Kataasraj.. The Silent Witness - 110 in Hindi Fiction Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 110

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कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 110

भाग 110

ज्यादा इंतजार नही करना पड़ा। ठीक दस बज के दस मिनट पर फोन की लंबी लंबी घंटी बाजी।

ये इशारा था कि कॉल इंडिया से ही है।

अमन ने रिसीवर उठाया और बोला,

"हैलो..! डॉक्टर..अमन स्पीकिंग।"

दूसरी ओर से आवाज आई,

"गुड मॉर्निंग अंकल..! मैं डॉक्टर.. पूर्वी बात कर रही हूं। पुरवा की बेटी। आप शायद पुरवा को जानते है।"

वही पुरवा की सी खनकती आवाज थी।

"यस..! जानता हूं मैं।"

फिर पूर्वी ने विवान से अपनी मम्मी की इतिफाकन हुई मुलाकात के बारे में और अपनी मम्मी के विक्टर अंकल के बारे में पूछने की सारी बात बताई। फिर तभी से उनके सेहत में हो रही लगातार गिरावट के बारे बताया।

पूर्वी बोली,

"अंकल.. ! मम्मी ने जैसे अपने होंठ सी लिए हैं। वो किसी से कुछ भी बात नही करती। ना ही किसी से मिलती हैं। वो कैसे ठीक होंगी अंकल इस तरह से आप भी तो डॉक्टर है बताइए।"

अमन बेहद दुखी था पर क्या करता..? उसकी कमजोरी फिर से हावी हो रही थी।

पूर्वी ने संकोच छोड़ा और स्पष्ट शब्दों में अमन से पूछा,

*अंकल..! आपको मम्मी का वास्ता है वो तो कुछ बोलेंगी नही। आप बताइए क्या आपके और मम्मी के बीच कुछ था.. मेरा मतलब कोई ऐसा रिश्ता जिसे समाज और वक्त की वजह से दफन करना पड़ा हो। आप समझ रहे है ना मैं क्या जानना चाह रही हूं। अगर आपका प्यार पाक और सच्चा था तो आप मुझसे झूठ नही बोलेंगे।"

अब अमन सच से और नही भाग सकता था। उसके प्यार में कहीं भी कलुषता नही थी। गंगा की तरह पवित्र था उसका और पुरवा का प्यार।

वो धीरे से बोला,

"तुम ठीक समझ रही हो बिटिया..! मैं और पुरवा दोनों एक दूसरे से बेपनाह मुहब्बत करते थे। पर हमारे प्यार को मंजिल नहीं मिलेगी ये भी हम जानते थे। मैने खुद को गरीब दुखियो की सेवा के लिए समर्पित कर दिया और तुम्हारी मां ने घर वालो की इच्छा के लिए खुद को समर्पित कर दिया। बस यही इतनी सी है हमारी कहानी। अब बोलो मैं तुम्हारी कैसे मदद कर सकता हूं।"

पूर्वी ने पूछा,

"क्या आप मम्मी से मिलना चाहते हैं..?"

अमन एक पल के लिए भावुक हो कर रोने लगा बोला,

"बेटा..! क्या ये संभव है।"

पूर्वी बोली,

"हां..! है क्यों नहीं। जब बेटी खुद उस दर्द से गुजर चुकी है तो मां के दर्द का उसे एहसास है। ठीक है मैं सारी सेटिंग कर के आपको फोन करती हूं। बाय अंकल।"

इतना कह कर पूर्वी ने फोन काट दिया।

अब उसे मम्मी की सारी बात समझ आ रही थी। वो क्यों जीवन से दूर भाग रही थीं

पूर्वी ने रात को अपने पापा और भाई भाभी को बताया कि मम्मी के इलाज के लिए उन्हें एक पाकिस्तान के डॉक्टर का मैसेज मिला है कि वो इसी बीमारी के स्पेशलिस्ट है, उन्हे काफी तजुर्बा है। मैं मम्मी को वहां दिखाना चाहती हूं।

महेश के पास वक्त की कमी थी, पैसे और जुगाड़ की नही।

उन्होंने झटपट अपने संपर्क सूत्र का इस्तेमाल कर पुरवा और पूर्वी का पासपोर्ट वीजा बनवा दिया।

उनके जाने की पूरी व्यवस्था कर दी।

पूर्वी ने पुरवा को कुछ भी नही बताया कि वो उसको कहां ले कर जा रही है..। सिर्फ इतना बताया कि वो सीमा के पास एक ऐसे हॉस्पिटल में इनको दिखाने जा रही है जहां उनकी बीमारी का बहुत अच्छा इलाज हो सकता है।

इतने दिनों में पुरवा की हालत और भी खराब हो गई थी। चलते वक्त पवन और विजया को मिलने को बुलाया था। उसे आशीर्वाद देना चाहती थी। पुरवा को ऐसा महसूस हो रहा था कि अब शायद ही वो वापस लौट कर आ पाए। पवन भी मम्मी से मिलने आया। उसे ढेरों दुआएं दे कर, विजया को दूध, पूत सब से भरा जरा रहने का आशीर्वाद दे कर पूर्वी के साथ अनजाने सफर के लिए निकल पड़ी।

पुरवा की बैठ कर सफर करने की हालत नही थी। उसे पीछे की सीट पर गद्दा डलवा कर लिटा दिया पूर्वी के खुद आगे की सीट पर बैठी। परदे खींचे हुए थे। पुरवा आंखे बंद किए अब बस अपना अंत समय करीब समझ कर भगवान को याद कर रही थी।

जल्दी निकलते निकलते भी साढ़े दस बज ही गए थे। पूर्वी और विवान आगे की सीट पर बैठे थे।

पूर्वी ने अमन को सूचित कर दिया था कि वो मम्मी को ले कर शाम छह साढ़े छह बजे तक पहुंच जाएगी।

अमन ने अपने हॉस्पिटल में सारा बंदोबस्त करवा दिया था। स्पेशलिस्ट डॉक्टर से बात भी कर लिया था।

दो जगह रुक कर पुरवा ने मम्मी को जूस पीने को दिया।

बाघा बॉर्डर क्रॉस कर वो लाहौर शाम ढलने के समय पहुंचे।

अमन खुद सामने नहीं आया पुरवा के।

हॉस्पिटल के स्टाफ ने ही पुरवा को कमरे में शिफ्ट कर दिया। पूर्वी उसे आराम करने को बोल कर अमन से मिलने उनके चेंबर में पहुंची।

अमन काले फ्रेम का चश्मा लगाए.. कुर्सी पर बैठा हुआ था।

पूर्वी ने दरवाजा खटखटाया और बोली,

"मे आई कम इन..?"

अमन ने घूम कर देखा और बोला,

"प्लीज.. कम इन।"

पूर्वी अंदर आई। हुबहू अपनी मां की छवि पाई थी उसने।

अमन कुर्सी से उठा और भावना के वशीभूत हो कर पूर्वी को सोने गले से लगा लिया।

आखिर वो उसकी पुरु की अंश थी।

अमन का प्यार देख कर पूर्वी की आंखें भी भींग गई।

अमन को जब खुद पर काबू हुआ तो सॉरी कहता हुआ पूर्वी से अलग हो गया।

अमन ने पूछा,

"अब कैसी है वो..?"

पूर्वी बोली,

"ठीक नही हैं अंकल। मुझे तो कोई उम्मीद नजर नही आ रही। तकलीफ बहुत ज्यादा है। बिना दवा के ठीक से सो भी नही पातीं।"

पुरवा के सारे टेस्ट और रिपोर्ट को अमन ने ध्यान से पढ़ा।

पूर्वी ने कहा,

"अंकल..! आप कब मिलोगे मम्मी से..?"

अमन उठते हुए बोला,

"तुम उससे मिल लो जा कर। फिर तुम्हें घर छोड़ दूं वैरोनिका आंटी के पास। मेरी तो रात की शिफ्ट है। रुकना ही है। जा कर मिल लूंगा।"

पूर्वी भी यही चाहती थी। जब मम्मी अमन अंकल से मिलें तो वो मौजूद ना रहे। वो अपने दिल की बात इत्मीनान से अकेले में कर सकें।

पूर्वी बोली,

"आप चलिए… मैं दस मिनट में बाहर आती हूं।"

पूर्वी उस रूम में आई जिसमें पुरवा को रक्खा गया था।

पुरवा के पास जा कर बोली,

"मम्मी..! कैसा महसूस हो रहा है..?"

पुरवा ने धीरे से आंख खोली और बोली,

"ठीक हूं बेटा..! तू इतनी फिक्र मत कर।"

पूर्वी बोली,

"मम्मी..! यहां विवान के एक परिचित हैं मैं उनके घर जा रही हूं। रात को वहीं रहूंगी। सुबह होते ही आ जाऊंगी। यहां सारा प्रबंध कर दिया है। नर्स आपकी देख भाल करेगी। आपके साथ रहेगी। मैं जाऊं मम्मी…..?"

पुरवा ने सिर हिला कर जाने की मंजूरी दे दी।

पूर्वी ने प्यार से मम्मी का सिर सहलाया और बोली,

"ओके मम्मी….! सुबह आती हूं फिर…।"

और वो बाहर चली गई।