Kshama Karna Vrunda - 8 in Hindi Fiction Stories by Pradeep Shrivastava books and stories PDF | क्षमा करना वृंदा - 8

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क्षमा करना वृंदा - 8

भाग -8

एक दिन नहाने के समय मैं उसे साफ़-सफ़ाई के बारे में कुछ बातें समझा रही थी। तभी लियो से जो कुछ हुआ, उसे देख कर मुझे हँसी तो आई ही, संकोच के भाव भी पैदा हुए थे। उसी समय मैंने यह भी सोचा कि जो कुछ हो रहा है, जो कुछ मुझसे, लियो से जाने-अनजाने हो जाता है, वह सब-कुछ वास्तव में नेचर के सिस्टम का ही एक हिस्सा है। नेचर ही की एक प्रक्रिया है, जो इस तरह पूरी हो रही है।

इसके बाद मैंने इस विषय में ज़्यादा सोचना, ध्यान देना बंद कर दिया। एक दिन मैं बाथ-रूम में थी, तभी लियो को व्यस्त रखने, उसे किसी उत्पादक काम को करने लायक़ बनाने की एक योजना दिमाग़ में आई।

मैंने कई बार महसूस किया कि बाथ-रूम में बीतने वाले कुछ समय में ही, मेरे दिमाग़ में बड़े ही अनोखे-अनोखे विचार आते हैं। बाथरूम में सोची योजना पर कई दिन चिंतन-मनन करने के बाद मैंने योजना में कई संशोधन किए। फिर उसी हिसाब से काम करना शुरू किया।

सबसे पहले लियो की सुरक्षा की दृष्टि से घर में कुछ काम करवाए। उसकी सुरक्षा पुख़्ता की। सीसीटीवी कैमरे लगवाए। घर का कोना-कोना कैमरे की रेंज में कर दिया। फिर एक बढ़िया स्मार्ट-फ़ोन लियो के लिए लेकर उसमें केवल अपना नंबर फीड किया। उसमें इमरजेंसी कॉल के लिए जितने नंबर थे, वह सब डिलीट कर दिए।

अब लियो मोबाइल से कैसे संवाद करेगा, इसका एक यूनीक तरीक़ा भी निकाला। मोबाइल को फुल वाइब्रेटर पर सेट किया। फिर कॉल आने पर जिस जगह टच करने पर कॉल रिसीव होती थी, उस जगह को छोड़ कर बाक़ी हिस्से को पतली फोम शीट, उसके ऊपर पॉलिथीन लगाकर सेलो टेप से ख़ूब अच्छी तरह सील कर दिया। जिससे लियो केवल कॉल रिसीव कर सके। कॉल रिजेक्ट करने वाली जगह उससे टच न हो।

इसके बाद मोबाइल एक ख़ास तरह के केस में रखा। जिसमें बेल्ट लगी थी। जिससे उसे लियो की कमर में बाँधा जा सकता था। ऑफ़िस या कहीं बाहर रहते हुए लियो से सम्पर्क बनाए रखने की, अपनी इस तकनीक को चेक करने के लिए उसे लियो की कमर में बाँधा। फिर कॉल की। वाइब्रेट होने पर लियो चौंका।

तब मैंने मोबाइल उसी के हाथ से निकलवाया। उसने अपनी ही भाषा में पूछा यह क्या है? तब मैंने उसे समझाया, बताया कि जब तुम अकेले रहोगे तो मैं फ़ोन करूँगी। तब तुम निकाल कर रिसीव करना। सब ठीक हो तो एक बार ताली बजा देना। अगर मुझे बुलाना चाहते हो तो दो बार। कुछ प्रॉब्लम होने पर तुरंत बुलाना चाहते हो तो तीन बार ताली बजाना।

मैंने उससे कई दिन, बार-बार प्रैक्टिस करवाकर, उसे बिल्कुल ट्रेंड कर दिया। लेकिन यह सब क्यों किया जा रहा है, लियो यह जानते ही ग़ुस्सा हो गया। अकेले रहने से मना कर दिया। मोबाइल निकाल कर फेंक दिया।

पहली बार वह इतना ज़्यादा ग़ुस्सा हुआ था। मैं समझ गई कि इसे अकेला छोड़ना आसान नहीं होगा। लेकिन मैं यह भी अच्छी तरह जान-समझ रही थी कि वह समय अब आ गया है कि इसे सेल्फ़ डिपेंडेट बनाने के लिए कठोर क़दम उठाने ही पड़ेंगे।

इसलिए मैं क़दम दर क़दम अपनी योजनानुसार आगे बढ़ती रही। मैंने एक ख़ास तरह की चाय बनाई। चाय में लौंग, इलायची, मुलेठी, दाल-चीनी, काली-मिर्च को एक निश्चित अनुपात में मिक्स किया। इसे सुबह-शाम स्पाइसी टी की तरह पीने के लिए।

मैंने अपने इस प्रॉडक्ट का नाम ‘लियो स्पाइसी टी’ रखा। सेल के लिए ऑन-लाइन माध्यम चुना। इसके लिए सारी क़ानूनी प्रक्रियाएँ पूरी कीं। बिल्कुल नपा-तुला सौ ग्राम का डिब्बा तैयार करवाया।

लियो इस काम में कैसे इन्वॉल्व होगा इसका रास्ता निकाला। उसका काम इतना था कि वह प्लास्टिक के डिब्बे में अंगुल भर छोड़ कर पूरा भरेगा। ढक्कन टाइट करेगा। फिर उसके नाम का प्लास्टिक कोटेड स्टिकर बड़ी सीट से निकालकर, ढक्कन पर थोड़ा सा नीचे की तरफ़ मोड़ते हुए अच्छे से चिपकाएगा। जिससे वह डिब्बा एयर-टाइट हो जाए। बहुत मुश्किल से यह सब भी उसे सिखाया।

चाय की मिक्सिंग, रॉ मटेरियल लाना, डिलीवरी मैन के आने पर माल देना यह सब मेरा काम था। मैंने अपना काम और बढ़ा लिया था। मेरे आराम के घंटे और कम हो गए थे। लेकिन मुझे इसमें भी संतोष का आनंद मिल रहा था।

मैं उसे अकेले रहने के लिए मेंटली तौर पर भी बराबर तैयार करती रही। जल्दी ही लियो तैयार भी हो गया। लेकिन ग़ज़ब की बात यह हुई कि लाख कोशिश करके भी मैं स्वयं को तैयार नहीं कर पाई।

हार कर मैंने एक ऐसी नौकरानी ढूँढ़नी शुरू की, जो सुबह से लेकर शाम को मेरे आने तक रहे, खाना-पीना, साफ़-सफ़ाई तो करे ही, लेकिन इन सब से पहले लियो का पूरा ध्यान रखे। हालाँकि अब वह अपना सारा काम कर लेता था।

नौकरानी ढूँढ़ते समय मैंने इस बात का ख़ास ध्यान रखा कि वह कम उम्र युवती न हो। बाल-बच्चे वाली हो। लेकिन ऐसी कोई नौकरानी दिन-भर के लिए नहीं मिल पा रही थी। बड़ी मुश्किल से एक साथी नर्स ने एक दिन पैंतीस-छत्तीस साल की एक महिला मेरे पास भेजी।

उसने बताया कि उसके शौहर ने उसे छोड़ दिया है। तलाक़ के बाद से दो बच्चों को लेकर वह अकेली ही रह रही है। बच्चे पढ़ रहे हैं। बड़ा चौदह और छोटा बारह साल का है। उसने अपना नाम फ़हमीना बताया।

उससे बात कर के मुझे लगा कि कुल मिलाकर मैं जैसी ढूँढ़ रही थी, यह वैसी ही है। इसलिए इसे ही रख लेते हैं। इसे वाक़ई नौकरी की आवश्यकता भी है। शरीर से हृष्ट-पुष्ट स्वस्थ औरत है। इसलिए काम-धाम आसानी से करेगी।

सारे काम-धाम समझ कर फ़हमीना ने हाँ कर दी। काम ज़्यादा है, उसकी यह बात मानते हुए मैंने उसे, उसके मन-मुताबिक वेतन देना स्वीकार कर लिया। कोई मोल-भाव नहीं किया। बात पक्की होने के बाद फ़हमीना ने अगले दिन से आना शुरू कर दिया।

अगले दिन मैं फ़हमीना, कैमरों, मोबाइल के सहारे लियो को छोड़कर ड्यूटी चली गई। मगर मेरा मन लियो पर ही लगा रहा। हर आधे-पौन घंटे पर समय मिलते ही कॉल करती। और पूर्णतः ट्रेंड लियो कॉल रिसीव कर, एक बार ताली बजाता कि सब ठीक है।

यह कर-कर के वह बड़ा ख़ुश होता था। उसे बड़ा मज़ा आ रहा था। अपनी ख़ुशी व्यक्त करने के लिए वह अपनी ख़ास तरह की खीयाँ-खीयाँ की आवाज़ भी निकलता था। उम्र के साथ अब उसकी आवाज़ ज़्यादा भारी और कर्कश भी हो चुकी थी।

मैं फ़हमीना के मोबाइल पर भी कई बार फ़ोन कर-कर के हाल-चाल लेती रही। खाने-पीने के लिए कहती रही।

मैं उस पूरे दिन ऑफ़िस में बड़ी अजीब दोहरी स्थिति में रही। एक तरफ़ घबराती रही कि एक अनजान महिला के सहारे लियो जैसे बालक को अकेला छोड़ आई हूँ। दूसरी तरफ़ ख़ुश हो रही थी कि मेरा बेटा न सिर्फ़ अकेले रहने लगा है, बल्कि बिज़नेस भी करने लगा है। यह सोचते ही मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता। मुझे लग रहा था जैसे मैं हवा में उड़ रही हूँ।

मैंने यह सारी बातें अपनी ख़ास सहेलियों वृंदा, तृषा को भी बताई। ख़ुशी में घर से जो लंच ले गई थी, उसे नहीं किया, बल्कि उनको लेकर एक अच्छे से रेस्तरां में लंच किया।

दिन भर मेरे मन में अजीब सी अफनाहट, व्याकुलता, जल्दबाज़ी बनी रही कि कितनी जल्दी छुट्टी मिले और मैं अपने प्यारे लियो के पास पहुँचूँ।

ड्यूटी के जो घंटे पहले मुझे कुछ ज़्यादा नहीं लगते थे, उस दिन वह मुझे हिमालय सरीखे पहाड़ से लग रहे थे। सरपट स्कूटर भगाती जब आठ बजे घर पहुँची तो फ़हमीना ने दरवाज़ा खोला, लियो कहाँ है? उससे यह पूछती हुई तेज़ी से अंदर भागी। वह ड्राइंग-रूम, बेड-रूम में नहीं मिला। उस कमरे में भी नहीं मिला, जिसमें उसे अपने बिज़नेस का काम करना था।

मैंने इस कमरे के दरवाज़े पर ‘लियो इंटरप्राइज़ेज’ लिखा, कंप्यूटर से निकाला कलर प्रिंट चिपका रखा था। उसे वहाँ भी न देख कर मैं घबरा गई। झटके से मुड़ी बाथ-रूम की ओर कि वहाँ तो नहीं गया है।

तभी उसकी छड़ी की आवाज़ सुनाई दी। वह बाथ-रूम से ही चला आ रहा था। मैंने लपक कर उसे बाँहों में जकड़ लिया। वह भी मुझसे ऐसे चिपक गया, जैसे कोई छोटा बच्चा दिन-भर के बाद अपनी माँ को देखते ही लपक कर उससे चिपक जाता।

हम-दोनों ही ऐसे मिल रहे थे, जैसे कि कभी भी मिलने की कोई उम्मीद ही नहीं थी, और संयोगवश ही न जाने कितने बरसों बाद अचानक ही मिल गए। फ़हमीना बड़े आश्चर्य से हम-दोनों को देख रही थी।

मेरी ही तरह ख़ुशी से हवा में उड़ते लियो ने मुझे जल्दी-जल्दी अपने बिज़नेस रूम में ले जाकर अपना दिन-भर का काम दिखाया। मैं यह देख कर ख़ुशी से पागल हो गई कि लियो ने तख़्त पर तीस-पैंतीस पैक किए हुए डिब्बे रखे हुए थे।

दो-चार को छोड़ कर बाक़ी की पैकिंग भी कुल मिलाकर उसने ठीक ही की थी। मैं बड़ी देर तक आश्चर्य से कभी डिब्बों को, तो कभी लियो को देखती ही रह गई। सारा काम बड़ी सफ़ाई से किया गया था। रॉ मटेरियल भी ठीक से ही बंद करके जहाँ-जहाँ था, वहीं रखा था।

काम की साफ़-सफ़ाई देखकर मैंने पीछे खड़ी फ़हमीना से पूछा, “तुमने हेल्प की थी क्या?”

उसने कहा, “हमने सामान एक बार छुवाया और रखवाया, उसके बाद यह सब-कुछ ख़ुद ही करते रहे।”

यह सुनकर मेरी आँखें आँसुओं से भर गईं। इसी बीच फ़हमीना ने हम-दोनों के लिए नाश्ता रखा और छुट्टी लेकर चली गई। खाना, नाश्ता उसने पहले ही तैयार कर दिया था। अब उसे घर पर भी देखना था।

इस जोश, अति उत्साह में मेरी हड़बड़ी इतनी थी कि हमेशा की तरह पहले हाथ वग़ैरह भी नहीं धोए। नाश्ता देख कर मेरा ध्यान इस तरफ़ गया और जल्दी से हाथ-मुँह धोकर, बहुत दिनों बाद अपने हाथों से लियो को नाश्ता कराया। उसने भी अपने हाथों से मुझे खिलाया। खाने-पीने के बाद मैंने लियो की रेगुलर ली जाने वाली स्पर्श और वायु लिपि की क्लास ली।

मैंने उससे यह भी पूछा कि फ़हमीना ने उसे हेल्प की, कोई परेशानी तो नहीं हुई उसके साथ, उसने परेशान तो नहीं किया? उसने जो कुछ बताया उस हिसाब से कुल मिलाकर फ़हमीना के साथ उसका पहला दिन अच्छा बीता था।

मुझे भी फ़हमीना का खाना-पीना, साफ़-सफ़ाई आदि सारे काम अच्छे लगे। अपने काम-धाम से उसने मेरा और लियो, दोनों का ही दिल पहले हफ़्ते में ही जीत लिया था।

मेरी उम्मीदों से भी ज़्यादा सब-कुछ अच्छा होने लगा था। लियो ने हफ़्ते भर में ढाई सौ से अधिक डिब्बे पैक करके फ़हमीना की मदद से कमरे में क़रीने से लगा दिये थे। मैंने डिलीवरी मैन को केवल संडे के ही दिन आने को कहा था। ऑन-लाइन मिले ऑर्डर चेक किए तो डेढ़ सौ से अधिक डिब्बों का ऑर्डर आ चुका था।

एक ही हफ़्ते में इतने ऑर्डर देख कर मैंने सोचा, लियो तो खेल-खेल में ही बिज़नेस-मैन बन गया। इस बिक्री से उसने दो हज़ार रुपए का नेट मुनाफ़ा कमाया। रेट मैंने ब्रांडेड कंपनियों से ही रखे थे।

महीने भर में ही एक हज़ार डिब्बों की बिक्री हो गई। इतना बिज़नेस होते ही मैंने लियो को लेकर नए-नए सपने देखने शुरू कर दिए। उसे बड़ा व्यवसायी बनाने के साथ ही साथ किसी ऐसी लड़की के बारे में भी सोचने लगी, जिससे उसकी शादी कर दूँ, बच्चे हो जाएँ, जल्दी बड़े होकर लियो का सहारा बन जाएँ।

मैं पूरे विश्वास के साथ सोचती कि कोई न कोई ऐसी लड़की मिल ही जाएगी, जो लियो से शादी कर लेगी। वो देख, बोल, सुन ही तो नहीं सकता। बाक़ी वह किसी हैंडसम मर्द से कम नहीं है।

इसके साथ ही मेरे दिमाग़ में सोशल-मीडिया पर देखे गए दो वीडियो घूम गए। एक राजस्थान का था। जहाँ एक अच्छा हैंडसम आदमी, दोनों पैरों से लाचार अपनी पत्नी को पीठ पर एक ख़ास तरह की बनाई गई डोलची में बैठा कर शॉपिंग कर रहा है।

दूसरा चीन का था, जिसमें एक महिला इसी तरह अपने आदमी को लेकर सारे काम करती है। उसके आदमी के जाँघों के पास से दोनों पैर नहीं थे। उसके दो बच्चे भी थे।