Kataasraj.. The Silent Witness - 82 in Hindi Fiction Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 82

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कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 82

भाग 82

लाहौर स्टेशन आने वाला था। अमन बेचैन था कि उसका पुरवा के साथ, बस यहीं तक था। अमन से अलग पुरवा की हालत भी नही थी।

अब बस थोड़ी ही देर में वो जुदा हो जायेंगे अनन्त समय के लिए। फिर जाने कभी मुलाकात होगी भी या नहीं। ये मासूम सूरत फिर कभी देखने को मिलेगी भी या नही! जितना सोच रहा था तकलीफ उतनी ही बढ़ती जा रही थी।

गाड़ी अपनी रफ्तार से चल रही थी तभी तेजी से सीटी देते हुए गाड़ी रुक गई। अमन ने अनुमान लगा कर बोला,

"लगता है किसी से जंजीर खींच दी है। तभी ट्रेन रुक गई।"

पुरवा की समझ में कुछ नही आया कि आखिर कैसे जंजीर खींचने से इतनी बड़ी गाड़ी चलते चलते रुक जाएगी..! अमन ने पूरी प्रक्रिया उसे समझाई कि गाड़ी इस लटकती हुई चैन के खींचने से रुक जाती है। जब किसी को कोई बहुत बड़ी जरूरत पड़ती है तभी इसे खींच सकता है।

अभी अमन समझा ही रहा था कि वो कोढ़ी जो चादर ओढ़े बैठा था वो सामने से तेजी से गया। अशोक उसे भागते देख कर मामले की समझने के लिए उसके पीछे गए। आखिर किसने जंजीर खिंची है और क्यों..?

गाड़ी के पास बड़ी संख्या में लोग भागते हुए आ रहे थे। लगभग सभी के हाथो मे हथियार थे। कोई लाठी लिए था तो कोई डंडा। किसी के हाथ में तलवार लहरा रही थी तो कोई बंदूक लिए था किसी का भी हाथ खाली नहीं था। बीच बीच में एक दो लोग अंधेरे से निपटने के लिए जलती हुई मशाल भी लिए हुए थे।

वो कोढ़ी तेजी से आकर गाड़ी के दरवाजे पर खड़ा हो गया और अपने साथियों को ऊंची आवाज में पुकार कर इधर अपनी तरफ आने का इशारा करने लगा।

अमन का दिमाग तेजी से सोचने लगा। अच्छा…! तो इस लिए चेन खींच कर ट्रेन को रोका गया है। साफे और दाढ़ी से ये पता लग रहा था कि ये किस समुदाय के हैं। इसका मतलब जो कुछ अखबार के टुकड़े में पढ़ा था वो सब शांत नही हुआ है बल्कि उसकी चिंगारी अंदर ही अंदर सुलग रही थी, सही मौका और सही योजना के साथ वो आक्रमण करना चाहते थे।

तेजी से पूरी गाड़ी में ये हथियार बंद लोग घुसने लगे।

अमन स्थिति भापतें ही पुरवा के पास आया और बोला,

"पुरवा तुम जल्दी से अपने दुपट्टे से अपना मुंह बांध लो।"

पुरवा बोली,

"पर क्यों..?"

वो बोला,

"अभी समझाने का वक्त नहीं है। जैसा कहता हूं वैसा करो।"

फिर खुद ही उसके ओढ़नी से जल्दी से उसका मुंह बांध दिया जैसे गुड़िया और उसकी भाभी सीमा बांधती थीं। और उर्मिला, पुरवा को समझाते हुए बोला,

"आप दोनो ही अपना कोई भी मुस्लिम नाम बताना, वास्तविक हिंदू नाम नही।"

फिर खुद से बुदबुताते हुए बोला,

"या अल्लाह….! खैर कर.. सलामत रख। किसी तरह ये तूफान गुजर जाने दे।"

और वो उर्मिला के बगल से उठ कर पुरवा के करीब बैठ गया।

उर्मिला का दिल दहल गया। वो मन ही मन ईश्वर को याद करने लगी। ’हे… प्रभु..! ये सब क्या हो रहा है..? क्या चाची ने जो कुछ कहा था सही कहा था…! क्या चाची की बात नही मान कर, यहां आ कर गलती की उसने..? क्या ये लोग हिंदुओं का कत्ल करेंगे…! ये पुरवा के बाऊ जी जाने कहा चले गए…?"

बेचैनी से इधर उधर देख कर उनको ढूंढने लगी। पर अशोक कहीं नहीं दिखे।

धड़ धड़ाते हुए करीब चार पांच लोग हाथों में हथियार लहराते हुए उनके डिब्बे में चढ़ आए।

एक तरफ से वो नाम पूछते.. हिंदू नाम बताने पर उन पर वार कर के कत्ल कर देते। मुस्लिम नाम बताने पर, अल्लाह हो अकबर.. काफिरों का कत्ल करो का नारा लगवाते। उन्हें भी अपना साथ देने के लिए साथ में कर लेते।

अमन की सीट बीच के डिब्बे में थी।

दो लोग उनके भी डिब्बे में आ गए। अमन के पास खड़े हो कर वो अपनी लाठी से खोदते हुए गुर्रा कर बोला,

"अबे… उठ..! क्या नाम है तेरा…? "

अमन पूरे आत्म विश्वास से बिना डरे खड़ा हो गया और बोला उसे लगा कही सिर्फ अमन बताने से वो उसे हिंदू समझने की भूल कर सकते हैं। इस लिए अपने अब्बू का नाम जोड़ कर बोला,

"अमन… अमन साजिद खान.. नाम है मेरा।"

वो फिर से बोला,

"कहां से है..?"

अमन बोला,

"चकवाल चौक से।"

फिर उसने पुरवा की ओर इशारा कर के पूछा,

"ये कौन है..?"

अमन बोला,

"ये .. मेरी बीवी है और ये इनकी अम्मी जान हैं।"

उसने घूर कर ऊपर से नीचे तक उर्मिला को देखा और बोला,

"पर … लगती तो नही है।"

अमन बोला,

"ये जिधर की हैं ना उधर का यही पहनावा है।"

"कहां की है..?" उसने पूछा।

अमन बोला,

"वो… सिवान के इस्माइल पुर के शमशाद खान के घराने से हैं।"

उसे थोड़ी तसल्ली हो गई कि अमन झूठ नही बोल रहा है। उस ओर के पहनावे की जानकारी उनको नही थी। हो सकता है उधर की औरतें भी हिंदू औरतों की तरह साड़ी ही पहनती हों।

इत्मीनान होने पर वो आगे बढ़ने ही वाला था कि अशोक को कि बाहें पकड़े दो लोग उन्हें घसीटते हुए ले कर आ गए।

अशोक जब ये पता करने के लिए गए कि जंजीर किसने खींची है.. तो कुछ लोगों को हथियार लिए हुए डिब्बे में चढ़ते देख लिया था। वो उनसे बचने के लिए शौचालय में घुस गए। पर वो कोढ़ी जिससे उनकी रात में बात हुई थी उसने उनको शौचालय में घुसते देख लिया था। हैरत की बात ये थी कि अब इस समय वो बिलकुल स्वस्थ नजर आ रहा था।

उसने अभी चढ़े लोगों से बता दिया कि एक आदमी इसमें छुपा हुआ है।

वो सब जोर जोर से दरवाजा पीटने लगे। साथ ही भद्दी भद्दी गालियां देते हुए दरवाजा खोलने की धमकी देने लगे। ना खोलने पर तोड़ने को उतावले हो गए।

बदहवास अशोक को दरवाजा खोल देने में ही भलाई नजर आई।

जैसे ही उन्होंने शौचालय का दरवाजा खोला।

दो लोग उस पर टूट पड़े।

मारते हुए बोले,

"साला… छुपता है.. साला छुपता है। बोल.. नाम क्या है..(दना दन सिर पर जोर जोर से हाथ से मारते हुए बोले) बोल.. बे साले…! नाम क्या है तेरा..?"

अशोक नही समझ पाए कि एक नाम बता देने से ही उनके प्रति व्यवहार बदल जाएगा। काश वो पता करने नही आए होते तो अमन ने उनको भी सिखा दिया होता..! भोले भले, निश्छल अशोक को नही पता था कि नाम बताते ही उन पर कहर टूट पड़ेगा।