Kataasraj.. The Silent Witness - 90 in Hindi Fiction Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 90

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कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 90

भाग 90

वैरोनिका खाने के बाद उठते हुए हुए बोली,

"अमन तुम यहां विक्टर के बिस्तर पर सो जाओ, पुरवा तुम चाहो तो मेरे साथ उस कमरे में चारपाई डाल कर सो सकती हो। मैं बहुत हाथ पैर फैला कर सोती हूं ना इसलिए तुम मेरे साथ आराम से सो नही पाओगी। मैं बहुत थकी हूं, वहां पर चारपाई रक्खी हुई है, तुम बिछा कर सो जाना।"

वैरोनिका सोने चली गई। पुरवा ने सारे जूठे बर्तन समेटे और उन्हें साफ करके रसोई में सजा दिया। अब जब वैरोनिका से इतने भरोसे और प्यार से उनको इस मुसीबत की घड़ी में शरण दी है। इनके लिए तो इतना करना बनता ही है। थकी तो वो भी बहुत थी। रात भर जागी थी बख्तावर के घर में। फिर इतनी दूर तक भाग कर आई थी। एक मासूम हर वक्त हंसने खिलखिलाने वाली लड़की को हालात ने खूनी बना दिया था। मात्र चौबीस घंटे के अंदर उसने इतना सब कुछ देख सुन लिया था कि थकान, भूख प्यास सब कुछ उसे शून्य महसूस हो रहा था।

सब कुछ साफ सुथरा कर के पुरवा वैरोनिका के कमरे में चारपाई बिछा कर सो गई।

सुबह आठ बजे से वैरोनिका की ड्यूटी थी। इस लिए वो छह बजे ही उठ कर रसोई में गई चाय बनाने तो देखा कि सब कुछ साफ सुथरा हुआ चमक रहा है। मन ही मन पुरवा को शुक्रिया अदा किया और स्टोव जला कर चाय का पानी चढ़ा दिया। फिर आवाज लगा कर अमन और पुरवा को जगाया।

दोनो ही थके होने की वजह से गहरी नींद सो रहे थे। बैरोनिका आंटी की आवाज सुन कर अमन और पुरवा हड़बड़ा कर उठ गए। पुरवा उठ कर रसोई में वैरोनिका के पास आ गई।

वैरोनिका मुस्कुरा कर बोली,

"गुड मॉर्निंग बेबी..! नींद आई..? कोई परेशानी तो नहीं हुई..! क्या जरूरत थी इतना सब कुछ करने की। मैं सुबह उठ कर तो रोज करती ही हूं।"

चाय को कप में डालते हुए बोली,

स्टोव पर सब्जी चढ़ा दी और कमरे में अमन के पास चाय की ट्रे ले कर आ गई।

चाय खत्म होने पर पुरवा बोली,

"मैं कुछ कर दूं आंटी..!"

ये संबोधन उसके लिए नया था। उसे हिचक ही रही थी बोलने में। पर अमन का देख कर वो भी यही बोल रही थी।

"ठीक है बेटा..! वो डब्बे में आटा रक्खा हुआ है। सब्जी पक जाने पर तुम सब के लिए पराठे बना लो। फिर तुम दोनो भी तैयार हो जाओ। चलोगे ना अपने बाऊ जी से मिलने..?"

पुरवा ने हामी भरी।

वेरोनिका नहा कर अपनी सफेद ड्रेस पहन कर आई तब तक पुरवा का काम निपट चुका था।

उसने वैरोनिका को नाश्ता दे दिया और खुद नहाने चली गई। जब पुरवा नहा कर निकली तो बस आठ बजने ही वाले थे। पुरवा की ताला चाभी दिखा कर बोली,

"बच्चा.. लोग..! मुझे देर हो रही है। मैं जा रही हूं। तुम लोग तैयार हो कर आ जाना। क्यों अमन कोई परेशानी तो नहीं होगी आने में..?"

अमन बोला,

"नही वैरोनिका आंटी..! हम आ जायेंगे। आप परेशान मत होइए।"

"ओके टाटा.. बच्चों।"

कह कर हाथ हिलाती हुई वैरोनिका अपनी ड्यूटी पर चली गई।

पुरवा का अपना सलवार कमीज सूख गया था। उसे पहन कर तैयार हो गई।

फिर कुछ ही देर में वो अस्पताल में अशोक के बेड के पास थे। पुरवा वही स्टूल पर बैठ कर बाऊ जी के सुई लगे हाथो को सहलाने लगी।

"बाऊ जी..! आप उठो ना…! देखो ना आपकी बबुनी आपके किए कितना रो रही है। अकेले इस परदेश वो कहां जाए..? क्या करे..? उसे कुछ समझ नही आ रहा है। उठो ना.. बाऊ जी..! अम्मा को भी तो ढूंढना है। आप ऐसे लेते रहोगे तो कैसे हम अम्मा को ढूंढ पाएंगे..?"

कहते हुए पुरवा की आंखे नम हो गई।

कुछ देर रुक कर अमन बोला,

"पुरु ..! तुम कहीं भी मत जाना यहीं रहना मेरे वापस आने तक। मैं बाहर जा कर अम्मा के बारे में पता करने की कोशिश करता हूं। हो सकता है कुछ पता चल जाए। एक जगह बैठे रह कर तो कुछ पता लगने से रहा। फिर मैं कॉलेज जा कर अपने दाखिले के बारे में भी पता कर लेता हूं।"

इतना कह कर वो चला गया।

बाहर शहर में अभी भी तनाव का माहौल था। कोई किसी से भी खुल कर बात चीत नही कर रहा था। अमन ने बात करने की कोशिश की कुछ लोगों से पर वो बेहद रुखाई से उसे चलता कर दिए।

अब अमन को यही उचित लगा कि वो कॉलेज जा कर अपना दाखिले वाला काम ही निपटा ले।

मेयो अस्पताल के लगा ही अमन के सपनो का कॉलेज किंग एडवर्ड मेडिकल कॉलेज भी था। ये अस्पताल भी उसी का एक हिस्सा था। अब डॉक्टर बन कर असहाय और गरीब लोगों को मदद की भावना और प्रबल हो गई थी। एक वो जालिम थे जिन्होंने बेकसूर, अशोक को घायल कर मरने के लिए छोड़ दिया। दूसरी ओर ये डॉक्टर भी एक आदमी ही है जिसने एक लगभग मरे हुए आदमी को नया जीवन दे दिया। डॉक्टर और नर्स को ऐसे ही धरती का मसीहा नही कहा गया है। अब वैरोनिका आंटी को ही देख लो वो बिचारी एक अनजान लड़के लड़की को अपने घर में आश्रय दे दिया। बल्कि अपना पूरा घर उनके भरोसे छोड़ कर चली गईं।

जब वो कॉलेज के मुख्य द्वार पर पहुंचा इसका रोम रोम रोमांचित हो गया। हल्के सफेद रंग के उस इमारत को देख कर हैरान था। सुना था कि ये बहुत बड़ा है। पर इतना बडा है इसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी।

वो पूछते पूछते जहां दाखिला होता है उस इमारत में गया। उसके जैसे कई लड़के अपनी अपनी अंक तालिका और भी कई कागज ले कर बैठे हुए थे।

अमन ने भी अपनी अंक तालिका दिखाई।

वहां मौजूद बच्चो में अमन का नंबर पांचवे नंबर पर था। उसका दाखिला होना तय था। फीस की रकम जमा करवा कर तीन दिन बाद आने की बोला गया।

अमन बहुत खुश था कि उसके अपना सपना पूरा करने की दिशा में सफल कदम रख दिया है।

ये सब करने में पूरा दिन बीत गया। साढ़े तीन बजे के करीब अमन वापस लौटा।

पुरवा इस बीच बाऊ जी की साफ सफाई करने में नर्स की पूरी मदद कर रही थी।

अमन आया उसके कुछ देर बाद बैरोनिका भी आ गई। और बोली,

"चलो भाई बच्चो..! मैं बहुत थक गई सारा दिन चलते चलते। अब घर वालों को रहने भी नही दिया जाएगा।"

अमन और पुरवा दोनो वैरोनिका के साथ उसके क्वार्टर पर वापस आ गए।