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पहल

फोन की घंटी बज रही है, फोन उठाते ही अगली ओर से आवाज आती है, "ये सब क्या सुन रही हूं, माॅं। आप लोग विनीता की शादी करने जा रहे हैं।’’
"तो इसमें हर्ज ही क्या है, ये तेरे पापा और मेरा दोनों का फैसला है।’’
"और विनीता? क्या वो मान गयी?’’
"आसान नहीं था,बहुत मनाना पड़ा, अपनी जान की कसम दी है तब जाकर मानी है।’’
"माॅ, आपका दिमाग फिर गया है क्या, लोग क्या कहेंगे, हंसेगी दुनिया आप पर।’’
"हंसने दो, दुनिया का काम है कहना, चार दिन बातें करेंगे, फिर भूल जायेंगे।’’
"माॅं, आप ऐसा कैसे कर सकती हैं, आपने कमल को इतनी जल्दी कैसे भुला दिया।’’
"कमल को कोई नहीं भूला है, लेकिन सब अपने जीवन में आगे बढ़ चुके हैं। क्या तुम दिन भर कमल की याद में रोती रहती हो?’’
"लेकिन माॅं, मुझे ये सब ठीक नहीं लग रहा है। वो कमल की विधवा है, आपकी बहू है। आप उसकी दूसरी शादी कैसे करवा सकती हैं? क्या आप समाज का विरोध कर पायेंगी?’’
"अगर तुम ही मेरा विरोध करोगी तो समाज से मैं अकेले कैसे लड़ पाउॅंगी। विनीता मेरी बहू सिर्फ 6 महीने तक रही और कमल की मौत के बाद से वो मेरे पास मेरी बेटी बनकर ही रह रही है। मैने उसे घुट घुट कर जीते देखा है, अभी उसकी उम्र ही क्या है? तुम अपने जीवन में व्यस्त हो, मेरा और तुम्हारे पिता का जीवन ही कितना बचा है। वो अपना जीवन किसके सहारे जियेगी। सिर्फ 6 माह सुहागन होने की सजा वो जिन्दगी भर तो नहीं काट सकती है। किसी को तो पहल करनी ही होगी।’’
 
दूसरी तरफ सन्नाटा छा गया। कुछ क्षणों की चुप्पी के बाद आवाज आयी,"माॅं मैं आप दोनों के फैसले से पूरी तरह सहमत हूं और मैं बहुत खुशनसीब हूँ कि आप लोग मेरे माता पिता हैं। मैं अपनी बहन की शादी में पूरी खुशी से शामिल होउंगी और जिसको जो कहना है, वो कहे, मैं आप लोगों का पूरा साथ दूंगी।’’
 
और इसके बाद माॅं बेटी शादी में होने वाले रस्मो रिवाज और तैयारियों को लेकर काफी देर तक उत्सुकता और खुशी से बाते करती रहीं।