suffocate in Hindi Women Focused by Saroj Prajapati books and stories PDF | घुटन

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घुटन

"मम्मी, 4:00 बज गए । आपको कीर्तन में नहीं जाना।""जाना तो है बहू लेकिन 5:00 बजे तेरे पापा जी चाय पीते हैं। चाय पिलाकर ही चली जाऊंगी।"

"मम्मी जी, क्या मुझे चाय बनानी नहीं आती!!"

"अरे वह बात नहीं बहू ! अभी तो किचन से निकली है तू! आराम कर। कहां बीच में उठेगी।"विमला जी अपनी सफाई देते हुए बोली।

"मम्मी, रोटियां बनाई है मैंने सिर्फ ! बाकी सारा काम आपने किया। उसमें मुझे क्या थकावट होनी है। आप निश्चित होकर जाइए। मैं पापा जी को समय पर चाय दे दूंगी।"अंजलि मुस्कुराते हुए बोली।

''मैं भी कुछ थकी सी हुई हूं। सोच रही हूं ना ही जाऊं!!"विमला जी अनमने मन से बोली।अपनी सास के उतरे चेहरे को देख अंजली समझ गई की बात कुछ और है।अपनी सास के पास बैठकर वह बोली

"मम्मी जी वैसे तो आप कहते हो कि मैं आपकी बेटी हूं लेकिन देख रही हूं बस कहने भर को।"

"नहीं बहू, तू सचमुच मेरी बेटी ही है।"विमला जी उसके सिर पर हाथ रखते हुए बोली।"अच्छा तो सच सच बताओ कि क्यों नहीं जा रही आप कीर्तन में! कल से तो आप वहां गाने के लिए कितने भजन याद करने में लगी थी और आज..!!"अपनी बहू की बात सुन विमला जी थोड़ी दुखी होते हुए बोली

"बहू, 6 महीने में तू बहुत कुछ देख समझ गई होगी लेकिन फिर भी बताती हूं। तेरे ससुर और मेरा स्वभाव बिल्कुल अलग । जहां मुझे सभी के साथ मिलकर चलना, उठना बैठना, हंसना बोलना पसंद। वही तेरे ससुर बिल्कुल ही अंतर्मुखी स्वभाव के हैं। उन्हें मेरी ये आदतें बिल्कुल पसंद नहीं। मैंने इन्हें कई बार समझाना भी चाहा लेकिनहमारे पुरुष प्रधान समाज में कहां पत्नी की इच्छाओं कीकद्र। मां ने हमेशा यही सीख दी कि जिसमें पति खुश रहे वही करो और सासू मां उसके लिए बहू की खुशी से ज्यादा बेटे की खुशी थी इसलिए धीरे-धीरे मैंने अपने सारे शौक पति की खुशियों के आगे कुर्बान कर दिए।हां, बस एक शांति थी कि तेरे ससुर मेरे खाने पीने और ओढ़ने पहनने का बहुत ध्यान रखते थे। मुझे कुछ भी चाहिए होता मुंह से निकलने से पहले तुरंत लाकर हाजिर कर देते।उम्र के साथ घुटने जवाब देने लगे थे लेकिन यह तेरे ससुर की सेवा पानी का ही असर है कि मैं फिर से पैरों पर चल फिर पा रही हूं।बस बहू, मैंने इसी में संतोष कर लिया कि दुनिया में सभी को मनचाहा तो नहीं मिलता। मुझे तो फिर भी ईश्वर ने बहुत कुछ दिया।"
अंजलि की सास घड़ी की तरफ देख ठंडी आह भरते हुए बोली।

"यह तो आपने सही कहा मम्मी कि ईश्वर ने हमें जो दिया उसका शुकराना तो हमें हर समय अदा करना चाहिए। फिर आज आपको तो इतना अच्छा अवसर मिला है। वैसे भी पापा जी आज अपने दोस्त के घर गए हैं। कह रहे थे 6 -7 बजे तक आएंगे। तब तक तो आप आ जाओगे ना मम्मी!!वैसे कौन सा आप मोहल्ले में बैठ गप्पे मार रहे हो भगवान का नाम लेने हीं तो जा रहे हो। चले जाओ। मन की मन में मत रखो।"अंजलि उन्हें उत्साहित करते हुए बोली।

विमला जी का मन तो था ही। बहू के समझाने पर उसमें थोड़ी हिम्मत आई और वह यह सोचकर निकल गई कि पूरा समय नहीं बैठेगी जल्दी ही माथा टेक कर वापस आ जाएंगी।अंजलि भी अपनी सास के जाने के बाद थोड़ा आराम करने के लिए लेट गई लेकिन उसे एक घंटा भी ना हुआ था कि दरवाजे की घंटी बजी।उसने दरवाजा खोला तो सामने उसके ससुर जी खड़े थे। देख कर एक बार तो वह भी घबरा गई लेकिन फिर उसने खुद को थोड़ा सामान्य किया।घड़ी में देखा 5:30 बजने को आए थे।

"पापा जी आप जब तक फ्रेश हो कर आइए, मैं आपके लिए चाय बना देती हूं।"

"बहू तुम आराम करो। चाय तुम्हारी सास बना देगी।"

"पापा जी मैं तो आराम ही कर रही थी और वैसे भी दोपहर से मन मम्मी जी की तबीयत सही नहीं। दवाई लेकर थोड़ी देर पहले ही लेटी है। उन्हें जगाना सही नहीं।"
"क्या हो गया था। मुझे फोन क्यों नहीं किया।" उसके ससुर थोड़ा चिंतित होते हुए बोले।

"पापा जी, फिक्र करने की कोई बात नहीं। बस थोड़ी थकावट थी और बीपी लो।"सुनकर विमला जी के पति ने थोड़ी राहत की सांस ली।जब तक वह फ्रेश होकर आए। अंजलि चाय बना कर ले आई थी ।अपने ससुर को चाय दे वह भी वही बैठ गई।

"पापा जी, आज आपने दोस्त के पास गए थे। कैसी रही आपकी मुलाकात।"

"बस बेटा, दोस्तों के साथ मुलाकात मतलब खुशियों की सौगात। आज मैं अपने बचपन के दोस्त के पास गया था और वहां जाकर सरप्राइस हो गया। वहां तो मेरे स्कूल कॉलेज की पूरी मंडली जमा थी। फिर तो बचपन स्कूल कॉलेज के जो किस्सों की शुरुआत हुई। उसमें समय का पता ही नहीं चला। सच में अपने यार दोस्तों से मिलकर जीवन में फिर से जोश भर जाता है। सबके साथ मिलकर आज अतीत की गलियों में पहुंचकर जो खुशी मिली तुम्हें बता नहीं सकता।ऐसी ही मुलाकातें महीने में एक आध बार हो जाए तो हम बूढ़ों को दवाइयों की जरूरत ही ना पड़े ।" कहते हुए विमला जी के पति की आंखों में चमक थी।

"पापा जी, आप बिल्कुल सही कह रहे हो। मेरे पापा व दादा तो शाम होते ही एक घंटा अपने दोस्तों के साथ जरूर बैठते हैं और मम्मी, दादी दोपहर के समय आराम करने की बजाय अपनी सहेलियों के साथ बैठ गप्पे मार अपनी थकावट दूर कर तरोताजा हो जाती हैं।देखो ना पापा जी, मेरे दादा व दादी अस्सी के आसपास होने को आए लेकिन आज भी चुस्त-दुरुस्त हैं कोई बीमारी उन्हें छू कर नहीं गई। ईश्वर की कृपा से मम्मी पापा भी।
मुझे लगता है इसका कारण सामाजिकता भी है। जब हम अपने दोस्तों, रिश्तेदारों से मिलते हैं। अपना सुख दुख बतलाते हैं, उनसे सलाह करते हैं तो आधी बीमारियां तो अपने आप ही दूर हो जाती। जैसा आपने कहा कि अपने दोस्तों से मिलने पर लगता ही नहीं कि हमारी उम्र बढ़ रही है।वैसे एक बात कहूं पापा जी, मैंने देखा है कि आप मम्मी की कितनी फिक्र करते हैं। एक पति शायद ही अपनी पत्नी की बीमारी के लिए ऐसे रात भर जागता हो।लेकिन पापा जी मुझे लगता है कि मम्मी को दवाइयों के साथ-साथ कुछ और भी दिया जाए तो वह जल्दी सही हो सकती हैं!!"

"हां हां बहू, बताओ ना! मैं तो चाहता हूं विमला के पैरों का दर्द व बी पी जल्द से जल्द सही हो। उसे दर्द से तड़पता देख मुझे क्या कम तकलीफ होती है।" पापा जी मुझे पता था आप मम्मी के इलाज के लिए कुछ भी करने के लिए मना नहीं करोगे इसलिए मैंने मम्मी को आज कीर्तन में भेज दिया।"

' कीर्तन में!! कीर्तन में जाकर मम्मी के पैरों का दर्द सही हो जाएगा!! यह कैसे बेवकूफ वाली बातें कर रही हो बहू!!" विमला जी के पति थोड़ा नाराज होते हुए बोले।

" पापा जी, दर्द तो मम्मी का महंगी दवाइयों से भी कम नहीं हो रहा। होगा भी कैसे!! जब तक मम्मी मन से खुश नहीं होंगी । कोई भी दवाई अपना असर नहीं दिखा सकती और मम्मी की खुशियों का गला तो आपने उनके इस घर में आते ही घोंट दिया था और उन्होंने भी आपकी खुशी के लिए अपने सारे शौकों को तिलांजलि दे दी। पापा जी, क्या आपने मम्मी के लिए अपने किसी शौक को मारा ! फिर मम्मी से इतनी बड़ी कुर्बानी क्यों!!
पापा जी मेरा मन आपका दिल दुखाने का नहीं लेकिन सासू मां की घुटन भी मुझसे देखी नहीं जाती।"

विमला जी के पति इतनी देर से अपनी बहू की बातें सुन रहे थे। चुप्पी तोड़ते हुए बोले" बहू, तेरी सास सही कहती है कि तू बहू नहीं बेटी है हमारी। मैं तो पति के झूठे अहम में ही रह गया। अपनी पत्नी की घुटन मुझे दिखाई नहीं दी लेकिन तुमने ना केवल अपनी सासू मां के दुख दर्द को समझा बल्कि उसे दूर करने की पहल भी की। वह भी आज से अपनी जिंदगी जिएगी। मैं उस पर अपने कोई नियम नहीं थोपूंगा। मुझे तो सोचकर भी शर्म आ रही है कि मैं इतना खुदगर्ज निकला। सारी उम्र उसने मेरी खुशियों के लिए निकाल दी और मैं उसकी तकलीफ ना देख पाया। आज सच्चाई जानने के बाद कैसे आंखें मिलाऊंगा उससे।" विमला के पति उदास होते हुए बोले।

" इसमें उदास होने की कौन सी बात है!! चश्मा हटाकर आंखें चार करिए ना मुझसे!!" विमला जी, दरवाजे पर खड़ी शरारत से मुस्कुराते हुए बोली।
विमला जी की बात सुनकर उनकी बहू के साथ साथ उनके पति भी ठहाका मारकर हंस पड़े।दोस्तों कैसी लगी आपको मेरी यह रचना। अपने अमूल्य विचार कमेंट कर जरूर बताएं।
सरोज ✍️