Kataasraj.. The Silent Witness - 85 in Hindi Fiction Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 85

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कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 85

भाग 85

कुछ दूर भागने के बाद एक छोटा सा गांव पड़ा। उसमे सब आगे पीछे पड़ने वाले घरों में घुसने लगे। सबसे अंतिम में एक बड़े से घर में अमन और पुरवा को ले कर वो मुखिया दंगाई घर में दाखिल हुआ।

घर का बाहरी दरवाजा खुला हुआ था। एक बुजुर्ग महिला दरवाजे चौखट के बगल में बिछी छोटी सी चारपाई पर बैठी हुई थी। उन्होंने सफेद सलवार कमीज पहने सिर पर दुपट्टा डाले बैठी हुई थी। हाथ में मनकों की माला निरंतर घूम रही थीं। मुखिया को दो अनजान लोगों के साथ देख कर उन्हें तहक़ीक़ (जिज्ञासा) हुई कि आज ये बख्तावर किसे साथ ले कर आ गया..! वो ऊंची आवाज में बोली,

अंदर जाते बख्तावर से बोली,

"क्यों.. बख्तावर…! किसे साथ लाया है..? कोई मेहमान हैं क्या..?"

बख्तावर अंदर जाते हुए बिना अपने कदम रोके बोला,

"हां..अम्मी…! हमारे जानने वाले के बेटा और बहू हैं। लाहौर जा रहे थे। रास्ते में इन्हें कुछ मुश्किल आ गई थी, इसलिए साथ ले आया।"

वो बुजुर्ग महिला "अच्छा" कह कर फिर से अपने हाथ के मनके फिराने लगीं।

बख्तावर अमन और पुरवा को अंदर ले कर आया और सीधे सबसे पीछे के खाली रहने वाले कमरे में चला आया। उन्हें कमरा दिखाते हुए बोला,

"तुम दोनों यहीं आराम करो। मैं मौका देख कर तुम्हें लाहौर छोड़ आऊंगा।"

इसके बाद वो उन्हें कमरे में छोड़ कर चला आया और बाहर से सांकल लगा दिया।

उसके परिवार में अम्मी के अलावा उसकी बीवी जरीना और पांच और सात साल का बेटा शकील, वकील थे। बख्तावर रंगीन तबियत का था। इसलिए जरीना उसके साथ एक लड़की को आते देख उखड़ गई। वैसे तो वो बहुत डरती थी बख्तावर से। पर जब बात किसी लड़की की आती थी तो वो सौतन के डर से जाने कहां से हिम्मत ले आती थी कि लात, मार पड़ने के बावजूद बिना विरोध किए नही मानती थी।

बावर्चीखाने में सालन चढ़ाया हुआ था चूल्हे पर और छोटे बेटे को गिलास से दूध पिला रही थी।

बख्तावर उसके करीब आया और बोला,

"सुनो..जरीना…! खाना तो नही पकाया ना अभी..!"

जरीना बोली,

"नही..।"

तो फिर बख्तावर बोला,

"ऐसा करो…! कुछ रोटियां और सेंक लेना। दो लोग आए हैं उनके लिए।"

जरीना बच्चे को दूध पिलाते हुए मुंह सुजा कर बोली,

"हां..! घर में बांदी तो है ही सेवा के लिए आपकी। ये जो रोज रोज आप अपनी दिलरुबा को ले कर आते है उनके लिए रांधने, पकाने के लिए। हमसे नही होगा। आप खुद ही देख लीजिए।"

एक झन्नाटे दार चांटा जरीना के मुंह पर पड़ा। वो हिकारत से बोला,

"बड़ी बे शर्म है तू..! मानना पड़ेगा। रोज मना करती है, रोज मार भी खाती है, फिर खाना भी पकाती है। तो फिर इतनी अकल नही है तेरे इस भेजे में..?(बख्तावर उसके सिर को हिलाते हुए बोला) जब पकाना ही है तो बिना मार खाए ही पका दे।"

फिर थोड़ा रुक कर बोला,

"वैसे तेरी तसल्ली के लिए बता दूं ये मेरी कोई उस तरह वाली हसीना नही है। ये मेरे जानने वाले के बेटा बहू है। कुछ मुश्किल थी इन्हें इस कारण से साथ ले आया। ये शौहर बीवी है। समय लगते ही ये लाहौर चले जायेंगे। मेरा उस लड़की से कोई वास्ता नहीं है। चल अब खुश हो जा। मेरी रात तेरे संग ही बीतेगी। (बख्तावर उसकी ठुड्ढी को अपनी उंगली से उठा कर बोला) नखरे मत दिखाना। वरना कल ही…दूसरी.. ले आऊंगा।"

जरीना खुश हो गई कि शौहर उसके साथ ही रहेगा। जिस रात वो किसी और के साथ रहता जरीना के लिए वो रात सदियों से लंबी हो जाती, बिस्तर कांटे जैसे चुभता। अपने दिल की भड़ास वो दोनो बेटों को पीट कर और सास से लड़ कर निकालती थी।

उसके हाथ को हटाते हुए शरमाते हुए बनावटी नाराजगी दिखाते हुए बोली,

"हटो..जी..! आपको शर्म नही आती..? बच्चे के सामने कुछ भी बोल देते हो। हां हां पका दूंगी… उनके लिए भी। आप इसे ले जाओ.. अम्मी जान के पास पहुंचा दो। मैं खाना तैयार करती हूं।"

इतना कह कर जरीना उठ कर बावर्चीखाने की ओर चली गई। सालन में और मसाले डाल कर पलटे से खूब मसल दिया। रोटी के लिए आटा लगाने लगी।

आज रोटियां बनाते हुए उसका दिल सुलग नही रहा था। बल्कि उत्साह से लबरेज हो रहा था। फटा फट हाथ चल रहे थे। जल्दी से रोटियां सेंक कर सब को खिला पिला कर, काम निपटा कर उसे अपने कमरे में जाने की जल्दी जो थी।

अमन और पुरवा को छोड़ कर बख्तावर लौटा तो पुरवा थकान से निढाल वही जमीन पर बैठ गई। अमन भी वहीं बैठ गया।

अमन खुद को अपराधी महसूस कर रहा था। उसे मलाल था कि वो पुरवा के अम्मा बाऊ जी की कोई मदद नहीं कर सका। वो धीरे से बोला,

"पुरु..! आराम से बैठ जाओ। इसे हटा दो। आराम मिलेगा।"

इतना सुनते ही पुरवा फफक कर रो पड़ी।

अमन के गले लग कर रोते हुए बोली,

"अमन..! मुझे आराम कैसे मिलेगा…? तुम बताओ। इस दरिंदे जानवर ने मेरे बाऊ जी का कत्ल कर दिया। उन्हें मार डाला। मेरी अम्मा को उस जानवर के हवाले कर दिया। और तुम कहते हो मुझे आराम मिलेगा..! कैसे आराम मिलेगा..! मुझे कैसे आराम मिलेगा अमन तुम बताओ..?"

पुरवा के सवाल ने अमन को दहला दिया। सच ही तो कह रही है ये। अमन भी पुरवा के साथ रो पड़ा। वो बोला,

"मेरा विश्वास करो पुरु..! तुम ना होती तो मैं इन लोगो से भिड़ जाता। जान की बाजी लगा देता। मेरे जीते जी ये अम्मा, बाऊ जी का बाल भी बांका नहीं कर सकते थे। पर तुम्हें कोई नुकसान ना पहुंचे इसे सोच ने मेरे हाथ बांध दिए थे।"

पुरवा ने अपने आंसू पोछे और एक फैसला लेते हुए बोली,

"अमन मुझे आराम देना चाहते हो..?"

अमन बोला,

"हां पुरु..! इसमें तुम्हे कोई शक लगता है.?"

पुरवा के चेहरे पर कठोरता छा गई। वो सपाट स्वर में निर्विकार भाव से बोली,

"फिर तुम्हे मेरा साथ देना होगा। इस जल्लाद को मार कर ही मुझे आराम मिलेगा। तुम करोगे मेरे लिए..? दोगे आराम मेरे दिल को..? बोलो अमन..! तुम लोग बदला मेरे अम्मा बाऊ जी का..?"

अमन बोला,

"पुरु..! मैं तुम्हारे बिना कहे ही इसको अंजाम देता। मैं अम्मा बाऊ जी के अपराधी को ऐसे ही छोड़ दूं ये संभव नहीं। बस उचित मौके की तलाश में हूं।"