soul Sacrifice in Hindi Fiction Stories by Wajid Husain books and stories PDF | आत्म बलिदान

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आत्म बलिदान

‌‌‌‌‌ क़ाज़ी वाजिद की कहानी - पिता का त्याग

वह एक वकील था, जिसने वकालत के गुर, अपने स्वर्गीय दादा और पिता से सीखे थे। वह शीला बलात्कार कांड के बाद चर्चा में आया था। शीला एक स्कूल छात्रा थी, जिसकी बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई थी। ‌‌‌‌‌‌
शहर का कोई भी वकील ‌बलात्कारियों का ‌‌‌केस लड़ने को तैयार नहीं था। संजय सक्सेना ने अवसर का अनुचित लाभ उठाया ‌‌‌‌‌‌‌और मोटी रकम लेकर मुक़दमा लड़ने को तैयार हो गया, अत: शहर में उसकी थू-थू हो रही थी। उसकी पत्नी निर्मला, थी तो साधारण परिवार से, परंतु उच्च विचारों की संवेदनशील महिला थी। पति के ‌‌‌‌‌‌‌‌फैसले ने उसे कुंठित कर दिया था। निरंतर अपमान के फलस्वरुप उसने अपने को एक कमरे तक सीमित कर लिया था।
मुकदमे की आखि़री सुनवाई पर सक्सेना ने ऐसा चक्कर चलाया, चश्मदीद गवाह अपने बयान से पलट गया और ‌‌‌‌‌बलात्कारी बइज़्ज़त बरी हो गए।
शीला की मां निर्मला के पास गई। उसके पास एक डिब्बे में वह कपड़े थे, जो बलात्कार के समय शीला पहने हुए थी। उसने निर्मला से कहा,"बहन जी ‌‌‌‌‌आपके पति ने, भरी अदालत में, मेरी बेटी को कुलंछनि कहा। यदि आपको नारी जाति से ज़रा भी प्यार है, तो यह ‌‌‌‌‌ख़ून लगे फटे कपड़े पहन कर, ‌उससे पछो, कि शीला कुलंछनि थी, ‌या वह कलयुगी है।"
निर्मला कपड़े लेकर कमरे में गई, परंतु बाहर नहीं निकली। काफी देर इंतेज़ार करने के बाद, शीला की माँ अंदर गई। उसके मुंह से निकला, "यह आपने क्या किया" और ‌तेज़ चाल से अपने घर चली गई।
अक्सर शाम को सक्सेना कलब जाता था। आज पहुँचा, तो मुकदमा जीतने की लोग बधाई देने लगे। देर रात वह घर लौटा, तो ‌‌उसके पैर ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे। घर का दरवाजा खुला था, पर बत्ती गुल थी। उसने ‌‌निर्मला कह कर, पत्नी को ‌‌‌‌‌‌‌‌पुकारा, कोई जवाब नहीं मिला, तो कमरे में गया, बत्ती जलाई, पत्नी का शव पंखे से लटक रहा था। उसके तन पर शीला के कपड़े थे, हाथ में सुसाइड नोट था, जिसमें लिखा था,"कलयुगी ‌‌की पत्नी होने से अच्छा ‌‌‌‌मौत को गले लगाना है।" पुलिस आ गई, शीला की माँ ने ‌‌पुलिस को सब सच्चाई बता दी।
सक्सेना पत्नी की मृत्यु से उबरा नहीं था। उस पर एक और गम् आन पड़ा। उसका छोटा भाई चेन स्मोकर था। उसकी कैंसर से मृत्यु हो गई।
इस परिवार का एक पुश्तैनी नौकर, रामू काका था। एक दिन उसने सक्सेना के बेटे, दीपक ‌‌‌‌‌‌‌‌को सिगरेट पीते देखा, तो व्यथित होकर सक्सेना को बताया। दीपक पापा को माँ की मृत्यु का जिम्मेदार मानता था। अत: पापा ने दीपक से सिगरेट न पीने को कहा, तो ‌उसने उनका कहा न माना और निसंकोच ‍‌उनके सामने पीने लगा।
सक्सेना की बेबसी ने उसे पत्नी की तस्वीर से बातें करने को मजबूर कर दिया।" दीपक मेरी छोटी सी बात भी नहीं मानता, जबकि वह तुम्हारी हर बात मान ‌‌‌‌‌‌‌‌लेता था।"
तभी ‌‌‌‌उसे लगा, निर्मला कह रही है, " मैं प्यार से, तुम मर्दानगी से अपनी बात मनवाते हो, मां बन जाओ, जैसा तुम कहोगे, ‌‌वैसा करेगा।"
सक्सेना ने प्यार और त्याग से उसकी सिगरेट की लत छुड़ाने का मन बनाया। उसने अपनी वसीयत में सभी कुछ उसके नाम लिख दिया और रामू काका को लेकर गाँव चला गया। दीपक ने इसे पापा का नया नाटक समझा और उस पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
सक्सेना का स्वास्थ्य दिन पर दिन गिर रहा था। एक दिन रामू काका ने दीपक से फोन पर कहा, "मालिक का स्वास्थ्य चिंताजनक हो गया है, तुरंत चले आओ।"
‍ दीपक गाँव ‌‌पहुंचा, ‌‌‌‌देखा पापा ‌‌‌‌मर्णावस्था में थे। रामू काका ने उसे पापा की चिट्ठी दी, जिसमें लिखा था," बेटा तुम कुल दीपक हो ‌‌‌‌और इस परिवार की चौथी पीढ़ी के वकील। इस दीपक को कभी बुझने नहीं देना। मैंने इस जीवन में एक बहुत बड़ी गलती की, वह तुम मत करना,
'पैसे के लिए एक मज़लूम ‌‌‌‌लड़की को न्याय से वंचित किया। उसकी सज़ा भुगत रहा हूं।"
चिट्ठी पढ़कर ‌‌‌‌दीपक को लगा," पापा उस योधा की तरह है, जो अपना वतन बचाने के लिए जान की कुर्बानी देता है। पापा ने मुझे बचाने के लिए अपना बलिदान दे दिया। पापा वास्तव में हीरो हैं और मैं उन्हें विलन समझता रहा।" उस समय भी वह सिगरेट पी रहा था। उसने कहा,"पापा ‌‌देखिए, आप जो चाहते थे, वह मैंने कर दिया।" उसने होटों में दबा सिगरेट निकाला और जूते से कुचल ‌‌दिया। उसके बाद वह पापा को चूमने लगा। पापा ‌‌के होठों पर विजय मुस्कान आई। उन्होंने उसके हाथ, अपने हाथों में ले लिए। उन्हें एक हिचकी आई और उनकी आंखें बंद हो गई।
उनका चेहरा ढकते समय, वह ज़ार-ज़ार रोने लगा। उसे पछतावा था, उसने पापा को समझने में देर कर दी।
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