Prem Ratan Dhan Payo - 3 in Hindi Fiction Stories by Anjali Jha books and stories PDF | Prem Ratan Dhan Payo - 3

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Prem Ratan Dhan Payo - 3






राघव ने अपने आदमियों को बीच में आने से मना कर दिया था । वो तब तक कुन्दन को मारता रहा जब तक उसकी हालत बेहोशी की अवस्था में नही पहुंच गयी । राघव ने उसके चेहरे पर कयी जगह ज़ख्म दे दिए थे । राघव उसका कॉलर पकड अपने नजदीक लाकर बोला " दोबारा तुम या तुम्हारे आदमी मुझे स्कूल कॉलेज के आस पास नजर आए , तो मैं तुम लोगो को जिंदा नही छोडूगा । " इतना कहकर राघव ने उसे झटके से छोड़ दिया । कुंदन पीठ के बल जमीन पर जा गिरा । उसके आदमी भी धराशाई होकर जमीन पर पडे हुए थे । राघव आकर गाडी में बैठा और हवेली के लिए निकल गए ।

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शाम का वक्त , रघुवंशी मेंशन




राघव करीब चार बजे अपनी हवेली पहुंचा । अंदर आते ही उसकी नज़र परी पर पडी , जो अपने पीछे सबको भगा रही थी । जैनी दूध का गिलास लिए उसके पीछे भाग रही थी । संध्या और बाकी सर्वेंट अलग अलग कोने में खडे होकर उसे पकड़ने की कोशिश कर रहे थे । संध्या जैसे ही परी को पकडने वाली थी , वो साइड हट गयी और संध्या सामने से आ रही औरत से टकरा गयी । दोनों ज़मीन पर गिर पडी और अपने हाथों से माथा रगड़ने लगी । परी मूंह पर हाथ रख हंसे जा रही थी । उसे देख राघव के होंठों पर हल्की मुस्कुराहट तैर गयी । वो बेहद ही कम मुस्कुराता था और उसकी अधिकतर मुस्कुराहट की वजह परी होती थी ।

' परी ' ....

' परी ' ने जब राघव की आवाज सुनी तो मुस्कुराते हुए पीछे की ओर पलटी । ' चाचु ' परी पुकारते हुए उसके पास भागी । राघव ने उसे अपनी गोद में उठा लिया । "

" क्या बात है इस तरह सबको अपने पीछे क्यों भगा रही हो ? "

" मैं नही भगा रही ये लोग खुद ही भाग रहे हैं । " परी ने कहा । जैनी ने राघव को दूध का गिलास पकडा दिया । राघव परी को लेकर हॉल में चला आया ‌‌। उसने उसे सोफे पर बिठाया और खुद उसके पास बैठ गया । " चलिए अब जल्दी से ये दूध फिनिश कीजिए । "

दूध को देख परी ने बुरा सा मुंह बना लिया । उसने न में सिर हिला दिया । " परी दूध पियोगी तो ताकत आएगी । चलो जल्दी से इसे खत्म करो । " राघव ने कहा तो परी ने दोनों हाथों से गिलास थाम लिया ।

" आप ही इसकी आदतें बिगाड़ रहे हैं देवर जी । " करूणा ने पीछे से आते हुए कहा । राघव ने एक नज़र परी को देखा फिर करूणा से बोला " कोई बात नही भाभी मां ये जान हैं मेरी और मैं इसे सारी जिंदगी संभालकर रखूगा चाहे जितने नखरे करने हैं करने दो , मेरी गुड़िया को हर चीज की आजादी है । "

करूणा सोफे पर बैठते हुए बोली " फिर तो इसकी विदाई में ससुराल वालों को दहेज स्वरूप आप ही को भेंट कर देंगे । " करूणा की बातों पर राघव हल्का मुस्कुरा दिया ।

" क्या बात है आज आपको बहुत वक्त लग गया ? "

" हां भाभी मां, लोगों की समस्याएं भी बडी थी और उन्हें सुलझाने में वकील लग गया । "

" सुबह ठीक से नाश्ता भी नही किया था आपने , रूकिए हम आपके लिए खाना लगवाते हैं । " करूणा के ये कहने पर राघव बोला " नही भाभी मां उसकी कोई जरूरत नही । अभी भूख नही हैं आप बस हमारे कमरे में अदरक वाली चाय भिजवा दीजिए । " ये कहते हुए राघव उठा और परी की ओर देखकर बोला " दूध पूरा फिनिश करना । "

परी ने दूध का गिलास मूंह से लगाए हां में सिर हिला दिया । राघव सीढ़ियों की ओर बढ गया । राघव अपने कमरे में आया और शर्ट के बटनस खोलने लगा । अचानक ही उसके हाथों में दर्द हुआ , तो उसके ध्यान उसपर लगी चोट पर गया । शायद ये चोट कुंदन को मारते वक्त लगी होगी । राघव ने इस बात पर ध्यान नही दिया । वो शर्ट के बटनस खोलते हुए वाशरूम में चला आया ।

कुछ देर बाद राघव नहाकर बाहर आया । इसी बीच किसी ने कमरे का दरवाजा नोंक किया ‌‌। राघव बिना दरवाजे की ओर देखे बेड की ओर बढ गया और उसपर रखा शर्ट पहनते हुए बोला " अंदर आ जाओ । "

एक सर्वेंट उसकी चाय लेकर अंदर आया । " भैया आपकी चाय । "

" टेबल पर रख दो सुरेश और स्टडी रूम में जाकर टेबल पर जितनी फाइले रखी हो वो सारी ले आओ । " राघव की पीठ अब भी उसकी ओर थी ।

" जी भैया " इतना कहकर सुरेश वहां से चला गया ।

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रात का वक्त , ठाकुर भवन




आलीशान भवन और बाहर हथियार लिए आदमियों का सख्त पहरा था । अंदर से किसी के चीखने की आवाजें आ रही थी ।

एक आदमी जिसकी उम्र करीब पैंतीस वर्ष होगी । वो सामने की दीवार पर लगे बंदूक को निकालतें हुए बोला " आज हम उसको छोड़ेंगे नही । अगर उसको मौत के घाट नही उतारा , तो हम भी नारायण ठाकुर के बेटे गिरिराज ठाकुर नही । "

एक वृद्ध व्यक्ति उसके पास आया जिसकी उम्र करीब पैंसठ वर्ष होगी । वो आगे बढ़कर उसके हाथों से बंदूक छीनकर बोले " तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे । "

" बाबु जी आप समझ नही रहे हैं । ऊं राघव सिंह रघुवंशी ने हमारे भाई को मारा हैं । सबके सामने उसपर हाथ उठाया । दिन ब दिन ऊं हमारे इज्जत की धज्जियां उड़ाता जा रहा हैं और आप कह रहे हैं शांत हो जाओ । हरगिज नहीं ...... आज हम ऊं को मौत के घाट उतारकर ही रहेंगे , दीजिए हमारा बंदुक । " ये बोल गिरिराज उनसे बंदूक लेने की कोशिश करने लगा , तो नारायण जी अपना हाथ पीछे करते हुए बोले " हम का बोले हैं तुमको सुनाई नही दिया । कुछ नही करोगे तुम । ई मामला हम अकेले देख लेंगे तुम बीच में नही आओगे । " ये बोल नारायण जी ने दाई ओर देखा जहां चेहरे के आगे घूंघट किए एक औरत घडी थी । " बडी बहु जाकर ठंडा पानी लाओ और दो अपने पति को बहुत ज़रूरत है ऊं को । ठंडा पानी पिएगा तो दिमाग़ शांत होगा । "

वो औरत बिना कुछ बोले किचन की ओर बढ गयी । नौकर दरवाजे के पास पानी लिए पहले से ही खडा था । " गायत्री भाभी ई लीजिए पानी ।‌‌ "

गायत्री ने उसके हाथों से ट्रे लिया और गिरिराज के पास चली आई । उसने जैसे ही गिरिराज के आगे पानी का ट्रे बढाया , उसने हाथों से झटककर ट्रे फर्श पर गिरा दिया । गायत्री घबराते हुए कुछ कदम पीछे हट गई । गिरिराज गुस्से से उसे घूरते हुए हवेली के बाहर चला गया ।

नारायण जी ने जब ये सब देखा तो अपना चेहरा फेरकर मन में बोले " हम भी महान् सपूत पैदा किए हैं जिनमें गुस्सा तो बहुत हैं , लेकिन सही जगह उसको उतारना नही जानते । "

गायत्री टूटे गिलास के टुकड़े उठाने लगी , तो उसकी मदद के लिए भागकर दो नौकर चले आए । " आप जाइए भाभी ई सब हम कर लेंगे । " गायत्री अपना घूंघट संभालते हुए उठ खडी हुई और सीढ़ियों की ओर बढ गयी ‌‌। वो जब सीढ़ियां चढ ऊपर आई , तो एक लडकी भागकर उसके पास चली आई और उसके दोनों हाथ पकड देखते ही बोली " बडी भाभी आप ठीक तो हैं न । कही आपको लगी तो नही । "

गायत्री ने अपना घूंघट ऊपर किया और सिर तक पल्लू टिका लिया । वो प्यार से उसके गालों को छूकर बोली " नही दिशा हम बिल्कुल ठीक है । हमे कही नही लगी आप परेशान मत होइए । "

दिशा परेशान होकर बोली " इस घर में ऐसा क्यों हैं भाभी ? जिसे गुस्सा आता हैं वो आप पर अपना गुस्सा उतारकर चला जाता हैं । बाबु जी भी सीधे मूंह बात नही करते क्योंकि शादी के पांच साल बाद भी आप इस घर को वंश नही दे पाई, लेकिन हकीकत वो क्या जाने । छोटे भैया में भी बात करने की तमीज नही हैं । एक आपके पती हैं जिन्हें आपका साथ देना चाहिए वही वो आपपर अत्याचार करने से पीछे नहीं हटते । " दिशा ये सब कह ही रही थी की तभी गायत्री उसे टोकते हुए बोली " नही दिशा .... ये मेरा घर है और ये सब मेरे अपने लोग । मुझे इन सबसे कोई शिक़ायत नहीं हैं और वैस भी मेरी गुड़िया हैं न जो मुझे इतना प्यार करती हैं । ननद कम मेरी बेटी ज्यादा हैं । अच्छा ये बताइए आज आप कालेज क्यों नही गयी थी ? "

" बस भाभी प्रोजेक्ट बनाने में बिजी थे । कल सबमिट करना हैं हैं इसलिए सोचा घर पर ही रूक जाए । "

' अच्छा ठीक हैं आप जाकर उसे कंप्लीट कर लीजिए अगर हेल्प चाहिए हो तो हमे बता दीजिएगा । " इतना कहकर गायत्री वहां से चली गई ।

दिशा उसे जाते हुए देखकर मन में बोली" इस घर में सबसे पढी लिखी हैं आप भाभी , फिर भी किसी के दिल में आपके लिए सम्मान नही बस मजले भैया - भाभी को छोड़कर ‌‌। "

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रात का वक्त , राघव का कमरा




राघव इस वक्त सोफे पर बैठा कुछ फाइलस देख रहा था । इसी बीच किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी । राघव बिना दरवाजे की ओर देखे बोला " अंदर आ जाओ । "

कमरे का दरवाजा खुला और सुरेश अंदर आते हुए बोला " भैया मालकिन आपको खाना खाने के लिए बुला रही हैं ‌‌। "

" ठीक हैं भाभी मां से कहो हम थोडी देर में आते हैं । "

" जी भैया " इतना बोल सुरेश वहां से चला गया । नीचे करूणा डाइनिंग टेबल पर खाना लगा रही थी । संध्या उसकी मदद करने में जुटी थी ।

जैनी परी को बाबु सोना करके खिलाने की कोशिश कर रही थी , लेकिन मैडम को अपने चाचु के हाथ से खाना था यही ज़िद ठानकर बैठी थी । कुछ देर बाद राघव भी नीचे चला आया ।

" क्या बात है हमारी परी ने अभी तक खाना नही खाया ? " ये कहते हुए राघव अपनी चेयर पर आकर बैठ गया । परी ठीक उसके बगल वाली चेयर पर बैठी थी ।

" केसे खाएगी आपकी लत जो लग चुकी है इन्हें । आपके हाथों से खाने की ज़िद ठानकर बैठी हैं । " करूणा राघव की प्लेट में खाना सर्व करते हुए बोली ।

" कोई बात नहीं हमारी परी की हर जिद पुरी होगी । " ये बोल राघव अपने हाथों से परी को खिलाने लगा ।

" रहने दीजिए देवर जी उसे मैं खिला देती हूं । आप खाना खाइए वैसे भी शाम को आपने नाशता नही किया था । "

" खा लेंगे भाभी मां पहले अपनी गुड़िया को तो खिला ले । इसका पेट भर गया तो समझों मेरा भी पेट भर गया । " राघव की बातों पर सब मुस्कुरा रहे थे । परी का खाना होने के बाद जैनी उसे उसके रूम में लेकर चली गई । राघव खाते वक्त भी फ़ोन में ई मेल चैक कर रहा था । करूणा उसे टोकते हुए बोली " देवर जी पूरा समय तो आप काम में ही लगे रहते हैं । कम से कम खाना तो आराम से खा लीजिए । "

राघव ने फ़ोन बंद कर साइड में रख दिया । करूणा संध्या को आवाज लगाते हुए बोली " संध्या ..... संध्या .....

" जी भाभी " ।

" संध्या आप बादाम का हलुआ रखना तो भूल ही गयी । कही नज़र नही आ रहे । "

" भैया को ठंडे पसंद हैं न भाभी इसलिए फ्रिज में रखा हैं । अभी लेकर आते हैं । " यज बोल संध्या किचन में चली गई । कुछ देर बाद वो हलुआ लेकर डायनिंग टेबल के पास चली आई ।

" संध्या हम देवर जी को खिला देंगे । आप सब भी जाकर खाना खा लीजिए । ज़रा जैनी से पूछ लीजिएगा वो नीचे खाना खाएंगी या उनका खाना कमरे में ही भिजवाना पड़ेगा । अगर परी अब तक सोई नही होगी तब तो उनहे वही पर खाना पडेगा । "

संध्या उनकी बातों पर हामी भरकर वहां से चली गई । राघव भी अपना खाना खत्म कर कमरे की ओर बढ गया ।

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राघव के लिए परी बेहद इंम्पोरटेंट हैं ये तो आपने जान ही लिया अब आगे क्या होगा ये जानने के लिए बने रहिए कहानी के साथ ।

कल आपकी मुलाकात इस कथा की मुख्य नायिका से करवाऊगी । फिलहाल तो हम अयोध्या घूम रहे थे कल जनकपुर चलेंगे । आप लोगों मैं से कितने लोग वहां जा चुके हैं प्लीज अपना एक्सपीरियंस शेयर कीजिए ।

प्रेम रत्न धन पायो

( अंजलि झा )


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