आरुष... पुत्र आरुष...
हां जी अंकल... अपने अंकल की आवाज सुनकर ऊपरवाले होल निकल कर सीढियों से नीचे उतरते हुए आरुष बोला...
आरुष... पुत्र मुकेश महाराज और ये सोहन मास्टर... तुमसे मिलने आए है अपनी पुत्री के रिश्ते के लिए...
सोहन ने देखा महाराज के साथ एक अंकलजी आए हुए थे...
जी... नमस्कार... कहकर दोनों के पैरों में झुक गया...
फिर चर्चा का दौर शुरू हुआ, सोहन मास्टर ने कुछ प्रश्नों के जरिए आरुष के कार्यं और आदत इत्यादि के बारे में पूछा .....
पुत्र... महाराजजी बता रहे है सोहन मास्टर की पुत्री बिल्कुल तुम्हारी पसंद जैसी है घरेलू , संस्कारों वाली... अंकल जी ने बात आगे बढाते हुए कहा
हां पुत्र... ये रहा हमारे घर का विजिटिंग कार्ड... आइए और स्वयं ही देख लीजिएगा... सोहन मास्टर बोले...
अंकलजी... आपके घर... वो किसलिए
हां... हां बेटा... पुत्री और घर बार देखने...
अंकलजी... मे प्रत्येक मंगलवार मंदिर जाता हूं... आप अपने परिवार सहित वहीं आ जाइए...
मतलब... मे समझा नहीं पुत्र... लडकी देखने तो लडकी वाले घर ही आते है गली पडोस घरबार देखने...
अंकलजी... वही तो ठीक नहीं है... मुझे लडकी को मिलना है और लडकी को मुझे... अंकलजी मंदिर के बाहर एक बड़ी सी सुंदर सराय है वही मिलते है ना सब....
पर क्यों पुत्र... जब अपना घर है उनका तो हमें वहीं जाना चाहिए ना... अंकल जी ने आरुष को टोकते हुए कहा... अंकल... आप ये सब कह रहे है आपने और आंटी ने भी तो उस कसक को सहा है जो मेरी बहनों ने सहा... एक लडकी कि भी भावना होती है वो भी इंसान होती है कोई वस्तु नहीं... लडकी वाले आए और पेश करने के लिए सजाकर बिठा दो... और गली, मौहल्ले व पडोस... उन्हें बस यहीं जानना होता है आखिर क्या हो रहा है लडकी पसंद आई तो क्यो और नापसंद हुई तो क्युं और फिर तरह - तरह की चर्चा का दौर, सलाह मिलना शुरू... आखिर क्युं लडकी को संकीर्ण महसूस करवाया जाता है... शादी उसकी भी है तो लडका चुनने का हक उसका भी बनता है...
अंकल क्यों बार गली पडोस की बातों से परेशान हो कर लडकी वाले इतना दबाव मे आ जाते है कि सही गलत का सोचना छोड बस लडकी को जल्दी विदाई देने मे लग जाते है... यूं मंदिर में जाना आसपास सभी को लगेगा परिवार दर्शेनो के लिए जा रहा है...
और अंकल आप तो जानते है लडके वालो का लडकी वालो के यहां आना मतलब ....घरेलू खर्चों का बढना उनके आव - भगत के लिए ये लाओ वो लाओ... ये सब सही नहीं है अंकल...
वहां सुकून से एक - दूसरे से मिलेंगे... और बात बनती है तो मंदिर से मिले प्रसाद से सबका मुंह मीठा हो जाएगा...
और हां अंकलजी...
एक वचन है आपसे...
अपनी पुत्री को कपडों को लेकर दबाव मत कीजिएगा जिन कपडो मे वो अच्छे से रहे वही पहनकर आए आखिर शादी के बाद उसे घर मे सुरक्षित रहने के लिए वैसे ही मनपसंद कपडों को पहनना है...
तरसों मंगलवार है...
आइए मिलते है बात बनी तो सबके सामने जैसे चाहे बताइएगा वरना किसी को भी बताने की जरूरत नहीं...
आपकी पुत्री को जीवनसाथी चुनना है उसके लिए उसका खुला मन रहना जरूरी है...
कहकर आरुष उठ खडा हुआ...
महाराज जी और सोहन मास्टर दोनों चाय -पानी पीकर उठे और चलने को हुए ही थे कि सोहन मास्टर घूमें और जेब से दो का नोट निकालकर आरुष को देने लगे...
अंकलजी ये...
घबराओ मत पुत्र ये शगुन नहीं एक पुत्री के पिता का आशीर्वाद है...
पुत्र मे नहीं जानता आगे क्या होगा भगवान से विनती है तुम्हारे साथ हमारे पारिवारिक रिश्ते जरूर बने मगर यदि ना भी बने तो भी इस सोच को कायम रखते हुए इसे आगे जरूर बढाना...
देखना ऐसी सोच आने वाले समय मे हर पुत्री के पिता और परिवार के हर सदस्यों के लिए खुशनुमा जिंदगी लेकर आएगी...
जीते रहो...
भगवान तुम्हें खुश रखे...
धन्य है आपके माता - पिता और उनके संस्कार...
कहकर भीगीं हुई पलकों को खुशी से साफ करते हुए मुकेश महाराज जी सहित सोहन मास्टर बाहर निकल गए...
वहीं अंकल- आंटी ने आरुष को गर्व के साथ सीने से लगा लिया...