क़ाज़ी वाजिद की कहानी- दू:स्वप्न
जिस ओर भी मैं देखता, उस आदमी का चेहरा मेरी आंखों के सामने नज़र आता। गलियों और बाज़ारों में, मैंने सोचा, यह मेरा पीछा हर जगह कर रहा था। जब मैं आसपास से गुज़रने वालों को देखता, मैं उसी को खोजता- एक व्यक्ति जो छड़ी के सहारे चलता था, उसके घुटने पजामें से बाहर को निकले हुए थे, वह मैले कुचैले सफेद कपड़े पहने हुए था जिस पर ख़ून के सूख चुके धब्बे थे और उसकी पगड़ी उसकी गर्दन में गोल गोल लिपटी हुई थी।
इस विचित्र भयोत्पादक आदमी ने कभी मेरा पीछा नहीं छोड़ा, मेरी नींद में भी नहीं। मैंने उससे मुक्ति पानी चाही, किंतु व्यर्थ। वो हर समय मुझसे बात कर रहा था, मुझे शांति से नहीं रहने दे रहा था।
मैंने उसे खोजने का प्रयत्न किया, मुझे अकेला छोड़ देने हेतु गिड़गिड़ाने का प्रयत्न किया। मैंने उसे बताने का प्रयत्न किया कि मैं निर्दोष हूं। मैं गुनहगार नहीं हूं और मैंने कुछ गलत नहीं किया है। लेकिन मैं उसे पा नहीं सका।
उसे पहली बार मैंने अपने मुहल्ले की गली के नुक्कड़ पर देखा था। और फिर उस रात अपने कमरे में पाया।
उस रात, मुझे सिलाई मशीन के चलने की आवाज़ ने जगा दिया। यह रात्रि के मध्य की घटना थी। मैं अचानक उठ गया। कमरे में अंधेरा था। ऐसा लगा, कोई मशीन से कुछ सी रहा था। उसके घुटने मशीन के पायदान से टकराकर टक- टक की आवाज़ कर रहे थे। मुझे बिजली का स्विच ढूंढने हेतु संघर्ष करना पड़ा। लेकिन इससे पहले कि मैं स्विच पा सकूं, गोली की चीख़ती हुई आवाज ने रात्रि की निस्तब्धता को भंग कर दिया और स्त्रियों की चीख़ों और रुदन ने रात्रि के सन्नाटे को भर दिया। संभवतः गली में किसी ने किसी को गोली मार दी थी। हक्का-बक्का मैंने मशीन की ओर देखा, फिर पूछा, मेरी सिलाई मशीन से तुम क्या सी रहे थे?'
'मैं अपनी पोती की गुड़िया की फ्रॉक सी रहा हूं, जो मशीन में अध्धी सिली लगी है।'
मेरा सारा अस्तित्व भय से घिर गया। हांलांकि यह मशीन लूट की थी, परन्तु मैंने इसका मूल्य चुकाया था। मैं अपने घर के बाहर खड़ा मारकाट, आगजनी और लूटमार का तांडव देख रहा था। एक आदमी मशीन को कंधै पर रखे चला आ रहा था। उसने मुझ से कहा, 'ख़रीदोगे लाला?'...'कितने की है?'...'जो चाहो दे दो।' ... मैंने उसे सौ रुपये दिए और मशीन ले ली।
मैं असमंजस में था, इस धुटने निकले आदमी का सिलाई मशीन और गुड़िया की फ्रॉक से क्या रिश्ता है? मुझे मशीन को देखकर घृणा हो रही थी।
मेरे हृदय की धड़कन और मेरी देह का कंपन बढ़ गया था, जब जि़ंदा भूत की आवाज ने मुझे भौचक्का कर दिया।
'डरो मत---डरो मत।'
उसका चेहरा पहचाना सा लग रहा था। मैं स्मरण नहीं कर सका कि उसे कहां देखा था। मैं कूद पड़ा और लगभग मेरी चीख निकल गई।
मैने तेज़ी से पूछा,'कौन हो तुम?'
वह रोता रहा और उसने मेरे प्रश्न का जवाब नहीं दिया। उसने गुड़िया की फ्राॅक निकाली, उसे देखता और रोता रहा। उसके आंसू उसके चेहरे को भिगो रहे थे। तभी मैंने उसे पहचान लिया, यह तो इरफान दरज़ी के अब्बा हैं जिनकी यह सिलाई मशीन है। मैं जब कपड़े सिलाने जाता था तो इनसे मेरा दुआ सलाम होती था। मुझे फिर डर लगने लगा। उस दिन जब मैं गली में आ रहा था, तो यह मुझे दूर से देख रहा था।
किंतु वह आदमी रो रहा था उसने गुड़िया की फ्रॉक मुझे दिखाई और कहा, 'क्या तुम जानते हो कि यह यह फ्राॅक मेरी पोती की गुड़िया की है।'
मैं समझ गया, वह बदला लेने आया है, चाहे जैसे भी हो मुझे भाग जाना चाहिए। मुझे पक्का विश्वास था कि वह अपनी छड़ी से मुझे मार डालने वाला था। 'लेकिन मैंने तो यह मशीन खरीदी है।' डरी हुई और बेचैन आवाज मे मैंने कहा।
वह हंसा। उसकी तेज़ हंसी पागलों जैसी थी। फिर वह गुस्से में चीखा, 'मैं जानता हूं तुमने इसे खरीदा है, मैं जानता हूं।
और वह फिर रोने लगा। उसने अपनी बांह से अपने आंसू पोछे। उसने गुड़िया की फ्रॉक हाथ में ली और ज़ोर से रोता हुआ बोला, 'या अल्लाह, या अल्लाह। मेरा घर--- मेरे बेटे का, मेरी बहू का और मेरी पोती का ख़ून इस फ्रॉक पर सूखा हुआ है। या अल्लाह या अल्लाह... मेरा घर... हमारा घर... हमारा घर... हमारा घर हमारे ही ऊपर जलकर गिर गया। तुम नहीं जानते कि हमारे ऊपर गोलियों की बौछार हो रही थी। एक क्षण में मेरा परिवार समाप्त हो गया। मुझे नहीं मालूम कि उन्हें धरती ने निगल लिया अथवा वे आसमान में उड़ गए, लेकिन वे वहां नहीं थे। मैंने उन्हें हर जगह खोजा... तुम नहीं जानते वे कहां है? हंह? नहीं। तुम ने तो यह कहकर अपने को संतुष्ट कर लिया, 'मैने इस मशीन का मूल्य चुकाया है।' अल्लाह तुम्हें नहीं बख्शेगा---
और वह ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा,भयानक हंसी। मैं जानता था कि वह पागल नहीं था। उसके शब्द पागलों जैसे नहीं थे। हंसी और रुदन क्रोध और अपमान उसकी आवाज़ में मिले हुए थे। मुझे भय था कि उसके पास बंदूक़ अथवा चाकू हो सकता था। मैंने और अधिक प्रतीक्षा नहीं की। मैं घर से बाहर गली में भागता रहा जब तक कि मेरा पैर एक स्पीड ब्रेकर से नहीं टकरा गया और मैं सड़क पर धूल में गिर पड़ा। एकाएक ज़िंदा भूत मेरी ओर दौड़ा और उसने अपनी छड़ी से मुझ पर वार किया। मेरे सिर में तीव्र पीड़ा हुई और मेरी चीख निकली, जिससे मैं जाग गया।
मैंने बिजली जलाई और मशीन की ओर देखा। हर चीज़ अपनी जगह पर थी। कमरा डरावनी खामोशी से भरा हुआ था। बाहर से आ रही बंदूकों की आवाजें भी कम हो गई थी। हो सकता है उस रात दंगे रुक गए हों।
किन्तु उस व्यक्ति की आवाज़ मेरे साथ थी, मेरे कानों के भीतर। ऐसा लग रहा था मानो ज़िंदा भूत मेरे सिर में था, मेरे कानों में था, वहां बैठा हुआ, मुझसे बात करता हुआ। वह रो रहा था और हंस रहा था, एक असहाय हंसी। वह क्रोधित था, वह चीख रहा था।
"कैसी दुनिया में हम रहते हैं। कुछ सिर फिरे उन्मादियों के नारे सुनकर हम खिचते चले जाते हैं। औरतों का मंगल सूत्र और चूड़ियां भी हमे नहीं रोक पाती। एक तूफ़ान सा आता है सब कुछ तहस-नहस कर चला है। मंगल सूत्र उतर जाते हैं, चूड़ियां बिखर जाती हैं। औरतें सफैद कपड़ो मे, मर्द कफन में लिपट जाते हैं। चिराग बुझ जाते हैं, बच्चे यतीम हो जाते हैं। नारे लगाने वाले प्रतिष्ठित व स्मर्ध हो जाते हैं।'
दु:स्वप्न से निजात पाने का मैंने हर संभव प्रयास किया परंतु मुझे शांति नहीं मिली। जहां भी मैं जाता, उस व्यक्ति की आवाज़ मेरे कानों में होती।
दो-चार दिन बाद मैंने अपनी गली के अंत में कुछ गुज़रने वालों को एक मृत देह पर झुके हुए देखा। वह ज़िंदा भूत का शव था। उसकी छड़ी उसकी बगल में पड़ी हुई थी। उसकी पगड़ी उसके गले में गोल गोल लिपटी हुई थी। उसे गोली मारी गयी थी। उसके हाथ में गुड़िया की फ्रॉक थी। उसे कोई नहीं जानता था न ही कोई यह जानता था कि वह इस तरह गुड़िया की फ्रॉक हाथ में क्यों लिए हुए था।
पुलिस आ चुकी थी। मेरी अंतरात्मा ने मुझे धिक्कारा, 'आगजनी करने वाले, जान लेने वाले, लूटने वाले और लूट का माल खरीदने वाले एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं।' मैंने पुलिस से कहा, ' मैं गुनहगार हूं, मैंने लूट की सिलाई मशीन खरीदी है जिस पर ख़ून लगी गुड़िया की फ्रॉक लगी है। पुलिस ने मुझे गिरफ्तार कर लिया पर मुझे दु:स्वप्न से निजात मिल गई।
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