास्ता मैंने ढूँढ़ लिया है।
कुछ देर बाद लियो को लेकर मैं लेट गई। लेकिन नींद हम-दोनों को नहीं आ रही थी। इसलिए स्पर्श लिपि में वार्ता शुरू हो गई। मैंने उसे रिश्तों की मर्यादा समझाने का प्रयास शुरू कर दिया।
मेरा यह प्रयास लगातार कई दिन तक चलता रहा। लॉक-डाउन का चौथा चरण चालू हो गया तब भी। अनवरत। साथ-साथ मर्यादा और ‘सालसा’ की शिक्षा देने के लिए मुझे अनथक मेहनत करनी पड़ रही थी।
क्योंकि मेरा शिष्य कोई सामान्य शिष्य नहीं था, विशिष्ट था। और यह भी कि सिर्फ़ शिष्य ही नहीं था। और भी बहुत कुछ था। यूँ तो वह मेरा कुछ भी नहीं था। जो कुछ था, वह मेरा गढ़ा, या यह कहें कि परिस्थितयों द्वारा गढ़ा हुआ था।
ऐसा रिश्ता, जिसे दुनिया में अभी तक कोई नाम नहीं दिया गया है। वैसे मैं बहुत अच्छी तरह यह जानती, मानती हूँ कि दुनिया बहुत ही तेज़, बड़ी कुशाग्र बुद्धि है, वह सब-कुछ जानते ही सेकेण्ड भर में कोई नाम दे ही देगी।
लेकिन रिश्ते को कोई नाम मिले, इसके लिए मैं अपने, लियो के रिश्ते के बारे में एक शब्द क्या, एक अक्षर भी दुनिया को बताने वाली नहीं थी। क्योंकि मैं पलक झपकने भर को भी यह बर्दाश्त करने को तैयार नहीं कि दुनिया हम-दोनों के रिश्ते को लेकर कोई तमाशा खड़ा करे, हम पर ऊँगली उठाए।
मेरी कठिन मेहनत रंग लाने लगी थी। लियो ने धीरे-धीरे मर्यादा की रेखाओं का सम्मान करना शुरू कर दिया था। हालाँकि अलग सोने के लिए लाख समझाने के बाद भी वह तैयार नहीं हुआ था। उसका वश चलता तो वह कंगारू के बच्चे की तरह हमेशा मुझसे चिपका ही रहता।
सोते समय तो चिपका ही रहता था। मेरी छातियाँ, नाभि उसके लिए खिलौने बनी ही रहती थीं। वह अपनी ही तरह से उन्हीं से खेलते-खेलते सो जाता था। तब कहीं मैं अपनी नाइट ड्रेस ठीक कर सोती थी। कभी-कभी तो उससे पहले मैं ही सो जाती थी। जब देर रात नींद खुलती, तब ठीक करती थी। बड़ा होने से पहले जहाँ वह मेरी बाँहों में खो जाता था, वहीं अब उसकी विशाल बाँहों में मैं समा जाती थी।
हफ़्तों हम-दोनों ने, ‘सालसा’ के कई स्टेप किए, दिन-भर में कई-कई बार इतनी प्रैक्टिस की, कि उसे ठीक से करने लगे। मैं इस बात के लिए भी ख़ुश होती कि इसी बहाने हम-दोनों की एक्सरसाइज़ भी हो जाती है। हमारी फ़िगर भी ठीक बन जाएगी।
इतना ही नहीं, लियो को बराबर बिज़ी रखने के लिए मैं चाय की पैकिंग भी रोज़ करवाती रही। और रोज़ ही बाद में उन डिब्बों को ख़ुद ही ख़ाली कर देती। अर्थात् जैसे नेपोलियन बोनापार्ट ख़ाली समय में अपने सैनिकों को पानी में उतर कर पानी बटने के लिए कहता था, वैसे ही मैं भी लियो को बिज़ी रखने के लिए उससे पानी बटवा रही थी।
अब मैं बहुत ख़ुश थी। क्योंकि लियो को जिस दिन मैंने ट्रीटमेंट दिया, उसके बाद से दौरे पड़ने बंद हो गए थे। मैं जब रोज़ वृंदा को फ़ोन करती, तो अन्य सारी बातों के साथ डांस की बात ज़रूर करती। जिसे सुनकर वृंदा ख़ूब हँसती।
एक दिन उसने कहा, “अब हॉस्पिटल आने की भी तैयारी करो। अपने एरिया में पिछले पचीस दिनों से एक भी कोविड-१९ पेशेंट नहीं मिला है। दो-तीन दिन और नहीं मिला तो अपना एरिया ग्रीन ज़ोन में आ जाएगा। हॉस्पिटल खुल जाएगा।”
मैंने कहा, “मैं हॉस्पिटल खुलने ही की प्रतीक्षा कर रही हूँ वृंदा। हॉस्पिटल खुलने में जितना ज़्यादा टाइम लगेगा, नौकरी उतनी ही ज़्यादा ख़तरे में पड़ती जाएगी। और मेरी तो चिंता दोहरी है, नौकरी की और दूसरी लियो की। अब फ़हमीना है नहीं। इसे किसके सहारे छोड़ कर आऊँगी। माहौल ऐसा है कि किसी पर भरोसा ही नहीं रह गया।”
यह सुनते ही वृंदा ने कहा, “कैमरे तो तुमने घर-भर में लगवा रखे हैं। मोबाइल से उसे दिन-भर देखती रहना।”
“मोबाइल से कहाँ, शाम को घर पहुँच कर ही दिन-भर की फुटेज देख पाऊँगी।”
“अरे नहीं-नहीं, लाइव देख सकती हो।”
वृंदा ने मुझे सारी डिटेल्स बताई तो मैंने अपना माथा पीट लिया कि सब-कुछ लगवा कर, जानकारी न रखने के कारण इतनी बड़ी मूर्खता की। कैमरे लगाने वाले ने भी सारी बात नहीं बतायी। न ही मैंने ठीक से ध्यान दिया कि उससे सारी जानकारी लेती।
जानकारी होती तो इतनी बड़ी समस्या कभी न खड़ी होती। मैं दिन-भर पूरे घर पर नज़र रखती। यह फ़हमीना को भी बता देती। इससे वह कोई बदतमीज़ी करने से पहले सौ बार सोचती। उसके पेट में न लियो की संतान आती। और न वह मासूम जान दुनिया में आने से पहले ही मारी जाती।
मेरे मन पर एक मासूम की हत्या का जो एक बोझ, मुझे दिन-रात तोड़ता रहता है, अंतिम साँस तक इस अपराध बोध से मैं दुखी रहूँगी, यह कभी नहीं होता।
न लियो बीमार पड़ता, न ही मुझे उसके साथ वह सब-कुछ करना पड़ता, जो हर दृष्टि से ग़लत ही ग़लत है। अपनी नज़रों में स्वयं कभी इतना न गिरना पड़ता। कई बार जो ग़लत सोच लियो को लेकर मन में आ जाती थी, वह कभी न आती। फ़हमीना को क़दम बहकने से पहले ही बाहर कर देती।
वृंदा से भी यदि कभी बताऊँगी यह सब, तो इतनी भली, सीधी-सरल होने के बावजूद इसे सबसे गंदा काम ही कहेगी। सामने भले ही कोई सख़्त बात नहीं कहेगी, लेकिन उसके मन में यह बात भी आ सकती है कि लॉक-डाउन के भीषण अकेलेपन को मैं कहीं लियो के साथ इस तरह एन्जॉय तो नहीं कर रही थी।
मैं सोचती इन सबसे बड़ा सिर-दर्द तो मेरे लिए यह बना हुआ है कि इतनी बार सम्बन्ध बनाए हैं, कहीं फ़हमीना की तरह प्रेग्नेंसी रह गई तो . . . ओह गॉड . . . मैंने तो उसकी हेल्प करके सब ठीक कर दिया। लेकिन मेरी कौन करेगा।