Moon in Hindi Short Stories by DINESH KUMAR KEER books and stories PDF |  चाँद 

Featured Books
Categories
Share

 चाँद 

आज पूर्णिमा है, तुम देख रही हो चाँद कितना खूबसूरत दिख रहा है, चाँद की दूधिया रोशनी मे तुम कैसी दिखती होंगी? ऐसा मै उससे हर बार कॉल पर बात करते हुए पूछा करता था, हम एक सुध मे डूबे प्रेमी की तरह बात करते वक़्त चाँद को निहारा करते थे, और उसकी खूबसूरती का आकलन करते हुए वो मुझे बोला करती थी, सुनो ना क्या चाँद बहुत खूबसूरत है, मै मुस्कुराते हुए उसे पूछ लेता था अच्छा बतावो
ये जवाब मै चाँद को कैसे दूँ, वो हलकी मुश्काती हुई जवाब देती थी, धत पागल कुछ भी बोलते हो। मै और वो चाँद निहारते हुए एक दूसरे की भौगोलिक दूरियों को मापते थे, वो कहती थी तुम जब आओ गे तो मै तुम्हारी पसंदीदा खीर बनाऊंगी, मै हॅसते हुए उससे कह देता था क्या अपने हाथो से खिलाओगी? तभी एक करारा सा जवाब आता था क्यूँ नहीं खिला सकती और इतना ही कहते वो हँस पड़ती थी। हमलोगो मे भले ही भौगोलिक दूरिया थी मगर ह्रदय दोनों के समीप थे,मुझे ना जाने उसकी दिक्क़तो का पता हजारों किलोमीटर दूर से ही लग जाता था, वो तड़पती हुई मुझे याद कर लेती थी एक अजब सुकून था, दिन भर के थकान को ख़तम करने पूरी क्षमता रखती थी वो मुझसे मुस्कुराते हुए क्षण भर बात करले मेरी सारी दिक्क़ते ना जाने कहा विलुप्त हो जाती थी मुझे पता ही नहीं चलता था। मै उससे हर बार फोन पर कहा करता था जिस रोज तुम्हें व्याह कर लाऊंगा उस दिन हम दोनों नदी किनारे चाँद देखने चलेंगे तुम चाँद को देख लेना और मै तुम्हें, वो इतना सुन शर्मा जाती थी और मुझे बोल देती थी तुम ना मुझे किसी दिन भगा के ले जाओगे।
भौगोलिक दूरियों को मिटाने का हमारे पास बस एक ही संसाधान था फोन, हम लोग दिन मे कही भी रहे शाम को चाँद निकलते चकई चकवा पंक्षी की तरह फोन पर पास आ जाते थे। हर बार चाँद को देखते हुए उसका एक ही प्रश्न होता था
तुम मुझे भूल तो नहीं जाओगे? मै जोर से हॅसते हुए उसे जवाब देता था देखो मै तुम्हें भूलने की कोशिश अभी से शुरू कर रहा हूँ, ऐसा करो तुम अब कॉल काट दो इतना बोलते ही हम दोनों जोर से हसने लगते थे। जब भी आधा चाँद देखता तो उसे कहा करता तुम्हारे लिए बिलकुल ऐसी एक नथुनी बनवाऊंगा जब तुम उसे पहन मेरे सामने आओ गी तब घंटो उसे निहारुंगा और जैसे ही तुम मुझे चुम लोगी ये आधा चाँद पूरा हो जाएगा।वो चुप-चाप गुम सुम सी मेरी बातों को सुनती रहती और अंत मे कहती अच्छा ये बतावो चूमना कहा है? और इतना कह जोर से हसने लगती। मगर आज पूर्णिमा का चाँद भी मुझे काली रातो की तरह लग रही है।
अब वो मुझसे बात नहीं करती, अब हम चाँद को साथ नहीं देखते, अब हमारे बीच भौगोलिक दुरी कम है मगर ह्रदय की दुरी अधिक उसने कहा था तुम मुझे भूलो गे तो नहीं वो मुझे बहुत आसानी से भूल गयी। अब मै चाँद को अकेले देखता हूँ अपने आँखों मे आंसू लिए और उसकी कुछ स्मृतिया सहेजे हुए, मैंने कहा था मै उसे आसानी से भूल सकता हूँ मगर कोशिश मेरी नाकाम रही मै उसमे और जटिलता से फसता जा रहा हूँ। और वो अब किसी और के साथ चाँद देख रही है, मुस्कुराते हुए। दोनों चाँद को देख रहे मगर अलग-अलग स्थिति मे वो हॅसते हुए देख रही है और मै रोते हुए।