भाग 77
अमन ने घोड़े की जीन के पास के थैले में सारा सामान रख दिया और पुरवा को घोड़े पर बैठने को कहा।
पर पुरवा उसे देख कर डर गई थी।
वो बोली,
"नही.. बाऊ जी..! हम पैदल ही चल लेंगे। हमसे नही बैठा जायेगा। अगर कहीं खाई में कूद गया तो..! नही नही हम नही बैठेंगे।"
अमन समझाते हुए बोला,
"क्या बचपना है..! क्यों कूद जायेगा खाई में..? ये बहुत सीधा है। हमेशा पुरोहित जी को ले कर इसी रास्ते पर आता-जाता है। चलो नखरा छोड़ो बैठो चुपचाप।"
पुरवा डर कर अशोक के पीछे छुप गई। आंखो में याचना भर कर अशोक से बोली,
"बाऊ जी..! आप मना कर दो ना। ( फिर घोड़े की ओर इशारा करते हुए बोली) मुझे नही बैठना। इस.. इस.. घोड़े पर।"
अशोक हंसते हुए बोले,
"बिटिया..! अमन को आता है घोड़ा चलाना। उसने सीखा है आरिफ से। तुम डरो मत।"
उर्मिला आंखे दिखाते हुए बोली,
"चल बैठ.. ज्यादा नाटक मत कर। देर हो रही है।"
अमन बोला,
"अच्छा… पुरवा..! देखो.. मैं खुद नही बैठूंगा। लगाम हाथ में ले कर धीरे धीरे सब के साथ पैदल ही चलूंगा। अब तो खुश..? अब तो बैठोगी न..!"
मरती क्या न करती.. उसे बचने का कोई उपाय नहीं सूझा। हार कर आगे आना ही पड़ा।
अशोक ने बेटी के बचपने पर हंसते हुए उसका हाथ पकड़ कर आगे किया। फिर उसे घोड़े पर बिठाने में मदद करने लगे।
घोड़ा ज्यादा ऊंचा नही था। पहाड़ी नस्ल का छोटा घोड़ा था जिसे काबू करना बहुत आसान था।
पर पुरवा इस पर भी नही बैठ पा रही थी।
अशोक जी जितना उसे उठते वो फिर से नीचे आ जाती।
अमन घुटने के बल बैठ गया और अशोक से बोला,
"चच्चा..! आप एक पैर पुरवा का मेरे घुटनें पर रखवाइए और और दूसरा अपने हथेली आगे कर बोला दूसरा पैर इस पर रख कर चढ़ जाए।
संकोच से गाड़ी पुरवा से अपना कदम आगे बढ़ाते नही बन रहा था। कैसे वो अमन की हथेली पर अपने पैर रख दे।
अमन फिर से जोर देते हुए बोला,
"चलो.. जल्दी करो पुरवा। वक्त नहीं है हमारे पास।"
अशोक चल बिटिया .! चढ़ जा।"
कह कर पुरवा को घोड़े पर बैठने को बोला।
सकुचाती हुई पुरवा ने एक पैर अमन के घुटने पर और दूसरा हथेली पर रक्खा और घोड़े पर बैठ गई।
अमन लगाम पकड़े आगे-आगे चल पड़ा।
उसके पीछे सलमा, उर्मिला और अमन।
अशोक ने निकलते ही जयकारा लगाया ऊंचे स्वर में बोले,
"बोलो.. कटास राज बाबा की… जय।"
सब ने जय कारा में तेज आवाज में उनका साथ दिया।
अशोक खुश थे कि अपने आराध्य का इतने अच्छे से पांच दिन तक दर्शन-पूजन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। तन मन फूल सा हल्का और सुवासित महसूस कर रहे थे।
तेज चाल से सभी अमन के पीछे पीछे चल रहे थे। जल्दी थी कि अंधेरा होने से पहले वो नानी के बंगले तक पहुंच जाएं।
अमन घोड़े की लगाम थामे उसकी बराबरी में चलने की लंबे-लंबे डग रखते हुए चल रहा था।
मेहनत रंग लाई।
वो सूर्यास्त के पहले उस नमक-खोह तक पहुंच गए जहां पर साजिद का काम चल रहा था। उनके ही खदान में जब्बार भी काम करता था।
साजिद का काम खत्म हो गया था। वो तो बस इस इंतजार में रुका हुआ था कि ये लोग वापस आएं तो चकवाल के लिए लौट जाएं।
वैसे भी नानी जान ने आफ़त मचा रक्खी थी। जब भी उससे सुबह शाम में सामना हो जाता वो अमन की दुल्हन कब वापस आयेगी इस बारे में जरूर पूछतीं साथ ही उनसे इस बात को छिपाने का इल्जाम दे कर दो चार बात जरूर सुना देती थीं।
साजिद समझते थे कि नानी जान की मानसिक हालत ऐसी नही कि उनकी समझ पर उंगली उठा कर उनको परेशान किया जाए। जो उनको सच लगता है वो सोचें। उनके सोचने से कुछ बदल थोड़े ना जायेगा। ना ही अमन पुरवा का निकाह हो जायेगा…..। इस लिए बेहतर यही है कि चुप-चाप जो कुछ वो कहें सुन लिया जाए।
जब्बार को पुरोहित जी का घोड़ा दे कर उन्हें वापस करने को अमन बोल ही रहा था कि साजिद ने दूर से उनको देख लिया। वो अपने टेंट में बैठे हुए थे।
उठ का आ गए।
अब्बू को देख अमन के चेहरे पर चमक आ गई। अब्बू अभी तक उसे जिम्मेदार नहीं समझते थे, आज उनका दिया हुआ काम उसने बहुत अच्छे से निभा दिया था। आत्मविश्वास उसके चेहरे पर झलक रहा था।
साजिद पुरवा को घोड़े से उतरते देख उलझन में पड़ गए कि ये क्यों घोड़े से आ रही है। उन्होंने अमन से पूछा,
"क्या हुआ अमन..? सब ठीक तो है..! पुरवा घोड़े से..? क्या बात है..?"
साजिद के सवाल का कोई जवाब अमन देता, उससे पहले अशोक उनके करीब आ कर बोले,
"वो साजिद भाई..! पुरवा को ताप चढ़ आया था। हम तो यही सोच कर परेशान थे कि पता नहीं ये इतनी चढ़ाई चढ़ भी पाएगी या नही। (फिर तारीफ भारी निगाहों से अमन की ओर देखा और बोले) वो तो अमन ने बिना किसी से कुछ बताए पुरोहित जी से बात की और उनका घोड़ा मांग लिया। उसकी अक्लमंदी से सब आराम से ही गया। बहुत जिम्मेदार है अमन बेटा। बहुत सहयोग किया इसने।"
अमन अपनी तारीफ सुन कर झेंप गया। और सिर खुजाते हुए बोला,
"क्या.. चच्चा.. जान..! आप भी। मेरी तारीफ करके मुझे पराया कर दे रहे हैं। अब कोई अपनों के लिए कुछ करे तो उसमें क्या खास बात है..! आप सब, पुरवा कोई गैर थोड़े ना है।"
साजिद की मोटर थोड़ी दूर पर नीचे की ओर खड़ी थी। साजिद उधर इशारा करते हुए बोले,
"चलिए….! फिर आप सब उधर मोटर में बैठ जाइए। जल्दी निकलते हैं जिससे समय से पहुंच जाए।"
ज्यादा दूर तो था नहीं नानी का घर यहां से।
पर पहाड़ी रास्ता होने की वजह से साजिद आहिस्ता मोटर चला रहे थे। अंधेरा होने के पहले ही वो पहुंच गए। अमन ने रास्ते में ही साजिद और सलमा से कहा,
"अम्मी.. अब्बू..! हम आज ही चकवाल नही चल सकते क्या..?"
साजिद बोले,
"बेटा..! चल तो सकते हैं। पर सुनसान पहाड़ी रास्ता है। खतरा मोल क्यों लेना..। यहां से रुपए भी मिले हैं। कल सुबह पौं फटते ही हम निकल लेंगे। मुझे पता है तुम अपना नतीजा जानने के लिए उतावले हो रहे हो। पर कोई बात नही रात भर की बात है। सुबह चलेंगे।"