Kataasraj.. The Silent Witness - 89 in Hindi Fiction Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 89

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कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 89

भाग 89

अशोक को जीवित देख कर पुरवा और अमन के टूटी आस को उम्मीद की एक नई रोशनी मिली।

वैरोनिका भी खुश थी कि उसकी जरा सी मदद से दोनों बच्चों को उसके पिता मिल गए।

वेरोनिका ने उन्हें दिलासा दिया और पूछा,

"तुम दोनो कहां से आया है बच्चा लोग..?"

पुरवा और अमन दोनो ने एक साथ अपनी अपनी जगह बताई।

वो चौंकी और बोली,

"तुम दोनो भाई बहन दो जगह पर कैसे रहता है..?"

फिर अमन ने उन्हें अपने और पुरवा के यहां तक के सफर की पूरी कहानी बताई।

वो बोली,

"ओह..! ये बात है..। खैर ये बताओ.. इन्हें तो ठीक होने में कुछ समय तो लगेगा ही। तुम्हारा यहां कोई परिचित रहता है..? तुम दोनों कहां रहोगे..?"

अमन बोला,

"यहीं कहीं पड़े रहेंगे। कोई परिचित मेरा तो है नही और पुरु तो इतनी दूर की है इसका भी कोई नही है यहां पर..।"

वेरोनिका सोचते हुए बोली,

"तुम लोग ऐसा करो.. मेरे साथ चलो। मेरा यहीं पास में हॉस्पिटल से मिला हुआ क्वार्टर है। मैं अकेले ही रहती हूं। दो कमरे हैं। खाली ही रहता है।"

अमन संकोच करते हुए बोला,

"नही.. नही..! आप क्यों परेशान होगी। हम पड़े रहेंगे यही कहीं बरामदे वरामदे में।"

वेरोनिका बोली,

"बड़े ही संकोची हो बेटा तुम। मुझे भला कैसी परेशानी होगी..! दिन के बारह बारह घंटे तो मैं यही रहती हूं। मेरी इतनी उम्र हो गई है। अच्छे लोगों की पहचान है मुझे। तुम बहुत ही अच्छे फैमिली से हो। मैं हर किसी को थोड़े ही ना अपने घर में रहने दूंगी। अब तुम दोनो यही मेरा इंतजार करना। ड्यूटी खत्म होने पर तुम्हें अपने साथ क्वार्टर पर ले चलूंगी।"

अमन और पुरवा के पास उनके साथ जाने के अलावा और कोई चारा भी नहीं था। अमन तो कहीं भी रह लेता। पर पुरवा के लिए इस बदले हुए माहौल में एक सुरक्षित जगह बहुत जरूरी था।

पुरवा और अमन वहीं बारी बारी से अशोक के पास पड़े छोटे स्टूल पर बैठ कर समय बिताते रहे।

डॉक्टर देखने आया तो उसके बताया कि घाव बस जरा सा दिल के बगल लगा है। अगर दिल पर जख्म लगा होता तो फिर नही बच सकते थे। देखिए जितनी जल्दी इन्हे होश आ जाए उतनी जल्दी ठीक हो जाएंगे।

करीब चार बजे वेरोनिका आईं।

बोली,"चलो.. बच्चा लोग..! अपना ड्यूटी टाइम खत्म हो गया। अब घर चलो।"

पुरवा और अमन उनके साथ हो लिए।

हॉस्पिटल के हाते में ही नर्सों के रहने के लिए कमरे बने हुए थे।

वो दो मिनट में पहुंच गए।

वैरोनिका ने ताला खोला और अंदर जाते हुए बोली,

"आओ बच्चो..! ये है हमारा छोटा सा घोंसला। उसे तुम अपना समझ कर जब तक जरूरत है रह सकते हो। अब तुम दोनो बैठो। मैं कपड़े बदल कर आती हूं।"

अमन और पुरवा चारों तरफ देख कर घर का मुआयना कर रहे थे। कमरे में कई तस्वीर टंगी हुई थी। एक में वैरोनिका सफेद गाउन में कुर्सी पर बैठी मुस्कुरा रही थी। पीछे काले सूट में एक नौजवान खड़ा था। एक दूसरी तस्वीर में दो पति पत्नी दिख रहे थे और गोद में दो बच्चे भी थे। ये शायद उनके माता पिता और भाई बहन की होगी। फिर एक और भी बड़ी तस्वीर थी। उसमे एक नीली आंखों वाला नौजवान सफेद पैंट शर्ट और उस पर काली जैकेट पहने हुए था। हाथ में हॉकी भी थी उसके। दिलकश मुस्कान के साथ वो हॉकी थामे तिरछा हो कर खड़ा था।

अभी वो तस्वीर देख कर वैरोनिका के परिवार के बारे में अंदाजा लगा ही रहे थे कि वो आ गई।

हल्के स्लेटी रंग के कंधे से पैर तक का गाउन पहने पुरवा ने ऐसा कपड़ा पहने पहले किसी को नहीं देखा था। उसका बेल्ट कमर पर बांधते हुए मुस्कुरा कर बोली,

"फोटो देख रहे हो..!"

फिर पास आ कर दिखाते हुए बोली,

"ये मेरे हसबैंड और मैं हूं। मैं अच्छी नहीं दिखाती ना। थोड़ी मोटी जो हूं। इसका दिल दूसरी पर आ गया। उसे ले कर विदेश चला गया। (फिर चार लोगों वाली फोटो को इशारा से दिखाते हुए बोली) ये मेरी मम्मी हैं और ये मेरे डैडी, ये मैं हूं और ये मेरा छोटा भाई विक्टर। और ये भी विक्टर की ही फोटो है। हॉकी का बहुत अच्छा प्लेयर था इस लिए रेलवे में गार्ड की नौकरी मिल गई। बस मैं और मेरा भाई विक्टर। यही मेरी पूरी दुनिया है। तीस साल का हो गया पर शादी के नाम से ही भड़क जाता है। कहता है तुमने भी तो की थी तो शादी कौन सा निभ गया..! मैं अकेला ही भला हूं। चलो… अब तुम लोग भी फ्रेश हो जाओ मैं चाय बनाती हूं।"

आंगन के कोने में बने बाथरूम में एक टंकी में पानी भरा हुआ था। अमन और पुरवा भी बारी बारी से हाथ मुंह धो आए।

जब तक आए वैरोनिका चाय और कुछ बिस्कुट ले कर आ गई।

तीनों ने चाय पी।

फिर वैरोनिका बोली,

"तुम लोग भूखा होगा। क्या खायेगा..? क्या बना दूं…?"

अमन बोला,

"आप बताइए क्या बनना है। पुरु बना देगी। क्यों.. पुरु..?"

पुरवा बोली,

"हां क्यों नही..।"

वैरोनिका बोली,

"तुम लोग मुझे आंटी कह सकते हो।"

फिर वैरोनिका बोली,

"मैं तो अकेली रहती हूं। कौन झंझट करे.. या तो वही से खा कर आती हूं या फिर दाल, चावल, सब्जियां सब काट कर इकट्ठे ही भगोने में चढ़ा देती हूं। एक साथ ही तैयार ही जाता है। बहुत स्वाद भी आता है। जब अलग अलग पका कर खाने के बाद पेट में जा कर एक में ही मिल जाना है तो फिर पेट में जाने के पहले ही मिला कर पका लो तो क्या बुरा है।"

इतना कह कर हो.. हो.. करके हंस पड़ी।

चली आज तुम दोनो को अपनी वही स्पेशल डिश खिलाती हूं। सात बज गए थे। वैरिनिका आंटी ने अमन को विक्टर के बिस्तर पर आराम करने को बोल दिया और खुद किचेन में चली गई। पुरवा के लिए सब कुछ बहुत अनोखा और नया था।

वैरोनिका आंटी ने स्टोव में पंप मार कर पुरवा को उसे जलाना सिखाया और फिर भगोने में पानी चढ़ा कर सब्जियां काटने लगीं। पुरवा की दाल चावल बिन कर दो कर डालने को कह दिया।

करीब आधे पौने घंटे में खाना तैयार हो गया। खूब ढेर सारा देशी घी डाल कर थाली में निकाला और जमीन में चटाई पर बैठ कर तीनो लोग खाने लगे।