son in Hindi Motivational Stories by Wajid Husain books and stories PDF | सुपुत्र

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सुपुत्र

क़ाज़ी वाजिद की कहानी- पश्चाताप

गाड़ी ने रफ्तार पकड़ ली थी। रोहित दरवाज़े पर खड़ा होकर प्लेटफार्म की भीड़ को देख रहा था। एक युवक भीड़ को चीरता हुआ आ रहा था।दरवाज़े के पास आकर उसने बैग को अंदर फेंका और छलांग लगाकर अंदर आ गया। रोबीले व्यक्तित्व और क़ीमती सूट पहने युवक को इस तरह गाड़ी पकड़ते देख वह स्तब्ध रह गया।
वह युवक बेहद बेचैन था। उसकी बेचैनी देखकर रोहित ने उसे अपनी बर्थ पर बैठा लिया। वह निरंतर समाचार पत्र में छपी फोटो को देख रहा था और बीच-बीच में रोहित की ओर देख लेता था। उसे परेशान देखकर रोहित ने उससे पूछा, 'क्या हो गया?' युवक ने समाचार पत्र उसकी ओर बढ़ा दिया। रोहित ने जिज्ञासा से समाचार पत्र देखा। एक औरत विक्षिप्त हालत में अस्पताल में भर्ती थी और नीचे खबर छपी थी, 'पंकज बंसल एडवोकेट की पत्नी लावारिस मिली। पुलिस ने सरकारी अस्पताल में सीरियस हालत में भर्ती किया है। इनका बड़ा बेटा रोहित बंसल एडवोकेट और छोटा बेटा राजू बंसल डॉन है। पुलिस ने अस्पताल को घेर लिया है, देखना है, डॉन मां के पास आता है या नहीं?'
समाचार पढ़कर रोहित विचलित हो गया। उसने कहा, 'तुम मेरे छोटे भाई राजू हो। हम लगभग दस वर्ष बाद मिल रहे हैं वह भी इत्तिफाक़न। मोहित ने कहा, 'मिलते भी कैसे? मम्मी-पापा की तलाक़ के बाद पापा ने दोनों बेटों का बंटवारा कर दिया था। आप लायक़ बड़े बेटे थे, आपको अपने साथ रख लिया, मैं नालायक था, मुझे मम्मी के साथ कर दिया था। आपने बटवारे की रस्म को अच्छी तरह निभाया, कभी जानने की कोशिश नहीं की, मां और छोटा भाई किस हाल में है? ठीक भी किया, पापा से दौलत मिली, शोहरत मिली, मां से क्या मिलता?'
रोहित शर्मिंदा हो गया उसने पूछा, 'यह सब कैसे हुआ?'
राजू ने कहा, 'सुनने की शक्ति हो तो सुनिए और इस पर ग़ौर कीजिए कि कितनी शांति से मैं आपको सारी कहानी सुना सकता हूं।'
'नेहा पापा की सेक्रेटरी थी, मुझे उसकी शक्ल ठीक से याद नहीं पर यक़ीन के साथ बस इतना कह सकता हूं, वह वह बहुत सुंदर नहीं थी।परंतु पापा उसके पीछे आकर्षित थे। उन्हें उससे बतियाना अच्छा लगता था। मम्मी उन पर शक करती थी। वह मुझसे उनकी जासूसी कराती थी। छोटी खबर पर टॉफी और बड़ी खबर पर चॉकलेट देती थी। एक बार मैंने पापा को उसका हाथ पकड़े देख लिया। मैंने जल्द से जल्द मां को यह बात बतलाई। वह गुस्से में पापा के चेंबर में गई और पापा के साथ नेहा को भी अपमानित किया। मुझे लड़कपन में अंदाजा नहीं था, इस बात को लेकर मम्मी पापा के बीच एक चौड़ी खाई हो जाएगी। आप जानते हैं दोनों अड़ियल मिजाज़ के हैं। किसी ने भी सुलह की पहल नहीं की और तलाक़ हो गई। चलते समय पापा ने मां से मेरे बारे में कहा, 'अपने जासूस को भी साथ लेती जा।' और मुझे मां के साथ कर दिया। मैं छोटा था आपसे और दोस्तों से बिछुड़ने से टूट गया था और इस अपमान में मुझे झिंझोड दिया, फलस्वरुप में पापा से नफरत करने लगा।
जब मां को पता लगा, पापा ने नेहा से शादी कर ली तो उन्होंने अपना ट्रांसफर गाज़ियाबाद करा लिया। वहां के स्वचछंद वातावरण में बहुत जल्दी रम गया। देर रात तक मटरगश्ती करने लगा। एक दिन मैं सुबह से गया और काफी रात तक वापस नहीं आया। आधी रात को घर पहुंचा तो मां दरवाज़े पर खड़ी मेरा इंतेज़ार कर रही थी, 'कहां चला गया था?' उसने गुस्से से पूछा। मैंने प्रसन्न मुद्रा में कहा, 'मां मैंने पापा से अपमान का बदला ले लिया।' 'बता क्या किया तूने?' वह बोली। 'सरप्राइस समाचार पत्र से पता चलेगा।' मैंने फख़्र से कहा। उस रात समाचार पत्र के इंतेज़ार में वह सो नहीं सकी‌।
समाचार पत्र में छपा था, 'विपिन बंसल का बेटा राजू जेब कतरी में पकड़ा गया। समाचार पत्र पढ़कर मां बेसुध हो गई। बस इतना बोली, ' मैं मुंह दिखाने लायक नहीं रही।' हताषा घबराहट और तनाव की समस्या पर जीत पाने में आपने भी उनका गम नहीं बाटा। वह मनोरोगी हो गई। अन्नता उसे नौकरी से निकाल दिया गया। मां घोर तंगी से जूझ रही थी, फिर भी वह मेरा बाहरवां जन्मदिन मनाना चाहती थी। नौकरी का विज्ञापन देखकर एक एन.जी.ओ में गई। उसे पता चला आप नेहा के साथ वह एन.जी.ओ चलाते हैं। इंटरव्यू में नेहा ने उसे झड़ककर निकाल दिया। आप उसके साथ बैठे थे परंतु आप मौन रहे। अपने बेटे के सामने अप्मानित होकर उसे गहरा झटका लगा और वह विक्षिप्त हो गई। भूख से बिलख रही होती तो लोग अपनी झूठी रोटी खाने को दे देते, औरतें तन ढकने के लिए अपनी ओढ़नी उस पर डाल देती।
डॉक्टर की सलाह पर मैं उसे इलाज के लिए दिल्ली ले जा रहा था। रेल का डिब्बा डेली पैसेंजरो से खचाखच भरा हुआ था। वह शौचालय जा रही थी तभी स्टेशन पर गाड़ी रुक गई। डेली पैसेंजर्स का रेला सामने के प्लेटफार्म पर खड़ी गाड़ी पकड़ने के लिए भागने लगे। शायद मां घबराकर उन्हीं के साथ उतर गई। उस समय तक मैं बहुत बड़ा नहीं हुआ था, समझ नहीं थी, यदि उसके साथ रहता तो यह हादसा नहीं होता। रोता हुआ लौट आया अब न घर था न ठिकाना, पैसे भी पास नहीं थे‌। इस हालत में जुर्म की दुनिया ने सहारा दिया और मुझे डॉन बना दिया।
इस घटना को बरसों बीत गए। आज समाचार पत्र में मां का फोटो देखा तो समझ गया, पुलिस ने मेरा एनकाउंटर करने के लिए जाल बिछाया है।‌ यदि इस गाड़ी में न चढ़ पाता तो स्टेशन पर पुलिस मार भी देती। मैं जानता हूं, मां के पास गया तो मेरी मृत्यु निश्चित है, फिर भी मैं जाऊंगा ताकि उसके माथे पर लगा लावारिस होने का दाग मिटा सकूं।'
कहानी सुनने के बाद, पश्चाताप की मुद्रा में रोहित ने कहा, 'सौतेली मां के नकारात्मक प्रचार से मैं सगी मां को ढीले चरित्र का समझने लगा था और तलाक़ के लिए उसे दोषी समझता था। मैंने कभी अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं किया। जब वह नौकरी के लिए एन.जी.ओ आई थी, यदि मैं उस समय समझदारी से काम लेता तो यह सब नहीं होता।
तभी ड्राइवर ने इमरजेंसी ब्रेक लगाए। राजू ने कहा, 'भईया पुलिस ने मेरी लोकेशन ट्रेस कर ली है। हो सके तो मुझे माफ कर देना, शायद इस जन्म में आपके दर्शन करने का सौभाग्य न प्राप्त हो।' रोहित ने उसे गले लगाकर दिलासा दी, 'भले ही दुनिया की नज़र में तू डॉन है, मगर मेरी नज़र में सुपुत्र है। तेरे साथ मां का आशीर्वाद है, दिल छोटा मत कर, मां के पास जा, मैं सब संभाल लूंगा।और वह चलती गाड़ी से छलांग लगाकर भाग गया, पुलिस को भनक भी नहीं लगी।
रोहित बचपन से ही बेहद भावुक था। एक प्रश्न पर वह लगातार विचार कर रहा था। यदि राजू मां तक नहीं पहुंचा तो मां का क्या होगा? उसे एक ही उत्तर सूझ रहा था। मैं देखने में राजू जैसा लगता हूं, यदि मैं पुलिस के सामने सरैंडर कर देता हूं तो पुलिस मुझे राजू समझ कर पकड़ लेगी। इस तरह राजू को मां तक पहुंचने का अवसर मिल जाएगा। परंतु यह बहुत जोखिम भरा है, मेरा एनकाउंटर भी हो सकता है या मुझे उस अपराध की सज़ा भुगतनी पड़े जो मैंने किया ही नहीं है। इसके अतिरिक्त मंगेतर को धक्का लगेगा जब उसे पता लगेगा, रोहित का भाई डॉन है और वह उसके बदले पकड़ा गया। परंतु उसे कोई राह नहीं सूझी। उसके दोनों ओर मीलों लंबी खाई थी। परेशान होकर वह छोटी- सी जगह में लगातार चहलकदमी करता रहा।
पुलिस रोहित के बहुत ही करीब आ गई थी। तभी इंस्पेक्टर ने उसकी मोटी भौहें और सुतवां नाक देखी। अगले ही क्षण उसने अपने मज़बूत हाथों से उसकी कलाईयों को पकड़ लिया। वह न ही भयभीत हुआ और न ही उसने अपनी बेगुनाही का कोई सबूत दिया।
रास्ते में लम्बे सफर के बाद इंस्पैक्टर उसे लेकर पुलिस हेड क्वार्टर पहुंचा। समाचार बुलेटिन सुनकर दंग रह गया। समाचार था, 'डॉन राजू मारा गया।' पुलिस ने डॉन समझकर उसके बड़े भाई रोहित बंसल को गिरफ्तार कर लिया था। डॉन ने पुलिस की नादानी का लाभ उठाया और मां को प्राइवेटअस्पताल में भर्ती करने के बाद सरैंडर कर दिया था‌। फिर हत्या कैसे हुई जांच चल रही है।
कुछ देर बाद इंस्पेक्टर ने रोहित से कहा, 'क्षमा कीजिए, मैंने आपको डान राजू समझकर गिरफ्तार किया था। मुझे दुख है आपके भाई की हत्या हो गई। हत्या से पहले उसने मां को प्राइवेट अस्पताल में शिफ्ट कर दिया था। मैं उसके जज़बे की कद्र करता हूं। मुझे आपको मां के पास पहुंचाने का आदेश मिला है।
रास्ता एकदम अंधेरा था, आकाश में फीके से बादल थे और रोहित पूरी तरह ख़ामोश था। नए शहर की चौड़ी सड़क के पास पहुंचने पर इंस्पैक्टर ने गाड़ी रोक दी और वह धीमी चाल से अस्पताल में मां के पास चला गया।
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